सदस्य:Ritikagoenka/प्रयोगपृष्ठ
वर्तमान में औरत और पुरुष दोनो ही कंधे से कंधे मिला कर आगे बढ़ रहे है।स्त्री, पुरुष के समान सभी कार्यों में सफलता हासिल कर रही है किंतु उनकी उन्नति की गति काफ़ी धीमी है।औरतों को उच्च वर्गों में पहुँचने में काफी वक़्त लग जाता है। हम सभी ने एक बात ज़रूर ध्यान दिया होगा की औरतों का वेतन हमेशा पुरषों से कम रहता है।औरतों के साथ यह पक्षपात हमेशा से होता आया है। जब इस बात की तह तक पहुचाँ गया तब लोगों ने बड़ी ही अयथार्थ कारण बताया। लोगो का यह मानना है की औरते शारीरिक रूप से पुरषों से कमज़ोर होती है,वे मर्दों जितना भोज नहीं उठा सकती। पूछे जाने पर यह भी कहा गया की उनको घर की ज़िमेदारी भि सम्भामनी होती है ,जैसे घर जा के बच्चों को संभालना, खाना बनना, आदि बातें सामने आयी। कुछ कंपनी और शोधकों ने यह बात को भी सामने लायी की उचे दर्जे में पहुचँने के बाद वह देर तक ऑफिस में रह कर काम नही कर सकती। शाम होते ही सुरक्षा का विषय सामने आ जाता है और भारत में औरतों का देर रात तक भर रहना कभी भी लाज़मी नहीं समझ गया । इससे उन्हें ओवरटाइम के बोनस या आगे बढ़ने की सम्भावना काम हो जाती है । शोधकों ने एक और बात बताई की लोग यह पक्षपात ढकने के लिए कहते है की औरतें कम पढ़ी लिखी होती है। इन बातों से साफ़ ज़ाहिर होता है की औरतों के साथ कैसे भेद-भाव किये जाते है । इस अंतर को ' जेंडर पाय गैप' कहा जाता है । सन्न १९६३, में 'इक्वल पाय एक्ट' निकाला गया था ताकि अधिक से अधिक कंपनी,कारखानों और सभी संगठनो में औरतों को उनके मेहनत की तनखा मिले। हमारे देश हर १२ अप्रैल को ये दिन मनाया जाता है। हल में ही 'मॉन्स्टर इंडिया'स रिपोर्ट' ने यह बताया की भारत में पुरषों को हर एक गंटे के $२८८.६४ और औरतों को $२०७.८५ मिलते है। हमे यह भी जानकारी मिली की भारत में इस साल लिंग वेतन अंतर २७% है । लगभग १० साल पहले जितने पैसे पुरुष कमाते थे, आज उतना महिलाएं कमाती है । भारत में शुरू से ही औरतों को नीची दृष्टि से देखा गया है, ऐसे हालातों में भी जब एक लड़की बहार निकल के काम करती है और अपने परिवार का पालन-पोषण करना चाहती है तो उसे उसकी मेहनत और कार्य के पैसे भी नहीं मिलते । ऐसे वक़्त में परिवार वाले भी उसे आगे भड़ने का प्रोत्साहन नहीं देते । उनकी छोटी सोच को और ताकत मिल जाती है की घर को चलने की क्षमता बस मर्दों के पास है । जब अधिक से अधिक लोगों ने यह बात को जाना तो उनकी राय कुछ ऐसे थी की उन्होंने लड़कियों को आगे काम करना या करवाना लाज़मी नहीं समझा। हमारे देश में सबसे ज्यादा श्रम-शक्ति है और इस में हमरा स्थान दूसरे नंबर में आता है परन्तु हम इसका पूरा पूरा उपयोग नहीं करते । इन्ही भेद-भाव के वजहों से लोग देश के विकास में अपना सहयोग देने से पीछे रहे जाते है । हमारे देश की आधी से ज़्यादा जन-संख्या औरतों की है । जब हम उन्हें बराबर का दर्ज नहीं देंगे तब लोग ऐसे ही उन्हें बोझ समझ के मारते रहेंगे, उनको पढने-लिखने से वंचित रखेगें, छोटे उम्र में उनकी शादियाँ, आने जाने पर पावंदी, उनको उनके अधिकार नहीं दिए जायेंगे और ना बताया जायेगा आदि समस्याएं रोज देश के सामने एक विकराल रूप धारण करती रहेगी और हम कुछ नहीं कर पायेंगें । ऐसी अवस्था आ जाएगी की देश की आधी से ज़्यादा जनता अपाहिज़ हो जाएगी । तब देश की आर्थिक अवस्था बस निचे ही गिरती चली जाएगी। औरतों को उनके अधिकार मिलने चाहिये तभी देश का विकास और औरतों का दर्जा हमारे समाज में उठेगा । जब सभी लोग खुल कर अपने तनखा के बारे में बात करेंगे तो इस पक्षपात के विरुद्ध आवाज़ उठा सकेंगे । महिलायों के कंधे कोई नाजुक नहीं है, उनके हालात हमारे समझ में ऐसे है की उन्हें हर वक़्त लड़ना ही पड़ता है। उन्नति के शिकार में पहुचने के लिए औरतों का भी साथ में बढ़ना बहुत ज़रुरी है। संदर्भों http://www.thehindu.com/business/Economy/india-suffers-from-huge-gender-pay-gap-says-report/article8612245.ece http://www.paycheck.in/main/world-map-gender-pay-gap/gender-pay-gap-in-india-1