आबाद नही हो सकते थे. इन सबके विरोध में, भारथियोन कि स्थिथि में सुधार करने के लिए, आपने आंदोलन शुरू किया, जो निप्क्र्य प्रथिरोध के नाम से प्रसिद्ध है . यह भी एक प्रकार का प्राहिंसाथ्मक सथ्याग्रह था . गाँधीजी के सथ्याग्रहा प्रयोग का यह प्रथम प्रयास था . इसमे उन्हें सफल्था मिली, और अपने 'सत्य के प्रयोग' के प्रथी गविजि कि धारजा और भी द्द्द् हो गयी . इस आंदोलन में भाराथ से भी स्वर्गीय गोक्ले आदि ने काफ़ी साहयथा भेजी . घोक्लेजि स्वयं दक्षिण अफ़्रीका गए . स्वर्गीय दीनबंधु से भी गाँधीजी कि भेत इसी आंदोलन कल में हुई और एंड जी साहब ने ही, दक्षिण अफ्रीकी सथ्याग्रह के बाद गाँधीजी और दक्षिण अफ़्रीका सरकार के प्रधान मंत्री जनरल सम्तुस से सम्झोथा कराया . नेताल के बाहर युद्ध तथा झुलु विध्रोह में गाँधीजी ने भारतीय अम्बुलेस दल का नेतृत्व किया और आइहथो कि सेवा की . सन् 1615-1618 के युद्ध में उन्होंने, गुजुरत कि खेड़ा थेह्सिल में, सरकार कि सहयथा के लिए रंगरूट स्वयं-सेवक-दल का संगतन किया . दक्षिण अफ़्रीका के प्रवास कल में ही उन्होन्हे आहंसाथ्मक सत्याग्रह का प्रयोग और विकास किया और उसके सिद्धंथो को स्थिर किया . सन् 1618 मै उन्होन्हे "हिन्दी स्वराज्य" नमक एक पुस्थक लिखी . इस पुस्थक में अहिंसा तथा सत्याग्रह के सिद्धंथो के आधार पर उनके अपने विचार हे . आज भी गाँधीजी इस पुस्थक में प्रथिपाधित सिद्धंथो को मांथे है . जब विश्व युद्ध कि समाधि के बाद भाराथ में नई शासन सुधार योजना प्रकाशित कि गयी और दूसरी ओर रोलत को स्थायि का रुप देने क्ा प्रयथ्न किया गया, थो गाँधीजी ने सथ्यग्रह आंदोलन छेड़ने की गोश्ना की . सन् 1620 में असहयोग आंदोलन शुरू किया . सन् 1622 में गाँधीजी को राजद्रोह के अपराध में 6 साल कि सज़ा दी गयी, परंथु सन् 1625 में बीमारी के कारण उन्हें मुक्थ कर दिया गया . असहयोग आंदोलन का अवसान होते न होते देश में सांप्रदायिक में ज़ोर पकड़ लिया था, अथेव आपने प्रयिश्चित स्वरूप् इक्कीस दिन का वर्थ किया, देश दाहला ऊता और स्वर्गीय मोतीलाल नेहरू के समप्थिथ्व का एकता सम्मेलन हुआ . 31 दिसंबर 1626 कि अपराधी रात को लाहौर में पूरा स्वाधींथा के ध्यय ही गोश्ना कि गयी . इसी वॉश गाँधीजी के प्रभाव से लॉर्ड इरावन के प्रथी, उनकी स्पेशल्स को उदाये जाने कि घटना से उनकी बच्च जाने के लिए सहानुभुथि का प्रस्थाव स्वीकार किया गया . सिमोन कमीशन के विफल्था के बाद सन् 1630 में गाँधीजी ने नमक सथ्यग्रहा प्रारंभ किया . इस आंधोलन में उन्हें राज्बंधि बनाकर यर्वना जेल में रखा गया . जनवरी 1631 में उन्हें मुक्थ कर दिया गया . 31 मार्च 1631 में वह् लंदन गए और गोल मेज परिषद में कांग्रेस कि ओर से शामिल होना स्वीकार किया तथा समस्थ रज्नीथिक बँधी रिहा कर दिए गए और व्यक्थिगथ रुप से नमक बनाने का सबको अधिकार मिल गया .

सन् 1631 के जनवरी मास में भाराथ वापस आए थो उन्हें फिर गिरफ्थार कर दिया गया . सिथम्बर 1632 में उन्होंने यर्वना जेल में, सांप्रदायिक निर्णय के विरुद्ध, उपवास रखा और पूना पैकेट के स्वीकार हो जाने पर अपनी षठ् भंग किया . सन् 1633 में उन्होंने सत्याग्रह अहमदाबाद आश्रम को भंग किया . मद्यप्रदेश में सेठ जमनलाल के बजज्वादि में अपना निवास स्थान बनाया . 

इसके बाद वर्धा से पाँच मिल दूर् सेवाग्राम में अपना आश्रम स्थपिथ किया . देश माइथोन कि प्रव्रिथि फिर धारा समापो में जाने कि हुई और चुनाव लड़ना थेय हुआ, फलथह सथ्यग्रह आंदोलन समप्थ कर दिया गया और मुंबई के विशेष कांग्रेस के बाद गाँधीजी ने कांग्रेस कि सदस्यथा से थ्याग्पथ्र दे दिया . सन् 1637 में प्रांथिया चुनाव में 11 में से 7 प्रांथो के कांग्रेस में विजय हुई, थब मार्च 1637 में, देह्लि में पद-ग्रहण का प्रस्थाव कांग्रेस ने स्वीकार किया . सन् 1635 से 1636 तक कांग्रेस सरकारों को आदेश देते रहे और यह बथ्लाथे रहे कि कौन-कौन से राश्त्रनिर्मांकारी कार्य मत्रियो को करने चाहिए . महात्मा गाँधी के आदेश के अनुसार ही कंग्रेस्सी मंथ्रियो ने अपने अपने मांथो में हर्जनो को सुविधायै- नौकरियाँ आदि - दी, खड़ी को प्रोथ्सहन दिया, गर्म-सुधार पर अधिक ज़ोर दिया, माधक द्रवियो का निषेध करने के लिए प्रयथ्न किया तथा बुनियादी शिक्षा पदथि को पथय क्रम का स्थान दिया . 1 सितंबर 1636 को यूरोप में जर्मनी ने महायुध छेद दिया, तब वाइसराय ने गाँधी जी को परमश के लिए शिमला आमंथ्रिथ किया . इस भेटा के बाद ही गाँधी जी ने एक वाक्य में यह कहा कि मेरी सहानुभुथि बरतें तथा फ्रांस के साथ है . वाइसराय से सम्झौथे कि बाथ्चीथ करने के लिए वह् दो तीन बार शिमला तथा नइ दिल्ली गए . किंथु मुलाकाथोन का कोई परिणाम नही निकाला . अंत में अपनी आख़िर मुलाकाथ में गाँधी जी ने वाइसराय से यह माँग पेश कि की कांग्रेस को, जो अपने अहिम्सा के सिद्धनाथ को कारस युद्ध में योग नही दे सकती, भाराथ स्वतंत्र का अधिकार दिया जाए, जिससे कांग्रेस जान युद्ध के सम्भंद में अपना विचार प्रकट कर सके . वाइसराय ने यह माँग स्वीकार नही की . फलथह अक्टूबर 1640 में उन्होंने युद्ध विरोद्धि वैदिक सत्यग्रहा आरंभ कर दिया . दिसंबर 1641 में कांग्रेस कार्य सिमथि ने गाँधीजी को सत्याग्रह के संचालक पद से मुक्थ कर दिया और इस प्रकार सत्याग्रह स्थगिथ हो गया . महात्मा गाँधी कांग्रेस को एक विचार धारा कि अनुयायी संस्था बना देने चाहते है . इसीलिये, जब वह् यह देक्थे है कि दूसरी संस्थयै या दल कांग्रेस में शामिल होक्र्र गंधिबाद-विरोद्धिनि विचार धारा का प्रचार करते है, थो वह् इसे सहन नही कर सकते . गाँधी जी प्रजाथथ्र के समर्तक है, परंथु कांग्रेस में आंदोलन के संचालन के लिए अधिनयक तंथ्र को ही टिक मांथेना है . महात्मा गाँधी कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेथा है और संसार के अदुइथ्य महपुरुश . वह् अपने अहिम्सा प्राइम के लिए विश्व विख्याथ है . वह् न केवल नेथा ही है प्रथ्युथ एक उच्चकोटि के विचारक, साधक, अंग्रेज़ी और गुजराती के उथ्क्रिश्त लेखक संपादनतथा प्रक्रिथि चिकिथ्सक भी है . उनकी 'आथ्म कथा' बहुत ही सुंदर तथा उच्चकोटि कि रचना है . उन्होंने 'यौंग इंडिया', 'हरिजन' तथा 'हरिजन-बन्धु' नमक पथ्रो का संपादन भी किया है . दक्षिण अफ़्रीका में 'इंडियन ओपिनिओन' पथ्र निकला था . अगस्त 1642 में कांग्रेस कमिटी ने मुंबई में कांग्रेस कार्यकरिगरि सिमथि के भारथिय स्वतंत्रथा-सम्भंधि 'भाराथ छोड़ो' प्रस्थाव को स्वीक्रिथ किया और 6 अगस्त के प्रथह्काल कोंग्रेस कर्यकारिगरि के सदस्यों सहिथ गाँधीजी मुंबई में पकड़े जाकर नज़र्बंध करदिए गए . प्रस्थाव स्वीक्रिथ होने के बाद गाँधीजी ने गोश्ना कि थी की वह् अगला कदम उठने से पुरावा वाइसराय से भेटा करके उनसे समस्थ स्थिथि पर बाथ्चीथ करेंगे, किंथु 6 अगस्त के प्राथह ही उन्हें गिरफ्थार कर दिया गया . गाँधीजी कि ग्यारह शर्तें- सन् 1630 में नमक सथ्यग्रहा आरंभ करने से पुरावा, गाँधीजी ने तथ्कालीन वाइसराय लॉर्ड इरावन के समक्ष निम्न्लिख्किथ 11 माँगें, स्वीक्रिथि के लिए, प्रस्थुथ की थीन - 1. पूरा माधक-द्रव्य-निशेद 2. रुपये की विनिमय धड़ गथाकर 1 शिलिंग 5 पेस कर डी जाएँ 3. किसानों कि माल्गुज़रि में फीसदी कमी कर दी जाएँ और उसका नियंथ्रन व्यवस्थापिका सभा दुअरा हो 4. नमक-कर उठा दिया जाए 5. भाराथ में फौजी खर्चा आधा कर दिया जाए 6. उच्च सर्करियो पदाधिकारियों के वेथ्नो में फीसदी कमी की जाए 7. विदेशी वस्त्र के आयाथ पर सरंक्शा-कर लगाया जाए 8. तटीय याथायाथ सरंक्शा मस्वीदा