लावणी पारंपरिक गीत और नृत्य का एक संयोजन है। लावणी, महाराष्ट्र में लोकप्रिय संगीत का एक जर्नल है जो विशेष रूप से ढोल की की घुन पर प्रदर्शित किया करते है। यह नृत्य पहले थियेटरों में भी मराठी में दिखाते थे। इस नृत्य को महाराष्ट्र,दक्षिण मध्य प्रदेश,उत्तरी कर्नाटक में भी चलता आ रहा है। इसे पुरुष लोग ढोलकी की धड़कन पर प्रदर्शित करते है और यह ढोलकी भी एक टक्कर उपकरण है। महिलाए इसे 9 यार्ड लंबी साड़ी पहनकर नाचती है।

व्युत्पत्ति

संपादित करें

परंपरा के अनुसार लावणी नाम का शब्द लावण्य नाम से लिया गया है जिसका अर्थ है सुन्दरता। एक अन्य परंपरा के अनुसार यह एक मराठी शब्द "लावेन" से लिया गया है।

परंपरागत रूप से देखा जाए तो यह लोकप्रिय नृत्य शैली विभिन्न प्रकार के वषयो को भी शामिल करता है जैसे समाज,धर्म और राजनीति। लावणी में गाने ज्यादातर भावनाओं में कामुक होते हैं और सामाजिक, राजनीतिक,व्यग एवं बहुत तेज भी होते है। मूल रूप से यह थके हुए सैनिकों को मनोरंजन ओर मनोबल बढ़ाने के लिए इस नृत्य का इस्तेमाल किया गया था और इसी वजह से यह अब भी बहुत प्रसिद्ध हो गया है। लावणी के गाने जो नृत्य के साथ साथ गया भी जाता है, आमतौर पर अपनी प्रकृति में कामुक होते हैं। कहते है की इसके मूल स्वर प्राकृत भाषा से लिया गया है जिसे "हौला" ने एकत्रित किया था। लावणी में दो प्रकार है। वे है:

१। निर्गुणी लावणी (जिसे दार्शनिक लावणी भी कहते हैं) और

२।। सृंगी लावणी (जिसे कामुक लावणी भी कहते हैं)

मालवा में निर्गुणी पंथ का भक्ति संगीत प्रकार की लावणी लोकप्रिय है। लावणी को फिर से दो अलग अलग प्रदर्शनों में विकसित किया गया है जो है: १। फदाची लावणी और २। बेटाची लावणी। सदाची लावणी वो है जो नाटकीय वातावरण में बड़े दर्शकों के सामने एक सार्वजनिक प्रदर्शन में गठित होता है, उसे सदाची लावणी कहते हैं और इसी को एक निजी चुनिंदा दर्शकों के सामने सिर्फ एक लड़की या महिला उसे दर्शाती है तो उसे बैठाची लावणी कहते है। इसे बंद कमरे में किया जाता है।

नृत्य के वस्त्र

संपादित करें

महिला जब यह नृत्य दर्शाती है तो वह सड़ी पहनकर करती है जो लगभग 9 मीटर लंबी रहती है। वह अपने बालों को भी गोलाकार घुमाकर (बन बनाकर) रखती है। इसे हिन्दी मे जुडा कहते है ओर मराठी में अंबडा। इसके साथ साथ उनके आभूषण भी बहुत भारी रहते हैं जिसमें गले का हार,कलमबंद,चूडियां और पायल शामिल है। वे आमतौर पर माथे पे गहरे लाऋल रंग की एक बढ़ी बंदी भी डालते हैं। जो साड़ी वे पहंते है उसका नाम नौवारि है। साडी को खूबसूरती से लपेटा जाता है ताकि वह सुंदर दिख सके और इस प्रकार से साडी को बांधना अन्य प्रकार से बहुत सहेज है और महिला कि सुंदरता को भी भडाती है। ऐसे भी लोग है जो महिलावों के साथ लावणी में नृत्य करते है, उनको किन्नर नाम से बुलाते है या नट करके भी कहते है। ये किन्नर मुख्य नर्तक के साथ नृत्य करते है।

               मराठी फिल्मों ने लावणी के नृत्यकला को लोगों तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिंजरा और नटरंग जैसी फिल्मों ने न केवल अपने राज्य की संस्कृतीय संगीत का संदेश दिआ है बलकी लावणी पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है। २०१५ की ऐतिहासिक फिल्म भाजीराव मस्तानी में भी दीपिका पादुकोण और प्रियांका चोपडा ने पिंगा नामक गाने पर लावणी के नृत्य को दर्शाते हुअ इसे नई ऊचाँई दी है।

लावणी का मुख्य विषय यह है कि वह पुरूष और स्त्री के बीच विभिन्न रूपों का संबंध दिखाता है जैसे उनके बीच का प्यार, उनका गहरा संबंध, ताल-मेल आदि। लावणी की शुरुआत मराठी सैनिकों में जोश भरने के लिये हुई थी। उनकी पत्नी अपने पती को युध्द में शामिल होने के लिये विदाई देते हुए, उनका गर्व भढाने के लिये इसकी शुरुआत हुई थी। इससे उनको विदाई का दर्द भी समझ आता था। [1] [2]

  1. https://en.m.wikipedia.org/wiki/Lavani
  2. https://commons.wikimedia.org/wiki/