एक परिचय - डा. आर. बी. धवन

डा. आर. बी. धवन (गुरू जी) भारत के विख्यात् ज्योतिर्विदों में से एक, दीर्घ अनुभवी और विद्वान ज्योतिषाचार्य हैं। आप बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक रूची होने के कारण अपना अधिकांश समय वैदिक, पौराणिक और आध्यात्मिक साहित्य को पढ़ने और उनके सारतत्व को समझने में ही व्यतीत करते रहे हैं।

लगभग 22 वर्ष की आयु में एक बार जब आप गीता का गहन अध्ययन कर रहे थे, तब भगवान श्री कृष्ण के उस श्लोक से विशेष प्रभावित हुए, जिस में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूँ, मैं मंत्रों में गायत्री हूं।

बस उसी दिन से आप गायत्री के रहस्य की खोज में व्यस्त रहने लगे। जो खोज 29वें वर्ष में गायत्री के सिद्ध पं. श्री राम शर्मा जी के साहित्य से प्रभावित होकर गायत्री मंत्र की दीक्षा प्राप्ति तक जारी रहा। इस बीच 25 से 29 की आयु में आपने आयुर्वेद रत्न की उपाधि भी प्राप्त की। इस के पश्चात भी ज्ञान और शिक्षा प्राप्ति का यह क्रम जारी रहा, और आप ने श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ से सन् 2000 में ज्योतिष-भूषण की उपाधि प्राप्त की। तब से आप निरंतर ज्योतिष विद्या के माध्यम से समाज को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

Dr.R.B.Dhawan (guruji) का मानना है कि किसी भी विद्या का कोई अंतिम छोर नहीं है, अर्थात् ज्ञान कि सीमा कहीं समाप्त नहीं होती। इस लिए जीवन के अंतिम श्वांस तक स्वाध्याय और लेखन रूकना नहीं चाहिए, (नई बातों की जानकारी के लिए स्वाध्याय और अपने अनुभवों को साझा करने के लिए लेखन कार्य करते रहना आवश्यक है।) गुरू जी ने ज्योतिष के जिज्ञासुओं के लिए ज्योतिष विज्ञान पर 10 उत्कृष्ट पुस्तकें लिखी हैं।