विकास अग्रवाल
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vikash Agrawal
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जन्म ८ जनवरी १९९७
कोलकाता, पश्चिम ब्ंगाल, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
शिक्षा क्राइस्ट विश्वविद्यालय, बेंगलुरु
धर्म हिन्दू
मेरा नाम विकास अग्रवाल है और मैं क्राइस्ट विश्वविद्यालय में मीडिया का छात्र हूँ। मेरा जन्म ०८ जनवरी १९९७ को कोलकाता में हुआ था और मैंने दसवीं सेलाक्वि पुब्लिक स्कूल देहरादून से और बारहवीं अभिनव भारती हाई स्कूल कोलकाता से पूरी की है। पढाई में हमेशा से मेरी रुचि रही है और गणित मेरी पसंदीदा विषय है। इसके अन्य मुझे तस्वीरें खींचने का काफी शौक है और मैने कई प्रतियोगिता में भाग भी लिया है। पढाई के अतिरिक्त मेरी रुचि उपन्यास पढने में, नृत्य में, गिटार बजाने में, संगीत सुनने में है। मुझे तंदुरस्त रहना अच्छा लगता है और मैं रोजाना जिम जाता हूँ। मुझे विज्ञान के क्षेत्र में हुए नये आविष्कारों के विषय में पढना काफी अच्छा लगता है और मैं प्रायः इनके बारे में जानने की कोशिश करता हूँ। मुझे सबसे ज्यादा प्रेरणा अपने बड़े भाई से मिलती है। मुझे कभी भी कोई कठिनाई होती है तो उसके सहयोग से मैं उसे हल कर लेता हूँ। मेरी इच्छा आगे चलकर फिल्म निर्देषक बनने की है और इस ओर मैने थोड़ा बहुत कार्य करना शुरु किया है जैसे छोटी वृत्त्चित्र बनाने का कार्य में मैं अपने एक मित्र के साथ करता हूँ। मुझे घूमने का भी काफी शौक है और छुट्टियों में नयी-नयी जगहों पर जाना काफी पसंद करता हूँ। मुझे इ-कॅमर्स के क्षेत्र में भी काफी दिलचस्पी है और मैं रोजाना नियमित रूप से इसके विषय में पढता हूँ। मैं कोलकाता से हूँ और वहाँ की संस्कृति और लोगों की किसी चीज को पूरे आनंद से जीने की प्रवृत्ति का असर मुझ पर भी पड़ा है और मैं भी जिंदगी को पूरे मजे के साथ जीने में विश्वास करता हूँ। त्योहारों और किसी अवसरों को दिल खोलकर जीने में जो संतुष्टी मिलती है वह शायद किसी और चीज में नही मिलती। मेरी पसंदीदा खेल टेनिस और घुड़सवारी है और मैने दसवीं तक घुड़सवारी में अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया है।

   मेरे पिता का नाम जयप्रकाश अग्रवाल और माता का नाम निर्मला अग्रवाल है। मेरे पिता एक व्यवसायी हैं और माता एक गृहिणी है। मेरे पिता का डीलरशीप का व्यवसाय है। मेरी एक छोटी बहन है और वह आठवीं कक्षा में पढती है। मैं एक संयुक्त परिवार में रहता हूँ और मेरा मानना है कि परिवार का सही मतलब सबके साथ रहने में है। मैं अपने ताऊजी और चाचा के साथ रहता हूँ। मेरे सबसे करीब मेरे दादाजी और दादीमाँ है। मुझे कभी-कभी उनके चले जाने का काफी डर लगता है पर यह तो संसार क नियम है। मैं अपनी जिंदगी से काफी खुश हूँ और शायद यह मेरे जिंदगी के कुछ अच्छे कर्म ही हैं जो मुझे इतना अच्छा परिवार मिला है जो हमेशा मेरे सुख-दुख में मेरे साथ मेरे हिम्मत के रूप में खड़ा रहता है। इतने अच्छे भाई-बहन मिले जिनके साथ मैं बिना किसी झिझक के कुछ भी शेयर कर सकता हूँ और एक सही राय मुझे मिलेगी। बस आखिर में मैं यह कहना चाहता हूँ:
                                 "परिवार वह सुरक्षा कवच है जिसमे रहकर व्यक्ति शांति का अनुभव करता है"।