गमबूट नृत्य (या इसाकाटुल्लो) एक नृत्य है जो दक्षिण अफ्रीका में नर्तकियों द्वारा वेलिंग्टन जूते पहनकर किया जाता हैं। दक्षिण अफ्रीका में इन्हें सामान्यतः गमबूट कहा जाता है। जूते को घंटियों से सुशोभित किया जा सकता है, ताकि वे मैदान पर नर्तकियों के पैर की थाप के साथ बज सकें। यह ध्वनि, थोड़ी दूरी पर एक अन्य व्यक्ति के लिए कुछ कहने के लिए एक कोड या एक अलग कॉलिंग हो सकती है। इसका उपयोग खानों में संवाद करने के लिए किया गया था क्योंकि वहां, सख्ती से, कुछ भी बात करना वर्जित था। नहीं तो उनके वरिष्ठ उन्हें, अपनी मर्जी से, गंभीर व कठोर सज़ाएं दे सकते थे।

गम्बूट नृत्य


दक्षिण अफ्रीका में काले खनिकों द्वारा। गंबूट नृत्य की संकल्पना, ड्रमिंग के विकल्प के रूप में, काले खनिकों के द्वारा दक्षिण अफ्रीका में की गई थी क्योंकि वहा अधिकारियों ने ड्रमिंग को प्रतिबंधित कर दिया था। गमबूट जूते सोने की खानों मे अक्सर बाढ़ आने वाली एक समस्या का हल थे। अन्यथा,पुरुषों को उनके कार्य स्टेशनों पर घुटनों तक के गहरे पानी में ही कठिन परिश्रम करना पड़ता था। सबसे बुरी स्थिति में, पुरुषों को, खदानों में, जंजीरों में जकड़ कर, लगभग पूर्ण अंधेरे में अपने कार्य स्टेशनों पर धकेल दिया जाता था। उचित जल-निकासी की अनुपस्थिति में खनिकों को घंटों तक घुटनो तक के पानी मे खड़े रहने से उन्हें त्वचा का अल्सर, पैरो की दूसरी समस्याएँ और, परिणामस्वरूप, काम के समय का नुकसान होता था। मालिकों ने पाया कि श्रमिकों को गमबूट देना खानों मे से बाढ़ के पानी को निकालने के मुकाबले कहीं ज़्यादा सस्ता है। इन्हीं कारणों के चलते श्रमिकों को, खनिक वर्दी, भारी काले वेलिंगटन जूते, जीन्स और आँखों मे लगनेवाले पसीने को सोंखने के लिए बैंडस आदि उपल्बध कराए गए। नये परिधानों के साथ श्रमिकों को अपनी संजातीय पहचान दिखाना व अपनी परंपराओं को निभाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए उनको गमबूट नृत्य में अपनी अभिव्यक्ति का दूसरा स्वरूप नज़र आया।


गोल्ड माइंस में संचार

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अपनी देहों, गमबूटो और जंजीरों से लय और ताल बनाकर श्रमिकों ने अपनी अभिव्यक्ति करनी शुरू कर दी। अपने पैरों की थाप और जंजीरों की झंकार से उन्होंने ध्वनियाँ पैदा की। इस तरह वे, न केवल अपनी संजतीय पहचान और पारंपरिक गीतों व धुनों की अभिव्यक्ति कर पाये, बल्की, साथ ही वे कार्यस्थल पर आपस मे संवाद कर पाये। कार्यस्थल पर बहुत अंधेरा होने के वजह से एक दूसरे से बात करना मुश्किल था। इसलिए उन्हें गमबूट नृत्य से आपस में संवाद करने का एकमात्र तरीका नज़र आया।

कार्यक्षेत्र के बाहर गमबूट नृत्य की लोकप्रियता

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गमबूट नृत्य सोने की खानों के बाहर, समुदायों में मनोरंजन के एक नये रूप में प्रचलित होने लगा। जैसे-जैसे नृत्य और प्रचलित हुआ, मालिकों ने , अपनी कंपनियों के प्रतिनिधित्व के लिये नर्तकियों की मंडलियाँ बनाई। मंडलियों ने आगंतुकों के समक्ष नृत्य-प्रद्र्शन किया और इस तरह कंपनियों की प्रतिष्ठा बढ़ाने के माध्यम बने। हालाँकि, ये नृत्य उनकी अपनी खुद की भाषा मे किये गये थे। इस तरह से, नर्तकियों को, वे अपने नियोक्ताओं के बारे मे सोचते थे, उसे उनके जाने बगैर अभिव्यक्त करने और उन्हीं के सामने उनका मज़ाक बनाने का अवसर मिला। इन प्रदर्शनो के माध्यम से यह नृत्य विश्व के अनेक भागो मे प्रचलित हुआ। आज भी यह नृत्य दक्षिण अफ्रीका के इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा है।

आधुनिक समय में

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यह नृत्य यहाँ के हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति बन गया है और इसकी लोकप्रियता आज के दक्षिण अफ्रीका मे भी जारी है। जहाँ, स्थानिय संगीतकार 'वाहईट ज़लु' जॉनी क्लैग ने इसका इस्तेमाल अपने शोज़ में किया है, वहीं, अंतराष्टीय संगीतकार पॉल साइमन ने अपनी एक एलबम के गीत का नाम गमबूट रखा है। मशहूर ड्रैकेंसबर्ग क्वायर भी अफ्रीकी-लोक दिनचर्या के भाग के रूप में गंबूट नृत्य को शामिल करता है। यह नृत्य एक प्रमुख दक्षिण अफ्रीकी लोक समूह ब्लैक उम्फॉशी के प्रदर्शन का मुख्य आकर्षण है। ब्रिटिश-अमेरिकी संगीतकार डेविड ब्रूस ने "गमबूट" नामक एक संगीत लिखा है, जिसे गंबूट नृत्य से प्रेरित किया गया था। दक्षिण अफ्रीका के पर्यटन क्षेत्रों की गलियों और प्लाजा पर गमबूट नर्तकियां आमतौर पर देखी जाती हैं, जैसे कि केप टाउन में विक्टोरिया और अल्फ्रेड वाटरफ्रंट। गमबूट नृत्य पौलीरिधम के अवधारणाओं का इस्तेमाल करता है। विश्व के कई जगहों में अधिकांश त्योहारों में कम से कम एक समूह का गमबूट नृत्य का प्रदर्शन होता है। अब लगभग हर पर्यटक स्थल मे गमबूट नर्तकियों को पाया जा सकता है। आज की कई नई नृत्य शैलियाँ इसी नृत्य शैली का एक रूप है।

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  1. https://dancehistorygumbootdancing.weebly.com/narrative.html
  2. http://www.dreamstoreality.co.za/the-history-of-gumboot-dancing/