DRx Neeraj kumar pathak
{{क्या होती है जेनेरिक दवा- किसी एक बीमारी के इलाज के लिए तमाम तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार किया जाता है जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दवा की शक्ल दे दी जाती है. इस साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है. कोई इसे महंगे दामों में बेचती है तो कोई सस्ते. लेकिन इस साल्ट का जेनेरिक नाम साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान रखते हुए एक विशेष समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है. किसी भी साल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है.
क्या आप जानते हैं- अधिकत्तर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका ठीक से प्रचार-प्रसार ना होने के कारण इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पाता. मजूबरी में ठीक जानकारी ना होने के कारण गरीब भी केमिस्ट से महंगी दवाएं खरीदने पर मजबूर हो जाता है.
सस्ती दवाएं मिल सकती हैं- आमतौर पर डॉक्टर्स महंगी दवाएं लिखते हैं इससे ब्रांडेड दवा कंपनियां खूब मुनाफा कमाती हैं लेकिन क्या आप जानते हैं आप डॉ. की लिखी सस्ती दवाएं भी खरीद सकती हैं. जी हां, आपका डॉक्टर आपको जो दवा लिखकर देता है उसी साल्ट की जेनेरिक दवा आपको बहुत सस्ते में मिल सकती है. महंगी दवा और उसी साल्ट की जेनेरिक दवा की कीमत में कम से कम पांच से दस गुना का अंतर होता है. कई बार जेनरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में 90 पर्सेंट तक का भी फर्क होता है.
जेनेरिक दवाएं और भ्रम- जेनेरिक दवाएं बिना किसी पेटेंट के बनाई और सरकुलेट की जाती हैं. हां, जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है लेकिन उसके मैटिरियल पर पेटेंट नहीं किया जा सकता. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से बनी जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती. ना ही इनका असर कुछ कम होता है. जेनेरिक दवाओं की डोज, उनके साइड-इफेक्ट्स सभी कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसे ही होते हैं. जैसे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए वियाग्रा बहुत पॉपुलर है लेकिन इसकी जेनेरिक दवा सिल्डेन्फिल नाम से मौजूद है. लेकिन लोग वियाग्रा लेना ही पसंद करते हैं क्योंकि ये बहुत पॉपुलर ब्रांड हो चुका है. इसकी खूब पब्लिसिटी इंटरनेशनल लेवल पर की गई है. वहीं जेनेरिक दवाइयों के प्रचार के लिए कंपनियां पब्लिसिटी नहीं करती. जेनेरिक दवाएं बाजार में आने से पहले हर तरह के डिफिकल्ट क्वालिटी स्टैं र्ड से गुजरती हैं.
ठीक इसी तरह से ब्लड कैंसर के लिए ‘ग्लाईकेव’ ब्राण्ड की दवा की कीमत महीनेभर में 1,14,400 रूपये होगी, जबकि दूसरे ब्रांड की ‘वीनेट’ दवा का महीने भर का खर्च 11,400 से भी कम आएगा.
क्यों सस्ती होती हैं जेनेरिक दवाएं- जहां पेंटेट ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं वहीं जेनेरिक दवाओं की कीमत को निर्धारित करने के लिए सरकार का हस्तक्षेप होता है. जेनेरिक दवाओं की मनमानी कीमत निर्धारित नहीं की जा सकती. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, डॉक्टर्स अगर मरीजों को जेनेरिक दवाएं प्रिस्क्राइब करें तो विकसित देशों में स्वास्थय खर्च 70 पर्सेंट और विकासशील देशों में और भी अधिक कम हो सकता है.
इन बीमारियों की जेनेरिक दवा होती है सस्ती- कई बार डॉक्टर सिर्फ साल्ट का नाम लिखकर देते हैं तो कई बार सिर्फ ब्रांडेड दवा का नाम. कुछ खास बीमारियां हैं जिसमें जेनेरिक दवाएं मौजूद होती हैं लेकिन उसी सॉल्ट की ब्रांडेड दवाएं महंगी आती हैं. ये बीमारियां हैं जैसे- हार्ट डिजीज, न्यूरोलोजी, डायबिटीज, किडनी, यूरिन, बर्न प्रॉब्लम. इन बीमारियों की जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में भी बहुत ज्यादा अंतर देखने को मिलता है.
कैसे पता करें जेनेरिक और ब्रांडेड दवा में अंतर- एक ही साल्ट की दो दवाओं की कीमत में बड़ा अंतर यूं तो जेनेरिक दवा का सबूत हो सकता है लेकिन इसके लिए कई मोबाइल ऐप जैसे Healthkart plus और Pharma Jan Samadhan भी मौजूद हैं. इनके जरिए आप आसानी से सस्ती दवाएं खरीद सकते हैं.
जेनेरिक दवाओं के लाभ-
जेनेरिक दवा ब्रांडेड दवाओं से सस्ती होती हैं. इससे आप हर माह अच्छी खासी कीमत बचा सकते हैं.
जेनेरिक दवाएं सीधे खरीददार तक पहुंचती हैं.
इन दवाओं की पब्लिसिटी के लिए कुछ खर्चा नहीं किया जाता. इसलिए ये सस्ती होती हैं.
सरकार इन दवाओं की कीमत खुद तय करती है.
जेनेरिक दवाओं का असर, डोज और इफेक्ट्स ब्रांडेड दवाओं की तरह ही होते हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट- एबीपी न्यूज़ ने जेनेरिक दवाओं के बारे में सफदरजंग अस्पताल के मेडिसिन डिपार्टमेंट हेड डॉ. दलिप कुमार से बात की. डॉ. कुमार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जेनेरिक दवाओं को प्रिस्क्रिाइब करने वाली बात बहुत अच्छी है लेकिन डॉक्टेर्स दवा लिख भी देते हैं तो मेडिकल स्टोर्स किसी भी कंपनी की दवा ये कह कर मरीज को दे देते हैं कि उनके पास लिखी हुई मेडिसिन नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि मेडिकल स्टोर्स को जिस दवा कंपनी से अधिक मार्जन मिलता है वे वही कंपनी की दवा मरीज को देते हैं. ऐसे में कुछ ब्रांड्स को ही जेनेरिक मेडिसिन बनाने की परमिशन मिलनी चाहिए. कई बार डॉक्टर जो दवा लिखते हैं और मेडिकल स्टोर से जो दवा मरीज को मिलती है उसमें उतनी मात्रा में वैसी कंपोजिशन और साल्ट नहीं होता जितना कहा गया होता है. ऐसे में मरीज को पूरा फायदा नहीं मिलता. अगर सचमुच जेनेरिक दवा अनिवार्य हो जाए तो इससे मरीज को बजट और हेल्थ दोनों तरह से फायदा होगा. इतना ही नहीं, डॉ. ये भी कहते हैं कि मेडिकल स्टोर्स को अपनी मर्जी से कोई भी दवा देने पर बैन लगना चाहिए.
जेनरिक दवाओं को कैसे पहचानें? जेनेरिक और एथिकल दवाइयों को कैसे पहचानते हैं? आम लोगों को जेनेरिक दवा और सामान्य दवा के बीच अंतर कैसे पता चलता है ? जेनेरिक और एथिकल दवाइयों में क्या अन्तर है और इसकी पहचान क्या है? मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली दवाइयों में असली या नकली की पहचान कैसे कर सकते है ? बाजार में मिलने वाली नकली दवाइयों की पहचान कैसे कर सकते हैं? डॉक्टर एक दूसरे की लिखी दवा उनकी अजीब सी लेखनी में कैसे पहचान जाते है? जेनेरिक दवाएं क्या होतीं हैं? जेनेरिक और पेटेंट दवाई की पहचान कैसे करें? जेनेरिक दवाइयों के क्या लाभ हैं? जेनेरिक दवा क्या होती है ? जेनेरिक दवाएं कहां मिलती हैं? सामान्य (जेनेरिक) दवा क्या है, और इसकी पहचान कैसे करें? जेनेरिक दवा इतनी सस्ती क्यों होती हैं? जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों में ऐसा क्या अंतर हैं कि डॉक्टर हमें जेनेरिक दवाई नही लिखते?|realName=|name=DRx Neeraj kumar pathak}}