गौरी हब्बा

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भारत को त्योहारों का देश कहा जाता हैं यहां हर धर्म के लोग साल भर अलग-अलग त्योहार मनाते हैं। इनमें से गौरी फेस्टिवल भी एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भारत के विभिन्न राज्यों में धूमधाम से मानाया जाता है|गणेश चतुर्थी से पहले ढिन यानी शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है माता पार्वती की आराधना का पर्व गौरी हब्बा,इस दिन को हरतालिका तीज के रूप में भी मनाया जाता है|कर्नाटक,आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में ये त्योहार मनाया जाता है| इसे उत्तरी भारत- बिहार,झारखण्ड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के उत्तरी भारतीय राज्यों में हर्टलिका के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार भद्रापदा के महीने में होता है|इसको गौरी त्योहार इसलिए कहा जाता क्योंकि ऐसी मान्यता है कि माता गौरी ने औरतों के मान सम्मान को बढावा देने और उनके पति को लंबी आयु और अच्छे पति मिलने का आशीर्वाद दिया था। पूजा के दौरान,एक मिट्टी की मूर्ति चांदी या तांबे की थाली पर रखी जाती है|हल्दी,फूल,पत्ते कूकुम जैसी चीजें मिट्टी की मूर्ति पर डाली जाती हैं|पूजा घर की महिलाओं द्वारा की जाती है|इस दिन स्वादिष्ट भोजन की तैयारी की जाती है और देवी माता को पेश की जाती है| इसके पीछे की मान्यता यह है की माता पार्वती इस दिन सुहागिन महिलाओं को जहां पति की लंबी आयु का वरदान देती हैं तो वहीं अविवाहित कन्याओं को इच्छित वर मिलने का वरदान प्रदान करती हैं|चतुर्थी तिथि को माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगे उबटन से (कुछ पौराणिक कथाओं में शरीर के मैल से तो कुछ में मिट्टी से) भगवान श्री गणेश का शरीर बनाकर उसमें जान डाली थी|इसलिये गणेश चतुर्थी से पहले दिन माता पार्वती की आराधना का यह पर्व गौरी हब्बा मनाया जाता है|हिंदू विश्वास के अनुसार देवी गौरी आद्य शक्ति महामाया का अवतार है। वह भगवान शिव की शक्ति है। यह माना जाता है कि थाडिगे,या भद्रापदा के महीने के तीसरे दिन,देवी गौरी घर आती हैं जैसे कोई विवाहित महिला अपने माता-पिता के घर आती है। अगले दिन भगवान गणेश, उन्के पुत्र,उन्हे वापस कैलासा ले जाने के लिए आते है।

गौरी गणेश की कथा

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गौरी गणेश की कथा भी भिन्न-भिन्न पौराणिक ग्रंथों में भिन्न-भिन्न मिलती है|लेकिन सभी कथाओं का मूल यही है की माता पार्वती ने गणेश का निर्माण कर उन्हें सजीव किया और स्नान से पूर्व द्वार पर पहरा देने और किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश दिया|यहां तक भी भगवान शिव भी गणेश से उस समय तक अनभिज्ञ थे|जब भगवान शिव भ्रमण करते लौटे तो गणेश जी ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया|एक बालक के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर भगवान शिव ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया लेकिन जब उन्हें सारी कहानी पता चली और माता पार्वती विलाप करने लगीं तो उन्होंने एक नवजात गजमुख लगाकर उसमें पुनः प्राणों का संचार किया| गणेश को गजमुख लगने के पिछे भी भिन्न कथाएं है|किसी में सर्वप्रथम जिस भी प्राणी या जीव के शावक का मुख लाने की बात कही गई है तो किसी में अपने शिशु से विमुख होकर सोने वाली माता के शिशु का|अंततः परिणाम स्वरुप हथिनि के बच्चे का सिर ही भगवान शिव को सौंपा जाता है|

गौरी हब्बा पर्व की पूजा विधि

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गौरी हब्बा के दिन गौरी व्रत के साथ-साथ माता पार्वती जी की पूजा भी की जाती है| माता पार्वती को आदिशक्ति का अवतार भी माना जाता है| इस पूजा में माता पार्वती की पूजा कर अनाज के कुठले(टंकी) पर स्थापना की जाती है|आम या केले के पत्तों से इस प्रतिमा के ऊपर छत या पंडाल का बनाया जाता है|तत्पश्चात माता पार्वती की आराधना की जाती है|मान्यता है की विधि-विधान और सच्ची श्रद्धा से से पूजा करने पर वहां भगवान गणेश जी अवश्य पधारते हैं और घर में सुख-शांती,धन-धान्य व संपन्नता का वरदान देते है|पूजा के बाद,महिलाएं नौ प्रकार के अनाज से भरे सजावटी बांस प्लेटों का आदान-प्रदान करती है|

 
अनुष्ठान

नए-नए जोड़ों को उनके ससुराल वालों के घर में आमंत्रित किया जाता है और उत्सव के भोजन के साथ उनकी सेवा की जाती है।सभी उत्सव के भोजन को एक साथ आनंद से खाते हैं| त्योहार का एक दिलचस्प हिस्सा बागीना की पेशकश करना है। कम से कम पांच बागिनों को वचन के हिस्से के रूप में तैयार किया जाता है|प्रत्येक बागीना में आम तौर पर हल्दी, कुमकुम, काली चूड़ी, काली मोती (मंगलसूत्र में प्रयोग की जाने वाली), एक कंघी, एक छोटा दर्पण, नारियल, ब्लाउज टुकड़ा,अनाज, चावल, तोर दाल का एक पैकेट होता है|एक बागीनी गौरी मा को दी जाती है,और अन्य बागीनी विवाहित महिलाओं को दी जाती है|सोलह समुद्री मीलों के साथ हल्दी के साथ रंगीन एक धागे की पूजा महिलाओं द्वारा की जाती है और यह धागे उनके दाहिने हाथो में बांधे जाते है|इस दिन महिलाएं नए कपड़े और कांच की चूड़ियां खरीद कर पूजा के दौरान पहनती हैं|आदिशक्ति का अवतार मानी जाने वाली गौरी माता की पूजा के लिए महिलाएं उनकी मूर्ति बनाती है उसको अनाज की टंकी पर स्थापित करती हैं फिर आम और केले के पत्ते से छत बनाकर असकी पूजा की जाती है ऐसा माना जाता है कि पूजा के बाद गणेश जी वहां जरूर आते हैं।

गौरी हब्बा का महत्व

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देवी गोवरी जो भगवान शिव की पत्नी हैं और भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की मां है,उनकी सबसे शक्तिशाली देवी के रूप में पूजा की जाती है। वह शक्ति, दिव्य स्त्रैण रचनात्मक शक्ति की अवधारणा या अवतार के रुप मे मानी जाती है। गौरी हब्बा के दौरान, यह माना जाता है कि थिडिगे या भद्रा के महीने (ग्रेगोरियन कैलेंडर में अगस्त-सितंबर) के तीसरे दिन, माता गौरी ने किसी भी विवाहित महिला की तरह अपने माता-पिता का घर का दौरा किया। एक दिन बाद, उसके पुत्र भगवान गणेश उसे कैलाश पर्वत पर वापस ले जाने के लिए आते हैं, जहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते है।

http://www.india.com/festivals-events/gowri-habba-2017-date-significance-and-puja-muhurat-of-swarna-gowri-vratha-festival-celebrated-ahead-of-ganesh-chaturthi-2422793/ https://en.wikipedia.org/wiki/Gowri_Habba http://www.india.com/festivals-events/gowri-habba-2017-date-significance-and-puja-muhurat-of-swarna-gowri-vratha-festival-celebrated-ahead-of-ganesh-chaturthi-2422793/