Nathi ka bada
नाथी का बाड़ा एक लोकोक्ति है
राजस्थान में 'नाथी का बाड़ा' सिर्फ एक कहावत (लोकोक्ति) ही नहीं बल्कि किस्सा है। यह कहां से और कैसे शुरू हुई इसका इतिहास डेढ़ सौ से दो साल पुराना और बेहद रोचक है।
नाथी का बाड़ा की लोकोक्ति नाथी बाई नाम की एक महिला से शुरू हुई थी। नाथी बाई का जन्म पालीवाल (ब्राह्मण)कुल मे हुआ । नाथी बाई राजस्थान के पाली जिले की पाली तहसील के गांव भांगेसर की रहने वाली थीं। नाथी बाई का जन्म 1830 मे हुआ और उनका जन्म और ससुराल भांगेसर गांव मे था । उस समय भांगेसर गांव मे करीब 250 पालीवाल (ब्राह्मणो)के घर थे।नाथी बाई के पति का नाम नृसिंह जी था । उनके पति का निधन शादी के एक साल बाद ही हो गया था । नाथी बाई त्याग और परोपकार की साक्षात देवी थी । करीब सौ साल पहले नाथी बाई का निधन 1905 मे हो गया। मगर उनके गांव को लोग आज भी तपोभूमि नाथीमाँ नगरी भांगेसर कहते है, जहां उनका परिवार रहता है।
कहते हैं कि नाथी बाई दानशीलता की साक्षात देवी थीं। जरूरतमंदों के लिए उनके घर पर कमरे अनाज से भरे रहते थे। इसके अलावा वे नकद राशि भी दान करती थीं। खास बात यह है कि दान करते समय नाथी बाई ना तो अनाज को तोलती और ना ही नोटों को गिनती करती थी। वे मदद के लिए लोगों को रुपए मुट्ठी में भरकर देती थीं।गांव और आस पास स्थानीय लोग शादी-ब्याह, मायरा भात, जरुरत के हिसाब मांगने आते थे। लोग बेझिझक आकर मदद मांगते थे। ऐसे में उनके घर को नाथी का बाड़ा कहा जाने लगा था। बाड़ा यानी ऐसी जगह जहां से कभी भी कोई भी जाकर मदद ले सकता है।
रियासतकाल में बनाया गया नाथी का बाड़ा यानी नाथी बाई का घर जर्जर हो जाने के कारण उनके परिवार के सदस्यों ने मकान का नवीनकरण करवाकर वहां पक्के मकान बनवा लिए। उनके घर के प्रवेश द्वार पर लगाए गए पत्थर पर खुदाई से 'नाथीमाँ भवन' लिखा हुआ है। घर की ओर जाने वाली गली शुरू होते ही एक चबूतरा भी है, जिसे नाथी बाई ने बेटी की शादी में व्रत पालन के दौरान बनवाया था।नाथी बाई ने तालाब के पास एक विशाल नृसिंह-भगवान का मंदिर भी बनवाया । तथा तालाब के पास उनका समाथी स्थल भी बना हुआ है।
नाथी बाई को लोग नाथी मां कहकर भी पुकारते थे। उनके 69 वर्षीय पड़पौते नरसिंहराम पालीवाल व उनकी पत्नी गंगा पालीवाल ने मीडिया से बातचीत में बताया कि नाथी भवन में नाथी मां की बैठक भी बनी हुई थी। नाथी मां से जुड़ी एक किवंदती है कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी में 60 गांवों के लोगों को बुलाया था। स्नेह भोज में घी की नालियां बही थी। घी बहता हुआ गांव के प्रवेश द्वार (फला) तक पहुंच गया था।