Shivul bhosle
nostologic
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नाम shivul
जन्मनाम shivul
लिंग male
जन्म तिथि ०९ मय् १९९७
जन्म स्थान मेसुर्
निवास स्थान कर्नाट्क्
देश  भारत
नागरिकता भारतीय
जातियता भारतीय
शिक्षा तथा पेशा
पेशा छात्र
महाविद्यालय क्राइस्ट कालेज्
विश्वविद्यालय क्राइस्ट यूनिवर्सिटी
शौक, पसंद, और आस्था
शौक संगीत सुनना, किताब पढना,केल्ना
धर्म हिन्दु
राजनीती स्वतंत्र
चलचित्र तथा प्रस्तुति मनोरंजन के लिएँ (तेलुगु-आनंद, मिथुनम, बाहुबलि)
पुस्तक रविंदर सिंग के पुस्तक

मेरा नाम शिवुल भोस्ले है मै अपने बारे मे कहने का इच्छा रखता हु। मेरा जन्म ०९-०५-१९९७ मे कर्नाटक के मैसुर मे हुवा था। जोकी मेरे दादि का घर है ।हमारा घर चिक्क्मगलुरु के तरिकेरे मै है ।वहा मेरा परिवार है हमारे घर मै मेरे पिताजी ,माँ और भाय्या रहते है । मेरे माँ का नाम आश है और वे ग्रुहिणी होने के साथ साथ कुछ बच्चों को नुरुत्य सिखाती है । और मेरे पिता का नाम विठ्ल भोस्ले है वे व्यपार करते है । हमरे गाँव मे हमारा फर्नीचर का दुकान है जहा मे भी कभी क्भी पिताजी के अनुपस्थीथी मै वहाका का काम सम्भलता हुँ । पर पुरा दुकान का जिम्मेदारी पिताजी का ही है। मेरा प्राथमिक शिक्श रोटरी विध्या सम्स्था मै हुवा जोकी तरिकेरे मै हि है वहा मुझे अत्यन्त सदुड शिक्शा प्राप्त हुवा उस्के सात सात हि श्लोक एव्ं भगवत गीता का भी सीख मिला ।और खेल -खुद, इत्यादी भी किया और पिताजी ने मुझे और मेरे भाया को भगवत गीता को पूरी तरहा से सिख ने के लिये उस्का क्लास मै भी जमाकर वया था और उसीके फल स्वरुप मुझे १२ साल की आयु मै राज्य मट्ट् का गीता पारायण् स्परधा मे त्रुतिय स्थान मिला । मेरा प्राउड शिक्शा आराधना अकाड्मी तरीकेरे से हुवा।वहा अच्छा शिक्शाण और स्ंवेदन शिलता सिखा। वहा का पाट्कगण अत्यन्त अच्छे तरह से पडातेथे । उसीके कारण से मैने दसवी मे अत्यन्त अच्छे अन्क से उत्त्तीर्ण हुआ । पडाई के अलावा छित्रकला,नाच,स्ंगीत,भाशण, आदि मे मेरा रूची रही है जब भी अवसर मिले तब भाग लेता हू। मेरा उपादि पुर्व शिक्शा दकशिन् कन्नड जिले के मुडबिद्रे मे एक्सालेंतट पदविपुर्व कालेज मे हुवा वहापे मैने अनुशासन् समयकापालन करना सिखा वहा हर सुभह ४ बजे उठके योगासन आदि करना पडताथा अपने काम खुद करना जैसे की कपडे धोना, कमरे की साफ सफाई आदी जीससे अपने काम खुद करने कि सीख मिला । वहापे मैने १ साल पडाई कि दूसरी साल आरोग्य समस्या की कारण से उस कालेज को छोड्ना पडा। और मैने अपने द्वितीय पियुसी पुर्ण करने हेतु शिवमोग्गा के प्रथिशटित पि इ एस कालेज जमा हुवा और वहा सामाजीक्ता का सीख मिला साथही अच्छे दोस्त बने अन्त मे अपने जीवन की प्रमुख घडी द्वितिय पि यु सी परिक्शा मे अत्यन्त आच्छे अन्क लेके सम्पुर्ण कालेज मे २ स्थान लिया

  उसके पशच्यात अपने उपादि शिक्शा के लिये भारत अत्यन्त प्रमुख एव्ं प्रसिध्द बेंगलुरु "क्रैस्ट विशवविध्यालय" मे दाखिला हुवा  हु । अपने गाव जहा अभी भी ग्रामीण सम्स्रुती और जीवन शैली है। वहा से सिदा इतना अधुनिक जीवन शैली मे परीव्र्तित होने मै थोडा कटिनाईका सामला करना पडा,किन्तु कुछ ही दिन मे गुल-मिल गया । मेरा भय्या का नाम राहुल भोस्ले है वो मंगलुरु बी इ पड रहा है। हुम दोनो भी सभी भई-बहनो कि तरहा लड झगड ते है उसी प्रकार से प्यार भी करते है ।                                                                                                              मेरा नाम को मेरे स्वर्गवासी ददा  और दादी कि नाम को जुडा के बनाया है।जोकि शिवराम् और लक्श्मी दोन मिला कर शिवुल बना है ।मुझे जीवन मे कुछ कर दिखा ने का छव है। इन् सब के अलावा मुझे एक अच्चे इन्सान बनना है और माता पिता का सेवा करना है। क्रैस्ट विशव विध्यालय मै मुझे बहुत कुछ सिख ने का मोका मिला यहा पट्य शिक्शा के सात ही नैज जीवन कि शिक्शा मतलब नैतिक शिक्शा प्राप्त हो रहा है    ।मुझे जीवन मे बहुत लोग् से प्रेरणा मिलती है  जैसेकी स्वामी विवेकान्ंद ,ऐ पी जे अब्दुल कलाम आदि उनके जीवन को देखके सभी लोगोंन्को सीखना चाइए । बेंगलुरु जोकी कर्नाट्क का राजधानी जहा सार वस्तुये उप्लब्द् है । फिर भी मुझे अप ने घर गाँव की स्ंस्क्रति वहा का लोग माँ के हात कि खाना ही अत्यन्त प्रिय है। जब भी मुझे बचपन मे स्कूल से छुट्टि मिलती थी तब मै अपने  दादि के घर चला जाता था मैसुर कर्नाट्क कि सम्स्क्रुतिक राजधानी है यहा बहुत सारे प्रेकश्णिय स्थ्ल है  आज भी मै समय मिलने पर मैसुर अपने दादि के घर जाता हूँ।    हमारा घर मै पेहेले ददा ,ददि,नना,नानी,भय्या,भभी आदि १८ लोग रहते थे पर कुछ १५ साल पहले हमारा परीवार का विभाजन हुवा तबसे हम सम्युक्त कुटुंब मै है।  मे बी काम के पडई कॅ बाद्  अई ए एस  परिक्शा लिख ना चाहता हू।और समाज्
को कुच्छ करना चाहता हू ।नये बद्लाव लाना चाह्ता हू।  मेरे पिताजी मुझे हमेशा कहतेथे की जीवन मे किसी भी तरहा कि समस्या हो उस्का सम्ला ड्टकर करना चाहिए।तब सफल् ता अपने आप ही प्रप्त होगा य्यह शब्द मेरा द्येय वाक्य बना है