वाल्मीकि या भंगी समाज आज का वाल्मीकि समाज या भंगी समाज का इतिहास शोषित रहा है। प्राचीनकाल में ये समाज शोषित वर्ग रहा है।परंतु आज इस समाज की स्थिति बहुत ही दयनीय है।यह जाति जनजाति जाति थी।और ये जाति सभी आक्रमकारियों की रणनीतियों को भंग करके रख देती थी।और उनका सर्वनाश कर देती थी। इसलिए इस जाति को घुसपैठियों द्वारा भंगी कहा गया।क्योंकि ये सबको भंग करके रख देते थे। इस जाति को सिंधु घाटी सभ्यता में चूहड़ा भी कहा जाता है। किन्तु ये शासक जाति नहीं थी। वर्तमान की तरह सफाई करने वाली।इस जाति का सम्बन्ध शिवजी के शिवगणों से नही है।शिव को सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपना इष्ट देव मानते थे।शिव जब किसी का विनाश करने की ठान लेते थे तो वो अपने इन गणों को भेजते थे और शत्रु का समूल विनाश कर देते थे।।और हज़ारों वर्षों तक देश में घुसने नही दिया।किन्तु घर के कुछ भेदी इनकी पराजय का कारण बने।और इन्हें गुलाम बना लिया गया। इनकी शिक्षा और सम्पति सब कुछ इनसे छीनकर इनका शोषण किया गया।और इनके सिर टोकरा रख दिया गया।ताकि इस जाति का आत्म सम्मान हमेशा नीचा ही रहे।किन्तु आज भी इस जाति में एक खास गुण पाया जाता है कि ये एक वो आज भी नीचे दबे है।यह जाति महऋषि वाल्मीकि जी को अपना इष्ट देव मानती है। वीर एकलव्य का सम्बंध भी इस जाति से है। आल्हा ऊदल भी इस समुदाय के नहीं माने जाते है।मुगल काल मे यह जाति सिख धर्म से भी जुड़ गई थी जिन्हें मजहबी सिख कहा जाता है।इन्हें शोषक वर्ग द्वारा हरिजन भी कहा गया।किन्तु यह समाज अपने को हरिजन कहलाना पसंद नही करता है।