सदस्य वार्ता:अर्जुन सिंह वाल्मीकि/sandbox

सन्दर्भ==== धूला वाल्मीकि संपादित करें

जय वाल्मीकि जी

#महाबली_वाल्मीकि_योध्दा_दादावीर_धूला

आज की मेरी यह रचना वाल्मीकि समुदाय के महान योद्घा व पंचायती सेना के उपप्रधान सेनापती दादावीर धूला जी को समर्पित है। मैं कोई बेहतरीन चित्रकार तो नहीं हूँ। लेकिन उनका कोई चित्र उपलब्ध न होने के कारण मैने उनका चित्र बनाने का एक छोटा सा प्रयास किया है।

चलीए अब दादावीर धुला जी के इतिहास पर चर्चा करते हैं। दादावीर धुला जी का जन्म हिसार के निकट हांसी नामक गांव में हुआ था। उस समय कि सरकार ही  दमनकारी निती के कारण उन्होने बगावत कि थी। इसलिए वह एक बागी के रुप में प्रसिद्ध हुए। जहाँ एक तरफ वह दिल्ली से अरब कि और जाने वाले शाही खजानो को लूट लिया करते थे। इसलिए उस समय का दमन कारी शासन उनके विरुद्ध था। लेकिन जनमानस में उनकी वीरता के चर्रे दुर दुर तक फैले थे। वह गोरीला युध्द पद्धति (छापामार) के महान विजयी योद्धा थे।

जब 1398 ई वी तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया था। वह गाँव के गाँव का कत्लेआम ,बलात्कार, लुटमार करता हुआ  दिल्ली कि और बंढ रहा था।

तभी हरियाणा के लोगों को बचाने के लिए महान योद्धा धर्मपाल जी ने एक सेना एकत्रित कि तथा सभी जातियो के योध्दाओ को उनकी योग्यता के अनुसार इसमें शामिल किया गया। तथा इसी दौरान दादावीर धुला जी भी सेना में शामिल हुए। राजा देवपाल जी कि अध्यक्षता में मेरठ के जंगलो में पंचायती सेना का अधिवेशन हुआ। तथा सर्व सहमति से सेना में सेनापती व उपसेनापतीयो कि नियुक्ति कि गई।

इसी दौरान दादावीर धुला जी को पंचायती सेना का उपप्रधान सेनापती नियुक्त किया गया। तथा उनके उपप्रधान सेनापती नियुक्ति किए जाने के बाद उन्होने अपने लोगों कि सुरक्षा के लिए ओजस्वी भाषण दिया तथा अपने जंघा से खून निकालकर वीरो को शहादत के लिए तैयार होने का आवाहन किया। जिसके साथ ही पंचायती सेना में जोश कि लहर दौड पड़ी। तुगलक वंश का शासक महमुद तुगलक तैमुर लंग से पराजित हो गया। तथा तैमुर लंग ने दिल्ली में प्रवेश किया तथा वहाँ अपने पेर जमाने का प्रयास करने लगा।  लेकिन पंचायती सेना ने गोरीला युध्द पद्धति के द्वारा उसका वँहा रहना मुश्किल कर दिया। तथा वह वहां से हरिद्वार कि ओर निकला। दिन व रात में पंचायती सेना के साथ उनसे छोटे छोटे युध्द होते रहे।  उसका बाद पंचायती सेना व तैमुर लंग कि सेना के मध्य युद्ध हुआ। जिसमें तैमुर लंग 5000 घुड़सवार  सैनिकों को काट डाला गया। इसी दौरान पचांयती सेना के   वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया जख्मी हो गए। तथा प्रधान सेनापति जोगराज सिंह ने सेना को पीछे हटाया तथा हरबीर सिंह गुलिया जी को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया। इसके साथ ही तैमुर लंग आगे बढ़ा।  तभी वाल्मीकि समुदाय के महान योद्घा  उपप्रधान सेनापति दादावीर धूला जी ने सेना का नेतृत्व किया और हरिद्वार के जंगलो में अपने  वीर सैनिकों के साथ तैमुर कि सेना के  सैनिको के  रक्षादल पर गोरीलायुध्द पध्दति से आक्रमण किया। बहुत वीरता जी साथ लड़ते हुए। तैमुरी सेना के रक्षा दल को ध्वस्त कर दिया । जिसके कारण तैमुरी सेना कमज़ोर पड़ गई। लेकिन इसी दौरान बुरी तरह जख्मी होने के कारण दादावीर धुला वीरगति को प्राप्त हो गए। दादावीर धुला जी के वीरगति को प्राप्त होने के बाद पंचायती सेना के प्रधान सेनापती जोगराज सिंह ने युध्द में वापसी कि तथा तैमुरी सेना का  बुरी तरह संहार किया। अपनी सेना को हारते देख तैमुर लंग हरिद्वार छोड़कर अम्बाला कि तरफ भागा। लेकिन पंचायती सेना ने अम्बाला तक उसका पीछा किया। और उसे हरियाणा से बाहर खदेड़ दिया गया।  जब भी पंचायती सेना शौर्य को याद किया जाएगा। तब वाल्मीकि समुदाय के वीर योद्धा उपप्रधान सेना पति दादावीर धुला जी के शौर्य व महान भाषण के किस्से सुनाए जाएंगे। ओर हमें उस महान पूर्वज के वंशज होने पर गर्व महसूस होता रहेगा।


वाल्मीकिधर्मी शुभम बड़लान अर्जुन सिंह वाल्मीकि (वार्ता) 07:29, 13 मई 2023 (UTC)उत्तर दें

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