मेर नाम सान्द्रा मनोज है, और मे १८ साल का हूं। मे बंगलौर, कर्नाटक, भारत मे एक कोलेज मे फ्र्स्त ईर मे हू। मे एक त्रिप्ल मेजोर ले रही हू। मे कर्नतका मे रर्ह्ती हू। मे भारतिय हू, मेरा ज्न्म दिल्ली मे थी, प्रर, बाद मे हम बैङलोर मे स्थानांतरित हूअ। उस्के बाद मेने अपना पुअ जीवन बैङ्लोरे मे हि बिताया हे।

म एक एकाल परिवार से हू, मे अपने मां, पिता और भाई के साथ रह्ता हो, पर जुलाइ २०१७ मे मेरा भाई घ्र से बहर रहने लगे, वह २६ साल क हे। मेरे मां और पिता, दोनो केरल से हे। मेरे पिता के परिवार मे मेरि दादि हे, और उन्के ७ भाई और बेहन हे, मेरे पिता के एक छोटि बेहन हे। मेरे मां के एक भाई और एक बेहन हे।

मे अब क्राइस्ट विश्वविद्यालय मे पद्ति हू। मे अपनि कोलेज के पहेलि साल मे हू। मे एक त्रिपल मेजोर ले रहि हू - मनोविज्ञान, अंग्रेज़ी साहित्य, और जन संचार। मेने रयान इंटर्नेशनल मे मोंटसरि से, १० वि कश्रा तक पदे थे। उस्के बाद ११ वि और १२ वि के लिये मेने "अर्त्स" मेकर क्रास्ट जूनियर कोलेज मे अध्यपन लि थी।

बहुत कम उम्र से मुझे पढ़ना पसंढ़ थे। मेने ८ साल मे हेरी पौटर के पहला किताब, हैरी पॉटर और पारस पत्थर, पढ़ा था। मुझे गाने भी पसंद् हे, मे वर्तामान मे पाक्ष्चीमी शास्त्रीय संगीत मे गने सीक रही हू। मेने इस्के पेह्ले गिटार और पियानो सीख मेया है। मुझे नृट्य भी प्स्ंढ़ हे, मे जब ७ साल की थि, मेहे तब भरतनाट्यम् सीखना शुरु की थि

मेरे जिवन मे मुझे एक शोध मनोविज्ञानिक बन्ना है और् मुझे एस्केलिये एक पि-एच-डी छाहिये। पर मुझे अंग्रेज़ि भि बहुत प्सिद है, और जन संचार मे भि दिलचस्पी है। एस्मीये मेने एन तीन साल के अंथ मे एक फेसला लेने की ईरादा ली। अभी के लिये मेने पद़ाई मे पुर ध्यान के फेसला की है

 

नुआखाई (नुनाकाई, नुआखाई परब या नुनाक्कि बित्छाट भी कहा जाता है) एक क्रिषि महोत्सव है जो मुख्य रूप से, भारत के, ओडिशा के लोगों द्वार मनाया जाता हि। "नुए" शब्द का मतलब है "नया" और "खाइ" का मतलब है "भोजन"। इसमिये नुआखाई शब्द का मतलब है कि किसानों को पास नये चावल का प्रप्थ होना, या नया चाव्ल् उन्के कब्जे मे होना। नुआखाई के मौसम मे नये चावल के स्वागत करने के लिये मनाया जाता है। कैलेण्डर के अनुसार यह गणेश चतुर्थी उत्स्व के दिन भद्रपदा या भाडरा (अगस्त - सितन्बर) के महिने के पंचत्ंश्र दिवस के प्ंचमी तृती पर (पांचवा दिन) मनाया जाता है। यह पश्र्चमी ओडिशा का सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक त्योहार है और झारख्ंड मे सिमडेगा के व्यस्त क्षेत्रों मे है।

त्योहार के बारे में

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नुआखाई त्योहार को आशा की एक नई किरण के रूप मे देखा जाता है, जिसमें गणेश चतुर्थि उत्स्व के दिन का आयोजन किया गया है। किसानों और कृषि समुदाय के लिये इसका एक बदा महत्व है। त्योहार दिन एक वीशेष समय पर मनाया जाता है जिसे लगान कहा जाता है। एस त्योहर को मनानने के लिये लोग अरसा पीठ तौयर करते है। जब लगान आता है, तो लोग पहले अपने गाँव देवता य देवि को याद करते है और फिर उन्के मुझं के पास होते है। नुआखाई पश्र्चिमि ओडिशा के लोगों क कृषि त्योहर है। य्ह त्योहर पुरे ओडिशा मे मनाया जाता है। लेकिन पश्र्चिमी ओडिशा के जिवन और संस्कृति मे यह विशेष् रुप मे महेत्वपुर्न है। यह अनाज कि पूजा के लिये अय उत्सव है। ओडिशा के कालाहांडि, संबलपुर, झारसूगुड, सोनपुर, बौध्द और नुआपद जिले इस्क स्ब्से अच्छा अत्स्व है

प्रचीन मूल

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स्तनिय शोधकर्ताओं नुआखइ के अनुसर काफी प्राचीन मुल का है। कुछ शोधकर्ताओं ने पाया कि जश्र के मौलिक विचर को कम से कम वैदिक सम्य पर दिखा जा सकता है जब ऋशिय ने पाचम्ं के बारे मे बात कि थि। कृषी स्माज के वरशिक कैलेंडर के पांच मेहत्व्पुर्न गतिविधियां एन पांच गतिविधियां को साझमय (भमि का टिलिग्), प्रवण यग (बीज बोने), प्रल्ंमना यज्ञ (आनाज कि कटाइ), और प्रतिन यज्ञ कि रूप मे निर्दिष्ट किये गये है। इसे ध्यन मे रखते हुए नुआखै के तिसरि गतिविधि से पेह्ले विक्सिथ किय जा रहा है, अर्थात् प्र्लमना यज्ञ जिसमे पेहले फसल को कट्ने माता देवि को भोंट दे रहे है। प्रत्येक वर्ष त्यथा (दिन) और समया (समय) को जोतिसिय रुप से हिंदु पुजरि द्वारा नुआखैइ किय गया था। पुजरि संबमपुर मे ब्रह्मपुरा जान्नथ मनदिर मे बैठ थै और दिन और समय कि गणना क्रतै थे

देवतओं की पेश्कर की गई है जो नुअ

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तीथि (तिथी) और लैनग (शुभ पल) के गुणना पटेलेश्र्वरी देवी के नाम नाम प्रर बलनगीर-पाटनागर श्रेत्र मे सुरेक्ष्ववी के नाह पर और समहाडिं एलाके मे मिनिकेस्व्र देवि के नाम पर कि गइ है। सुंदरगट पहले बार शहि परिवर मे दिव सिक्ष बासनी को मंदिर मे पेश कि थि जो केव्म नुआखाइ के लिये किय जाता। संबमपुर मे नुआखाई लंबाई (शुभ क्षण्) मे, समलेक्ष्वरि मंदिर के मुख्य पुजरि संबमपुर के प्र्ता दिन देवी देवता समलक्ष्विर के नग्र-अन्न या नाबना प्रदन करते है

नुआखाई के नौ रंगों के अनुशथन

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कोशल क्षेत्र के लोग १५ दिन के लिये आग्रिम करयक्र्म के तेयरि शुरु करते है। नुआखाई के नो रंग समझ गये हैर और परिनामस्वरुप नो समारोहो के उत्स्व उत्स्व के वस्थ्विक दिन के शुरुआथ के रुप मे किय ज्य है, एन नो र्ंग मे शामिल है : बिहेरैन (तिथि निर्द्निथ करने के लिये एक बेठक की घोषण) लगना नूआखाई (नय चाव्म के हिस्सा मेने के लिये सहि तरिक तय करनल्) दका हाक (निम्ंत्र्ण) सफ़ा सुतुरा और लिपा पचा (सफाइ) घीना बीका (क्र्य्) नुआ धोना (नइ सफल कि थलश मे जाना) बाली पक्का (गेवत को प्रसद देन) नुअखाई जुहर बफ़ (बडों और उपहार हस्तांतण के स्ंब्ंगद में)

https://en.wikipedia.org/wiki/Nuakhai

मागरिट फ्लो वाशबर्न

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मागरिट फ्लो वाशबर्न (२५ जुलाई, १८७१ - २९ अक्टूबर, १९३९) २० वीं शतब्दी की शुरुआत में संयुक्त राज्य कि एक् अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, पशु व्यवहार और मोटर सिध्दांत विकास में अनके प्रयोगात्मक काम के लिए सबसे अच्छी तरह से जान्ते थे । वह पहली महिला थीं जिसे मनोविज्ञान में पीएचडी (१८९४) और मैरी व्हिटन कैलकिन के बाद दूसरी महिला, एपीए अध्यश (१९१२) के रुप मे सेवा करने वाली थी।

 

प्रारंभिक जीवन और जीवनी

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न्यूयॉर्क नगर में २५ जुलाई, १८७१ को पैदा हुआ, वह हार्लेम में अपने पिता फ्रांसिस, एक एपिस्केपल पुजारी, और अनकी मां एलिज़ाबेथ फ्लोय द्वरा समध्द्र न्यूयारर्क परीवार से आई थीं । अनके पूर्वज़ो डच और अंग्रेज़ि मूल के थे और १७२० हसे पहले अमेगरीका मे थे। वाशबर्न एकमात्र बच्चा था, वह बचपन के साथी को अस्की अम्र नही लगती थी और वयस्कों या पदनें के साथ अपना अधिकांश समय बिताती थी। उसने स्कूल शुरु करने से बहुत पहले पदना सीखा, इसने ७ साल की उम्र में स्कूमल शुरु होने पर असे जल्दी से आगे बदने का कारण बना दिया

मनोविग्ज्ञान में योगदान्

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२० वीँ शताब्दी के पहले दशको में संयक्त राज्य अमेरिका में वाशिंगटन मनोविग्ज्ञान के विकास में काफी हद तक जोड रहा था । उन्होंने विल्होंने वंडट की नैतिक प्रणालियों का अंग्र्ज़ि में अनुवाद किया । वाशबर्न ने जानवरों के अनुवाद और संग्ज्ञान में अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों का इस्तेमाल किया ताकि वे अपने विचार को पेश कर सकें कि मानसिक (न केवल व्यवहारिक) घटनाएं अनकी पूस्तक, द एनिमल मांइड (१९०८) में अध्ययन के लीए वैध और महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक शेत्र हैं। यह निश्नित सिध्दांत के खिलाफ चला गया कि मानसिक नहिं देखा जा सकता था और इसलिए ग्ंभिर वैग्ज्ञनिक जांच क लिए अचित नहीं था। अपने प्रयोगात्म्क काम के अमवा, उन्होनें व्यापक रूप से पदा और उच्च मानसिक प्रक्रियाअओं के फक्रियाओ के फ्रेच और जर्मन प्रयोगो पर आकर्षित किया, जिसमे कहा गया कि वे सारीरिक आंदोलनों के साथ जुडे हुए थे । वाश्बर्न के प्र्काशित लेख पच्चीस वर्ष तक पैमे हुए है और इसमे कई वषयों पर १२७ लेख शामिल हैं जिनमे स्थानिक धारणा, स्म्रति, प्रयोगात्मक सोंदर्यशास्त्र, व्यक्तिगत मतभेद, पशु मनोविग्ज्ञान, भावनाऔर प्रभावशाली चेतना शामिल है। १९०३ के वसंत में,वह खुशी से वस्सार कालेज में दर्शनशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर के रुप में लौट आईं, जहां वह अपने बाकी जीवन बने रहे। जब असने वहां काम करना शुरु किया, वह नव स्थापित मनोविग्ज्ञान विभाग का प्रमुख बन गई। उसने अपने छात्रो को अछी तरह से इलाज किया और बदले में उनहोने उन्हे प्रोफेसर के रूप मे सराहना कि। स्नातक के शेत्र में उनके छात्रो की बडी स्ंख्या में आगे बगना जारी रखा। वाशबर्न ने अपने सरियर के दौरान अपने कई छात्रो के अध्यन प्रकाशित किए उन्होने आपनि पाध्हयि कॉर्नेल विश्वविद्यालय मे कि थि।

व्यक्तिगत जीवन

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१९३७ मे, एक स्ट्रोक को उनकी सेवानिवृत्ति कि आवसश्यकता थी (मनोविग्ज्ञान के एमेरिट्स प्रोफेरसर के रूप मे)। वह २९ अक्टुबर १९३९ को न्युयार्क के पाफकीस्सी मे अपने घर पर तरह से टीक नही हुइ और असकी मृयू हो गई। उसने कभी शादी नही की, अपने करियर में खद को समर्पित करने और उसके माता-पिता की देख्भाल करने के बजाय

कार्य नीति

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यह उस युग की सामान्य नीति थी जिसमें विवाहित महिलाएं सह-शैक्षिक सेटिंग में शिक्षक या प्रोफेसर के रूप में सेवा नहीं दे सकती थीं। इस प्रकार, वाशबर्न ने कभी शादी नहीं की और 36 वर्षों तक वासर कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। वह एक कुशल शोधकर्ता और विपुल लेखिका थीं। जैसा कि प्रथा थी, वाशबर्न ने अपने कई स्नातक छात्रों, सभी महिलाओं को अपनी प्रयोगशाला में लाया और उन्हें अपने कई प्रकाशनों में लेखक के रूप में शामिल किया।

प्राथमिक ध्यान

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उनके प्रमुख अनुसंधान हित पशु व्यवहार और संवेदना और धारणा की बुनियादी मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं थीं। वह पुस्तक जिसे "द एनिमल माइंड" (1908) के लिए जाना जाता है, जो पशु अनुभूति में प्रायोगिक कार्य पर आधारित पहली पुस्तक थी। पुस्तक कई संस्करणों से गुज़री और कई वर्षों तक तुलनात्मक मनोविज्ञान में सबसे अधिक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली पुस्तक थी। बुनियादी प्रक्रियाओं में उसकी रुचि के बाद, वाशबर्न ने चेतना का एक मोटर सिद्धांत विकसित किया। सिद्धांत को उनकी पुस्तक "मूवमेंट एंड मेंटल इमेजरी" (1916) में पूरी तरह से विकसित किया गया था। उसके काम का मूल आधार यह था कि सोच आंदोलन में आधारित थी।

कैरियर प्रलेखन

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उनके करियर का पूरा लेखा-जोखा रॉबर्ट एस। वुडवर्थ (१९४८), मार्गरेट फ्लॉय वॉशबर्न में पाया जा सकता है। "नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के जीवनी संस्मरण, मैं 25, 275-295।" उनके जीवन और काम का एक अधिक अंतरंग चित्र, जो उनके समय के संदर्भ में उनकी कहानी को भी सेट करता है, एलिजाबेथ स्कारबोरो और लॉरेल फुरुमोटो, "अनटोल्ड लाइव्स: द फर्स्ट जनरेशन ऑफ अमेरिकन वुमन साइकोलॉजिस्ट" (1989) में पाया जा सकता है।

https://en.wikipedia.org/wiki/Margaret_Floy_Washburn

https://www.apa.org/about/governance/president/bio-margaret-washburn

http://elvers.us/hop/index.asp?m=2&a=5&key=120/