श्रेया मिश्रा 'सखी'
श्रेया मिश्रा 'सखी' 10 दिसम्बर 2020 से सदस्य हैं
Latest comment: 3 वर्ष पहले by Shreya Mishra Sakhi in topic नारी सदैव दूसरों की इच्छा पर निर्भर क्यों रहे?
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नारी सदैव दूसरों की इच्छा पर निर्भर क्यों रहे? संपादित करें
मैं अक्सर नानी से पूछती हूँ कि हम समाज को लेकर क्यों चलें? समाज हमेशा स्त्रियों पर उंगली उठाता रहा है और दुर्भाग्यवश यह कटु सत्य आज भी नहीं बदला है। मेरे विचार से हमें ईश्वर की नज़र में सही होना चाहिए। किंतु नानी कहती हैं, "नहीं, हमें ईश्वर की नज़र में निस्संदेह सही होना चाहिए परंतु ऐसा कोई कार्य न करें जिससे समाज हम पर उंगली उठाये।" "लेकिन, तब माता सीता ने ऐसा क्या किया था जो इस समाज ने उनको दोषी ठहराया? क्या दोष था अहिल्या का जो पत्थर बनीं? ऐसे ही कई निर्दोष नारियों को क्या दोषी नहीं बनाता आया है यह समाज??"
वैसे तो मुझे नानी बेहद अच्छी लगती हैं, उनकी सुनायी गयी अनेक कहानियाँ मुझे प्रेरणा देती हैं, उनके कुछ भजन भी मैंने याद किये हैं, और उनकी धर्मपरायणता मुझे विशेष प्रिय है, उनकी बहुत सारी बातें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं, मैं उनकी अनेक बातों से सहमति रखती हूँ और नानी भी मेरे कई प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर देकर मुझे संतुष्ट करती हैं लेकिन केवल इसी बात पर मुझे कहीं न कहीं लगता है कि मैं उनके साथ नहीं हूँ क्योंकि मेरा विचार है कि यह बिल्कुल आवश्यक नहीं कि हम सदैव समाज को साथ लेकर चलें, बहुत-सी बातें हम स्वेच्छा से कर सकते हैं। कई बार मेरे मन में ये प्रश्न कौंधते हैं कि यदि समाज को ही लेकर चलती तो क्या मीरा, 'मीरा' होती? शायद नहीं, वे उदयपुर की महारानी ही होतीं। यदि समाज को लेकर चलती तो क्या शबरी, 'शबरी' ही होती? नहीं ना? वे केवल वन की भीलनी ही होतीं। यदि समाज को ही लेकर चलती तो झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई भी कभी वीरांगना नहीं होती केवल रानी ही होतीं। अनेक ऐसे उदाहरण हैं जहाँ नारियों ने इस पुरूष-प्रधान समाज को छोड़कर अपनी पहचान कायम किया है और इनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से अंकित है। इसीलिए कहती हूँ कि स्त्री को समाज से इतना मोह नहीं होना चाहिए कि वह अपना अस्तित्व ही खो बैठे।
●यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं, किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है।
©✍️श्रेया मिश्रा 'सखी' Shreya Mishra Sakhi (वार्ता) 14:50, 13 जनवरी 2021 (UTC)