शांता रंगस्वामी

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मद्रास


शांता रंगास्वमी एक पेहली भारतीय महिला क्रिकेटर थी। वह भारतीय महिला क्रिकेट की प्रथम अन्वेषक थी। वह अकेले ही भारत के लिये सबसे बडा योगदान हैं। उन्हें क्रिकेट की माँ भी कहा जाता हैं।वह एक ऑल रौन्डर बल्लेबाज़ थी। वह उत्कृष्ट बाँँलर और आक्रामक बल्लेबाज़ थी। वह कुल मिलाकर १६ माचिस खेल चुकी हैं। १९७६-१९७७ और १९८३-१९८४ तक वह ८ माचिस में कप्तान रह चुकी हैं। भारत की पेहली जीत वेस्त इंडीज़ के खिलाफ १९७६ नवंबर में हुई थी। वह एक किंवदंती थी।

व्याक्त्तिगत जीवन

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शांता रंगास्वामीजी का जन्म १ जनवरी १९५४ को मद्रास (चेन्नई), तमिलनाडु में हुआ थाम। उनका पलन पोशन बैंगलूर में हुआ। उनके पिता का नाम सी.वी रंगस्वामी और माता का नाम राजालक्षमी था। शांताजी तीसरी बेटी थी। शांताजी के माता पिता को कुल मिलाकर ७ बेतियाँ थे। उनके २० चचेरे भाई बहिन थे। शांताजी के पिता की मृत्यु हो गयी। उनके परिवार में कोई मर्द नहीं था। उनके घर की आय बहुत कम थी। शांताजी की माँ हमेशा केती थी के प्रतिएक व्यक्ति को अपने पैरो पर खाडे रहना चाहिए। किसी को भी आश्रित नहीं होना चाहिए। कोई मर्द ना होने के बावजुद उनकी माँ ने उन्हें बहुत मुश्किल से पढाया। शांताजी अपनी पढाई बसवनगुडी के महिला सेवा समाज स्कूल में किया। उसके बाद वह बी.एम.एस काँलेज में अपनी आगे की शिक्षा पुर्ण की। शांताजी को बचपन से क्रिकेट खेल में रुचि थी। बचपन में शांताजी और उनके चचेरे भाई बहन के साथ क्रिकेट खेलती थी जैसे कलम पेंसिल, रबड आदि। हर शनिवार और रविवार को वह खेलते थे। यह शांताजी को क्रिकेट की ओर प्रारंभिक प्रयास था।वह बचपन में सबसे कमज़ोर दिखती थी लेकिन सबके बीच बहुत मज़बूत थी। वह बचपन से ही कठोर परिश्रम करती थी। वह अपने जेब से खर्च करती थी। उन्होंने सब कुच अपने बल पर किया हैं। वह कहती हैं कि आज वह जो कुच हैं अपनी माँ की वजह से हैं।

पेशेवर ज़िंदगी

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शांता रंगास्वामीजी एक दाहिने हाथ बल्लेबाज़ थी। वह बहुत उँची थी। उनकी उँचाई लगभग ५'९ थी। वह स्थिर नजर से देखती थी। उनकी आवाज़ बहुत साफ थी। वह जो भी करती थी आत्मविश्वास और उपस्थिति के साथ करती थी। जब शांताजी मैदान में अपने दोनों हाथ को गर्म करने के लिए वर्माअप करते हुए आती, एक हाथ में बल्ला घुमाते हुए आती थी तब लोग 'भीम, भीम......' के नाम से पुकारते थे। भीम नाम इसलिए क्योंकि महाभारत में भीम बहुत बलवान था। चोका मरने के बाद शांताजी दर्शकों को देखकर दोनों हाथ उपर करती थी मानों वह दर्शकों को धन्यवाद बोल रही थी। वह एक ही झटके में अपनी कलाई घुमाकर छक्का मारती थी। उनका एकाग्रता रन लेने में नहीं थी बल की विकेट लेने में थी। उन्होंने ७५० रन लिए। औसत बल्लेबाज़ी में उन्होंने ३२.६, १६ माचिस में लिए थे। उन्होंने एक शताब्दी भी मारी (१०८) जो भारत महिला टीम की पहली शताब्दी थी न्यूजीलेंड के विरुध्द। उन्होंने कल मिलाकर २१ विकेटस लिए। उन्होंने सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ी और सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी का खिताब महिला न्यूज़ीलेंड विश्र्वकप में प्राप्त हुआ। उन्होंने कर्नाटक के लिए बैडमिंटन भी खेला और बैडमिंटन टीम की कप्तान रह चुकी हैं। वह सोफ्ट बाल भी खेलती थी। जब शांताजी ने क्रिकेट खेलना शुरु किया था तब महिला क्रिकेट के लिए कोई क्षेश्र नहीं था।१९३ अप्रैल में एक क्लब नामक फालकन्स ने प्रतिभावान लडकियों को चुना क्योंकि तभी स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन ज़िसमें कर्नाटका वोमेन्स क्रिकेट ही सबसे पहली टीम थी। उस समय महिला क्रिकेट किसी भी शासन द्वारा चिन्हित नहीं किया गया था। शांताजी और उनकी टीम को यह ज्ञात नहीं था की पहली बार भारत में महिला क्रिकेट नाशन्लस जो १९७३ में पुणे में हुआ था। इसलिए शांताजी और उनकी टीम ने दुसरी बार खेला। उन दिनों शांताजी रेल गाडी में सफर करती थी, चाल में रहती थी, अस्भय में खेलती थी, मैटिगं विकेटस आदि की अवधि से गुज़री थी। उन्होंने उनकी टीम की लडकियों के परिवार से बात करके, उन्हें खेलने की आज्ञा देने की प्राथना की थी। शांताजी ने परीक्षण पहली बार पश्र्चिम इंडीज़ के खिलाफ ३१ अक्टूबर १९७६ में हुआ था। उन्होंने अंतिम परीक्षण ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ २६ जनवरी १९९१ में खेला था। १० जनवरी १९८२ को ओडीआई पदार्पण ऑस्ट्रेलिया के विरुध्द खेला। २७ जुलाई १९८७ को अंतिम वनडे इंगलैंड के खिलाफ खेला था। १९८८ में भारतीय महिला एसोसिएशन के सचिव और खेल मंत्री की लडाई हो गई थी। इस मामले को सुलझाने के लिये १९९८ में शांताजी और उनकी टीम को एक विदेशी यात्रा की मज़ूरी के कारण प्रधान मंत्री राजीव गांधीजी से मुलाकात करना पडा। भारत की सरकार ने अनुमति देदी लेकिन ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट मंडल ने इस का इंतेज़ाम करने में असफल रहें। आज की परिस्थिति में एक बदलाव आया हैं। शांताजी की टीम बहुत ही अच्छी थी। वह हमेशा एक दुसरे की मदद करते थे और एक दुसरे को प्रोत्साहित करते थे। उनकी टीम में एकता थी, इस कारण उन्होंने भारत क्रिकेट टीम का नाम रोशन किया। उनकी टीम में सुधा शाह थी कहा कि एक बार जब वह लोग माच खेल रहे थे तब शांताजी की पैर में भांग आ गई। चोट लगने के बावजुद शांताजी हिम्मत से मैंदान में आयी और ऐसे खेला मानो उन्हें चोट ही नहीं लगी। शांताजी एक बहुत ही निर्धारित महिला हैं। शांताजी अब एक क्रिकेट लेखक और कैनरा बैंक में एक कार्यकारी अधिकारी थी। कुच समय बाद वह महाप्रबंधक बन गई और रिटायर होगई।

पहली महिला

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शांताजी पहली महिला इसलिए कहा जाता हैं क्योंकि वह भारत की क्रिकेट टीम की पहली कप्तान थी। वह पहली महिला थी ज़िन्होंने परीक्षण मैच जीता था। वह पहली महिला थी जिसने सदी मारी। वह पहली भारतीय महिला थी जिन्होंने छक्कह मारा।शांताजी पहली भारतिय महिला थी जिसे बी.सी.सी.आई लाईफटाइम उपलब्धि पुरस्कार प्राप्त हुआ। वह सबके लिए एक प्रेरणा स्श्र्तोत हैं। वह युवा पीढी के लिये एक ईश्वरीय आकृति बन चुकी हैं। वह हम सब के लिये सांस्कृतिक आइकान बन चुकी हैं। वह इतिहास की सबसे बडी खिलाडी बन चुकी हैं।

पुरस्कार

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शांताजी ने क्रिकेट में बहुत बडा योगदान दिया हैं। उन्हें १९७६ में अर्ज़ुन पुरस्कार प्राप्त हुआ। २००६ में बी.सी.सी.आई ने महिलाओं के खेल की पदभार संभाल ली जो महिला क्रिकेट एसोसिएशन के पास थी। समिति ने सोचा कि उन्हें महिलाओं को भी पुरस्कार देना चाहिए जिस्से भारत की सभी महिला और लडकियों को प्रोत्साहन किया जा सकता हैं। यह एक बहुत ही अच्छी शुरुआत थी।बी.सी.सी.आई ने कुल मिलाकर दस साल ले लिए इन सब को प्रशंसा और पुरस्कारित करने के लिए। २०१७ में शांताजी पहली भारतिय महिला थी जिसे बी.सी.सी.आई लाईफटाइम उपलब्धि पुरस्कार प्राप्त हुआ। जब उन्हें लाईफटाइम उपलब्धि पुरस्कार प्राप्त हुआ तब वह ६३ वर्ष की थी। शांताजी को सर्वश्रेष्ठ आल राउंडर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। [1] [2] [3] [4]

  1. http://www.espncricinfo.com/india/content/player/54274.html
  2. https://timesofindia.indiatimes.com/sports/cricket/news/shantha-rangaswamy-indian-crickets-leading-woman/articleshow/58324804.cms
  3. https://www.firstpost.com/sports/shantha-rangaswamy-a-pioneer-on-and-off-the-field-who-helped-shape-womens-cricket-in-india-3308684.html
  4. https://yourstory.com/2017/02/former-skipper-shanta-rangaswamy-first-ever-lifetime-achievement-award-women/