सदस्य:Mahima0510srivastava/प्रयोगपृष्ठ
रुबेल्ला वाइरस
संपादित करेंरुबेल्ला वाइरस का परिचय
रुबेल्ला वाइरस एक विषाणु है। रुबेल्ला एक अत्यंत संक्रामक मीजल्स वाइरस है। यह कनजैनटील रुबेल्ला सिंड्र्रोम के कारण होता है जो कि सब से ज्यादा गर्भवती महिलाओ में पाया जाता हैं और बच्चों को सौम्य रूप से घ्रसीत करता है। यह ऐसा संक्रमण है जो की हवा के माध्यम से मनुष्य में खाँसी और छींक से फेलता हैं। फ्रेडरिक होफमैन एक जर्मन चिकित्सक ने इस वाइरस कि सबसे पहले १७४० में खोज कर जानकारी दि थी। वैक्षिक आधार पर १००००० बच्चे इस वाइरस से प्रभावित हो कर जन्म लेते है हर साल, इस वाइरस का कोइ विशिष्ट इलाज नहीं है परंतु इसको टीके(वेकसीन)के माध्यम से नियंत्रण किया जा सकता हैं। इस वाइरस के लक्षण बहुत लोगों को कई बार समझ नहीं आते क्योंकि वह बहुत धीरे असतर पर बढते है। इनको पूरी तरह से फैलने में २-३ सप्ताह लग जाता है। इसके कुछ लक्षण है जैसे कि रैश, बुखार, जी मचलना और लसीका ग्रंथि में सुजन होना। वयस्कों में इस वाइरस के लक्षण बहुत शीघ्रता से दिखते है और बच्चों में उतने ही सौम्यता से बढते है।
यदि एक गर्भवती महिला इससे पीडित हो जाए तो संक्रमण उस महिला के भ्रूण को प्रभावित कर देता है और मिसकेरेज हो जाते हैं। वेकसीन ने रुबेल्ला वाइरस के प्रभाव को बहुत कम किया है । परंतु आज भी जो बच्चे इस संड्रोम के साथ जन्म लेते है उनको सुन ने और देखाने में मुसीबत होती है और कई बार थायराइड से भी पीडित रहते है। ऐसे बच्चों का सर्जिकल आपरेशन करना पडता है जो कि बहुत कठिन होता है। रुबेला वाइरस का कोइ ईलाज नहीं है परंतु इसे टीके से कम किया जा सकता है। इस टीके का मोनोवैलेन्ट सुत्रीकरण आज असानी से उपलब्ध हो जाते है पर इसको उच्च मात्र में देने से लोगो कि जान भी चली जाती है। रुबेल्ला वाइरस से केवल बचा जा सकता है,इससे बचने के लिये बस सफाई का ध्यान रखना चाहिए और हमेशा मूँह पर हाथ रख कर खाँसना और छींकना चाहिए। सावधानि रखने से हम कई रोगों से बच सकते हैं ।
रुबेल्ला वाइरस के प्रकार
इस वाइरस को जर्मन मीसल्स के नाम से भी जाना जाता है। यह अत्यंत शीघ्रता से फैलने वाला संक्रमण हैं। यह त्वचा और ग्रंथियों को नुकसान पहुँचाता हैं। यह दो प्रकार के होते है-
१-अर्जित रुबेला
२-जन्मजात रुबेला
अर्जित रुबेला वाइरस हवा और सर्पश के माध्यम से ग्रासित करता हैं। यह छीकेंने और खँसने से भी फैलता हैं। यह त्वचा के ऊपर प्रभाव डाल उन्हें लाल कर देते हैं। जन्मजात रुबेल्ला वाइरस माँ के गर्भ से शिशु को प्रभावित करता हैं।
कारण
इस वाइरस के होने के कारण है- यह ज्यादतर लोगों के खँसने या छीकने पर हवा के द्रवारा फैल जाता हैं। यह सक्रमित व्यक्ति के पास जाने से या उसके उपयोग कि होई वस्तुओं को सर्पश करने से उसके किटणों फलते है। और अगर कोई गर्भवती महिला इस से प्रभावित हो जाए तो उसके रक्त के माध्यम से ये शिशु को इस रोग से ग्रसित कर सकता है और होने वाले बच्चे के लिये हानिकारक हो सकता हैं।
लक्षण
इस वाइरस के रोगी में नीचे दिए हुए लक्षण दिखाई पडते हैं-
१-१०५-११० का बुखार होना।
२-जोडों में दर्द होना।
३-चेहरे पर लाल निशान।
४-सर में दर्द होना।
५-बदन में खुजली होना।
६-आँखे लाल हो जाना आदि।
अवधि
इस वाइरस का कोइ खास और विशिष्ठ उपचार नहीं है लेकिन अच्छी बात यह है कि इसके लक्षण सात से दस दिनों में चले जाते हैं। परंतु कभी-कभी यह जानलेवा भी हो साकते हैं।
जाँज और परीक्षण
इस रोग का परीक्षण, रोगी के निदान और व्यक्ति के चिकित्सीय इतिहास के माध्यम से होता है। इसके अतिरिक्त-
१-रक्त परीक्षण
२-नाक या गले में रुई डाल कर रोगी के थुक से होता हैं।
परहेज और आहार
अगर कोई इस रोग से पीडित हो जाए तो उसके लिए लेने योग्य आहार होते है-
१-फल और सब्जियाँ।
२-जैतून या वनस्पति तेल में पका हुआ खाना।
३-फलों में जैसे जामुन,चेरी,स्ंतरे,गाजर,पालक और नाशपती।
४-विटानमिन ए,ई,डि के विटामिन्स।
परहेज
१-दूध,पनीर,अंडे और सारे रासायनिक भोज्य।
२-कॉफी शराब और तम्बाकू नहीं लेना चाहिए।
३-शक्कर और ब्रेड से बचना चाहिए।
निष्कर्ष
यह वाइरस बहुत जल्दि फैलता है और इसके लक्षण का पता लगाना थोडा कठिन होता है और अगर वक्त पर इसका पता नहीं चला तो ये जानलेवा भी हो सकती है। इस वाइरस से बचने के लिये हमेशा अपने आस-पास साफई रखनी चाहिए और स्वच्चता से रहना चाहिए।
उल्लेख
<ref>https://en.wikipedia.org/wiki/Rubella_virus</ref>
<ref>http://www.healthline.com/health/rubella</ref>
<ref>http://chealth.canoe.com/condition/getcondition/rubella</ref>