Sudhakarkar1831370
मेरा नाम सुधाकर कुमार है और म बिहार का निवासी हु। मैंने अपनी पढ़ाई बिहार के अल्वा झारखंड और गोआ में किया है। बचपन मे मै अपने चाची चाचा का साथ ज्यादा समय बिताया हू। उनके साथ मैने अपने सारे सपनो को देखना सीखा है। मेरी छोटी से छोटी मांगो को मेरे चाचा ने मांगने से पहिले मेरे सामने हाजिर कीया है। मै हमेसा से ही अपने चाचा चाची का लाडला रहा हू। नानिघर मे भी मुझपर लाद और प्यार की बारिश होती है क्योंकि मैं उस घर का सबसे पहिला बच्चा हू। मुझमे बहुत सारी खामिया है और साथ ही कुछ अच्छाया भी है। मेरी सबसे बुरी आदत ये है कि मै बहुत जल्द ही गुस्सा हो जाता हूं और कुछ भी कर बैठता हू। कभी कभी मै बिना सोचे ही कुछ भी बोल देता हूं जो कुछ लोगो को खराव भी लग जाता है। वही अगर अच्छाई देखें तो मेरा गुस्सा बहुत जल्दी ही गायब हो जाता है , मे लोगो का मदत करना बहोइट पसंद करता हूं और हा अपने आप को हमेशा व्यस्त रखना पसंद करता हूं। मैन अपनी इस 18 साल के जीवन के छोटे से सफर में कई सारे अविस्मरणीय काम किया है। जिसमे कयी अछे है तो कई बुरे भी। मेरे विद्यालय के उस दिन को म कभी नही भूल सकता जब मैंने अपनी शिक्षिका को पेट पर मुक्का मारा था। उसके बाद भी पता नही कैसे में सारे शिक्षको और प्रिंसीपल का भी लाडला बन गया था। मझे आज भी नही पता कि ये बदलाव कैसे हुआ था। मेरे लड़ाई झगड़े के चढ़के हमेसा से पूरे घर मे गुजते थे। पाचवी कक्षा में शिवानी नाम की लड़की ने मुझे टाई बंधना सीखाया था जो मै आज बहुत अच्छे से बना सकता हूं। इसके अलावा मेरे चाचा चाची और भाई बहन के साथ खेले सारे खेल मुझे याद है। हमारा आंतराक्षि मे जितने के लिए अपना है गाना बना देना, या तो रात में टेबल याद करने की प्रतियोगता सचमुच अनोखे थे। मै 4थी कक्षा तक फैल किया हू और सबको लगता है कि मेरे सुधारने का कारण मेरे ट्यूशन टीचर थे लेकिन असलियत में तो मेरे चाचा इसके हकदार थे। उनका इनमस्वरूप दिया हुआ वह बोतल मझे पढ़ने पर मजबूर किया और मेहनत करने की ताकत दी। मुझे याद है कि मैं अपने पापा को एक ऐसा आदमी समझता था जो 6 महीने में एक बार आते थे और मुझे बहुत चॉक्लेट देता थे। 6वी और 7वी मैंने झारखंड के एक बोर्डिंग स्कूल से किया है। मैने अपने भैया के साथ वहां रहकर बहूत कुछ सीखा। मुझमे मंच पर जने की ताकत आ गयी और किसी से भी बात करने की हिम्मत मिली। 8वी से 12वी तक कि पढ़ाई मैंने गोआ में की। यहां मुझे सारे शिक्षकों का भरपूर सहयोग और प्यार मिला जिसके कारण मै एक नई भासा को सीखने में कामयाब हुआ। गोआ में मैन अपने स्कूल को सारे चीजो में नेतृत्व किया, चाहे वो खेल कूद हो, पढ़ाई या नाच गाना। अभी तक अगर देखें तो मेरी जिंदगी बहुत अछि, सफल और मजेदार रही है लेकिन अभी तो सामने पूरी जिंदगी पड़ी है। मुझे यह तो पता नही की मैं और कितने दिन और जिंदा रहूंगा लेकिन जितना दिन भी रहूंगा खुसिया बनाऊंगा और दुशरो के साथ बाटूंगा।