कविता:- चलता जा तू राहों पर , न रुक न ठहर।

चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।

चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।।

अगर रास्ता भी रोक तुझे, तो उस पर भी सेतु बांधकर

चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।

चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।।

ये जिद नहीं, दीवानगी है , ये जिद नहीं ,दीवानगी है

ठान लिया ,फिर कौन सी हैरानगी है ।

चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।

चलता जा तू राहों पर, न रुक न ठहर।।

                          लेखक -महेंद्र राज सिंह चौहान

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