सदस्य:KRISHNA IYER S/प्रयोगपृष्ठ/2
==बाहरी कड़ियाँ==
"भोपाल की प्र्सिद्ध बोली - भोपाली"
परिचय
संपादित करेंगालियाँ ऐसी, जो सुनकर किसी के भी कान से खून बहने लगे किसी अपने साथी, रिश्तेदार या दोस्त को लम्बे अन्तराल के बाद मिलने पर स्वागत करने का या प्यार जताने का तरीका हो सकता है, ये आप सिर्फ भोपाल आ कर ही जान सकते हैं। आमूमन बात- बात पर गालियाँ देना यहाँ की प्रथा है जो आज भी पुराने भोपाल शहर में मौजूद है और भोपाली बोली का एक मुख्य अंग भी। हिन्दी की इस अनोखी बोली का मूल्य भोपाल के कई इलाकों में आज भी है क्योंकि इस बोली में प्रयोग होने वाली गालियाँ ना किसी के दिल पर चोट पहुचाती है ना ही किसी के दिमाग पर। यहां यह मानना है की जितनी भ्द्दी और लच्छिदार गालियाँ, उतना ही भरपूर स्नेह और अपनापन बसता है लोगों के बीच।
भोपाली बोली का जन्म
संपादित करेंहिन्दी की यह एक बोली, भले ही भारत की आठ मान्यता प्राप्त बोलियों में से नही है फिर भी इस बोली की कठोरता भरी मिठास का महत्व आज भी भोपालवासियों के लिये बहुत सार्थक है। ऐसे तो इस शहर का इतिहास कुछ २५० साल पुराना है। भोपाल में मुसलमान राज्य की स्थापना एक अफगान सैनिक दोस्त मोहम्म्द खान ने की थी। यहाँ के मूल निवासी 'गोंड' हुआ करते थे जो बहुत पहले ही या तो मारे गये या भोपाल छोड भाग गये। गोंड सभ्यता ने यहाँ 'गोंड' बोली के शुद्ध रूप का परिचय करवाया। समय के साथ भोपाल की जन संखया में व्रद्धि हुई और यहाँ अन्य शहरों एवं गावों से लोग आकर बसने लगे और इस प्रकार आज भोपाल में मिली- जुली सभ्यता को देखा जाता है। इस मिश्रित सभ्यता ने ही आज की बोली- भोपाली के जन्म में योगदान दिया है।
शासकों का भोपाली पर प्रभाव
संपादित करेंभोपाल के २५० साल के इतिहास में यहाँ १०७ सालों तक बेगमों का शासन रहा है। शायद यही कारण है कि भोपाली भाषा में शारिरिक हाव- भाव, नाज़- नखरा, लोच- लचक, मुहावरे और इशारों की बहुतायत देखी जा सकती है। किसी ज़माने में भोपाल तीन चीज़ों के लिये प्रसिद्ध था- जर्दा, गर्दा और नामर्दा। यह बोली यहाँ के पूर्व शासकों के अंदाज, बर्ताव और ढंग के बारे मे काफी हद तक विवरण देती है।
भोपाली और आज
संपादित करेंआज, यह शहर अनेक बडे- बडे तालाबों और प्राकृतिक सौंदर्य के लिये प्रसिद्ध है। मध्यप्रदेश की राजधानी होने के साथ- साथ एक तेज़ी से प्रगति करता हुआ शहर है भोपाल। शिक्षा के साथ-साथ भोपाल, कला और संस्कृति के गढ के रूप में इस शहर की पहचान है। आज भी भोपाल में कई सदियों से बसने वाले "भोपालियों" के बीच यह बोली प्रचलित है और काफी सुंदर तरीके से इस अनोखी एवं अनजान बोली का इस्तमाल किया जाता है। इस बोली के कुछ ऐसे शब्द जो काफी प्रचलित एवं एक अरसे से लोगों के बीच, मज़ाक मे ही सही बहुत लोकप्रिय है।
सबसे लोकप्रिय शब्द
संपादित करें'बावा' एक ऐसा ही शब्द है जिसका हिन्दी में मित्र अर्थ होगा। यह शब्द सभी के बीच बडा ही लोकप्रिय है और बहुत ही आमतौर पर प्रयोग किया जाता है। जैसा कि यह बोली अपने अशिष्ट और अनैतिक स्वर के लिये बदनाम है, 'भाईको' एक ऐसा प्रचलित शब्द है जो बहुत ही सधारण रूप से पुरुषों को संबोधित करने के प्रयोग में आता है। 'भन्नाट' एक और ऐसा शब्द है जो अपने तीव्र स्वर को दर्शाते हुए केवल 'अच्छा होने' के अर्थ को दर्शाता है। 'खान' जो हिन्दी का एक बहुत सामान्य शब्द है, भोपाली से ही अपना स्रोत पाता है। इसका इस्तमाल व्यक्ति को आदर सें संबोधित करने के लिये होता है। 'उस्ताद' और 'मियाँ' भी भोपाली से ही अनुकूलित शब्द हैं जिनका उपयोग आदर देने के लिये किया जाता है।
निष्कर्ष
संपादित करेंभोपाली, अपने कठोर स्वर एवं गालियों के बाद भी एक बहुत ही गहरी संस्कृति को दर्शाती है जिसका उत्तर हमें इस बोली और भोपाल का इतिहास बतलाता है। यहाँ के लोगों और परंपराओं का वर्णन भोपाली में 'भन्नाट' शब्द से सरलता से किया जा सकता है। भोपाली भाषा की अद्भुत छटा को कई फैल्मों में भी दर्शाया गया है। यहॉ तक की प्रसिद्ध फिल्म 'शोले' का चहीता किरदार 'सूरमा भोपाली'भी भोपाल एवं भोपाली भाषा का एक प्रसिद्ध वर्णन है। आज के समय में, जब हिन्दी एवं आदि अन्य भारतिय भाषाऍ और बोलियॉ अपना महत्त्व कहीं ना कहीं गवा रहे हैं, भोपाली आज भी भोपाल के लोगों को एक जुट कर अपने असीमित जादू से एक बनाकर रखती है।