गुरु - चाण्डाल योग ----

गुरु - चाण्डाल योग उन योगों में से एक है जिसके कारक और प्रभाव काफी अस्पष्ट हैं।

'सर्वार्थ चिंतामणि' नामक ज्योतिष ग्रन्थ कहता है -- जीवे स राहौ यदि वा स केतौ । चाण्डलता पाप निक्षितौ येत ।।

'जातक पारिजात' नामक ज्योतिष ग्रन्थ कहता है -- जीवे राहुयुते अथवा शिखियुते पाप इक्षिते नीचकृत ।।

दोनों ज्योतिष ग्रन्थों का कहना है कि जब बृहस्पति राहु या केतु के साथ होता है और किसी पापग्रह से दृष्ट होता है तो इसका परिणाम चाण्डाल-योग होता है।

फिर आगे 'सर्वार्थ चिंतामणि' नामक ज्योतिष ग्रन्थ कहता है कि - भले ही बृहस्पति केतु या राहु या शनि से जुड़ा हो, लेकिन बुध या शुक्र किसी से भी दृष्ट है, तब जातक निम्न वर्ग में जन्म लेते हुए भी शास्त्रों में पारंगत हो जाएगा। यहाँ हम आगे यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि "गुरु चाण्डाल योग" पर पापग्रहों की दृष्टि अशुभ प्रभाव को और भी बढ़ा देता है। गुरु-चाण्डाल योग के प्रभाव के कारण जातक --

1.अज्ञेयवादी या नास्तिक बन सकता है और ईश्वर के अस्तित्व को नकार सकता है। धर्म के प्रति उसकी रुचि नहीं रह जाती है। वह अधर्मी हो जाता है।

2.जातक अन्य धर्मों से घृणा करने वाला धार्मिक कट्टर हो सकता है और जहाँ तक उसके अपने धर्म का सम्बंध है, वह अत्यंत रूढ़िवादी हो सकता है।

3.जातक धूम्रपान, शराब और अन्य व्यसनों का आदी हो सकता है। भले ही वह वेद मंत्रों और शास्त्रों में पारंगत हो।

4.जातक क्षुद्र मंत्रों में रुचि ले सकता है और इस तरह काले जादू और अन्य अपरंपरागत तरीकों से पैसा कमा सकता है।

लेकिन गुरु-चाण्डाल योग का एक दूसरा पहलू भी है। गुरु-चाण्डाल योग का रचनात्मक प्रभाव भी है। गुरु-चाण्डाल योग व्यक्ति को उसके सच्चे अर्थों में अत्यधिक धार्मिक बनाता है और उसे कुछ शर्तों के साथ अत्यधिक ज्ञान देता है। जैसे - गुरु-चाण्डाल योग के रचनात्मक प्रभाव तब होते हैं --

1.जब बृहस्पति जन्मकुंडली में स्वराशि या उच्च की राशि में होता है।

2.जब बृहस्पति बली है और बृहस्पति और कारक-ग्रह के बीच काफी दूरी है।

3.जब बृहस्पति और कारक-ग्रह पर शुक्र या बुध की दृष्टि पड़ रही है।

4.जब बृहस्पति और कारक-ग्रह नेचुरल शुभकारक ग्रह के नक्षत्र में होते हैं।

5.जब जन्मकुंडली का नवम भाव और नवम भाव का स्वामी बली हो।

6.जब जन्मकुंडली में बली धर्मकर्म-अधिपति योग विद्यमान हो।

7.जब बृहस्पति और केतु साथ में हों और द्वादश भाव से भी संबंध हो।

8.जब जन्मकुंडली का प्रथम भाव और दशम भाव शुभदायी ग्रहों के पूर्ण प्रभाव में हो।

***************************************************

************** रत्न की विशेषता **************

कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं और उनकी ऐसी विशेषताएं होती हैं कि वगैर किसी विशेष प्रयत्न के ही उनको देखते ही रत्न कह दिया जाता है। वैसे सामान्य रूप से हीरा, माणिक्य, पन्ना, पुखराज, नीलम, वैदूर्य सभी पत्थर ही हैं परंतु इनकी कुछ अप्रतिम विशेषताओं के कारण इनका विशेष नाम रत्न या रमणीय पड़ा। अंग्रेजी में इनको बहुमूल्य पत्थर (प्रेशियस स्टोन) कहा जाने लगा। यदि एक शब्द में कहा जाय तो इन सब की मिलीजुली विशेषता का नाम है - सौन्दर्य अथवा लावण्य। लेकिन इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अकेला सौन्दर्य अथवा लावण्य ही किसी पदार्थ को रत्न की संज्ञा से विभूषित होने का अधिकार नहीं देता। रत्न उसी पदार्थ को कहा जायेगा जिसमें लावण्य अधिक से अधिक टिकाऊ रहेगा। साथ ही उसे स्थिर भी रहना चाहिए।

****************************************************

*****Weak and Afflicted Sun in a Horoscope*****

The Sun represents ego or Atma of Kaalpurusha (Zodiacal Man). It rules the bile (Pitta), heart, brain, head, right eye, bone, spleen, etc. ; diseases of the alimentary system like stomatitis, dyspepsia or indigestion, appendicitis, diarrhoea, dysentery, anal fissure and fistula, enlarged spleen and diseases of the nervous system like inflammation of the brain, meningitis, headache, vertigo (giddiness), insomnia (sleeplessness), apoplexy, tetanus, sun-strokes, etc. and stands for vitamins A and D whose deficiency may lead to night blindness, tickets, malformation of bones, etc.

At birth if the Sun has no strength, the native will be most unhealthy, inactive, poor and sickly and may not have longevity. When posited in or owning unfavourable houses or associated with or selected by malefic, the Sun becomes afflicted or ill-dignified and causes disappointment, loss of money, troubles to father or bodily complaints.

Consumption of the lungs will occur when the Sun is afflicted in Gemini, Virgo, Sagittarius or Pisces . When in Cancer (owned by the Moon), the Sun indicates that the native will be sickly and unhappy, possessing a service mentality ; he may have defective sight too.