सदस्य:Shivul bhosle/पूंजी बाजार
''''पूंजी बाजार, प्रतिभूतियों का बाजार है, जहां कंपनियां और सरकार लंबे समय के लिए धन जुटा सकते हैं। यह वह बाजार है जहां पैसा एक साल या इससे अधिक समय के लिए दिया जाता है। पूंजी बाजार मे शेयर बाजार और बांड बाजार भी शामिल है
पूंजी बाजार भारतीय वित्तीय प्रणाली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण खण्ड है। यह कंपनियों को उपलब्ध एक ऐसा बाजार है जो उनकी दीर्घावधिक निधियों की जरुरतों को पूरा करता है। यह निधियां उधार लेने और उधार देने की सभी सुविधाओं और संस्थागत व्यवस्थाओं से संबंधित है। अन्य शब्दों में, यह दीर्घावधि निवेश करने के प्रयोजनों के लिए मुद्रा पूंजी जुटाने के कार्य से जुड़ा है। इस बाजार में कई व्यक्ति और संस्थाएं (सरकार सहित) शामिल हैं जो दीर्घावधि पूंजी की मांग और आपूर्ति को सारणीबद्ध करते हैं और उसकी मांग करते हैं। दीर्घावधि पूंजी की मांग मुख्य रूप से निजी क्षेत्र विनिर्माण उद्योगों, कृषि क्षेत्र, व्यापार और सरकारी एजेंसियों की तरफ से होती है। जबकि पूंजी बाजार के लिए निधियों की आपूर्ति अधिकतर व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट बचतों, बैंकों, बीमा कंपनियां, विशिष्ट वित्त पोषण एजेंसियों और सरकार के अधिशेषों से होती है।
भारतीय पूंजी बाजार स्थूल रूप से गिल्ट एज्ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में विभाजित है -
उत्कृष्ट बाजार सरकार और अर्द्ध-सरकारी प्रतिभूतियों से संबंधित है जिसे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई). का समर्थन प्राप्त है। सरकारी प्रतिभूतियां सरकार द्वारा जारी की गई बिक्री योग्य ऋण लिखते हैं, जो इसकी वित्तीय जरुरतों को पूरा करती हैं। 'उत्कृष्ट' शब्द का अर्थ है 'सर्वोत्तम क्वालिटी'। इसी कारण सरकारी प्रतिभूतियों को बाकीदारी का कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता और इनसे काफी मात्रा में नकदी प्राप्त होती है (क्योंकि इसे बाजार में चालू मूल्यों पर बड़ी आसानी से बेचा जा सकता है।) भारतीय रिजर्व बैंक के खुले बाजार संचालन की ऐसी प्रतिभूतियों में किए जाते हैं।
औद्योगिक प्रतिभूति बाजार ऐसा बाजार है जो कंपनियों की इक्विटियों और ऋण-पत्रों (डिबेंचरों) का लेन-देन करता है। इसे आगे प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार में विभाजित किया गया है,
प्राथमिक बाजार (नया निर्गम बाजार):- यह बाजार नई प्रतिभूतियों अर्थात् ऐसी प्रतिभूतियां जो पहले उपलब्ध नहीं थी और निवेश करने वाली जनता को पहली बार पेश की गई हैं, का लेन-देन करता है। यह बाजार शेयरों और डिबेचरों के रूप में नए सिरे से पूंजी जुटाने के लिए है। यह निर्गमकर्ता कंपनी को नया उद्यम शुरू करने अथवा मौजूदा उद्यम का विस्तार करने अथवा उसमें विविधता लाने के लिए अतिरिक्त धनराशि प्रदान करता है, और इस प्रकार कंपनी के वित्त पोषण में इसका योगदान प्रत्यक्ष है। कंपनियों द्वारा नई पेशकश या तो प्रारम्भिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) अथवा राइट्स इश्यु के रूप में की जाती हैं।
द्वितीयक बाजार/शेयर बाजार (पुराना निर्गम बाजार अथवा शेयर बाजार):- यह वर्तमान कंपनियों की प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री का बाजार है। इसके तहत प्रतिभूतियों का लेन-देन प्राथमिक बाजार में जनता को पहले इनकी पेशकश करने और/अथवा शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने के बाद ही किया जाता है। यह एक संवेदी बेरोमीटर है और विभिन्न प्रतिभूतियों के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के माध्यम से अर्थव्यवस्था की प्रवृत्तियों को परिलक्षित करता है। इसे व्यक्तियों को एक निकाय, चाहे निगमित हो अथवा नहीं, जो प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री और लेन-देन के व्यवसाय में सहायता देना, उसे विनियमित अथवा नियमित करने के लिए गठित किया गया है के रूप में परिभाषित किया गया है। शेयर बाजार में सूचीबद्धता शेयर धारकों को शेयर की कीमतों में घट-बढ़ की कारगार ढंग से निगरानी करने में समर्थ बनाती है। इससे उन्हें इस संबंध में विवकेपूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलती है कि क्या वे अपनी धारिताओं को बनाए रखें अथवा बेच दे अथवा आगे और भी संचित कर लें। लेकिन शेयर बाजार प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने के लिए निर्गमकर्ता कंपनियों को कई निर्धारित मानदण्डों और प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।
भारत में, पूंजी बाजार आर्थिक कार्य विभाग वित्त मंत्रालय के पूंजी बाजार प्रभाग द्वारा विनियमित किया जाता है। यह प्रभाग प्रतिभूति बाजरों (अर्थात् शेयर, ऋण और व्युत्पन्न) की सुव्यवस्थित संबृद्धि और विकास और साथ ही साथ निवेशकों के हितों की सुरक्षा से संबंधित नीतियां तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। विशेष रूप से , यह निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार है (i) प्रतिभूति बाजारों में संस्थागत सुधार, (ii) विनियामक और बाजार संस्थाओं की स्थापना, (iii) निवेशक सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाना,और (iv) प्रतिभूति बाजारों के लिए सक्षम विधायी ढांचा प्रदान करना, जैसे कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (सेबी अधिनियम 1992); प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956; और निक्षेपागार (डिपाजिटरी) अधिनियम, 1996.यह प्रभाग इन विधानों और इनके तहत बनाए गए नियमों की प्रशासित करता है।
बाजार मध्यवर्ती पंजीकरण एवं पर्यवेक्षण (एम आई आर एस डी) – बाजारों के सभी खण्डों जैसे कि इक्विटी, इक्विटी व्युत्पन्नों, ऋण और ऋण से संबंधित व्युत्पन्नों के संबंध में सभी बाजार मध्यवर्तियों के पंजीकरण, पर्यवेक्षण, अनुपालना निगरानी और निरीक्षण से संबंधित हैं।
बाजार विनियमन विभाग (एन आर डी) – यह नई नीतियां तैयार करने, प्रतिभूति बाजारों, उनके सहायक बाजारों और बाजार संस्थाओं जैसे कि समशोधन और निपटान संगठन और निक्षेपागार की कार्यप्रणाली और संचालनों (व्युत्पन्नों से संबंधित संचालनों को छोड़कर) को निरीक्षण से संबंधित है। व्युत्पन्न और नए उत्पाद विभाग (डी एन पी डी) – यह विभाग शेयर बाजारों के व्युत्पन्न खंडों में लेन-देन का निरीक्षण करने, लेन-देन किए जाने वाले नए उत्पादों को शुरू करने और परिणामी नीतिगत परिवर्तन करने के कार्य से संबंधित है । पूंजी बाजार के प्राथमिक और द्वितीयक खंडों में वित्तीय और विनियामक सुधार करने के लिए सरकार ने, समय-समय पर, कई पहलें शुरू की हैं। मुख्य तौर पर इन उपायों का उद्देश्य देश के पूंजी बाजार में निवेशकों (घरेलू और विदेशी दोनों) का विश्वास कायम रखना है।
प्राथमिक बाजार (नया निर्गम बाजार):- यह बाजार नई प्रतिभूतियों अर्थात् ऐसी प्रतिभूतियां जो पहले उपलब्ध नहीं थी और निवेश करने वाली जनता को पहली बार पेश की गई हैं, का लेन-देन करता है। यह बाजार शेयरों और डिबेचरों के रूप में नए सिरे से पूंजी जुटाने के लिए है। यह निर्गमकर्ता कंपनी को नया उद्यम शुरू करने अथवा मौजूदा उद्यम का विस्तार करने अथवा उसमें विविधता लाने के लिए अतिरिक्त धनराशि प्रदान करता है, और इस प्रकार कंपनी के वित्त पोषण में इसका योगदान प्रत्यक्ष है। कंपनियों द्वारा नई पेशकश या तो प्रारम्भिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) अथवा राइट्स इश्यु के रूप में की जाती हैं। द्वितीयक बाजार/शेयर बाजार (पुराना निर्गम बाजार अथवा शेयर बाजार):- यह वर्तमान कंपनियों की प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री का बाजार है। इसके तहत प्रतिभूतियों का लेन-देन प्राथमिक बाजार में जनता को पहले इनकी पेशकश करने और/अथवा शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने के बाद ही किया जाता है। यह एक संवेदी बेरोमीटर है और विभिन्न प्रतिभूतियों के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के माध्यम से अर्थव्यवस्था की प्रवृत्तियों को परिलक्षित करता है। इसे व्यक्तियों को एक निकाय, चाहे निगमित हो अथवा नहीं, जो प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री और लेन-देन के व्यवसाय में सहायता देना, उसे विनियमित अथवा नियमित करने के लिए गठित किया गया है के रूप में परिभाषित किया गया है। शेयर बाजार में सूचीबद्धता शेयर धारकों को शेयर की कीमतों में घट-बढ़ की कारगार ढंग से निगरानी करने में समर्थ बनाती है। इससे उन्हें इस संबंध में विवकेपूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलती है कि क्या वे अपनी धारिताओं को बनाए रखें अथवा बेच दे अथवा आगे और भी संचित कर लें। लेकिन शेयर बाजार प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने के लिए निर्गमकर्ता कंपनियों को कई निर्धारित मानदण्डों और प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता http://hindi.bankersadda.com/2015/01/blog-post_2.html</ref>[1]</ref>