पीटर थांगराज
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फ़ुटबॉल
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जन्म 24 दिसंबर 1935
हैदराबाद
मौत 24 नवंबर 2008 (72 वर्ष की आयु)
बोकारो, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
कार्यकाल 1956-1971
ऊंचाई 1.82 मीटर (5 फीट 11 1/2 इंच)
प्रसिद्धि का कारण फुटबाल खीलाडी

पीटर थांगराज

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प्रारंभिक जीवन

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पीटर थांगराज एक भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी थे । उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय पक्ष के लिए सन् १९५६ मेलबोर्न ओर सान् १९६० मैं रोम ओलंपिक के लिया खेला था । उन्को सन् १९६७ सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर का पुरस्कार मीला था ।उन्होंने सान् १९६७ मैं अर्जुन पुरस्कार प्राप्त किया ।थांगराज जी का जन्म सन् १९३६ मे हैदराबाद मे इस्थित बोलारम नामक शहर हुआ थे ।

फ़ुटबॉल करियर  

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उन्होने आपनी फुटबॉल जीवन की शुरूवत मूरिंग स्टार्ट क्लब फ्रेंड्स यूनियन क्लब सिकंदराबाद मैं शुरुकीया किया था । उन्होंने सन् १९५३ मैं भारतीय सेना में शामिल हो गए ओर वहा पार मद्रास रेजिमेंटल सेंटर की तरफ से सेंटर फॉरवर्ड बन्कार खेला लेकीन उन्होने गोलकीपर बनकर सबका मन जीत लीया । मद्रास रेजिमेंटल सेंटर ने सन् १९५८ ओर १९५९ मैं डुरंड कप हसील किया ।सेना मैं अपनी सेवा की बाद उन्होनें कोलकाता जेंट्स के लिया खेला ।वो बंगाल टीम की एक अंग थे जाब संतोष ट्रॉफी मिला था। उस्के बाद उनहोंने १९६५ मैं रेलवे परवेश किया ओर उनके लिये संतोष ट्रॉफी लिया ।थांगराज सान् १९६९ ओर १९७० मैं एक प्र्मुक व्वक्ती थे ।

अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां

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थांगराज जी भरात के अलावा अंतरराष्ट्रीय रुप मैं भी बोहत शानदार खिलाड़ी थे। भारतीय टीम के साथ उनका पहला खेल १९५५ में डैका में आयोजित क्वाड्रैंगुलर टूर्नामेंट था। उन्होंने १९५६ और १९६० यह दोनों साल ओलंपिक में भारत के लिए खेला था । और १९५८ में टोक्यो, १९६२ जकार्ता, और १९६६ बैंकाक एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। १९६२ जकार्ता एशियाई खेलों में भारत ने स्वर्ण पदक जीता तब थांगराज जी भरात के लिया खेल रहे थे । उन्होंने १९५८ से १९६६ तक कुआलालंपुर में आयोजित मेर्डेका कप टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया था । उन्होंने १९६४ और १९६६ एशियाई कप जो इज़राइल और बर्मा में आयोजित हुए था उन्होंने वह पर भरात को प्रतिनिधित्व किया । पीटर थांगराज १९५८ में एशिया के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर का नाम दिया गया था ।उन्होंने दो बार एशियाई ऑल-स्टार टीम के लिए खेला और १९६७ में सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर को चुना गया।थांगराज १९७१ में सक्रिय फुटबॉल से सेवानिवृत्त हुए और फिर कोचिंग सुरु किया ।हम कह सकते हैं कि पीटर थांगराज १९६० ओर १९८० के समय बोहत प्रसीद थे उन्का नाम फीफा के वेबसाइट मैं मिला जता है जो हमे सफ बता था हैं की वो बोहत प्रतिभावानतीत ओर प्र्मुक व्वक्ती थे ।वो फीफा टूर्नामेंट मैं ४ बार भरात की तरफ से जकार खेले थे । जिनमें मै से उन लोगो ने १ बर जीता था । एक बार दोनो टीम का टाई हुआ था । ओर दुसरी २ खेलो मैं वो हार गाया थे । लेकीन ईन ४ खेलो मैं वो कोई भी गोल नहीं बना पाये ।


थांगराज अपने अधिकार में एक आइकन थे, जो पीके बैनरजी, चुनी गोस्वामी और बलराम जैसे खिलाड़ियों के साथ कद में मेल खाता था अपने दिन में। पीटर थांगराज की मौत २४ नवंबर २००८ एक् सोमवार की रात को हुआ था । उस दिन भारतीय फुटबॉल ने एक बोह्त ही अच्छा खीलडी को दिया था। वह ७२ वर्ष के थे। वो एक ओलंपियन और एक एशियाई स्वर्ण पदक विजेता थे । उन्की शरीर देखने मैं ही बोहत मजबूत थी । वो करीब छः फ़ुट लंबे थे ।

व्यक्तिगत जीवन

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थांगराज अपनी एथलेटिकीस मै कभी भी कोई मोका नही लेथे थे वो इसमें बोहत पके थे थांगराज ईन् साब गुनो से वो देश के हर नुक्कड़ और कोने में भीड़ के दिल पर कब्जा कर लिया था जब तक वो एक कोच और सलाहकार की भूमिका निभाने के लिए खेल जोड दिये । दो बार उन्हें एशियाई ऑल स्टार टीम के लिए चुना गया था। वह १९७१ में सक्रिय फुटबॉल से सेवानिवृत्त हुए, मोहम्मद के साथ अपना आखिरी सीजन खत्म कर दिया ओर् स्पोर्टिंग और फिर कोचिंग में आ गाई । थांगराज की पहली नियुक्ति अलीगढ़ विश्वविद्यालय के साथ और फिर गोवा में वास्को क्लब के साथ थी। उन्होंने बोकार स्टील प्लांट के कोच और बाद में एक सलाहकार के रूप में भी कार्य किया।एक पूर्ण फुटबॉलर जिसने अपना जीवनकाल खेल में समर्पित किया । थांगराज एक समृद्ध विरासत और एक छाप अपने पीछे छोड़ कर जाते है भारतीय फुटबॉल की इतिहास मै जो कोई इतिहासकार अनदेखा कर नहीं सकत है।जब उसकी मृत्यु हुई थी चेन्नई में, रेफरी बोर्ड के अध्यक्ष टी आर गोविंदराजन ने कहा "यह एक बोहत बडी नुकसान है। मुझे दक्षिणी इंटर-कमांड टूर्नामेंट के फाइनल में रेफरी करना याद है जहां एमआरसी गोलकीपर और उनके समकक्ष एथिराज के रूप में उनका ध्यान केंद्रित था। वो एक उत्साही प्रतियोगिता था और थांगराज ने अपनी टीम की जीत में उत्कृष्टता हासिल की। वह वास्तव में भारत के बेहतरीन गोलकीपरों में से एक थे, "उन्होंने कहा। एआईएफएफ उपाध्यक्ष,सीआर विश्वनाथन ने कहा: "थंगराज एक करीबी दोस्त थे। उने मैदान पर फुटबॉल फेंकते देख मुझे बोहत खुशी मेहसुस होती थी ओर उन्के गोआल किक्स प्रतिद्वंद्वी अंत तक पहुंच जाती थी । यसी थी उन्की ताकत । मैं उनकी मृत्यु को व्यक्तिगत नुकसान मानता हूं, और भारतीय फुटबॉल ने एक महान खिलाड़ी खो दिया है। " थांगराज कम से कम एक दशक तक राष्ट्रीय टीम गोलकीपर की पहली पसंद थे । लेव याशिन उन्की प्रीय खीलडी थे जो उन्हें बोहत पसद्ं थे । थांगराज भारतीय किंवदंती तुलसीदास बलराम के सहपाठी थे । उन्हें "चाचा" के नाम से संबोधित किया जाता था क्योकीं वो अपने से छोटे किलडीयो बोह्त प्यार से ओर जोश से सीकते थे ।

[1] [2]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Peter_Thangaraj
  2. http://www.goal.com/en-india/news/136/india/2015/12/25/17886862/remembering-peter-thangaraj-the-hyderabad-footballer-who