बचत मूल्य राजनैतिक अर्थव्यवस्था की समीक्षा में कार्ल माक्र्स का एक केन्द्रिय विचार है। माक्र्स ने स्वयं इस शब्द को नहीं खोजा था, उसने इस विचार को विकसित किया था। “बचत मूल्य” जर्मन शब्द “मेरवेर्ट” का अनुवाद है, जिसका अर्थ है कुल मूल्य (विक्रय में से सामग्री की लागत को घटाने के बाद।) पारम्परिक रूप से, कुल मूल्य सकल श्रम आय और सकल लाभ आय का योग होता है। परन्तु, माक्र्स का इस विचार का प्रयोग भिन्न है क्योंकि माक्र्स के लिए मेरवेर्ट निवेश की गई उत्पादक पूंजी पर लाभ या आय को बताता है, यानि, पूंजी के मूल्य में वृद्धि की राशि। अतः, माक्र्स द्वारा मेरवेर्ट के प्रयोग का अनुवाद हमेशा “कुल मूल्य” से भिन्न, “बचत मूल्य” के रूप में किया जाता रहा है। माक्र्स के सिद्धान्त के अनुसार, बचत मूल्य कर्मचारियों द्वारा स्वयं की श्रम लागत की वृद्धि से निर्मित नए मूल्य के बराबर है, जिसे उत्पादों का विक्रय करने पर पूंजीवादी द्वारा लाभ के रूप में लिया जाता है।

माक्र्स ने सोचा कि 19वीं सदी के बाद से संपत्ति एवं जनसंख्या में भीमकाय वृद्धि का मुख्य कारण श्रम के उपयोग द्वारा अधिकतम बचत मूल्य को पाने का प्रतिस्पद्र्धी प्रयास था, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता एवं पूंजीवादी संसाधनों में भी उतनी ही भीमकाय वृद्धि हुई। आर्थिक बचत को जिस सीमा तक धन में परिवर्तित किया और अभिव्यक्त किया जा सकता है, उतने ही वृहत्तर स्तर पर धन का एकत्रीकरण संभव है। (देखें पूंजी एकत्रीकरण और बचत उत्पाद)

सिद्धान्त संपादित करें

 
Pyramid of Capitalist System

बचत मूल्य के स्रोत को समझाने की समस्या को फ्रेडरिक ऐंगल्स द्वारा निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया गया हैः “यह बचत-मूल्य कहाँ से आता है? यह न तो क्रेता द्वारा वस्तुओं को उनके मूल्य से कम पर खरीदने से आ सकता है और न ही विक्रेता द्वारा उन्हें अधिक मूल्य पर बेचने से। क्योंकि दोनों मामलों में प्रत्येक व्यक्ति के लाभ और हानियाँ एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं और इसका कारण यह है कि प्रत्येक व्यक्ति क्रेता एवं विक्रेता होता है। न ही यह धोखे से आ सकता है, क्योंकि हालांकि धोखा किसी अन्य की कीमत पर एक व्यक्ति को धनी बना सकता है लेकिन यह दोनों के स्वामित्व वाले धन के योग को नहीं बढ़ा सकता है और इसलिए वितरण में मूल्यों के योग को नहीं बढ़ा सकता है। इस समस्या का समाधान आवश्यक है और इसका समाधान सारे धोखे और किसी बल के हस्तक्षेप के बिना पूर्णतः आर्थिक तरीके से किया जाना चाहिए-समस्या यह हैः व्यक्ति द्वारा लगातार क्रय मूल्य से महंगा बेचना कैसे संभव है, इस परिकल्पना पर भी कि समान मूल्यों को हमेशा समान मूल्यों से बदला जाता है?”

माक्र्स का समाधान कार्यरत श्रम समय और श्रम शक्ति के बीच अन्तर करना था। एक पर्याप्त रूप से उत्पादक व्यक्ति अपनी मजदूरी की लागत से बढ़कर उत्पादन कर सकता है। हालांकि उसकी मजदूरी कार्य के घण्टों पर आधारित प्रतीत होती है लेकिन एक आर्थिक अर्थ में यह मजदूरी श्रमिक के उत्पादन के पूर्ण मूल्य को प्रतिबिम्बित नहीं करती है। वास्तव में श्रमिक अपने श्रम को नहीं बल्कि अपनी कार्य करने की क्षमता को बेचता है।

एक श्रमिक की कल्पना करें जिसे 10 डाॅलर प्रति घण्टे की दर से काम पर रखा गया है। पूंजीवादी की नौकरी में आने पर, पूंजीवादी उसे जूता बनाने की मशीन का संचालन सौंपता है जिसके द्वारा श्रमिक प्रत्येक पन्द्रह मिनट में 10 डाॅलर का उत्पादन करता है। हर घण्टे, पूंजीवादी को 40 डाॅलर मूल्य का उत्पादन मिलता है और श्रमिक को केवल 10 डाॅलर का भुगतान किया जाता है, शेष 30 डाॅलर को वह सकल आय के रूप में रख लेता है। पूंजीवादी द्वारा स्थिर एवं चल लागतों (मान लें) 20 डाॅलर (चमड़ा, मशीन का क्षय, आदि) को घटाने के बाद, उसके पास 10 डाॅलर शेष रहते हैं। इस प्रकार, 30 डाॅलर के व्यय पर पूंजीवादी को 10 डाॅलर बचत मूल्य प्राप्त होता है; उसकी पूंजी का स्थान न केवल संचालन ने ले लिया है बल्कि उसमें 10 डाॅलर की वृद्धि भी हुई है।

श्रमिक सीधे इस लाभ को नहीं ले सकता है क्योंकि उसका उत्पादन के साधनों (जैसे, जूता बनाने वाली मशीन) या उसके उत्पादों पर कोई दावा नहीं है और मजदूरी के बारे में सौदेबाजी करने की उसकी क्षमता कानूनों एवं श्रम की पूर्ति/माँग से बँधी है।

परिभाषा संपादित करें

एक अर्थव्यवस्था में कुल बचत-मूल्य (माक्र्स सम्पूर्ण बचत-मूल्य की ओर संकेत करते हैं) मूलतः शुद्ध वितरित एवं अवितरित लाभ, शुद्ध ब्याज, शुद्ध किराए, उत्पादन पर शुद्ध कर एवं राजस्व, लाइसेन्स, पट्टों, निश्चित मानदेयों आदि से जुड़ी शुद्ध रसीदों के योग के बराबर होता है। निःसन्देह, सामान्य लेखांकन में सकल एवं शुद्ध लाभ आय की गणना का तरीका निजी व्यवसाय से कुछ अलग हो सकता है (संचालन बचत भी देखें।) स्व३यं माक्र्स की चर्चा मुख्यतः लाभ, ब्याज और किराए पर ध्यान देती है, कर निर्धारण एवं राजस्व जैसी वसूली को अनदेखा करती है जो उसके जीवनकाल में आनुपातिक रूप से राष्ट्रीय आय के बहुत छोटे अवयव थे। परन्तु पिछले 150 वषों में, संसार के लगभग प्रत्येक देश में अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका बढ़ गई है। 1850 के आस-पास, विकसित पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में सकल घरेलू उत्पादन में सरकार का औसत भाग 5 प्रतिशत के लगभग था; 1870 में 8 प्रतिशत से थोड़ा अधिक; प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व 10 प्रतिशत से कुछ कम; द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने से ठीक पूर्व लगभग 20 प्रतिशत; 1950 तक लगभग 30 प्रतिशत; और आज औसत लगभग 35-40 प्रतिशत है।

कार्ल माक्र्स का विरक्ति का सिद्धान्त सामाजिक वर्गों में विभाजित एक समाज में जीने के फलस्वरूप अपने मानवीय स्वभाव के आयामों से लोगों की सामाजिक विरक्ति का वर्णन करता है।

विरक्ति एक सामाजिक रूप से विभाजित समाज में जीने का प्रणालीबद्ध परिणाम है क्योंकि एक सामाजिक वर्ग का यांत्रिक भाग होने से व्यक्ति अपनी मानवता से दूर हो जाता है। उत्पादन के पूंजीवादी रूप में विरक्ति का सैद्धान्तिक आधार यह है कि श्रमिक अपने जीवन और नियति का निर्धारण करने की क्षमता को खो देता है जब उसे अपने कार्यों के निदेशक के रूप में स्वयं के बारे में सोचने के अधिकार से; बताए गए कार्यों के चरित्र का निर्धारण करने से; दूसरे लोगों से उनके संबंध को परिभाषित करने से; और उनके श्रम द्वारा उत्पादित वस्तुओं का स्वामित्व रखने एवं वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का उपयोग करने से वंचित किया जाता है। हालांकि श्रमिक एक स्वायत्त, स्व-सिद्ध मानव है, एक आर्थिक अस्तित्व के रूप में उसे लक्ष्यों की ओर निर्देशित किया जाता है और पूंजीवादी द्वारा बताई गई गतिविधियों की ओर मोड़ा जाता है, जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है जिससे वह उद्यमियों के बीच व्यवसायिक प्रतिस्पद्र्धा के दौरान श्रमिक से बचत मूल्य की अधिकतम राशि को निकालता है।

पुस्तक सूची संपादित करें

  1. Dahrendorf, Ralf. Class and Class Conflict in Industrial Society. Stanford, Calif.: Stanford University Press, 1959.
  2. David McLellan, ed., "Capital." The Marx-Engels Reader, 1977. Oxford University Press: Great Britain.
  3. Kingston, Paul W. The Classless Society. Stanford, Calif.: Stanford University Press, 2000.
  4. Marx & Engels. The Communist Manifesto. New York: Penguin group, 1998.
  5. Parkin, F. Marx’s Theory of History: A Bourgeois Critique. New York: Columbia University Press, 1979.
  6. Youth for International Socialism- NewYouth.com