सदस्य:Sushmita1998/प्रयोगपृष्ठ

महा राजा हरि सिंह

जम्मू राज्य के राजा संपादित करें

राजा हरि सिहं डोग़रा शासन के अन्तिम राजऻ थे जिन्होंने जम्मु के रजॎय को एक सदी तक जौड़े रखा।जम्मु राज्य ने 1947 तक स्वायत्ता और आंतरिक सपृभुता का मज़ा उठाया।यह राज्य न ही केवल बहुसांस्कृतिक और बहुधमी॔ था ,इसकी दूरगामी सिमाएँ इसके दुरजेय सैन्य शक्ति तथा अनोखे इतिहास का सबूत है।राजा हरि सिंह का शासनकाल जटिल राजनीतिक घटनाओं ,षडयंतर और व्यापक परिव॔तन से चिन्हित था।अपने अंन्दर अशांती होने के बावजूद ,मुश्किल से मुश्किल निण॔य लेते समय वे दृढ़तापूव॔क अपने राज्य के पीछे खड़े थे।

परिचय संपादित करें

राजा हरि सह जम्मु रज्य के अन्तिम राजा थे। [1]उन्के जन्म २३ सितम्बर १८९५ को अमर महल मे हुआ था।तेरा साल कि आयु मे उन्हें मयो कालेज ,अजमेर भेज दिया गया था।उसके एक साल बाद १९०९ मे उन्कે पिताजी कि मृत्यु हो गयी।इसके बाद मेजर एछ० के० बार को उन्का रकशक घोशित कर दिया गया।२० साल के आयु तक उन्हे जम्मु रज्य का मुख्य सेनापती नियुक्त कर दिया गया।

व्य्क्तीगत जीवन संपादित करें

उन्कि चार बार शादि हुई।उन्की पेह्ली पत्नी धरम्पुर रानी श्री लाल कुन्वेर्बा साहिबा थी जिनसे उन्कि शादि राज्कोट में ७ मई १९१३ को हुइ।उन्कि आखरी पत्नि महारानी तारा देवि से उन्हे एक पुत्र,युवराज करन सिंह था।उन्की दुसरी पत्नी छम्बा रानी साहिबा थी जिनसे उन्होंने ८ नवंबर १९१५ में शादी की।तीसरी पत्नी महारानी धन्वन्त कुवेरी बैजी साहिबा थी जिनसे उन्होंने धरम्पुर में ३० अप्रैल १९२३ को शादी की।चौथी बीवी कानगरा की महारानी तारा देवी साहिबा थी जिनसे उनहे एक पुत्र था।

सेवाकाल संपादित करें

उन्होनेં अपने राज्य में प्रराम्भिक शिक्षा अनिवार्य कर दिया एवं बाल विवाह के निषेध का कानून शुरु किया।उन्होंने निम्न्वर्गिय लोगों के लिये पुजा करने कि जगह खोल दी।वे मुस्लिम लीग तथा उनके सदस्यों के साम्प्रदयिक सोच के विरुध थे।दूसरे विश्व युध के दौरान वे १९४४-१९४६ तक शाहि युध मंत्रिमंडल के सदस्य थे।हरि सिंह ने २६ अक्तुबर १९४७ को परिग्रहन के साधन पर हस्ताक्षर किए और इस प्रकार अपने जम्मु राज्य को भारत के अधिराज्य से जोड़ा।[2]उन्होंने नेहरु जी तथा सरदार पटेल के दबाव में आकर १९४९ में अपने पुत्र तथा वारिस युवराज करन सिंह को जम्मु का राज-प्रतिनिधि नियुक्त किया।उन्होंने अपने जीवन के आखरी पल जम्मु में अपने हरि निवास महल में बिताया।उन्की मृत्यु २६ अप्रैल १९६१ को बम्बइ में हुइ।उन्की इच्छाअनुसार उन्की राख को जम्मु लाया गया और तवि नदि में बहा दिया गया।

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Hari_Singh
  2. https://books.google.co.uk/books?id=s5KMCwAAQBAJ&pg=PA128#v=onepage&q&f=false