इस नाचीज ,खाख्सार का परिचय क्या ख़ुद ब ख़ुद जुवां से दूँ बस इतना जान लीजिये कि मै एक मुसल्मा भी नही और मेरी जुवां उर्दू भी नही मगर मै उस सरजमी से ताल्लुक रखता हूँ जिसे सारा जहाँ हिंदुस्तान के नाम से जनता है और

इसी गंगा–जमुनी तहजीब का एक छोटा सा शहर है फर्रुखाबाद ! आइये जानते है 

इस शहर को दास्तान–ऐ-फर्रुखाबाद के रूप में | मेरी तमाम हजरात से गुज़ारिश है कि इल्मी गलतियों को नज़र अंदाज करते हुए इस गजल पर गौर फ़रमाए क्योंकि

यह एक जरिया है अपनी सरजमी की यादों को ताज़ा करने का |
लीजिये पेश-ऐ-अकीदत पैदाइश–ऐ-सरजमी को ये नजराना ------------

*दास्तान –ऐ- फर्रुखाबाद * अतीत बहुत पुराना है , अतीत बहुत पुराना है | लेकिन जो बीत गया , वह गुजरा जमाना है || सुनहरे हर्फो में लिखी जो इबारत थी | आज फिर मिलकर , हमको दुहराना है ||अतीत ... जश्न-ऐ-जमीन का , जलसा-ऐ-सालाना है | टूटे हुए ख्वावों को , फिर से सजना है || कल का पांचाल हुआ आज का फर्रुखाबाद | गंगा और जमुनी तहजीब फिर बसना है ||अतीत .. कल थी पहचान जहाँ पाण्डव और द्रोपदी से | आज वही पांचाल फिर से सजाना है || जयचंद , हर्ष , शाहू , बंगश और फर्रुखशियर | के इस वतन को फिर गुलिस्ताँ बनाना है ||अतीत ... कटे , बटे और छटे ,दर्द कई झेले है | इस सियासी दुनिया के अनगिनत झमेले है || सच तो बहुत कड़वा है ,पर तुम्हें बताना है | ख़ुद के बजूद को ही आईना दिखाना है ||अतीत ... बौद्ध मठ जो संकिसा का गर्व था हमारा कभी | आज उसी स्थल को स्वर्ग सा बनाना है || गंगातट , मन्त्र और मन्दिर गौ रक्षा से | आर्य श्रेष्ठ संस्कृति को भी निभाना है ||अतीत ... गिरजा ,गुरुद्वारों से ,मस्जिद और मजारों से | छोटे से नगर को फिर भव्यतम बनाना है || गलियों की सोंधी सी माटी की खुशबू को | दिल –ओ–जहन में फिर अपने बसाना है ||अतीत ... कल थी पहचान जहाँ बरतन और वस्त्रों से | हस्तशिल्पी गलियों से शहर फिर सजाना है || खिलखिलाती धूप और ठिठुरती रातों में | मेहनत के चिराग़ से मंजिल को पाना है ||अतीत ... आलू ,इत्र ,दालमोठ ,गजक और रंगाई से | वस्त्रों की छपाई से , लहगों की कढ़ाई से || स्वादिष्ट मिठाई से ,कलम की लिखाई से | रिश्ता इस जमीन का सदियों पुराना है ||अतीत ... छायावादी कविता की विरह और वेदना से | धरती ये गूंजी थी याद फिर दिलाना है || नित नये विचारों से और नवाचारों से | अपने वतन का सर गर्व से उठाना है ||अतीत .... तीन सौ वर्ष का हुआ आज शहर “ फर्रुखाबाद ” | ऐतिहासिक पन्नों में दर्ज यह कराना है || एक चिराग़ छोटा सा , है सिर्फ़ “ रजनी कान्त ” | लेकिन जहाँन को रौशनी दिखाना है ||अतीत ... पैगाम देना है चैन-ओ-अमन का हमें | नफ़रत को अब हर दिल से मिटाना है || अतीत बहुत पुराना है , अतीत बहुत पुराना है | लेकिन जो बीत गया ,वह गुजरा जमाना है ||अतीत ...... नोट :-पाठकों से एक विनम्र निवेदन है कि यह गजल मेरा मौलिक लेख है जो कि अपनी जन्मभूमि “फर्रुखाबाद” को समर्पित है | कृपया इसको तोड़ – मरोड़ कर या किसी अन्य नाम से प्रकाशित करवाने या करने का कष्ट न करें ,धन्यबाद |

                                                   रजनी कान्त