Mahendra raj singh chouhan
Mahendra raj singh chouhan 1 जनवरी 2025 से सदस्य हैं
कविता:- चलता जा तू राहों पर , न रुक न ठहर।
चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।
चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।।
अगर रास्ता भी रोक तुझे, तो उस पर भी सेतु बांधकर
चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।
चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।।
ये जिद नहीं, दीवानगी है , ये जिद नहीं ,दीवानगी है
ठान लिया ,फिर कौन सी हैरानगी है ।
चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।
चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।।
लेखक -महेंद्र राज सिंह चौहान
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