एन ए की नकल एक जैविक प्रक्रिया है जहा दो समान प्रतिकृतियां डि एन ए को एक मूल डि एन ए से उत्पादन किय जता है। यह प्रक्रिया हर जीव जंतु मे जैविक विरासत के लिए होने वालि प्रक्रिया है। डि एन ए दो पूरक किस्मो कि कुंडलित वक्रता है। नकल के समय मे इन् दो पूरक किस्मो को अलग किया जता है और दोनो डीएनए सूत्र नकल के लिए टेम्पलेट बन जते है। एन दो टेम्पलेट पर पूरक न्यूक्लियोटाइड को शामिल किय जता है। डि एन ए कि नकल को "अर्द्ध रूढ़िवादी प्रतिकृति" कह जाता है। नकल कि शुद्धता बहुत जरुरि है क्यु कि डि एन ए से हि वजीव जंतु कि हर चीज कि विनियमन होति है।

डि एन ए कि नकलि

डि एन ए कि संरचना

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डी एन ए डबल असहाय संरचना है। यह दो असहाय न्यूक्लियोटाइड से बनते है जो है। न्यूक्लियोटाइड दिआक्सिरैबोस चिनि, फॉस्फेट और न्यूक्लियोबेस से बनते है। न्यूक्लियोबेस के चार प्रकार है:ऐडिनीन, गुआनिन, साइटोसिन, थाइमिन। दिआक्सिरैबोस चिनि और् फॉस्फेट डि एन ए कि रीड की हड्डी कहलते है और् न्यूक्लियोबेस एन दो किस्में के बीच पुल कि तर हाइड्रोजन बंध से जुडते है। ऐडिनीन थाइमिन से दो हाइड्रोजन बंध से जुडत है और गुआनिन साइटोसिन से तीन हाइड्रोजन बंध से जुडती है और इस से डी एन ए कि दो किस्में एक सात रहते है। हर एक कैनरे कि दिशा होति है, जिसे हम ३' प्रधान और ५' प्रधान कहते है। दो किस्में विरोधी समानांतर मे व्यवस्थ होते है, यनि एक किस्म ३' से ५' हो तो दुसरा किस्म के ५' पहलि किस्म के ३' से जुद रहता है और दुसरि किस्म कि ५' पहलि किस्म कि ३' से जुडा रहता है। न्यूक्लियोटाइड के बीच फस्फोदैएस्त्र बंधन होति है।

 
डि एन ए कि संरचना

नकल कि प्रक्रियाओं

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डि एन ए जकि नकल मे ३ कदम होते है:

                              १)आरंभ
                              २)लंबान
                              ३)समाप्ति

डि एन ए कि नकल "ओरिजिन सैट" से हि आरम्भ होति है। अन्य प्रोटीन के मदद से डि एन ए पर इस सैट कि पहचान होति है। इस सैट पर ऐडिनीन और थाइमिन संख्या ज्याद होति है कुय कि एन के बीच सिर्फ दो हाइड्रोजन बंध रहते है। इस जगह पर दडि एन ए कुंडलित वक्रता ज़िपर तरह कुलत है और नकल के लिए दोनो किनारा लभ्य हो जते है। दो किनारो मे एक साथ नकलै बनन आरंभ हो जत है कई प्रोटीन कि मदद से। अर एन ए कि प्रैमर कि मदद आके इस ओरिजिन सैट पर जुड जात है इस के सहायता से डि एन ए कि लंबान आरंभ होत है। अब अलग हुए किनारो को टेम्पलेट किनारा माना जाता है।

डि एन ए कि लंबान इस अर एन ए कि प्रैमर कि ३' कोने पर प्रशंसनीय न्यूक्लियोटाइड जोड़ने से होति है। नई डि एन ए कि दिशा हमेशा ५' से ३' किन होति है कुय कि ३' पर

हाइड्रॉक्सिल समूह होति है और बस इस जगह पर फस्फोदैएस्त्र बंधन का होन सम्भव है। अब प्रैमेज नामक एंजाइम कि सहायता से न्यूक्लियोटाइड को जोडा जत है। लंबान के साथ साथ नई डि एन ए कि सबूत पढ़ना(प्रुफ रीडीइग) होति है जो डि एन ए पोलीमर्स१ नामक एंजाइम कि मदद से होति है। दो अलग हुए किनारो को हेलिकेस नामक वएंजाइम दूर रक ने मे मदद कराता है। इस तर दो किनारो को दूर रके हुअ संरचना को प्रतिकृति कांटा(रेप्लिकेसन फोर्क) कहते है।

 
रेप्लिकेसन फोर्क

जैसे पहले बताया गया था, डि एने कि नकलि सिर्फ ५' से ३' कि दिश मे होति है। पर हुम जन्ते है कि डि एन ए कि दो किनारे विरोधी समानांतर मे है, इस के कारन नकलि दो तरह कि होति है, एक किनार जह नकलि निरंतर होति है, इसे हम वप्रमुख किनरा(लिडीइग स्ट्र्न्ड) कहते है। इसे बस एक अर एन ए कि प्रैमर कि जरूरत पडति है। पर दुसरि किनरे जो चोटे चोटे टुकड़े टुकड़े मे डि एन ए कि नकल बनाति है उसे हम धीरे चलनेवाला किनरे(लागिनग स्ट्रान्ड) कहते है। और इन टुकड़े को ओकजकि टुकड़े कहते है। इस डि एन ए कि बनने मे बहुत सारि अर एन ए कि प्रैमर कि जरूरत पडति है। इन टुकडोको डि एन ए लैगेज नामक एंजाइम से जोडा जाता है।

अब तक कि प्रक्रिया अकेन्द्रिक और यूकेरियोट मे एक जैसा होता है पर प्रोटीन और एंजाइम अलग होते है। समाप्ति मे यूकेरियोट मे कोई विशश कार्य-पद्धति नहि होति है कुय कि यूकेरियोट मे डि एन ए सिधा होता है और नकलि बहुत जगओ से शुरु होति है, जब यह सब एक दुस्ररे से मिलते है तब समाप्ति होति है। लेकिन अकेन्द्रिक मे डि एन ए

गोल होत है। इस के कारण उन मे समाप्ति कि एक स्थान होति है, उसे टर अनुक्रम कते है।

 
गोल डि एन ए कि नकलि

https://en.wikipedia.org/wiki/DNA_replication