भारत मे हिन्दू धर्म के अंतर्गत जितने भी वेद है,पुराण,उपनिषद,गीता,महाभारत,रामायण उनमे किसी मे भी जन्म के आधार पर वर्ण का वर्णन नही है, कोई भी जन्म के आधार पर न तो सूद्र होता है ना ब्राह्मण, अर्थ ही गलत मान लिया गया है,

वेद में जिस विराट पुरूष की बात कही है उसमें, विराट पुरुष के मुख को ब्राह्मण,भुजाओ को क्षत्रिय, जांघो को वैश्य, एवम पैरो को शुद्र कहा गया है, इसलिए उस समय वेदों को ठीक से न समझ कर उस समय की वर्ण व्यवस्था में शुद्रो को हीन मान लिया गया, जो सरासर गलत था।

अगर वेद की माने तो ठीक इसी प्रकार पृथ्वी भी शुद्र है, उसी विराट पुरुष की नाभि से ब्रह्मांड का जन्म हुआ, ओर उसके पैरों से पृथ्वी का जन्म हुआ, पृथ्वी हमे धारण करती है, पोषण करती है, फल देती है, तो यह भी क्या शुद्र हुई? नही ।

इसका एक औऱ प्रमाण रामायण में मिलता है

ऋषि याज्ञवल्क ने राजा जनक को भरी सभा मे कहा था कि

ब्रह्म को जान लेने के पश्चात मनुष्य भी ब्रह्म बन जाता है, वो ब्रह्म जो भूल प्यास, दुख सुख, इच्छाओ से परे हो जाता है, जो न तो पुत्र की कामना करता न धन की, जिसके लिए समस्त संसार ही एक माया हो जाता है, जो भिक्षा मांग कर जीवन यापन करता है, वही सच्चा ब्रह्म या ब्राह्मण है।

कुल से कोई ब्राह्मण नही होता न कोई जन्म से शुद्र,

ये तो कार्य है, जो शिक्षा दे, ओरो से बेर न करे, अपने ब्रह्म को जान कर जीवन यापन कर वो ब्राह्मण,

जो समाज मे स्वामी भाव रखे, युद्ध कौशल से निपुण हो, दान का भाव रखे वो क्षत्रिय,

जो आने समाज को भोजन दे, कृषि करे,गौ पालन करे, वो वैश्य, ओर सबसे महत्व पूर्ण कार्य, जो समाज की गंदगी साफ करें, समाज को स्वच्छ बनाये,समाज मे कार्य , तन से अपना योगदान दे, वो शुद्र, होते है, शुद्र शव्द को गलत भाव मे लिया जाता है, अगर कोई ब्राह्मण कुल में जन्म ले कर भी अगर समाज की सेवा तन से करना चाहता है तो वो भी शुद्र कहलायेगा, ओर कोई जन्म शुद्र कार्य करने वाले के यह ले और वह चाहे की में वेद उपनिषद पाठ कर लोगो को शिक्षित बनाना चाहता हु तो वो भी ब्राह्मण कहलायेगा,।

वर्ण व्यवस्था को गलत तर्क देकर माना जाता रहा,

हमने देश की आबादी  एक बहोत बड़े हिस्से को देश की आज़ादी में सहायता देने से वंचित रखा, मेरी मानो अगर बहोत पहले छुवा छूत खत्म कर दी जाती तो देश बहोत पहले आजाद हो जाता,

कुछ लोगो ने आने निजी स्वार्थ के लिए वेदों को गलत मान लिया,

अगर ऐसा होता तो, ना वाल्मीकि जी एक साधु संत बनते,

न भारद्वाज ऋषि बनते। न शबरी के झुटे बेर खाये जाते , न भगवान विष्णु एक वैश्य एक ग्वाले के रूप में जन्म लेते।

इसलिए महाभारत में भी भीष्म पितामह ने अपने अंतिम दिनों में कहा कि मैं खुद नही जानता कि ये कार्य पर आधारित वर्ण व्यवस्था कैसे जन्म आधारित हो गयी।

हालांकि आज देश का संविधान सबको एक अधिकार देता है

सब एक है।

ये सब पुरानी बाते हो गयी है। इसलिए इन पर मिट्टी डालो ।

हिन्दू धर्म सनातन था, कुछ स्वार्थियों की वजह से ये क्रम लागू हो गया। अब हमें उसे बदल कर, सम्पूर्ण भारत मे सब को एक मान कर , रहना चाहिए, न खुद को मुस्लिम बोलो न हिन्दू,

भारतीय बोलो, ये देश एक घर है अपने घर वालो का खयाल रखना हमारा फ़र्ज है।

रवि चौबे

नई हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी बड़वानी

बड़वानी(जिला)