Jyoti.Pari
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My name is Jyoti Sahu.
|250px|मम छायाचित्रः]]
मम छायाचित्रः
नाम ज्योति साहू
जन्मनाम ज्योति साहू
लिंग स्त्रिलिंग
जन्म तिथि १९ नवंबर १९९७
जन्म स्थान रायगड
निवास स्थान छत्तीसगड
देश  भारत
नागरिकता भारतीय
जातियता भारतीय
शिक्षा तथा पेशा
पेशा छात्र
शिक्षा बिकॉम
महाविद्यालय बॉल्डविन्स गल्स कॉलेज
विश्वविद्यालय क्राइस्ट विश्वविद्यालय , बेंगलुरू
उच्च माध्यामिक विद्यालय विकास आवासिय विद्यालय
शौक, पसंद, और आस्था
शौक बैडमिंटन खेलना, किताबें पढना
धर्म हिंदु
चलचित्र तथा प्रस्तुति पारिवारिक फिल्में देखना
पुस्तक अकबर बिरबल,तेनाली रामन,खोज की किताबें आदि।
रुचियाँ

अच्छी जगहों पर जाना , भिन्न कला और सन्सकृति के बारे मे जानना और संगीत सुनना।

सम्पर्क विवरण
ईमेल jyotisahu0545@gmail.com
फेसबुक Jyoti Pari




                                       "कोइ अपने कर्यों से महान होता है,
                                            अपने जन्म से नहीं ।"

जन्म:

    नवम्बर १९,१९९७ को जन्म लेकर इस दुनिया में आई मैं ज्योति साहु,दुनिया को अपने बारे में कुछ बताना चाहुँगी । दुनिया में अपने जैसे लोगों के बारे में विस्तार रुप से जानने के बाद यह बात तो समझ में आ गयी कि ,           "जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं की,उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की ।"

पढाई:

       जीवन में कुछ नया और अनुठा करने के हेतु मेरे पिता जी ने मुझे हमेशा अनोखे रुपों में अपनी बातों को समझाने का प्रयत्न किया है । बचपन से मुझे पढाई में उतनी रुची नहीं थी,जितनी की खेल-कूद में थी । यह रुची भी उम्र के साथ साथ बढती गयी । पढाई के विषय में मेरा हमेशा से यह मानना है कि जब हम भिन्न-भिन्न जगहों में जाकर पढें तो हमें शिक्षा के साथ-साथ उन जगहों की भी जानकारी रहेगी,वहाँ के लोगों की बोली,उनकी सभ्यता आदि का भी ज्ञान होगा और हम हमेशा अनोखी और अच्छी व बुरी तत्वों से ज्ञात रहेंगे । मेरी विद्यालय की शिक्षा मैंने ५ अलग-अलग विद्यालयों से प्राप्त की है । पहले ४ कक्षा की शिक्षा मैनें अपने राज्य छत्तीसगढ में पूरा किया और कक्षा ५ से १० की पढाई, ओडिशा नमक हिन्दुस्तानी राज्य में पूर्ण की ।

शौक:

              स्कुल की भाग-दौड में तो हमने भाग बहुत लिया और इनाम भी पया पर उनमें से कुछ यादगार सफलता का विवरण निम्न प्रकार हैं  सन २००८ में होने वाले अन्तराष्ट्रिय योगा ओलिम्पियाड में अपने राज्य ओडिशा को तीसरे स्थान पर लाइ । "कोशिश करने वलों की कभी हार नहीं होती।" इसलिए हमने २००९ में उसी ओलिम्पियड में फिर से भाग लिये और परिणाम यह था कि हमने चैम्पियन ऑफ दी चम्पियन का खिताब जीता । सन २०११ में स्वर्गीय भगवान मिश्र जी की स्मृति समिति में आयोजित हिन्दी सुलेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया और आयोजित बैडमिन्टन चैम्पियनशिप सिंगल्स में चैम्पियनशिप का अवॉर्ड पाया । सन २०१२ में राष्ट्रिय बैडमिन्टन चैम्पियनशिप के दौर में खेलने के लिये चुनी गयी परन्तु किसी काराणवश मैं वहाँ न जा सकी और मेरे हाथ से यह सुनहरा अवसर छुट गया । खेल-कुद में तो मुझे वैसे बहुत प्रमाण पत्र और अवार्ड्स मिले लेकिन मेरे पिता जी उनसे सन्तुष्ट नहीं थे क्योंकि उनका मानना था कि मुझे खेल-कुद के साथ-साथ अपनी पढाई पर भी विषेश ध्यान देना चाहिये । उनकी सन्तुष्टि की पहली झलक मैनें तब देखा जब मैं अपने ११वीं और १२वीं कक्षा में प्रथम आई । 
     जीवन के सफर में वैसे तो बहुत से ऐसे घटनाओं का सामना हुआ है जब ऐसा लगा कि मैं कुछ भी नहीं कर सकती, लेकिन फिर जब अपने खिताबों और प्रमाण पत्रों की तरफ मेरी नजर जाती है , तो मन से यही आवाज आती है कि,        "मैं अकेली हूँ,लेकिन फिर भी मैं हूँ ।  
                                        मैं सब कुछ नहीं कर सकती,लेकिन मैं कुछ तो जरुर कर सकती हूँ ,
                                        और सिर्फ इसलिये कि मैं सब कुछ नहीं कर सकती,
                                        मैं वो करने से पीछे नहीं हटुँगी , जो मैं कर सकती हूँ । "
 मुझे अपने माता-पिता के जीवन से बहुत अनुभव और प्रेरणा मिलती है । जब भी हिम्मत का बाँध टूटने सा होता है, या मार्ग कठिन लगने लगता है,वे उन्हें आसान बनाने में मेरी सहायता करते हैं , यह कह कर कि , 
                                       "जहाँ तक न पहुँचे सोच किसी की,
                                         इरादे हमारे उससे भी आगे,
                                         चाँद पर जाकर हमें रुकना नहीं ,
                                         हमारी मंजिल तो सितारों से भी आगे ।"