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लक्ष्मण सिंघ
संपादित करेंलक्ष्मण सिंघ एक भारतीय गोल्फ खिलाडी है, जिन्होंने भारत के लिए १९८२ एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता था। उन्हें 'बनी' लक्ष्मण सिंघ भी बुलाया जाता हैं। उन्हें १९८२ में अर्जुन पुरस्कार भी मिला था।
परिवार और प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंलक्ष्मण सिंघ का जन्म जोधपुर में हुआ था। उन्के पिता भारतीय सेना में काम करते थे। उन्के पिता, बिजाइ सिंघ और दादा, हनुट पोलो के खिलाडी थे। उन्होंने १९६६ में मुम्बाइ में महीन्द्रा कंपनी में काम करना शुरु किया। तीन साल बाद वे कलकत्ता चले गए।
उपलब्धियाँ
संपादित करेंमुम्बाइ में उन्होंने नैशनल जूनियर टोर्नमेन्ट में भाग लिया और उस्के बाद कई वर्षों तक खेलना बंद किया। लक्ष्मण सिंघ ने १९७१ में वेस्टर्न इन्डिया चैम्पियनशिप में राजकुमार पितम्बर को हराया। उसके बाद उन्होंने १९७२ और १९७३ में सिलोन चैम्पियनशिप जीता और १९७४ में ईस्टर्न चैम्पियनशिप जीता। १९७८, १९८२ और १९८७ में उन्होंने नैशनल चैम्पियनशिप जीता। १९८२ में लक्ष्मण सिंघ ने स्वर्ण पदक और टीम गोल्ड पाया। १९७३ में नोमुरा कप की जीत उन्की ज़िन्दगी का एक बहुत महत्त्वपूर्ण मंज़िल था। उन्होंने १९७६ में कलकत्ता वापस चले गए। उन्होंने ३१ सालों तक मर्चेन्ट्स कप खेला। इसमें उनकी सबसे बडी जीत १९७८ का था, जब टिस्को को हराया। लक्ष्मण सिंघ ने इंगलैंड में भी गोल्फ खेला हैं।
उनके पुत्र, अर्जुन सिंघ और रनजीत सिंघ भी गोल्फ के खिलाडी हैं। वे जोधपुर में अपनी पत्नी, शरन के साथ रहते हैं।