सदस्य:Macbhat97/गुड़िया नृत्य
गुडिया नृत्य एक बंगाली शास्तीय नृत्य परंपरा हैं। इसका जन्म बंगाल के गौडा अथवा गौर से होता हैं। महुआ मुखर्जी के द्वारा इसे खंगाला गया हैं। संगीत नाटक आकाडमी ने इस कला को भारतीय शास्त्रीय नृत्य के रुप में पहचान लिया हैं। भारत के संस्कृतिक मंत्रालय ने इसके अध्ययन में छात्रवृत्ति के योग्य समझा।
इतिहास
संपादित करेंगुड़िया नृत्य का इतिहास बंगाल के मंदिरों की परंपरा से संबंधित है, और वह शुरुवाती दोर में मंदिर कला के रुप में जाना जाता था। देवदासीयॉं आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के रूप में नृत्य के इस रूप का अभ्यास किया कर्ती थीं। इस बात का प्रमाण कई टुकडियों में पाया जा सकता हैं कि गुड़िया नृत्य प्राचीन बंगाल के एक एकीकृत हिस्सा था। हम गुड़िया नृत्य को भगवान इंद्र के दरबार में इस नृत्य शैली का अनुसरण करता मनसा मंगल काव्य में मेहुला की कहानी में एक गृहिणी का उदाहरण मिला हैं। भगवान इंद्र को भारतीय पौराणिक कथाओं में सभी देवताओं के राजा माना जाता है। इस नृत्य की जडे हमें पाल राजवंश जहां रामचरित्र काव्या मंदिरों में इस नृत्य शैली का अनुसरण देवदासियों के द्वारा किये जाने के प्रमाण पाए गए हैं। 12 वीं शताब्दी के दौरान जयदेव के प्रसिद्ध गीता-गोविंदा की पत्नी पद्मावती, भी कला के इस रूप के साथ जुड़े थे। इस नृत्य शैली के अधिक उदाहरणों को श्रीहस्तमुक्तवली, संगीता-दामोदर, श्री श्री भक्तिरत्नकारा, गोविंदा लिमारितम, आदि पुस्तकों में पाया जा सकता है। गुड़िया नृत्य के इतिहास में सिर्फ साहित्य तक ही सीमित नहीं है, लेकिन यह पत्थर, मिट्टी, धातु और लकड़ी पर उत्कीर्ण में भी देखा जा सकता है। गुड़िया नृत्य बस नृत्य रूपों में शामिल नहीं है, लेकिन यह चित्रकला, नाटक, मूर्तिकला और कला के अन्य रूपों में भी शामिल हैं। गुड़िया नृत्य को नृत्य नाटिका, समूह नृत्य, गुरु-परम्परा, नृत्य परंपरा आदि के रूप में नृत्य की विभिन्न शैलियों के साथ संबद्ध पाया गया हैं।
बीसवीं सदी में औद्रामगधि संस्कृति के द्वारा गुडिया नृत्य दोबारा लाया गया। चौथी सदी के मंदिरों में इस संस्कृति की छवि झलकती हैं। अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य के समान गुडिया नृत्य देवदासी प्रथा के द्वारा बंगाल में लाया गया। यह नृत्य एतिहास, साहित्य, कविता, संगीत और धुन का अनोखा मिलन हैं। गुडिया नृत्य "छाऊ", " नचनी", "कुशान" और "कीर्तन" के भागों से बना हुआ हैं।
आधुनिक काल में डाक्टर महुआ मुखर्जी जैसे कलाकार इस नृत्य को "रविंद्र भारती संस्थान" में आगमन करवाया। ब्रिटिश राज के दौरान यह सारे पौरानिक नृत्य का पतन हो चुका था। केवल बीसवीं सदी में इन सारे नृत्यों को भारत में वापस लाया। भरतनाट्यम, कुचिपुडी, मोहिनीअट्टम का आरंभ प्रवृत्ति नाम के दक्षिण नाट्य से हुआ था। औद्रामगधि, औद्रा और मगधा का प्रतीक हैं। अंगा, बंगा और उत्तर के कलिंग और वत्सा इस तरह के नृत्य का पूर्वीय भाग विस्तुत हुआ। इसके कारण ओडिसा में ओडिस्सी, असाम में सत्रिया और बंगाल में गुडिया का जन्म हुआ। गौडा बंगा के देवदासी नृत्याकार जो शमयरित्र काव्य के पाला साम्राज्य के समय से जाने जातें हैं। पदमावती भी एक शास्त्रीया नर्तकी थीं।
प्रकार
संपादित करेंगुडिया नृत्य भारत के शास्त्रीय नृत्यों में से एक हैं। इस नृत्य का जन्म भारत के राज्य बंगाल में हुआ। "गुडिया" शब्द का अर्थ ही पुराना बंगाल हैं। इस नृत्य की जडे पोराणिक नात्यशस्त्र से आती हैं, जिसमें चार प्रवत्तियाँ हैं:
१) दिक्षीनाट्या
२) औद्रामगधि
३) अवति
४) पंचाली
सदियौं से चलती आ रहीं पोराणिक संस्कृतियाँ ब्रिटिश राज के कारण उनका पतन हो गया।