सुशील शर्मा साहित्यिक जीवन परिचय

नरसिंहपुर जिला साहित्य और आध्यत्म के क्षेत्र में बहुत अधिक समृद्ध माना जाता रहा है ,ओशो से लेकर आशुतोष राना तक विश्व पटल पर नरसिंहपुर की गाडरवारा तहसील स्वर्णाक्षरों में अंकित है ,इसी तहसील के कल्याणपुर ग्राम में साहित्यकार सुशील शर्मा का जन्म 21 अक्टूबर 1964 को शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था ,आपके पिता श्री अन्नीलाल शर्मा एक उत्कृष्ट शिक्षक ,पंडित ,वैद्य ,साहित्यकार ,मूर्तिकार एवं चित्रकार हैं ,आपकी माता श्रीमती ज्ञान देवी एक धार्मिक घरेलु महिला हैं ,एक सुसंस्कारित परिवार में जन्म लेने से सुशील शर्मा जी के व्यक्तित्व में साहित्य का प्रभाव बचपन से ही परिलक्षित रहा है ,सुशील शर्मा जी की प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम सिल्हेटी में हुई ,माध्यमिक शिक्षा के लिए सुशील शर्मा जी अपने ननिहाल कामती पिठहरा आ गये जहाँ आमगांव छोटा में उन्होंने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की अपनी मेट्रिक की शिक्षा आपने गाडरवारा की बी टी आई से पूर्ण की। उच्च शिक्षा हेतु सुशील शर्मा सागर के डॉ हरी सिंह गौर वि वि सागर गए वहाँ से आपने व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र में एम टेक की उपाधि एवं अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। बरकतुल्लाह वि वि भोपाल से उन्होंने शिक्षा में बी एड की उपाधि प्राप्त की कहते हैं कि उपाधियाँ नौकरियों की गारंटी नहीं होती ,अपने छोटे भाई डॉ शशिकांत के अमेरिका जाने के बाद सुशील शर्मा ने अपने माता पिता के साथ गाडरवारा में ही रहना उचित समझा और कुछ वर्षों तक बोहनी के जवाहर नवोदय विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में कार्य किया 1998 में शासकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया और वर्तमान में सुशील शर्मा इसी संस्था में कार्यरत हैं। इंडियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फॉर पीस एंड एजुकेशन बैंगलोर( भारत के नीति आयोग से सम्बद्ध ) द्वारा सुशील शर्मा की साहित्य सेवा के लिए साहित्य में डॉक्टरेट की मानद उपाधि 2019 द्वारा सम्मानित किया गया।


साहित्यिक परिचय सुशील शर्मा ने काव्य की हर विधा में अपनी महारत हासिल की है ,साहित्यकार साहित्य को पढ़ते हैं फिर लिखते हैं ,कुछ अभ्यास से महारत हासिल करते हैं किन्तु सुशील शर्मा का साहित्य जैसे आसमान से कोई सितारा जमीं पर उतर आया है ,सुशील शर्मा साहित्य को जीते हैं उनकी मौलिकता पहाड़ी नदी से सरल अल्हड बहती हुई उनके साहित्य में परिलक्षित होती है। सुशील जी ने लगभग पच्चीस वर्षों में साहित्य की सतत् साधना की है और इसका अपने मूल शिक्षकीय कर्म के साथ ऐसा समंजन किया है कि साहित्य सृजन अब उनकी आदत, या यूँ कहें कि उनकी जीवनचर्या बन गया है। बहुत से व्यक्तियों के लिए साहित्य शब्दों का संयोजन, आमेलन या आसंजन होता है पर जब कोई गहराई में उतरता है तो फिर उसका सृजन स्मृतियों,अनुभवों,आसपास के दृष्य-श्रव्य, वैयक्तिक चेतना और फिर अंतिमत: परिपक्वता की पराकाष्ठा पर पहुंचकर उसकी आत्मा का संगीत बनकर अभिव्यक्त होता है। कभी कभी इस प्रक्रिया में पूरा जीवन ही निकल जाता है। हम जो भी कालजयी रचनाएँ देखते सुनते हैं, वे सब आत्मा का संगीत ही हैं, उससे कम कोई भी रचना, वस्तु कालजयी नहीं हो सकती है। सुशील शर्मा जी ने अभी तक 20 पुस्तकों की रचना की है, उनकी प्रमुख कृतियों एवं अंतराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित आलेख का विवरण निम्नानुसार है। 1 दरकती संवेदनाएं (आलेख संग्रह)2 गीत विप्लव (काव्य संग्रह)3 सरोकारों के आईने (आलेख संग्रह )4 मन के मोती (काव्य संग्रह)5 अंतर्ध्वनि (हाइकु और तांका संग्रह)6 अंतर्नाद (हाइकु संग्रह )7 विज्ञान अन्वेषिका (शिक्षा और विज्ञान पर आलेख ) 8 छन्द का आनन्द(छंदबद्ध कविताएं)9माटी की महक (लघु कथा संग्रह)10 शब्द समंदर (काव्य संग्रह)11सुनो समय (आलेख संग्रह) 12 शब्दनाद(अतुकांत कविता संग्रह)13 स्वप्न झरे फूल से(काव्य संग्रह)14 मनवीणा(नवगीत संग्रह)15 बिलट्टा गुलट्टा(बाल कविता संग्रह)16 गोविंद गीत(दोहमय गीता)17 दोहा दिवाकर( दोहा संग्रह)18 कुमुदनी( कुण्डलिया एवम छंद संग्रह)19 नन्ही बूँदें ( ग़ज़ल ,क्षणिकाएँ)20 शक्कर के दाने( लघुकथा कहानी संग्रह) प्रकाशित शोध 1 International Research journal of Management Sociology and Humanities ISSN 2338 9359 . 2 International Research journal of Management Science and Technology ISSN 2348 9367 . 3 Indian Streams Research Journal ISSN 2230 7850 4 International Journal of Applied Research 2016 ISSN 2394 7500

प्रसिद्ध हाइकुकार डॉ सुरेंद्र वर्मा ,सुशील शर्मा की हाइकु विधा पर समीक्षा करते हुए लिखते हैं "हाइकु जैसी छोटी सी काव्य विधा की अर्थव्यंजना और भावबोध कभी कभी पूरी लंबी कविता की संवेदना विस्तार को समेटे रहती है ! सिद्धहस्त हाइकुकार सुशील शर्मा के हाइकुओं की बानगी देखते बनती है । इनके हाइकुओं में धधकता हुआ सूरज गर्मी में आग का गोला बन कर दूब के पाँव को झुलसाता है, तो कहीं धूप के आइने में डूबा हुआ वक्त भी उगा सा लगता है, झील रूपी दर्पण में चाँद जब अपना मुखड़ा देख रहा होता है तो, झील भी मुस्करा उठती है । नदी कभी निर्द्वंद बहती हुई तटबंध को तोड़ जाती है तो कभी ठण्ड से कोहरे के आँचल को ओढ़ कर ठिठुरने लगती है । बीज रुपी जीवन मिट्टी से अंकुरित हो कर खुले आकाश के अनंत रूपी आकाश में स्वयं को टटोलता है ।सुशील जी के हाइकु पारम्परिक मनुष्य के परिवेश, पर्यावरण और प्रकृति पर केंद्रित हैं । सुशील जी ने हाइकु को ध्यान की एक विधि के रूप में देखा है जिससे इनके हाइकु स्वानुभूतिमूलक व्यक्तिनिष्ठ विश्लेषण या निर्णय आरोपित किये बिना वास्तविक वस्तुपरक छवि को सम्प्रेषित करते प्रतीत होते हैं।हाइकुकार किसी घटना को साक्षीभाव (तटस्थता) से देखता है और अपनी आत्मानुभूति शब्दों में ढालकर अन्यों तक पहुँचाता है।हाइकु-लेखन वस्तुनिष्ठ अनुभव के पलों का अभिव्यक्तिकरण है, न कि उन घटनाओं का आत्मपरक या व्यक्तिपरक विश्लेषण या व्याख्या। हाइकू लेखन के माध्यम से पाठक/श्रोता को घटित का वास्तविक साक्षात कराना अभिप्रेत है न कि यह बताना कि घटना से आपके मन में क्या भावनाएं उत्पन्न हुईं। सुशील जी ने इन पलों को अपने काव्य में समेट कर उन्हें कालातीत बना दिया है।"

सुशील शर्मा की समकालीन कविताएँ कला के उन असंख्य पहलुओं में से एक हैं जो जिन्दगी की कठोर वास्तविकताओं को दर्शाती हैं, किसी भी कविता की सुन्दरता उसमें इस्तेमाल किये गये कठोर और वास्तविक शब्दों के आधार पर मापी जाती है, वहीं ऐसी काव्य रचनाएँ जो इन सत्य और कड़वे पहलुओं का अवलोकन करवाती हैं, यह सुशील शर्मा के साहित्य में बड़ी सफलतापूर्वक महसूस किया जा सकता है. ही अपने आप में आज के समाज के लिए एक इनका साहित्यिक केनवास नयी रौशनी लेकर आ सकता है, जो कि अँधेरी दुनियां में खो चुका है और कविता का सबसे अहम मकसद शायद यही होता है, बुझे हुए दिलों में इक उजाले की किरण जगाना।

प्रसिद्ध साहित्यकार श्री सुरेंद्र वर्मा ,सुशील शर्मा के निबंध लेखन पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं "साहित्य जगत में सुशील शर्मा उन साहित्यकारों में एक हैं जो अनूठे प्रतीक तथा अभिव्यक्ति की सहज और सुबोध शैली के लिए जाने जाते हैं।सुशील जी का कथालोक कल्पना की भित्ति पर खड़ा न होकर यथार्थ की वास्तविकताओं पर आधारित है। आपके निबंध जीवन के विभिन्न आयामों से संबंधित हैं। इनके कथ्य रोचक, रोमांचक, रमणीय और शिक्षाप्रद हैं। जीवन के विविध रंगों का इतना विशद, विहंगम व हृदयस्पर्शी चित्रण बहुत ही कम देखने को मिलता है।स्नेह, सद्भाव, समानता और विश्वबंधुत्व की अवधारणा को पुष्ट करने वाले साहित्य को ही सृजनात्मक लेखन की श्रेणी में रखा जा सकता है। रचनाकार जब समय, देशकाल और समाज की बात करता है तो वह खुद को एक श्रेष्ठ इंसान के रूप में परिवर्तित कर चुका होता है, पहले खुद को बेहतर बनाता है फिर सबको बेहतर बनने के लिए प्रेरित करता है।

सुशील शर्मा की कहानियाँ सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करतीं हैं । कहानियों की बुनावट परम्परागत कहानी लेखन से हटकर है। लेखन में चित्रांकन है। समय, समाज, व्यवस्था और मान्यताएं उनकी कहानियों में अपनी संपूर्ण विद्रूपताओं और विडम्बनाओं के साथ आरेखित हुई हैं। समाज की जो संवेदनाएं कहीं गहरे दफ़न हो गई हैं, उनको उघाड़ने और फिर से सृजित करने का एक प्रयास सुशील शर्मा की कहानियों में हैं , अपनी सीमित दृष्टि की सीमाओं के बावजूद ये कहानियाँ अपने समय और समाज की विंडंबनाओ की शिनाख्त करती है और उनके बीच तोड़ मचाती हुई बिना किसी आदर्शवादी समाधान के बाहर निकल आती है। हर कहानी मौजूदा दौर के भयावह सवालों से टकराती है। कहीं उनके निर्मम जवाब हैं तो कहीं-कहीं उनके अतार्किक जवाब भी चौंका देते हैं।इन कहानियों में मानवीय विकास की पर्ते भी हैं और विघटन की विभिषिका भी। सुशील जी कहानी को इस तरह बढ़ाते हैं कि उसमें संघटन और विकास के साथ विघटन के तत्व भी अपनी तमाम विद्रूपताओं,कुरूपताओं के साथ चले आएं। जब पाठक का कुतूहल चरम पर होता है,और वह एक निष्पत्ति ,एक अंत, दुखद या सुखद पाना चाहता है; तभी लेखक पाठक को अकेला छोड़ दूर जा खड़ा होता है।प्रकृति,बच्चे सामाजिक सरोकारों और स्त्री को केंद्र में रखकर लिखी गई ये लघु कहानियां आहिस्ता-आहिस्ता पाठक के दिल में उतर जाती हैं।कहानियों के इतर लघुकथा सुशील शर्मा की प्रिय विधा है और वे इसमें सिद्धहस्त भी हैं , उनकी लघु कथाएं सामान्य जीवन पर आधारित होती हैं यह लंबे समय में कई पीढ़ियों से गुजरते हुए लोक के अनुभव संवेदना और भाव सारणी यों से गुजर कर अपने वर्तमान स्वरुप में हमारे सामने आती है। लोक कथाएं समाज में सुनी सुनाई परंपरा नियमों के रूप में प्रचलित होती हैं अनेक पीढ़ियों के हस्तांतरण के कारण लोक कथाओं का कोई एक लिखित इतिहास नहीं होता है ,विकास की इस यात्रा में लोगों के ताने ,दृष्टांत रूप, लोक कथा, बोध कथा, नीति कथा, व्यंग, चुटकुले ,के सोपानों से गुजरते अनेक मंजिलें पार करते हुए वर्तमान रूप हमारे सामने आया है अपनी सामर्थ्य को गहरे अंकित किया है वह किसी गहन तत्व को समझने उपदेश देने स्तब्ध करने गुदगुदाने और चौकाने का काम नहीं करती बल्कि आज के वर्तमान से जुड़ कर हमारी चिंतन को धार देती है। सुशील शर्मा जी ने शास्त्रीय विधा दोहा चौपाई , कुंडलिया, राधेश्यामी, मंदाक्रांता, छप्पय, रसालादि विविध छंदरूपों में अपनी अनुपम रचनाओं को सहृदयी पाठकों तक संप्रेषित करने का स्वागतेय निर्णय लिया है यह आज के स्वच्छंद काव्य जगत में अपने अलौकिक लावण्य से हिंदी साहित्याकाश में विद्यमान विद्वत प्रयास स्तुतितुल्य है। सुशील शर्मा के उर्वर मनोमस्तिष्क रुपी सरोवर से उद्भिद विधा समलंकृत हैं । जिनमें ब्रह्म, माया, विश्व चिंतन, सर्व देव प्रार्थना, शारदा वंदन, राष्ट्र भाषा महिमा गान, सेना का शौर्य बखान के साथ हरियाली, तीजा, मकर संक्रांति, भाई दूज जैसे सामाजिक और धार्मिक पर्वों का संदेश समाहित है ।सुभाष, गाँधी जैसे महान ऐतिहासिक महापुरुषों की शौर्य गाथा है । ऋतुवर्णन, पर्यावरण, शृंगार गीत का समावेश है । उचित मापनी और विधान अनुरूप की गयी छंद रचनाओं को सर्वथा दोषमुक्त रखने का प्रयास सुशील शर्मा जी के द्वारा किया गया है और उसमें वे सफल भी हुए हैं।सुंदर शब्द संयोजन और अलंकारों का प्रासंगिक प्रयोग ने काव्यकार की शिल्पकला को अनुप्राणित कर जीवंत और हृदयग्राही बना दिया है।

मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच के राष्ट्रीय संयोजक श्री सुधीर सिंह सुधाकर जी के अनुसार "पाठक के मानवीय संसार का विस्तार किसी भी कृति की उपलब्धि है लेकिन किसी भी रचनाकार को इतने से तृप्ति नहीं होती. वह इन रचनाओं की कोशिकाओं में पाठक के मन के सूत्र ढूढ़ता है। एक अच्छा रचनाकार अपने किरदारों को समान मात्रा में सहानुभूति बांटता है, लेकिन एक महान रचनाकार इस सहानुभूति के विरूद्ध संघर्ष करता है. कविताओं के अम्‍बार से अच्‍छी कविताएं खोज पाना सहज नहीं रहा. सुशील जी की कविता की मिट्टी भाषा की महक से सनी है जिसकी नींद सबसे अलग है, जिसका जगना सबसे अलग, जिसकी चाहत है एक अदद मनुष्‍य होने का सुख उठाना और मकई के दाने सा भुट्टे में पडे रहने का लुत्‍फ। सुशील जी का काव्य संसार एक विराट चित्र, घनीभूत वेदना की एक रात में देखे हुये विजन को शब्दबद्ध करने का प्रयास अद्भुत है उनके शब्द और भाव यह बतलाते हैं, यह मानते भी हैं कि उनको जानने वाला पाठक इसमें उनके अपने जीवन, देशाटन इत्यादि के सूत्र पायेगा लेकिन पाठक को यह भी मनवा देना चाहते हैं कि आत्म-घटित ही आत्मानुभूति नहीं होता। सुशील जी आस्‍थाओं, मूल्‍यों, विश्‍वासों के संशयग्रस्‍त समय में अच्‍छी कविता की गुंजाइश तलाश रहे हैं वस्तुतः कविता लिखना दुनिया को नए सिरे से देखना है अपनी मनुष्‍यता को नए सिरे से पहचानना और इस पहचान में यह सवाल भी शामिल है कि जब तुम कविता नहीं लिख रहे होते तब भी दुनिया को इतनी मुलायम निगाहों से क्‍यों नहीं देख रहे होते ?

तुलसी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ मोहन तिवारी जी सुशील शर्मा के नवगीतों की समीक्षा करते हुए कहते हैं " हिंदी काव्य साहित्य में नवगीत विधा समाज की यथार्थ परिस्थितियों को देखने का, उसका निराकरण खोजने एवं मानवीय संभावनाओं को तलाशने का एक कुशल माध्यम है| यह माध्यम इसलिए भी सफल और कारगर साबित हो रहा है क्योंकि गहरे यथार्थ से देखा जाए तो आज का समय पूर्णरूप से बदल चुका है| समय के बदलाव में जीवन जीने के तरीकों में भी परिवर्तन आया है|जिसका स्पष्ट प्रभाव डॉ सुशील शर्मा की इन रचनाओं में दिखाई पड़ता है। सुशील शर्मा की रचनाओं में भाव-भंगिमा जितनी अनूठी है, उतनी ही अलग किसिम की है इनमें बिम्ब-संयोजना | इस आस्तिक भावबोध की आज के जटिल जीवन-सन्दर्भ में, पुनः-पुनः खोज करने की बहुत आवश्यकता है |सुशील शर्मा के नवगीत विशिष्ट हैं । वे गेय हैं ,छंद का बंधन ज़रूर नहीं है। किन्तु वे छंद-मुक्त नहीं हैं। चरणबद्ध हैं। उनमें एक निश्चित मात्रिक-क्रम है। तुकों का व्यवस्थित प्रयोग है। उनके नवगीतों का शिल्प उनका अपना है।

सुशील शर्मा जी बालसाहित्य के सिद्धहस्त लेखक हैं उनकी बालकविताएँ और कहानियाँ बाल मनोविज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती हैं। सुशील शर्मा के अनुसार "आज का समाज बच्चों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। संयुक्त परिवारों के विघटन का असर बच्चों पर पड़ा है, मैंने इन कविताओं में इस पर चिंता जाहिर की है । मेरी बाल कविताओं में वो सब दृश्य जिनमे बढ़ती मंहगाई के दौर में माता-पिता दोनों रोजी-रोटी के लिए घर से बाहर निकलने के लिए मजबूरी। बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी एवं माता-पिता से मिलने वाले प्राकृतिक प्यार की कमी ,भारी बस्ते का बोझ, होमवर्क एवं ट्यूशन के दौर में बच्चे की उलझन भरी मानसिकता का सजीव चित्रण करने की कोशिश है। हम सभी के अंदर एक छुटपुट सा बचपन छुपा होता हैI यह भी सच है कि हम बचपन में सुने हुए किस्से और कहानियाँ कभी नहीं भुला पातेI हाँ, इतना ज़रूर होता है कि वक़्त की दौड़ के साथ, वह बचपन कहीं शाँत होकर हमारे मन के किसी कोने में चुपचाप बैठ जाता हैI पर आज भी यादों की उन गलियों में हमारा नटखट बचपन उछलता-कूदता हमारे सामने आ ही जाता हैI “बिलट्टा गुलट्टा ” ऐसी ही कहानियों का संग्रह है, जो बच्चों की कल्पनाशीलता और मासूमियत को बरकरार रखते हुए, उनके बाल मन को गुदगुदा देती है। आज बच्चे, बच्चे न रहकर रोबोट बन गए हैं, उनकी आजादी छिन गई है। उनका हँसना, खिलखिलाना, मस्ती करना, घूमना, एक-दूसरे से खुलकर बातचीत करना व नाराजगी व्यक्त करना, खुशियां बांटना, ये सब दिन पर दिन खत्म होते जा रहे हैं। बचपन का वो स्वर्णिम समय भविष्य फिक्र में जुट जाता है। मैंने इस बाल कविता संग्रह में बच्चों की इन्ही परेशानियों को बखूबी चित्रित करने का प्रयास किया है। “बिलट्टा गुलट्टा ” बाल काव्य संग्रह की हरेक कविता मेरे मन का बचपन है।

साहित्यकार ,विचारक ,प्रसिद्ध फिल्म कलाकार आशुतोष राना सुशील शर्मा के साहित्य पर समीक्षा करते हुए लिखते हैं "आज के इस दौर में जब शब्द से कहीं अधिक महत्व दृश्य का हो गया है, उस दौर में श्री सुशील शर्मा अपने शब्दों से दृश्य रचना करते हैं। संजय ने महाभारत के युद्ध का इतना सजीव वर्णन किया की नेत्रहीन होते हुए भी धृतराष्ट्र उसे देख पा रहे थे। वह संजय के अद्भुत वर्णन का कौशल ही था, जो आज श्रीकृष्ण के उस विश्वरूप को जिसके दर्शन मात्र सव्यसाची अर्जुन ने किए थे नेत्रहीन धृतराष्ट्र के साथ-साथ हम सब भी कर पाने में सक्षम हुए। श्री सुशील शर्मा एक ऐसे ही शब्द शिल्पी हैं जो हमारे हृदय में स्थित निराकार भावों को अपने भाषाई कौशल से हमारे सम्मुख साकार उपस्थित कर देते हैं।प्रिय सुशील भाई सच्चे अर्थों में शिक्षक हैं, बेहद संवेदनशील- शिव चित्त के स्वामी, जो सत्य है और सुंदर है वह शिव कहलाता है, शिव को देखने वाली दृष्टि ही ‘शिक्षा’ कहलाती है। जो हमारे अक्ष ( केंद्र ) को दक्ष कर संसार में व्याप्त सत्य और सौंदर्य को देखने की क्षमता प्रदान कर शिवदृष्टि प्रदान करते हैं वे शिक्षक कहलाते हैं। इसलिए इनकी रचनाधर्मिता ने इन्हे मसीधर होने के लिए भी प्रेरित किया। प्रिय सुशील भाई की शब्द रचना कभी कभी उन्हें एक कुशल असिधर के जैसा भी प्रस्तुत करती है, प्रिय सुशील भाई अपने साहित्य में गोली से नहीं, अपनी बोली से भेदते हैं। ये किसी असिधर की रण कुशलता के जैसी एक मसिधर की राग विवहलता है। श्री सुशील शर्मा शर्मा पाठकों के चर्म पर नहीं, उनके मर्म पर चोट करते हैं, जिसकी चोट से मनुष्य मरता नहीं अपितु जी उठता है। भाषा और भाव का यह योग पुंज अपनी इस रचना में प्रखरता से प्रज्ज्वलित हो रहा है। उनका रचना संसार हमारी भाव सृष्टि के ज्वार भाटा का जीवंत दस्तावेज़ है। श्री सुशील शर्मा को आज का उद्धव कहना अधिक उपयुक्त होगा, जो कृष्ण की भावना को कनुप्रिया तक व कनुप्रिया के भावों को कृष्ण तक जस का तस पहुँचाने में सफल हुए थे। प्रिय सुशील भाई को शब्दचितेरा नहीं भावचितेरा कहना अधिक उपयुक्त होगा। पुरस्कार व सम्मान- जब अच्छे साहित्य की रचना होती है तो सम्मान और पुरुष्कार सहज ही रचनाकार की रचनाधर्मिता को उर्जित करते हैं। सुशील शर्मा को भी देश के विभिन्न प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया है कुछ प्रमुख सम्मानों का विवरण निम्नानुसार है। 1 - इंडियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फ़ॉर पीस एंड एजुकेशन बैंगलोर( भारत के नीति आयोग से सम्बद्ध ) द्वारा साहित्य में डॉक्टरेट की मानद उपाधि 2019 2-राज्यस्तरीय शिक्षक पुरुष्कार( राज्यपाल पुरुष्कार 2021। 3-विपिन जोशी राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य सम्मान" 2012 । 4 मध्यप्रदेश तुलसी साहित्य अकादमी द्वारा तुलसी सम्मान 2019 ।5 कादम्बरी सम्मान 2019।6 मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच नई दिल्ली द्वारा लालबहादुर शास्त्री साहित्यरत्न सम्मान 2018 । 7 -अखिल भारतीय छत्तीसगढ़बोल्ड टेक्स्ट मंच द्वारा हाइकु मंजूषा साहित्य रत्न सम्मान 2017।8-चेतना साहित्यिक मंच मध्यप्रदेश द्वारा चेतना साहित्य सम्मान 2019 .। 9 -साहित्य राज परिवार हिसार हरियाणा द्वारा साहित्य संरक्षक सम्मान 2019 ।10 -अनंत आकाश हिंदी साहित्य संसद द्वारा सम्मान 2019 । 11 -अर्णव कलश एसोशिएसन कलम की सुगंध द्वारा साहित्यदीप सम्मान 2017।12-मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच नई दिल्ली द्वारा स्वर्ण प्रतिभा साहित्य सम्मान 2017।13 -मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच द्वारा रचना रजत प्रतिभा साहित्य सम्मान 2016।14- उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007।15- कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002।16 - नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009।17 -रोटरी क्लब के द्वारा शिक्षा गौरव सम्मान 201618 -सामाजिक प्रतिभा सम्मान 2016।19 -विवेकानंद युवा मंच के द्वारा गुरु सम्मान 2014।20 -पर्यावरण के क्षेत्र में कदम संस्था द्वारा सम्मान 2016। 21 अनुराधा प्रकाशन द्वारा साहित्य श्री सम्मान 2016।22 विश्व जनचेतना ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रकवि दिनकर सम्मान 2021।23 साहित्य राज मंच हरियाणा द्वारा मुंशी प्रेमचंद सम्मान।24 राष्ट्रीय तूलिका बहुविधा मंच द्वारा लघुकथा रत्न सम्मान 2020।25विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत द्वारा नव छंद शिल्पी सम्मान।26 . विश्व गंगा वाहिनी एवं शोध संस्थान आगरा द्वारा डॉ भीमराव आंबेडकर सम्मान 2023 . ।27 . ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय आगरा द्वारा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर स्मृति सम्मान -2023।

अपनी ऊर्जावान व सृजनशील उत्कृष्ट जीवन शैली से सुशील शर्मा ने सभी को प्रभावित किया है और अपने शानदार व्यक्तित्व के द्वारा ‘‘कुलं पवित्रं, जननी कृतार्थं, वसुंधरा भाग्यवती च तेन’’की उस पवित्र उक्ति को सर्वार्थ चरितार्थ किया है।,आप एक जीवंत अक्षर पुरुष की तरह वर्षों से साहित्य-सृजन की सरस अभिव्यक्ति में निमग्न हैं। विगत तीन दशकों से, शिक्षा, आध्यात्म, करुणा के संवेदनशील पर सवार सुशील शर्मा का अद्भुत, प्रांजल व्यक्तित्व , ‘संवेदनात्मक युग चेतन बोध’ का, मंजुल मिश्रण सभी को आकर्षित कर रहा है।

पता सुशील शर्मा कोचर कालोनी तपोवन विद्यालय के बाजू में गाडरवारा जिला -नरसिंहपुर (म प्र ) 9424667892