Lulwa Khas लूलवा खास महीला Country India State Rajasthan District Ajmer district Tehsil Masuda Time zone IST (UTC+5:30) PIN 305623 Lulwa Khas (Hindi: लूलवा खास) -- पोस्ट - नयागांव, तहसील - मसुदा , जिला - अजमेर, राज., भारत. 305623.

लेखक- गोविन्द सिंह पुत्र गिरधारी जी लूलवा खास

ब्यावर के इतिहास से पुर्व प्रथम भाग में अजमेर क्षेत्र के इतिहास का संक्षिप्त वर्णन किया गया था। अब इस भाग में मेरवाड़ा प्रदेश में निवास करने वाली मेर जाति के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन किया जा रहा है जो इस प्रकार हैः- अन्त में काठाजी ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था और उसके बाद उनकी सन्तानों ने निरन्तर बढ़ चढ़ कर अथूण, झाक, श्यामगढ़, चिताड़, नाणना इत्यादि अनेक स्थानों पर अपना अधिकार करके स्वयं शासन करना आरम्भ कर दिया। यह बात मारवाड़, मेवाड़ तथा ढूंढार के राजाओं को अच्छी नहीं लगी। फलस्वरूप इन रियासतों के राजाओं ने इनके उपर विजय पाने के लिये आठ बार आक्रमण किये लेकिन सफल नहीं हुए। आखीरकार नसीराबाद फौजी छावनी के अग्रेजों ने इन राजाओं की सहायता से मेरों पर विजय प्राप्त की और इस क्षेत्र को अपने अधिकार में लेकर यहाॅं पर ब्यावर के नाम से एक नई फौजी छावनी बनाई जहाॅं पर नये अग्रे्रंज फौजी सुपरिन्टेन्डेन्ट कर्नल हेनरी हाॅल को नियुक्त किया।

प्रथम युद्ध सन् 1725 ई. मेंः- सबसे पहीले जयपुर महाराज जयसिंहजी ने झाक पर सन् 1725 ई. में विशाल सेना के साथ चढ़ाई की। झाक के निवासी अपने शरणार्थी पड़ासोली के ठाकुर देवीसिंहजी को लेकर पहाड़ों में चले गये। कुछ समय पश्चात झाक निवासीयों ने जयसिंहजी के सेनिकों पर आक्रमण कर दिया। विवश होकर जयपुर की सेना भाग गई।

द्वितीय युद्ध सन् 1754 ईं. मेंः- महाराणा उदयपुर की ओर से ठाकुर बदनोर व मसूदा के ठाकुर सुल्तानसिंह ने अपने नेतृत्व में झाक और अथून पर सन् 1754 में विशाल सेना के साथ आक्रमण किया। इस युद्ध में मसूदा के ठाकुर सुल्तानसिंह मारे गये और बदनोर के ठाकुर युद्ध के मैदान से भाग गये। इस प्रकार दूसरी बार भी मेरों की शानदार विजय हुई। मेर जाति में रावत, मेहरात, काठात व चीता जाति के लोग सम्मिलित थे।

तृतीय युद्ध सन् 1778 ईं. मेंः- जोधपुर के महाराज विजयसिंहजी ने चाॅंग गाॅंव को विजय करने हेतू विशाल सेना भेजी। लेकिन यह सेनिक बिहड़ जंगलों में रास्ता भटक गये और चाॅंग नहीं पहुॅंच सके तथा उनको बिना युद्ध किये ही वापिस लौटना पड़ा। कुछ ही दिनों बाद रायपुर के ठाकुर अर्जुनसिंह से जोधपुर से बहुत बड़ी फौज मंगाकर घोड़ातों के गाॅंव कोटकिराणा पर हमला बोल दिया। गाॅंव के बहादुर निवासियों ने रास्ते में ही बहादुरी से डटकर मुकाबला किया। मारवाड़ के अनेक सेनिक मारे गये तथा शेष सेना युद्ध के मैदान से भाग गई।

चतुर्थ युद्ध सन् 1790 ईं. मेंः- मारवाड़ कंटालिया के ठाकुर ने जोधपुर से बहुत बड़ी सेना मंगाकर रावतों के गाॅंव टाटगढ़ पर चढाई कर दी। घमासान युद्ध हुआ। कंटालिया के ठाकुर इस युद्ध में मारे गये। रावतों ने मारवाड़ की सेना के छक्के छुड़ा दिये। उनकी छावनी लूट ली। अन्त में जीत रावतों की हुई।

पंचम युद्ध सन् 1800 ईं. मेंः- अजमेर के सुबेदार शिवाजी सिंधिया ने मराठा शासक बालाजी राव के साथ 60 हजार सैनिकों के साथ झाक व श्यामगढ़ के मेरवाड़े पर चढ़ाई कर दी। इस युद्ध का मुकाबला रावत तथा मेहरातों ने संगठित रूप से किया था। मराठों की फौज के हजारों सिपाही इस युद्ध में मारे गये। अन्त मंे बालाजी राव युद्ध के मैदान से भाग निकले। अन्त विजय रावत तथा मेहरातों की ही हुई।

षष्टम् युद्ध सन् 1810 ईं. मेंः- मारवाड़ के राजा मानसिंह ने मंडोर फौज की सहायता से ग्राम झांक पर चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में महाराज मानसिंह और झाक निवासियों में घमासान लड़ाई हुई। महाराजा के अनेक सिपाही मौत के घाट उतार दिये गये। महाराजा मानसिंह युद्ध के मैदान से भाग निकले। विजयश्री झाक निवासियों को मिली।

सप्तम् युद्ध सन् 1816 ईं. मेंः- महाराजा भीमसिंहजी मारवाड़ ने भगवानपुरा के ठाकुर के नेतृत्व में रावतों के गाॅंव बरार पर हमला किया। इस युद्ध में भगवानपुरा के ठाकुर मारे गये और विजयश्री रावतों को मिली।

अष्टम् युद्ध सन् 1817 ईं. मेंः- अजमेर पर ईष्ट इण्डिया कम्पनी का अधिकार हुआ था और अग्रेंजों ने मेरवाड़े पर नजर रखने के लिए नसीराबाद फौजी छावनी बनाई थी। थोडे़ ही दिनों में झाक, लूलवा, श्यामगढ़, बोरवा, अथूण, कूकड़ा, बरसाबाड़ा /टाटगढ़/ यानी रावत मेहरातों के गाॅंवों के अलावा सभी राजपूत व अन्य जातियों ने अंगे्रजों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। गवर्नर जनरल ने तीन फौजी इन्जिनियर अफसरों के साथ कर्नल हेनरी हाॅल को बहुत बड़ी फौज देकर भेजा जो झाक, लूलवा, श्यामगढ़ पर चढ़ाई करने के लिए देलवाड़ा आ डटा। यह बात खुफिया के जरिये झाक, लूलवा, श्यामगढ़ निवासियों को मालूम पड़ गई जो पाखरियावास के घाटे में अंगेंजी सेना के विरूद्ध जबरदस्त नाकेबन्दी कर दी। विवश होकर अंगे्रजी सेना को वापिस खरवा लौट जाना पड़ा। परन्तु मेरों ने खरवा जाकर अंगें्रजी सेना के सन्तरियों को मारकर अंगे्रजी सेना के साथ घमासान युद्ध किया। इस युद्ध में अनेक अंगे्रज सिपाही मौत के घाट उतार दिये गये। बचे हुए सिपाहियों ने कर्नल हेनरी हाॅल निराश होकर नसीराबाद लौट गया। इस युद्ध में इन तीनों गाॅंवों के कई वीरों ने वीर गति प्राप्त की।

नवम् युद्ध सन् 1819 ईं. मेंः- सन् 1819 ई. के मार्च महिने में कर्नल हाॅल व मेजर लोरी ने अंगे्रजों की तीसरी रेजीमेन्ट व भारी संख्या में रसाला एवं भारी भारी आधुनिक तोपें हाथीयों पर लादकर लगभग सात हजार सैनिकों के साथ रवाना हुए। इस सेना को तीन भागों को बांटकर अंग्रेजी फौजी अफसर ने एक साथ झाक, लूलवा, श्यामगढ़ तीनों गाॅंवों पर अलग अलग हमले बोल दिये। इस अचानक तोपों से किये गये तीन तरफा युद्ध में तीनों गाॅंवों के निवासी इक्टठा होकर नहीं लड़ सके और न ही उनके पास तोपों से युद्ध करना मुमकीन था। देखते देखते अंगे्रजी सेना ने दन तीनों गाॅंवों को खण्डहरों में बदल डाला। हजारों वीरों ने इस युद्ध में वीरगती प्राप्त की। अन्त में जीत अंग्रेजों की हुई। अंगे्रजों ने इन तीनों गाॅंवों को जीतने के पश्चात बोरवा और अथूण गाॅंव पर भी चढ़ाई कर दी। अथूण में उस समय भूपत खान ने अंगे्रजों को मुकाबला किया। परन्तु आधुनिक तोपों की आग के गोलों के सामने वे टिक नहीं सके और भाग कर गाॅंव रामगढ़ /सेन्दड़ा/ में शरण ली। परन्तु वहाॅं पर भी अंग्रेजी सेना पीछा करती हुई आ गई। भूपत खान ने रावत मेहरातों की सहायता से यहाॅं भी अंगे्रजी सेना के साथ जमकर युद्ध किया। रामगढ़ /सेन्दड़ा/ के इस युद्ध में भूपत खान के अनेक साथी मारे गये और अनेक साथी अंगे्रजों द्वारा बन्दी बना लिये गये जिसमें भूपतखान के उत्तराधिकार पुत्र लाखाजी खान भी थे। इस युद्ध के पश्चात पूरे मेरवाड़े पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।

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