सदस्य:Ranjithamuniraj/प्रयोगपृष्ठ/article 15
संविधान
संपादित करें१५ अगस्त, १९४७ को भारत स्वतंत्र हुआ और २६ जनवरी १९५० को एक गणतंत्र बना । संविधान बनाने के लिए राजेन्द्र बाबू की अध्यक्षता में संविधान समिति बनाई गई । जनवरी २६, १९४९ को यह बन कर तैयार हो गया और इस पर हस्ताक्षर हुए । २६ जनवरी, १९५० से यह प्रभाव में आया और भारत एक सर्वप्रभुसत्ता सम्पत्र लोकतंत्रीय गणराज्य बन गया । इसका तात्पर्य यह है कि भारत पर इसके किसी भी कार्य, नीति आदि के संबंध में किसी बाहरी शक्ति का कोई हस्तक्षेप नहीं हैं और यहां की जनता और उसके चुने हुए प्रतिनिधियों में ही अंतिम और संपूर्ण शक्ति है । केन्द्र में, अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति ही देश का प्रधान है । लेकिन वास्तविक सत्ता का उपयोग प्रधान मंत्री और उनका मंत्री मंडल करता है । प्रधान मंत्री और उनके सहयोगी मंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं । संसद के दो घर हैं- लोक सभा, राज्य सभा ।[1] भारतीय संविधान के तृतीय भाग में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गयी है. यह अमेरिका के संविधान से ली गयी है. मौलिक अधिकार व्यक्ति के नैतिक, भौतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है. जिस प्रकार जीवन जीने के लिए जल आवश्यक है, उसी प्रकार व्यक्तित्व के विकास के लिए मौलिक अधिकार. मौलिक अधिकारों को ६ भागों में विभाजित किया गया है।[2]
मौलिक अधिकार
संपादित करेंमौलिक अधिकार के प्रकार १. समानता का अधिकार २. स्वतंत्रता का अधिकार ३. शोषण के विरुद्ध अधिकार ४. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ५. संस्कृति और शिक्षा से सम्बद्ध अधिकार ६. सांवैधानिक उपचारों का अधिकार[3] प्रजातंत्र में स्वतंत्रता को ही जीवन कहा गया है. नागरिकों के उत्कर्ष और उत्थान के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें लेखन, भाषण तथा अपने भाव व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी जाए. उन्हें कम से कम राज्य सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया जाए कि उनकी दैनिक स्वतंत्रता का अकारण अपहरण नहीं किया जायेगा।
अनुच्छेद १५
संपादित करेंअनुच्छेद १५ के अनुसार धर्म, मूलवऺश,जााति,लिंग या जन्मस्थन के आधार परविभेद का प्रतिषेध : १. राज्य,किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवऺश,जााति,लिंग जन्मस्थन या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। २. कोई नागरिकों केवल धर्म, मूलवऺश,जााति,लिंग जन्मस्थन या इनमें से किसी के आधार पर दुकनों,सार्वजनिक,मनोरंजन के स्थनों में प्रवेश, या पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुआों,तालाबों.स्नानाघाटों,सड़कों अौर सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग के संबंध में किसी भी निर्योग्यता,दायित्व,निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा । ३. इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्रियों अौर बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।[4]