डॉक्टर आशा दिनेश चेन्नई

संपादित करें

डॉक्टर आशा दिनेश चेन्नई की एक मसूर मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता है और बचपन से ही पढ़ाई को अपना लक्ष्य माना और जिंदगी में कुछ अलग करने की चाहत ने उनको एक ऐसी विदा की ओर मोड़ दिया जिसमें उस वक्त लड़कियां तो बहुत दूर की बात है, लड़के भी गिने चुने ही जाते थे। 22 अक्टूबर 1966 को एक राजस्थानी परिवार में डॉक्टर आशा का जन्म हुआ था। उनके पिताजी का अपना व्यवसाय थे और घर पर उच्च शिक्षा पाने की कोई माहौल नहीं था, फिर भी इन्होंने मनोविज्ञान जैसे कठिन और असाधारण विषय को चुना यह जानते हुए भी कि उस वक्त मनोवैज्ञानिक किसी मनोचिकित्सक के असिस्टेंट के रूलेप में ही काम करते थे। उस समय ना तो उनकी कोई ज्यादा तनख्वा होती थी और लोगों का मनोचिकित्सक के पास जाने का मतलब होता था कि उन्हें या तो कोई मानसिकबीमारी है या पागलपन है। मद्रास कॉलेज से पढ़ी डॉक्टर आशा ने मनोविज्ञान में बी ए किया फिर एम ए और उसके बाद मद्रास यूनिवर्सिटी के डॉ वी डी स्वामीनाथन के सानिध्य में पी एच दी की। डॉ स्वामीनाथन ने इनका बहुत साथ दिया और इनकी हौसला अफजाई की। 1990 में तमिलनाडु गवर्नमेंट की तरफ से इने अपने विषय और काम के लिए स्वर्णपदक मिला। शुरुआती दौर में अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए इन्हे पैसो कि कमी हुइ। उन्हे पैसे कमाना बहुत जरुरी लगा। पैसे कमाने के लिये 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे जो कि किसी कारणवश गलत रास्ते पर चले जाते थे और जिन्हें जेल हो जाती थी, उनको परामर्श देती थी। ऐसे बच्चों को सही रास्ते पर लाने के लिए वह उन बच्चों के परिवार वालों से भी मिलती थी, उनकी परेशानियां समस्ती थी और फिर परिवार वाले को और बच्चे दोनों को ही सलाह मशवरा दे कर उनका मार्गदर्शन करती थी। न्यायालय में पेश होकर ऐसे बच्चों को कैसे सुधारा जा सकता है उसका परामर्श देती थी। चुकी यह विदा ज्यादा लोग नहीं जानते थे तो इन्हें पैसे भी कुछ खास नहीं मिलते थे लेकिन इस अनुभव ने उन्हें अपने विषय पर असाधारण पकड़ दिलाई और आगे की जिंदगी में उनका यह अनुभव उन्हें बहुत काम आया। अपने विषय और इससे काम पर उनका आत्मविश्वास मैं बहुत इजाफा हुआ। कुछ समय बाद अपने पति की प्रेरणा लेकर के इन्होंने अपनी क्लीनिक खोली लेकिन महीने दो महीने बीत जाते थे और मुश्किल से एक या दो लोग चला लेने आते थे। उन दिनों में मनोवैज्ञानिक के पास जाकर के सलाह लेना प्रचलन में नहीं था पर इनके पति दिनेश जी ने इनका साथ कभी नहीं छोड़ा और सदा ही आगे बढ़ने के लिए इनका मनोबल बढ़ाया। वह नई नई विषयों पर पुस्तके लाकर के इनको और आगे पढ़ने कि सलाह देते थे। ऐसे में एक बार किसी बड़ी कंपनी के एक इंजीनियर आए जिनको इन्होंने परामर्श दिया और उसके बाद इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहले एक कंपनी, फिर दूसरी और उसके बाद अनेक कंपनियां इनके पास में अपने सीनियर एग्जीक्यूटिव के लिए कंपनी में भी बुला कर के स्टाफ को ट्रेनिंग दिलवाते थे। डॉ आशा तमिलनाडु की पहली क्लीनिककल साइकोलोजिस्ट हैं। आज बड़ी बड़ी कंपनियां अपने सीनियर एग्जीक्यूटिव के फाइनल अपॉइंटमेंट के कंफर्मेशन के पहले इनसे एक्सपर्ट ओपिनियन लेती है। भारत के बड़े-बड़े स्कूल और कॉलेज मे भी इन्हें कंसल्टेंसी के लिए बुलाया जाता है। डॉ आशा का कहना है कि आज के दौर में बच्चों को अपने कैरियर बनाने के लिए उनकी काउंसलिंग होना बहुत जरूरी है। आने वाली जनवरी 2019 में नई दिल्ली में वर्ल्ड बुक फेयर में इनती किताब,"द डायरी ऑफ ए साइकोलोजिसट" का विमोचन होगा।