'जगदम्बा हरि आन शठ चाहत कल्याण ' कुंभकर्ण,डॉ शोभा भारद्वाज संपादित करें

जगदम्बा हरि आन शठ चाहत कल्याण पार्ट – 1 डॉ शोभा भारद्वाज राम लीला के मैदानों में प्रति वर्ष तीन पुतले जलाए जाते हैं , प्रमुख रावण उसके दोनों और भाई कुम्भ कर्ण एवं पुत्र मेघनाथ के पुतले श्री राम तीर छोड़ते हैं बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक एक के बाद एक जलते हैं जय श्री राम के जय घोष के साथ सारा वातावरण हर्ष उल्लास से भर जाता हैं | लंका पति रावण भाग्यवान था कहते हैं मेघनाथ सा पुत्र नहीं कुम्भकर्ण सा भाई नहीं , जिन्होंने रावण के बुरे समय में अंत तक साथ देकर पहले मृत्यू का वरण किया| कुम्भकर्ण का नाम लेते ही एक विशाल आकृति सामने आती है कत्थक कली के नर्तक जैसा हंसता चेहरा ,वह विशाल वृक्षों को जड़ से उखाड़ कर अपना हथियार बना लेता है , जब चलता है सारी पृथ्वी डोलती है जिस जीवित प्राणी को देखता है उसे उठा कर पशू की तरह मुहँ में डाल लेता है जैसे आखेटक हो लेकिन उसका आखेट कान से निकल कर बच जाता है जिधर जाता है आतंक मचा देता हैं वह अपने आप में समर्थ एक सेना है |

युद्ध समाप्त हुआ चारो और शव ही शव बिखरे हुये थे , रणक्षेत्र में हा- हा कार मचा था , अपनों के शवों पर स्त्रियाँ बच्चे बिलख रहे थे |राक्षस अपने मृतकों का अंतिम संस्कार शवों को समुद्र तल में डुबोकर या विशाल चिता में अपने परिजनों का सामूहिक दाह संस्कार कर रहे थे हर और शीघ्रता ही नहीं भय भी था न जाने विजेता सेना उनके साथ कैसा व्यवहार करती है , उनके महाराज रावण का अपराध क्षमा योग्य नहीं था |

श्री हनुमान को विभीषण अपने साथ लंका के राजमहल में ले जा रहे थे राजमार्ग खाली थे राजमहल के साथ सटे द्वार से वह हनुमान जी को एक सादा कमरे में ले गये यहाँ से भूगर्भ में जाने के लिए तंग सीढियाँ थी कुछ सीढियाँ उतरने के बाद थोड़ी दूर चल कर फिर सीढियाँ आयीं यह मार्ग प्रकाशित था लेकिन रोशनी प्राकृतिक नहीं थी बल्कि दीवारों में लगे तराशे रत्नों पर हल्की रोशनी पड़ने से मार्ग चमक रहा था| सीढियाँ उतरने के बाद वह एक गलियारे में पहुंचे यहाँ चांदी के द्वीपों में मोम के दीपक जल रहे थे| दीप दानों पर चांदी की झालरें लगी थीं जिससे टकरा कर प्रकाश तिगुना हो जाता था |गलियारे को पार कर एक अत्यंत विशाल प्रकोष्ठ में पहुंचे यह जरूरत से ज्यादा ऊँचा था प्रकोष में द्वार ही द्वार थे हर द्वार एक मजबूत स्टोर रूम में खुल रहा था यहाँ हर द्वार पर लगे ताले देखने वाले की उत्सुकता जगा रहे थे| ताले संख्या में दस हजार के करीब होंगे हरेक का छेद जहाँ चाबी लगाई जाती है अलग था लेकिन विभीषण उन्हें एक ही चाबी से खोल रहे थे हाथ के हल्के संकेत से द्वार खुलते जा रहे थे जैसे हर द्वार का कोई कोड था प्रत्येक खुलने वाला कमरा प्रकाशित था | प्रकोष्ठों में ताजगी लिए हल्की ठंडी हवा ठंडक दे रही थी| पूरा भाग त्रिकूट पर्वत के नीचे काट कर बनाया गया था |आज भी अन्वेषक लंका में अनगिनत गुफाओं का वर्णन करते हैं लेकिन लम्बे समय से प्राकृतिक आपदाओं को सहते-सहते उनके द्वार और मार्ग पत्थर टूट कर गिरने से अवरुद्ध है |

कमरों की छतों की सीलिंग में सोने की चेन गोला कार आकृति में बंधी थी जिसके चारों और तराशे कांच लगे थे जिनसे प्रकाश छन रहा था| प्रकोष्ठ की दीवारों पर पत्थर के शेल्फ लगे थे हर शेल्फ में कतारों से कुछ न कुछ व्यवस्थित ढंग से सजाया गया था| दीवार पर लगे जमाये गये नीले पत्थर पर सोने के अक्षरों में लिखा था ‘सच जाने शांत रहें’ |श्री हनुमान ने शेल्फों पर रखे हर सामान को देखा महीन तागों से बुने सिल्क के वस्त्रों पर सोने की तारों से बेल बूटे काढ़े गये थे एवं शेर, चीते, तेंदुए एवं सुनहरे भालुओं की खाल के बने वस्त्र भी थे | ढंग से रखी गयीं असंख्य बहुमूल्य पुस्तकें जिनमें व्यंजनों की विधियां,औषधियों , दवाईयाँ ,उपचार की विधियाँ, बिमारियों के नाम और लक्षण यहाँ तक डिप्रेशन पर भी खोज की गयी थी| जख्मों के प्रकार उपचार की दवाईयाँ, शल्य चकित्सा पद्धति, आज का पूरा चकित्सा विज्ञान पुस्तकों में वर्णित था |धरती में पाई जाने वाली असंख्य वनस्पतियाँ ,विषैली वनस्पतियाँ , धरती और समुद्री जीवों और कीट जगत का वर्णन था रत्नों की पहचान और अनेक विषयों की पूरी लायब्रेरी थी|

उस समय की प्रचलित भाषाओँ के शब्द कोष, ज्योतिष विज्ञान ,अन्तरिक्ष विज्ञान एवं खगोल शास्त्र पर भी पुस्तकें थी विभिन्न सुगन्धों , सौन्दर्य प्रसाधन और विष बनाने की विधियों पर पुस्तके थीं | रावण संगीत प्रेमी था वह विभिन्न साज बजाने में निपुण था | संगीत शास्त्र , विभिन्न सरगमों की पांडुलिपिया ज्ञान विज्ञान और विभिन्न वाद्य यंत्रों एवं उनके प्रयोग की पुस्तकें भी थीं |महंगे –महंगे वाद्य यंत्र यह एक दूसरे से मिला कर रखे गये थे एक से स्वर निकालने पर अन्य भी उसी प्रकार अपनी धुन से स्वर निकालते थे| ज्ञान विज्ञान की अनगिनित पुस्तके क्रम से सजी थीं प्राचीन पांडुलिपियों के गठ्ठर थे | दीवारों पर लेप कर उन पर चित्र बनाये गये थे यही नहीं दीवारों को खालों से मढ़ कर उन पर भी चित्र बने थे | हर प्रकार की मदिरा के पात्र और चषक थे |सोने का अकूत संग्रह और समुद्र से निकलने वाले अनमोल रत्नों के भंडार भरे थे| अनेक सजावटी वस्तुयें जिनमें ताम्बे के गोले, चांदी के सितारे तांबे से बनी आकृतियाँ कांसे के मुखोटे, स्वर्ण पत्तियां जिन पर नक्काशी की गयी थी| चन्द्रमा की शक्ल से मोड़ कर हाथी दांत से बनी फूलों की आकृतियाँ तथा इस्पात से बना सामान भी था| ऐसा लग रहा था विश्वकर्मा ने स्वयं इनका निर्माण किया हो |हर वस्तु के निर्माण का सूत्र था जिसे आज फार्मूला कहते हैं| हथियारों के कक्ष लगभग खाली थे | विभीषण ने कहा उचित नेतृत्व में यह कक्ष, सामान और पुस्तके हमारी रक्ष संस्कृति और सभ्यता के विकास की धरोहर हैं| ऐसी और अनेक दुर्गम गुफायें हैं |आप पहले व्यक्ति हैं जिन्हें यह खजाना देखने का अवसर मिला है अपनी सम्पदा का हम निरंतर संरक्षण करते हैं इसे न हम खोते हैं न भूलते हैं न तिरस्कार करते हैं| दुर्लभ को सम्भालना हमारा स्वभाव है, समस्त खजाने पर लंका के महाराज रावण का मालिकाना अधिकार था | आप इसमें से कुछ भी ले सकते हैं |विभीषण ने एक प्राचीन पांडू लिपि जिसे विशेष सावधानी से रखा गया था खोल कर उसके कुछ मन्त्र हनुमान जी को सिखाये जिस मृत का आह्वान करेंगे वह जीवित हो जाएगा परन्तु हमारी रक्ष संस्कृति का विश्वास है जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन जी लिया उसे फिर से जीने की इच्छा नहीं होनी चाहिए| श्री हनुमान ने अपनी प्रजाति के बानर भालुओं को जीवित करने के लिए उनका आह्वान कर मन्त्र का उच्चारण किया ,जीवित हो कर वह नये जीवन पर आश्चर्य कर रहे थे| ऐसे ही लंका के राजवैद ने जब संजीवनी बूटी का प्रयोग मूर्छित लक्ष्मण पर किया था वह जीवित हो गये थे |

प्रश्न उठता है रावण निरंतर युद्धों में व्यस्त रहता था विजय पाना, विजित प्रदेशों को अधिकार में रखना आसान नहीं है| रावण ने देवताओं और नव ग्रहों, काल और मृत्यु अपने वश में कर लिया था | रावण का पुत्र मेघनाथ विजय यात्राओं में व्यस्त रहता था वह तन्त्र मन्त्र साधना एवं सिद्धियों पर बहुत विश्वास करता था लक्ष्मण को मुर्चित करने के बाद वह कुम्भला देवी की साधना कर रहा था जिससे उसे अजेय रथ प्राप्त हो जाये यदि यह रथ प्राप्त हो जाता वह अजेय हो जाता | विभिषण लक्ष्मण , हनुमान एवं वीर बानरों को वहां ले गये मेघनाथ का यज्ञ भंग किया जा सके |भाई विभीषण नीतिज्ञ थे और लंका के मंत्री थे प्रश्न उठता है प्रमुख वैज्ञानिक कौन था जिसके नियन्त्रण में निरंतर प्रयोग चल रहे थे |रावण का भाई कुम्भकर्ण, छह माह सोने के लिए विख्यात था वह एक दिन जब जगता था आमोद प्रमोद में मस्त रहता था | रावण की प्रयोगशालाओं में निरंतर प्रयोग होते थे, जो भूतल में सुरक्षित थे इनकी विश्व को भनक तक नहीं थी कहीं प्रयोगशालाओं का संरक्षक कुम्भकर्ण तो नहीं था ?जिनके अनुसंधान निरंतर लंका की श्री में वृद्धि कर रहे थे |

गुसाईं जी के रामचरित्र मानस में वर्णन है रावण और उनके भाईयों ने निरंतर तप किया जिससे प्रसन्न होकर श्री ब्रम्हा ने वर मांगने को कहा लेकिन कुम्भकर्ण की विशाल काया से परेशान हो गये यह तो मेरी सम्पूर्ण सृष्टि को ही खा जाएगा |सरस्वती ने ब्रह्मा की मंशा जान कर कुम्भकर्ण की बुद्धि फेर दी जैसे ही ब्रम्हा ने वर मांगने को कहा उसने एक दिन जगने और छह माह की निद्रा मांगी मेडिकल साइंस की दृष्टि से इन्सान इतना सो नहीं सकता उसे भोजन और नित्य क्रिया की आवश्यकता पड़ती है | रावण ने अमरता मांगी थी विभीषण ने नीति , कुम्भकर्ण ने हो सकता हो तीक्ष्ण बुद्धि मांगी हो | विश्व कर अपनी रक्ष संस्कृति के विकास के लिए निरंतर लगा रहता हो | सोने की विकसित लंका उसी की देन हो कुछ भी हो कुम्भकर्ण अति विवेकी था|

लंका में राम और रावण के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था एक-एक कर लंका के योद्धा समाप्त हो रहे थे परेशान रावण को अपने भाई की याद आई उसने मंत्री को उन्हें जगाने के लिए भेजा कहते हैं वह छह माह निरंतर सोता था एक दिन जग कर आमोद प्रमोद में लीन रहता था | रामलीला में कुम्भ कर्ण को जगाने के दृश्य का मंचन आकर्षक ढंग से करते हैं देख कर दर्शक हंसते –हंसते लोट पोट हो जाते हैं| मंत्री ने हर सम्भव साधन अपना कर कुम्भकर्ण को जगाने का प्रयत्न किया कानों के पास ढोल नगाड़े बजाये ,वह टस से मस नहीं हुआ अंत में 18000 हाथियों ने कतार बाँध कर उसके मुहं पर जल धारायें छोड़ी अब वह जग गया |खिड़की से उसने देखा रात का समय था| वह प्रकोष्ठ से बाहर आया झील में मुहं धोया रसोई घर से सुगन्धित भोजन की सुगंध आ रही थी कई पात्र मदिरा के भरे हुए थे, सुरक्षित दूरी पर मंत्री खड़ा था |मदिरा गले से उतारने के बाद कुम्भकर्ण ने असमय जगाने का कारण पूछा मंत्री ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया आप निद्रा में लीन थे लेकिन लंका संकट में है हमारे अनुपम योद्धा काल के गाल में समा गये |कुम्भकर्ण को हैरानी हुई चारो और समुद्र द्वारा सुरक्षित लंका में शत्रु ने कैसे प्रवेश किया ?मंत्री ने कहा, राजकुमार बानर भालुओं की विशाल सेना ने सागर में पुल बाँध लिया है अयोध्या के निर्वासित राजकुमारों राम और लक्ष्मण के नेतृत्व में लंका को चारो और से घेर लिया है |कुम्भकर्ण बड़े भाई से मिलने राजमहल में गया वह रावण के रथ के समीप बैठ गया रावण भाई के जगने का समाचार सुन कर आतुर हो गया उसमें नये जीवन का संचार हुआ महल के छज्जे पर खड़े हो कर उसका भाई से वार्तालाप हुआ | पूरा वार्तालाप कुम्भकर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालता है|

रावण बोला ,दुश्मन की विशाल सेना ने आंधी तूफ़ान की तरह आकर हमारे अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया हैं |कुम्भकर्ण ने पूछा आखिर ऐसा क्या अपराध हुआ है जिससे विवश हो कर दुश्मनों ने हमारे गढ़ को घेर लिया |वह पुल बनाते रहे, हमारी सुरक्षा को चुनोती देते रहे तुमने अपनी तरफ से पहल नहीं की |रावण ने उत्तर दिया बहन के अपमान का बदला लेने के लिए मैंने राम की पत्नी सीता का हरण किया है| कुम्भकर्ण गरजा सीता को हर लाये जगत जननी माँ को हर लाये अरे वह श्री नारायण की भार्या साक्षात लक्ष्मी हैं |उन्हें छल से उठा लाये, निरपराध स्त्री का हरन महा पाप है| जाओ सम्मान पूर्वक राम को उनकी भार्या लौटा दो यदि तुम्हें बहन के सम्मान की चिंता थी तो सीधे राम के साथ आर पार का युद्ध करते | रावण ने उत्तर दिया सीता को मैं अपनी भार्या बनाना चाहता हूँ वह अत्यंत सौन्दर्य वती है ऐसा लगता है माया ने ही अपनी समस्त कलाओं के साथ उसका निर्माण किया है| कुम्भकर्ण ने माथे पर हाथ मार कर कहा यह तुम्हारी भूल है| हे राजाओं में सर्व श्रेष्ठ भ्राता जिन्हें तुम पशु समझ रहे हो यह श्री नारायण के साथी है अब राक्षस जाति के विनाश का कारण बनेंगे |रावण क्रोधित हुआ जिस शिक्षा को मैं पसंद नहीं करता उसे सुनना भी नहीं चाहता , तुम्हें मेरी बात सुननी पड़ेगी पशुओं की बात जाने दो केवल श्री राम श्री नारायण के अवतार है वह अकेले ही हमारे कुल और जाति का विनाश करने में समर्थ है तुम विद्वान हो तुमने अखंड तप किया था अपने सिरों का यज्ञ वेदी में होम कर ब्रम्हा से अमरता का वरदान पाया था| आज तुम इच्छाओं की बली चढ़ना चाहते हो|

भ्राता ब्रम्हा से इच्छित वरदान मिलने के बाद महर्षि नारद ने मुझे कहा था रावण ने अमरता प्राप्त की है लेकिन उसका और उसके कुल का विनाश भी विधि ने अपने हाथ से लिखा है |जब भी रावण अपनी शक्ति का दुरूपयोग करेगा श्री नारायण राम अवतार लेकर इसे अनुचित कृत्य का दंड देंगे भाई ब्राह्मण कुल में हमारा जन्म हुआ था |हमें विरासत में कुछ नहीं मिला था हमने अपने श्रम से सब कुछ अर्जित किया है | हर ओर तुम्हारा डंका बज रहा है| तुमने अपने पराक्रम से ख्याति पायी है उसे नष्ट मत करो | रावण ने भाई के हितकारी सुझाव की चिंता नहीं की उसने कहा ठीक है मैं गलत मार्ग पर हूँ लेकिन मेरी रक्षा करना तुम्हारा धर्म है | भ्राता किसी की पत्नि चुराना क्या धर्म था ? पाप की खेती तुमने बोई है लेकिन इसका परिणाम समस्त राक्षस जाति भोगेगी| उत्तम राजा प्रजा का रक्षक होता है उसका गलत कर्म सबके जीवन को खतरे में डाल देता है तुम्हारे मंत्री कुकृत्य पर मन से तुम्हारा साथ नहीं दे रहे हैं |


विभीषण नीतिज्ञ था क्या उसने भी तुम्हें नहीं रोका ?रावण ने क्रोधित होकर कहा ,मुझे पहले ही उसका वध करना चाहिए था| मेरे द्वारा अपमानित होने पर शत्रु का शरणागत हो गया है कुम्भकर्ण ने माथे पर हाथ मार कर कहा तुमने कूटनीतिक भूल की है |अंत में कुम्भकर्ण ने निराशा से सिर झुका कर कहा तुम्हे नीति समझायी तुम नहीं माने तुम मेरे भाई हो गलत मार्ग पर हो |विपत्ति का कारण भी स्वयं हो तुम्हारा साथ देना पाप का साथ देना है लेकिन मैं तुम्हारे दुःख ,सुख ,पाप एवं पुण्य का सहभागी होकर तुम्हारे पक्ष से लडूंगा |मेरे देश पर संकट आया दुर्भाग्य मैं सोता रहा| मेरा भाई अधर्म मार्ग पर चल रहा था मैं शिशु के समान कोमल भावों में डूबा रहा अब अपनी मातृभूमि अपनी जाति की रक्षा के लिए अंतिम क्षण तक लडूंगा |रावण ने कुम्भकर्ण को सेनापति बना कर उसके मस्तक पर तिलक लगाया उसे अपनी सेना अर्पित की लेकिन उसने इंकार करते हुए कहा सेना तुम्हारी रक्षा के लिये है | अकेले ही युद्ध भूमि की और प्रस्थान करते हुए वह मुस्कराया ‘जहाँ धर्म है वहीं विजय है मुझे तो युद्ध करना है’ युद्ध वेश में सज कर मदिरा से भरा घड़ा गले से उतार कर वह युद्ध क्षेत्र में आया उसे देख कर हा-हा कार मच गया | यह योद्धा अपने में पूरी सेना था जो हाथ पड़ा वही उसका हथियार था उसने बानर और भालुओं की और देखा भी नहीं यह तो उद्यानों की शोभा बढ़ाने वाले जीव हैं |उसके नेत्र केवल श्री राम को ढूँढ़ रहे थे| विभीषण ने भाई को समक्ष आ कर प्रणाम किया |कुम्भकर्ण के मन में कोमल भाव जागे उसने उन्हें गले से लगा कर कहा ‘हर व्यक्ति अपने-अपने मत के अनुसार पक्ष धारण करते हैं तुमने राम का पक्ष धारण किया मैने अपने भाई को संकट में देख कर उसका पक्ष लिया मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ परन्तु मुझ पर रण रंग चढ़ा है अब मेरे सामने से हट जाओ’ |


श्री राम ने सामने मृत्यु का विशाल मूर्त रूप देख कर विभीषण से पूछा यह लंका पक्ष से कौन आ रहा है? विभीषण ने उत्तर दिया लंका की शक्ति का मूर्त रूप विद्वान मेरा भाई है | यह चाहे तो सारी सेना को कुछ ही समय में नष्ट कर सकता है |प्रभु इसे आप ही रोक सकते हैं | कुम्भकर्ण के नेत्र केवल राम को खोज रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे आत्मा परमात्मा में लीन होने के के लिए आतुर है | हनुमान ने उसे रोकने का निरर्थक प्रयत्न किया वह छलांग लगा कर उसके कंधे पर चढ़ गये उसका एक कान अपने तीखे दांतों से काट लिया कुंभकर्ण ने तेजी से घूम कर तलवार का प्रहार किया उसकी तलवार हनुमान जी के पुष्ट शरीर से टकरा कर टूट गयी हनुमान धरती पर गिर पड़े , कुंभकर्ण के हाथ में तलवार की मूठ रह गयी |सुग्रीव बड़ी मुश्किल से उसकी पकड़ में आने के बाद बचे | श्री राम एवं कुंभकर्ण के बीच केवल लक्ष्मण थे उनके तीर कुंभकर्ण के कवच से टकरा रहे थे , कवच विहीन शरीर पर भी अनेक तीर चलाये तीर शरीर के बालों से उलझ कर रह गये अब कुंभकर्ण ने नीचे देखते हुए लक्ष्मण से कहा जाओ वीर अब मैं राम का अंत करूंगा तुम वैसे ही मर जाओगे वह राम की और मुड़ा सभी रुक कर उनके अनोखे युद्ध को देखने लगे श्री राम ने अपने धनुष से टंकार की जिसकी तीव्र ध्वनि से सेना में फिर से उत्साह का संचार हुआ | भागते वानर भालू ठहर गये श्री राम की कमान से असंख्य वाण छूट रहे थे |कुम्भकर्ण हर वाण को काटता एवं शरीर में गड़ने वाले तीक्ष्ण बाणों को निकाल कर फेक रहा था | विशालकाय काले शरीर से रक्त की धारायें झर रही थीं बिना विचलित हुए वह हर शस्त्र चलाता हुआ विशाल वृक्षों को जड़ से उखाड़ता बानर भालुओं पर फेकता जा रहा था | श्री राम ने तीन कदम पीछे हट कर तीक्ष्ण बाणों का पूरी शक्ति से संधान किया, बाण उसके कवच को काटते हुए सीधे सीधे सीने में गड़ गये घावों से खून बहने लगा वह कुछ देर खड़ा रहा फिर पर्वत उखाड़ कर उन पर प्रहार करने लगा |

कुंभकर्ण का विकराल रूप ,श्री राम ने अगले तीक्ष्ण बाणों से पहले दाहिनी भुजा काटी वह तब भी बढ़ता रहा फिर बाई भुजा काट दी वह मुहँ खोल कर राम की और बढ़ा उन्होंने कई वां उसके मुख में मारे उसका मुख भरा तरकश लगने लगा तब भी वह बढ़ता आ रहा अंत में कई बाण उसके कंठ में लगे | सिर कट कर लुढ़कता हुआ सागर में समा गया अंत में केवल धड़ ने ही प्रलय मचा दी| राम के तीक्ष्ण वाणों ने धड़ को बीच से चीर दिया| कुम्भकर्ण का मृत शरीर धरती पर गिर कर कुछ समय तक तड़पता रहा उसकी आत्मा प्रकाश पुंज होकर श्री राम रूपी परमात्मा में विलीन हो गयी| उसका जन्म लेना सफल हो गया सभी चकित थे वह अपनी राह चला गया सामने उसका कटा फटा पर्थिव शरीर पड़ा था |सूर्य नारायण अस्ताचल की और जा रहे थे ,राम धनुष हाथ में लिए अकेले खड़े सोच मग्न थे उधर रावण निरंतर बिलख रहा था |

                                         डॉ शोभा भारद्वाज 

रामायण - बाल्मीकि Ramayana=Wiliam Buck (अनुवाद ) श्री राम चरित मानस , गोस्वामी तुलसी दास रामायण पर प्रचलित कथाएँ same (वार्ता) 19:49, 3 फ़रवरी 2024 (UTC)उत्तर दें

मैं बैरी सुग्रीव पियारा अवगुण कवन नाथ मोहि मारा , महाराज बालि का वध , डॉ शोभा भारद्वाज संपादित करें

मैं वैरी सुग्रीव पियारा अवगुण कवन नाथ मोहि मारा , महाराज बाली वध

‘श्री ब्रम्हा’ सृष्टि के निर्माता सुमेरु पर्वत पर विचरण कर रहे थे मान्यता है उनके प्रताप से धरती पर पहले बानर का जन्म हुआ ब्रम्हा उसे रक्षराज के नाम से पुकारते थे वह ब्रम्हा के साथ रहता पर्वत पर विचरण करता ,खेलता मनचाहे फल खाता अपने एकमात्र साथी ब्रम्हा के पास हर शाम लौट कर आता एवं उनके चरणों में पुष्प अर्पित करता | प्रात :काल का समय था वह झील में पानी पीने के लिए झुका उसे झील के स्वच्छ पानी में अपना प्रतिबिम्ब दिखाई दिया भ्रम वश उसे दुश्मन समझ कर वह झील में कूद गया, विशाल झील की तलहटी मे अनजान दुश्मन को ढूंढ़ता रहा लेकिन जब वह तैर कर ऊपर आया अब वह सुंदर सुनहरे बालों वाली वानर कन्या थी उसमें राग के भावों का उदय हुआ वह सुरम्य घाटी में खड़ी थी उस पर देवराज इंद्र एवं सूर्य दोनों की दृष्टि पड़ी वह उस पर मुग्ध हो गये उन दोनों ने एक ही दिन वानर कन्या को अपना प्रेम प्रदर्शित किया|

कुछ समय बाद वानर कन्या नें सुनहरे रंग के दो वानर बालकों को बच्चों जन्म दिया दोनों शिशुओं को झील में नहला कर ब्रम्हा के पास ले गयी |ब्रह्मा ने पहले जन्में इंद्र के पुत्र को बाली, कुछ देर बाद जन्में बच्चे को सुग्रीव का नाम दिया | इंद्र ने अपने पुत्र के गले में आशीर्वाद देते हुए कमल पुष्पों से बनी सोने की माला पहनाई उसे आमने सामने के युद्ध में अजेय रहने का आशीर्वाद दिया | ब्रम्हा जी निरंतर सृष्टि का निर्माण कर रहे थे उन्होंने देवताओं के अंश से वानरों और रीछों की प्रजातिया बनाई वह सभी किष्किंध्या की गुफाओं में बस गये बाली को उन पर राज करने की आज्ञा दी बाली प्रारम्भ में दयालू एवं विवेकी राजा था लेकिन जैसे जैसे उसका बल बढ़ता गया उसका गर्व भी बढने लगा |

सृष्टि निर्माण निरंतर चल रहा था था तरह – तरह के जीव जन्तुओं की रचना करते हुए दुंदभी नाम के भैंसे का जन्म हुआ जैसा नाम वैसा अपने बल से मतवाला जन्म से ही क्रोधित और झगडालू था हरेक को ललकारता यहाँ तक उफनते हुए समुद्र को भी ललकारता हुआ कहने लगा मुझसे युद्ध करो समुद्र की लहरें अपनी गति से आती जाती रहीं उसे बर्फ से ढकी हिमालय चोटियाँ दिखाई ऊचाई के कारण वह पास दिखाई देतीं थीं लेकिन दूर थी धरती लगभग खाली थी वह विचरण करता हिमालय तक पहुंच गया उसकी बर्फीली चोटियों से अपने सींग टकराने लगा लेकिन जब जमने लगा समझ गया यहाँ उसकी प्रतिद्वंदी कठोर हिम चट्टानें हैं ठंडी हवाएं उसके शरीर को काटने लगीं उसकी टाँगे सर्द पड़ चुकी थीं वह लौट आया |

बाली सुग्रीव से अधिक शक्तिशाली था उन दिनों रावण कमर में मृग शाला हाथ में फरसा ले कर बल के उन्माद में सबको ललकारता था ‘उसकी शरण में आ जाओ नहीं तो युद्ध करो’ उसने बलि को ललकारने की भूल कर दी बाली ने उसे पकड़ कर कांख में दबा लिया और आराम से समुद्र तट पर संध्या वन्दन करने लगा| दुंदभी भागता हुआ किष्किंधया पहुंचा यह प्रदेश गुफाओं में बसा हुआ समृद्ध पर्वत क्षेत्र था वह अपने सींगों का प्रहार चट्टानों पर करते हुए गुर्राने लगा उसकी गर्जना की प्रतिध्वनी से पर्वत थर्राने लगा बाली सोमरस का पान कर रहा था उसकी आँखे लाल थीं उसकी पत्नी तारा पास बैठी थी बाली ने ललकारने की आवाज सुनी वह अपने निवास से बाहर आया तारा ने उसके गले में इंद्र द्वारा दी गयी माला पहना दी |

साक्षात काल का अवतार दोनों प्रतिद्वन्दियों में भयंकर युद्ध हो रहा था अंत में बाली ने शत्रू के दोनों सींग पकड़ कर उसकी गर्दन तोड़ दी दुंदभी मर गया उसके खुले मुख से खून का फव्वारा छूट रहा था उसकी पूँछ पकड़ कर बाली ने पूरी शक्ति से घुमाते हुए दूर फेंक दिया शव उड़ता हुआ ऋष्यमूक पर्वत पर गिरा चारो तरफ खून फैल गया पर्वत पर ऋषि तप कर रहे थे फैले खून से वह क्रोधित हो गये उन्होंने बाली को श्राप दिया यदि बाली यहाँ आयेगा तुरंत मर जाएगा शापित बाली पर्वत पर कभी नहीं गया बाली के सेवक भी उधर जाने से डरते थे मातंग ऋषि प्रकृति प्रेमी थे इस तरह उन्होंने वन प्रदेश की वानरों के उत्पात से रक्षा की| लेकिन दुंदभी की हड्डियों पहाड़ पर्वत क्षेत्र पर पड़ा हुआ था |

दुंदभी का पुत्र मायावी पिता जैसा बलशाली था वह सीधी लड़ाई नहीं लड़ता था पिता की मृत्यू का बदला लेने के लिए अर्द्धरात्री में जब नगर सो रहा था बाली को ललकारा दोनों भाई उसकी ललकार सुन कर बाहर आये मायावी ललकारता हुआ पर्वत में दूर तक फैली गुफा में घुस गया बाली ने सुग्रीव को आदेश दिया वह गुफा में मायावी से लड़ने जा रहा है यदि वह पन्द्रह दिन तक न लोटे उसे मरा समझ कर किष्किंधया सम्भाल लेना |सुग्रीव एक माह तक गुफा के द्वार पर प्रतीक्षा करता रहा उसने देखा गुफा से खून की धारा बहती हुई आ रही है उसने मायावी चिंघाड़ने की आवाज सुनी आवाज पहले दूर से आई धीरे – धीरे पास आती गयी सुग्रीव ने बार – बार बाली को पुकारा उसे कोई उत्तर नहीं मिला आवाजें निरंतर बढ़ रहीं थी सुग्रीव को किष्किंधया की चिंता सताने लगी उसने मायावी के आक्रमण से नगरी को बचाने के लिए एक विशाल पत्थर से गुफा का मुहँ ढक कर राज्य में लौट आया |

बाली मायावी को ढूंड रहा था उस पर मायावी और उसके साथी एक साथ हमला कर रहे थे सबको मार कर जब बाली गुफा के मुहँ पर पहुंचा गुफा का मुहँ बंद था उसने एक झटके से चटान को दूर फेक दिया एक भूत की तरह अपनी नगरी पहुंचा, बाली नगर ने देखा सुग्रीव को सिंहासन पर बिठा कर स्वस्ति वाचन के साथ मन्त्र पढ़े जा रहे थे ,राजतिलक, यदि बाली सुग्रीव सुग्रीव से प्रश्न करता वह तुरंत बाली को उसका सिहांसन लौटा देता लेकिन बाली क्रोध में विवेक खो बैठा उसने सुग्रीव को सिंहासन से घसीट लिया उसे मारने लगा अपने जीवन को किसी तरह बचा कर सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचा यहाँ उसके साथी केवल हनुमान , जामावंत एवं नल नील थे | वानरों का आपसी मामला भाईयों का झगड़ा था लेकिन सामाजिक समस्या तब शुरू हुई जब राजमद में बाली ने सुग्रीव की पत्नी पर अपना अधिकार जमा लिया | उन दिनों ऋषियों ने स्त्री एवं पुरुष के स्थाई सम्बन्धों पर विस्तृत चर्चा कर विवाह के नियम निर्धारित किये आठ प्रकार के विवाह , अग्नि को साक्षी मान कर सात वचन , पितृ मूलक समाज में पुरुष के नाम के साथ पत्नी और सन्तान के गोत्र निर्धारित किये गये |अनेक विवाहों में राक्षस विवाह का भी वर्णन था किसी कन्या का बल पूर्वक अपहरण कर उससे विवाह करना लेकिन समाज इस कृत्य को उचित मान्यता नहीं देता था |

श्री राम लक्ष्मण सीता जी के अपहरण के बाद वन में भटकते हुए शबरी के आश्रम पहुंचे शबरी ने श्री राम के दर्शन कर जीवन को धन्य माना उनका अंतिम समय था उन्होंने चिता पर प्राण त्यागने से पूर्व उन्हें बताया ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव अपने साथियों के साथ एकाकी जीवन बिता रहे हैं वह आपके मित्र एवं सहायक बन कर आपकी सहायता करेंगे, पर्वत की तरफ आते दो अजनबी आर्य वंशियों के देख कर सुग्रीव ने हनुमान जी को उनका परिचय जानने के लिए भेजा वह कौन हैं उन्हें कहीं बाली ने तो नहीं भेजा ? अयोध्या के दोनों राजकुमारों का परिचय जान कर हनुमान उन्हें सुग्रीव के पास ले आये अग्नि को साक्षी मान कर श्री राम एवं सुग्रीव ने मित्रता एवं एक दूसरे की सहायता की प्रतिज्ञा ली |

इधर दस सिर वाले लंकापति रावण को दसों बायीं आँखे ,एवं अशोक वाटिका में अपहरण के बाद कैद की गयी दीन हीन असहाय,वृक्ष के नीचे सिर नीचा कर बैठी शोक मग्न सीता की भी बायीं आँख फड़कने लगी बायीं पुरूष के लिए अशुभ संकेत स्त्री के लिए शुभ संकेत है | बलशाली श्री राम ने सुग्रीव को अभय का वचन देते हुए अपने अंगूठे के एक ही प्रहार से दुंदभी के शव से बने सूखे हड्डियों के जमें पहाड़ को अन्तरिक्ष में उड़ा दिया | पर्वत पर उगे ताड़ के सात विशाल वृक्षों को एक ही तीर से धराशायी कर दिया तीर उनके तरकश में लौट आया | मर्यादा पुरुषोत्तम ने अकारण बाली से युद्ध करना उचित नहीं समझा , सुग्रीव का भाई के साथ अपने प्रति किये गये अन्याय का प्रतिशोध एवं अधिकार का झगड़ा था उनके आश्वासन पर सुग्रीव ने नगर के द्वार पर जाकर बाली को युद्ध के लिए ललकारा|

बाली सुग्रीव की ललकार सुन कर क्रोध से फुंकारने लगा लेकिन बाली की पत्नी महारानी तारा विवेक शील महिला थीं उन्होने बाली को समझाया सुग्रीव जैसा भीरू आपको ललकार रहा है अकारण नहीं है सुना है आजकल दो राजपुत्र वन में भटक रहे हैं अवश्य उसने मित्रता कर उन्हीं के बल पर वह उछल रहा है बाली में इतना धैर्य कहाँ वह एक ही छलांग में बाहर आ गया उसने सुग्रीव पर ऐसे प्रहार किये वह लहूँ लुहान हो रहा था वृक्षों की ओट में श्री राम धनुष पर तीर चढ़ाये खड़े थे लेकिन उन्हें दोनों भाई एक से दिखाई दे रहे थे | घावों से चूर सुग्रीव जान बचा कर भागा उसने श्री राम से कहा मैंने आपके बल पर बाली से युद्ध का साहस जुटाया था परन्तु आपने मेरी कोई सहायता नहीं की श्री राम नें सुग्रीव के शरीर पर हाथ फेरा उनके सांत्वना भरे स्पर्श से सुग्रीव का दुःख दूर होगया राम ने उसके गले में पुष्पों की माला पहनाते हुए कहा जाओ बाली को युद्ध के लिए पुन : ललकारो |

सुग्रीव ने बाली को युद्ध के लिए पुन : ललकारा वह हंसता हुआ फिर से द्वंद युद्ध करने आ रहा था तारा विचलित थी लेकिन उन्माद से भरा बाली होनी को पहचान नहीं सका उसने महारानी की पीठ पर थपकी देकर कहा पत्नी सदैव आशंकायें सताती रहती है , शंका से ग्रस तारा ने बाली के कंधों पर इंद्र द्वारा दी गयी स्वर्णमाल बाँध दी बाली भागता हुआ बाहर आया ऐसा लगा जैसे सुनहरा सूर्य किरणों के रथ पर पर्वत से उतर रहा हो| भयंकर युद्ध चला बाली ने सुग्रीव पर ऐसे प्रहार किये सुग्रीव धरती पर गिर पड़ा श्री राम ने उचित अवसर जान कर सुग्रीव को बचा कर तरकश से अचूक तीर निकालकर धनुष पर चढ़ाया सनसना हुआ तीर बाली के हृदय में घुस गया बाली जैसा शक्तिशाली योद्धा पीठ के बल धरती पर गिर पड़ा लेकिन सोने की माला की कारण वह ज़िंदा रहा उसने लता की ओट से निकलते दोनों भाईयों को देखा उसकी दृष्टि श्री राम पर पड़ी कमल जैसे नेत्र स्यामल शरीर सिर पर जटायें ,मजबूत कंधों पर धनुष लटक रहा था वीर वेश में प्रभू को देख कर बाली का मोह समाप्त हो गया नेत्र सफल हो गये उसने हाथ जोड़ कर प्रश्न किया प्रभू आप मर्यादा पुरुषोत्तम हैं आपसे मेरा कोई वैर नहीं था ऐसा प्रश्न तरकश से निकला तीर जैसा था

“मैं बैरी सुग्रीव पियारा अवगुण कवन नाथ मोहि मारा”

श्री राम उत्तर दिया “अनुज बधू भगनी सुत नारी , सुन शठ कन्या सम ए चारी

दयालू श्री राम ने बाली के मस्तक पर हाथ रख कर पूछा यदि वह जीवन चाहता है वह उसे जीवनदान दे सकते हैं |बाली इतना मूर्ख नहीं था उसने हाथ जोड़ कर कहा ‘आपके हाथों मृत्यू मेरा जीवन धन्य हो गया अब न पाप रहा न पापी |महारानी विलाप करती हुई महल से बाहर आई उसके हाथ में पुत्र का हाथ था महारानी पति पर पछाड़ खाकर गिर पड़ी सुग्रीव बिलखने लगा उसकी आँख से निकलने वाले आंसू घावों से बहते खून से मिल कर धरती पर गिर रहे थे बाली ने बिलखती पत्नी की तरफ देखा अपने पुत्र अंगद को पास बुलाया उसे श्री राम को सौंपते हुए कहा मैं संसार छोड़ रहा हूँ तुम श्री राम के शरणागत हो उनकी हर सम्भव सहायता करना |बाली उस लोक में चला गया जहाँ अकेले जाना है |उसकी म्रत्यू के बाद बाली की सम्मान सहित अंतेष्टि की गयी |

श्री हनुमान ने बाली की छाती से तीर निकाला तारा ने तीर हाथ में लिया जिसका तीक्ष्ण फल सोने का था तीर को पूरी शक्ति से अपने हृदय में मार लिया वह भी बाली के साथ इस लोक को छोड़ कर परलोक सिधार गयी | गुसाई तुलसी दास जी के अनुसार सिंहासन पर बैठने के बाद महाराज सुग्रीव ने बाली पुत्र अंगद को युवराज बनाया तारा को अपना संरक्षण दिया |

डॉ शोभा भारद्वाज

स्तोत्र --

1. श्री तुलसी दास कृत श्री राम चरित मानस

2. रामायण ,महर्षि बाल्मीकि मान्यता है ऋषि बाल्मीकि श्री राम के समकालीन थे उनके द्वारा रचित रामकथा मुख्य है

3. Ramayana , Wiliam Buck

4.. राम के चरित्र पर वर्णित अनेक कथाएँ

5.विश्व में लगभग अलग - अलग भाषाओं में प्रचलित 300 राम कथाएँ हैं

122.177.107.117 (वार्ता) 00:44, 11 फ़रवरी 2024 (UTC)उत्तर दें

भए प्रगट कृपाला ( श्री राम जन्म कथा )डॉ शोभा भारद्वाज संपादित करें

रावण के भय से सम्पूर्ण ब्रह्मांड थर्राने लगा दस सिर बीस भुजाओं एवं ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान प्राप्त राक्षस राज रावण निर्भय निशंक विचर रहा था हरेक को युद्ध में ललकारता | रावण का पुत्र मेघनाथ महत्वकांक्षी ,रावण के समान बलशाली पिता को समर्पित उसका देवराज इंद्र के बीच भयंकर युद्ध हुआ देवराज बड़ी बहादुरी से लड़े हारने के बाद पकड़े गये, लेकिन छोड़ दिए गया मेघनाथ अब इंद्रजीत कहलाया | इंद्र स्वर्ग के द्वार पर खड़े भयंकर विध्वंस देख रहे थे स्वर्ग में नन्दन वन उजड़ा हुआ था गन्धर्व मारे गये थे अप्सरायें सिसक रहीं थीं राक्षसों के बिखरे शव स्वर्ग में बहने वाली नदी खून से लाल थी | उनका स्वयं का चेहरा एवं शरीर खून से सना हुआ था आँखे आंसुओं से भर गयीं दर्द एवं क्षोभ में अपनी हथेलियों को मलते ब्रम्हा जी के पास पहुंचे | सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा चन्दन से बने कमल की आकृति वाले सिंहासन पर बैठे थे इंद्र ने प्रणाम किया दुःख से कहा आज स्वर्ग की हालत के दोषी आप हैं आपने रावण को वरदान देकर असीम शक्ति प्रदान कर दी उनका गला रुंध गया ,आज देव गण उसकी सेवा में विवश खड़े हैं | स्वर्ग उजड़ गया है |


और ‘धरती’ वह सब कुछ सह सकती है लेकिन पाप के बोझ को सहना उसके लिए असहनीय है जबकि जब वह करवट बदलती है सब कुछ उल्ट पुलट जाता है |उसकी छाती में धधकते ज्वालामुखियों से बहने वाले लावे में कई सभ्यतायें दब गई |जहाँ फटी वहीं हजारो लोग उसमें समा गये सागर से उठने वाली लहरें सब कुछ बहा कर ले जाती हैं तब भी कई युगों को लील कर आज भी अपनी धुरी पर घूम रही धरती लेकिन अमरत्व का वरदान प्राप्त रावण का क्या करे ?अब वह गाय का रूप धारण कर त्राहि – त्राहि कर रही है राक्षसों के पाप के बोझ से त्रस्त हो रही है | ब्रम्हा ने कहा रावण के कठोर तप ने मुझे उसे वरदान देने के लिए विवश कर दिया हे देवराज आप श्री नारायण की शरण में जाओ उन्हीं में रावण रूपी चिंता का निवारण करने की शक्ति है रावण भी सत्ता पाने के बाद भोग विलास में लिप्त हो जाएगा आप विश्वकर्मा को बुला कर स्वर्ग लोक का निर्माण कराओ एवं शक्ति का संचय करो |


इंद्र वैकुंठ धाम पहुंचे सृष्टि के रक्षक श्री हरी को उन्होंने दोनों हाथों जोड़ कर मस्तक से लगा कर सिर उनके चरणों में झुका कर प्रणाम किया | अपने कमल रूपी नेत्रों से देवराज की और निहारते हुए कहा स्वर्ग संकट में है रावण से युद्ध में आप पराजित हो गये चिंता न करें आपने रावण के साथ संघर्ष कर अपने धर्म का पालन करते हुए स्वर्ग की रक्षा का प्रयत्न किया है अब भय से मुक्त हो जाईये | इंद्र ने कहा प्रभू रावण श्री ब्रम्हा के वरदान से अजेय हो चुका है उसके वध का उपाय आप द्वारा ही सम्भव है | नारायण ने कहा ब्रम्हा के वरदान सदैव सत्य होते है रावण ने वरदान माँगा था स्वर्ग एवं पाताल में उसे कोई पराजित न कर सके श्री ब्रम्हा ने एवमस्तु कहा राक्षस मनुष्य एवं जीव जन्तुओं को अपना भोजन बनाते हैं उनका उसे भय नहीं है उन्हें छोड़ कर वह किसी से पराजित न हो सकें| रावण ने धरती में जीवन नरक बना दिया है | श्री नारायण मुस्कराये उसके वरदानों में उसकी मृत्यू निहित है | धरती पर मैं मनुष्य के रूप अवतार लूंगा जीव बानर भालू राक्षसों एवं रावण को पराजित करने में मेरे सहायक बनेगे लक्ष्मी भी धरती पर अवतरित होंगीं |


अयोद्धया के महाराजा दशरथ सन्तान हीन थे उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए अपने गुरुदेव वशिष्ठ की आज्ञा से यज्ञ का आयोजन किया जैसे –जैसे यज्ञ की लपटों में घी अर्पित किया जाता अग्नि की लपटें नृत्य करती | आहुतियों के बीच बादलों के गर्जन जैसी कड़ककड़ाती आवाज सुनाई दी विशालकाय देव धुयें के अम्बार में प्रगट हुये उनके नेत्र शेर के नेत्रों जैसे पीले उनके लम्बे काले केश लहरा रहे थे उनके हाथों में एक पात्र था पात्र में से दूध चावल में पके भोज्य पदार्थ में से मीठी सुगंध आ रही थी महाराज दशरथ एक टक उन्हें देख रहे थे देव ने पात्र महाराज दशरथ की और बढ़ा कर आज्ञा दी राजन जाओ इसे अपनी रानियों में बाँट दो महाराज दशरथ की दशा एक ऐसे निर्धन व्यक्ति के समान हो गयी जिसे अचानक सब कुछ मिल गया हो |वह अंत:पुर में गये उन्होंने खीर के कटोरे से खीर को बड़ी रानी कौशल्या एवं छोटी रानी कैकई के बीच बाँट दिया दोनों रानियों ने आधे – आधे भाग महारानी सुमित्रा को दे दिए |


दस माह के बाद चैत्र माह नवमी तिथि धरती पर भगवान के प्रगट होने का सुअवसर, अयोध्या का आकाश देवगणों से भर गया गन्धर्व श्री हरी का गुणगान कर रहे थे पुष्पों की वर्षा होने लगी दिव्य प्रकाश महारानी का प्रकोष्ठ में फैल गया अन्तिक्ष से ॐ की ध्वनी गूंजने लगी चारों वेद स्तुति कर रहे थे प्रकाश पुंज अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर उतर रहा था उसी के बीच दिव्य स्वरूप में श्री नारायण प्रगट हुए उनकी चारो भुजाओं में शंख , चक्र ,गदा पद्म विराज रहे थे अनुपम रूप महारानी घुटनों के बल हाथ जोड़ कर बैठ गयीं महारानी के मन में पहले वैराग्य उपजा फिर मोह है हे प्रभू आपके दुर्लभ दर्शन पाकर में धन्य हो गयी | मैं नन्हे बालक के रूप में आपकी बाल लीला का सुख लेना चाहती हूँ मुझे कृतार्थ करो नारायण नवजात रूप में माता की गोद में अवतरित हुए बच्चे के रोने की ध्वनि से राजमहल चहक उठा उसी दिन महारानी कैकई से भरत ,सुमित्रा से दो बालक लक्ष्मण एवं शत्रूघ्न का जन्म हुआ अयोद्धया वासियों के आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता वह नगरी की गलियों में नृत्य कर रहे थे हर मन्दिर की घंटियां बज रहीं थीं अयोध्या नगरी की छवि अनुपम थी |

सोर्स - हिन्दू दर्शन के अनुसार जब भी धरती पर पाप बढ़ता है भगवान (God) अवतार लेते हैं | 1. रामायण - महर्षि बाल्मीकि द्वारा लिखित 2.Ramayana-William Buck 3 . राम चरित मानस -गोस्वामी तुलसीदास 4 ,विश्व में अनेक रामायण है (हरी अनंत हरी कथा अनन्ता ) 5 . श्रूति

                                                                           डॉ शोभा भारद्वाज same  (वार्ता) 19:50, 3 अप्रैल 2024 (UTC)उत्तर दें

भए प्रगट कृपाला ( श्री राम जन्म कथा )डॉ शोभा भारद्वाज संपादित करें

रावण के भय से सम्पूर्ण ब्रह्मांड थर्राने लगा दस सिर बीस भुजाओं एवं ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान प्राप्त राक्षस राज रावण निर्भय निशंक विचर रहा था हरेक को युद्ध में ललकारता | रावण का पुत्र मेघनाथ महत्वकांक्षी ,रावण के समान बलशाली पिता को समर्पित उसका देवराज इंद्र के बीच भयंकर युद्ध हुआ देवराज बड़ी बहादुरी से लड़े हारने के बाद पकड़े गये, लेकिन छोड़ दिए गया मेघनाथ अब इंद्रजीत कहलाया | इंद्र स्वर्ग के द्वार पर खड़े भयंकर विध्वंस देख रहे थे स्वर्ग में नन्दन वन उजड़ा हुआ था गन्धर्व मारे गये थे अप्सरायें सिसक रहीं थीं राक्षसों के बिखरे शव स्वर्ग में बहने वाली नदी खून से लाल थी | उनका स्वयं का चेहरा एवं शरीर खून से सना हुआ था आँखे आंसुओं से भर गयीं दर्द एवं क्षोभ में अपनी हथेलियों को मलते ब्रम्हा जी के पास पहुंचे | सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा चन्दन से बने कमल की आकृति वाले सिंहासन पर बैठे थे इंद्र ने प्रणाम किया दुःख से कहा आज स्वर्ग की हालत के दोषी आप हैं आपने रावण को वरदान देकर असीम शक्ति प्रदान कर दी उनका गला रुंध गया ,आज देव गण उसकी सेवा में विवश खड़े हैं | स्वर्ग उजड़ गया है |


और ‘धरती’ वह सब कुछ सह सकती है लेकिन पाप के बोझ को सहना उसके लिए असहनीय है जबकि जब वह करवट बदलती है सब कुछ उल्ट पुलट जाता है |उसकी छाती में धधकते ज्वालामुखियों से बहने वाले लावे में कई सभ्यतायें दब गई |जहाँ फटी वहीं हजारो लोग उसमें समा गये सागर से उठने वाली लहरें सब कुछ बहा कर ले जाती हैं तब भी कई युगों को लील कर आज भी अपनी धुरी पर घूम रही धरती लेकिन अमरत्व का वरदान प्राप्त रावण का क्या करे ?अब वह गाय का रूप धारण कर त्राहि – त्राहि कर रही है राक्षसों के पाप के बोझ से त्रस्त हो रही है | ब्रम्हा ने कहा रावण के कठोर तप ने मुझे उसे वरदान देने के लिए विवश कर दिया हे देवराज आप श्री नारायण की शरण में जाओ उन्हीं में रावण रूपी चिंता का निवारण करने की शक्ति है रावण भी सत्ता पाने के बाद भोग विलास में लिप्त हो जाएगा आप विश्वकर्मा को बुला कर स्वर्ग लोक का निर्माण कराओ एवं शक्ति का संचय करो |


इंद्र वैकुंठ धाम पहुंचे सृष्टि के रक्षक श्री हरी को उन्होंने दोनों हाथों जोड़ कर मस्तक से लगा कर सिर उनके चरणों में झुका कर प्रणाम किया | अपने कमल रूपी नेत्रों से देवराज की और निहारते हुए कहा स्वर्ग संकट में है रावण से युद्ध में आप पराजित हो गये चिंता न करें आपने रावण के साथ संघर्ष कर अपने धर्म का पालन करते हुए स्वर्ग की रक्षा का प्रयत्न किया है अब भय से मुक्त हो जाईये | इंद्र ने कहा प्रभू रावण श्री ब्रम्हा के वरदान से अजेय हो चुका है उसके वध का उपाय आप द्वारा ही सम्भव है | नारायण ने कहा ब्रम्हा के वरदान सदैव सत्य होते है रावण ने वरदान माँगा था स्वर्ग एवं पाताल में उसे कोई पराजित न कर सके श्री ब्रम्हा ने एवमस्तु कहा राक्षस मनुष्य एवं जीव जन्तुओं को अपना भोजन बनाते हैं उनका उसे भय नहीं है उन्हें छोड़ कर वह किसी से पराजित न हो सकें| रावण ने धरती में जीवन नरक बना दिया है | श्री नारायण मुस्कराये उसके वरदानों में उसकी मृत्यू निहित है | धरती पर मैं मनुष्य के रूप अवतार लूंगा जीव बानर भालू राक्षसों एवं रावण को पराजित करने में मेरे सहायक बनेगे लक्ष्मी भी धरती पर अवतरित होंगीं |


अयोद्धया के महाराजा दशरथ सन्तान हीन थे उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए अपने गुरुदेव वशिष्ठ की आज्ञा से यज्ञ का आयोजन किया जैसे –जैसे यज्ञ की लपटों में घी अर्पित किया जाता अग्नि की लपटें नृत्य करती | आहुतियों के बीच बादलों के गर्जन जैसी कड़ककड़ाती आवाज सुनाई दी विशालकाय देव धुयें के अम्बार में प्रगट हुये उनके नेत्र शेर के नेत्रों जैसे पीले उनके लम्बे काले केश लहरा रहे थे उनके हाथों में एक पात्र था पात्र में से दूध चावल में पके भोज्य पदार्थ में से मीठी सुगंध आ रही थी महाराज दशरथ एक टक उन्हें देख रहे थे देव ने पात्र महाराज दशरथ की और बढ़ा कर आज्ञा दी राजन जाओ इसे अपनी रानियों में बाँट दो महाराज दशरथ की दशा एक ऐसे निर्धन व्यक्ति के समान हो गयी जिसे अचानक सब कुछ मिल गया हो |वह अंत:पुर में गये उन्होंने खीर के कटोरे से खीर को बड़ी रानी कौशल्या एवं छोटी रानी कैकई के बीच बाँट दिया दोनों रानियों ने आधे – आधे भाग महारानी सुमित्रा को दे दिए |


दस माह के बाद चैत्र माह नवमी तिथि धरती पर भगवान के प्रगट होने का सुअवसर, अयोध्या का आकाश देवगणों से भर गया गन्धर्व श्री हरी का गुणगान कर रहे थे पुष्पों की वर्षा होने लगी दिव्य प्रकाश महारानी का प्रकोष्ठ में फैल गया अन्तिक्ष से ॐ की ध्वनी गूंजने लगी चारों वेद स्तुति कर रहे थे प्रकाश पुंज अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर उतर रहा था उसी के बीच दिव्य स्वरूप में श्री नारायण प्रगट हुए उनकी चारो भुजाओं में शंख , चक्र ,गदा पद्म विराज रहे थे अनुपम रूप महारानी घुटनों के बल हाथ जोड़ कर बैठ गयीं महारानी के मन में पहले वैराग्य उपजा फिर मोह है हे प्रभू आपके दुर्लभ दर्शन पाकर में धन्य हो गयी | मैं नन्हे बालक के रूप में आपकी बाल लीला का सुख लेना चाहती हूँ मुझे कृतार्थ करो नारायण नवजात रूप में माता की गोद में अवतरित हुए बच्चे के रोने की ध्वनि से राजमहल चहक उठा उसी दिन महारानी कैकई से भरत ,सुमित्रा से दो बालक लक्ष्मण एवं शत्रूघ्न का जन्म हुआ अयोद्धया वासियों के आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता वह नगरी की गलियों में नृत्य कर रहे थे हर मन्दिर की घंटियां बज रहीं थीं अयोध्या नगरी की छवि अनुपम थी | सोर्स - हिन्दू दर्शन के अनुसार जब भी धरती पर पाप बढ़ता है भगवान (God) अवतार लेते हैं | 1. रामायण - महर्षि बाल्मीकि द्वारा लिखित 2.Ramayana-William Buck 3 . राम चरित मानस -गोस्वामी तुलसीदास 4 ,विश्व में अनेक रामायण है (हरी अनंत हरी कथा अनन्ता ) 5 . श्रूति

                                                                           डॉ शोभा भारद्वाज same  (वार्ता) 06:47, 4 अप्रैल 2024 (UTC)उत्तर दें

बल बुद्धि विद्या निधान श्री हनुमान जन्म , डॉ शोभा भारद्वाज संपादित करें

बल बुद्धि विद्या निधान श्री हनुमान जन्म ब्रह्मा सृष्टि का निरंतर निर्माण कर रहे थे। सृष्टि निर्माण से लेकर अब तक जीवन को चलाने वाली वायु प्राणियों के जीवन का आधार है। जीवधारी हवा में साँस लेते हैं। वृक्ष एवं पेड़ पौधे वायु को शुद्ध करते हैं। मंद पवन बह रही थी। किष्किंध्या पर्वत की हरी भरी चोटी पर अंजना (वानर जाति की कन्या ) उमड़ते घुमड़ते बादलों को देख रही थी। पवन देव ने अंजना को देखा वह उस पर मोहित हो कर धीरे–धीरे नीचे उतर गए। पवन देव के अंश से हनुमान का जन्म हुआ। नन्हें हनुमान के शरीर पर सफेद चमकते बाल थे उनका चेहरा सुर्ख , भूरे पन को लिए पीली चमकीली आँखें थीं। अंजना ने वृक्ष से पका आम तोड़ा बालक के होंठो से लगाकर उसी पहाड़ की एक सुरक्षित गुफा के द्वार पर छोड़ दिया। रात बीत गई हनुमान गुफा के द्वार पर पीठ के बल लेते अपने पंजों को पकड़े हुए थे। भोर हो गई और धीरे– धीरे प्रकाश फैलने लगा। पूर्व दिशा से सूर्य की पहले हल्की किरणें आसमान में चमकने लगीं फिर लालिमा लिए सूर्य उदित हुए बाल हनुमान ने उगते लाल सूरज को देखा। उन्हें पके आम जैसा दिखाई दिए। वह अपने जबड़ों को भींचकर उगते सूरज की दिशा में उछलते हुए सीधे उड़ने लगे।

उनके पिता पवन देव ने उन्हें देखा। वह उत्तर दिशा से हिमालय की बर्फीली हवाओं को लेकर बहने लगे। उन्होंने हनुमान को सूर्य की गर्म तपिश से बचाये रखा लेकिन चंचल बालक सूर्य के नजदीक पहुंच गया। सूर्यदेव ने नीचे झाँककर उनको देखा। सूर्य को देखकर बाल हनुमान मुस्कराये। अब सूर्य अपनी पूरी आभा से आकाश में चमक रहे थे। तेज तपिश और बर्फीली हवाओं के बीच बालक ने देखा। सूर्य पर ग्रहण की छाया पड़ने लगी है। असुर राहु ने सूर्य को निगलने के लिए अपना विशाल काला मुंह खोला। राहू की आँख पर बाल हनुमान ने पैर मारा राहू क्रोध से भर गया। उसने देवराज इन्द्र के पास जा कर शिकायत की। एक और राहू सूर्य पर ग्रहण बन उन्हें डस रहा है। उसने मेरी आँख पर अपने पैर से प्रहार किया है। देवराज अपना बज्र लेकर ऐरावत पर सवार होकर राहू की सहायता के लिए उसके साथ चल दिए। राहू के गोल सिर को हनुमान ने और बड़ा आम समझा। वह उसकी तरफ झपटे इंद्र ने उन्हें रोकने की कोशिश की अब तक हनुमान की नजर ऐरावत पर पड़ गयी। वह उन्हें और भी बड़ा फल समझकर उस पर झपटे ।

इन्द्र ने उन पर बज्र का ऐसा प्रहार किया हनुमान मुहँ के बल गुफा के द्वार पर गिरे। उनका जबड़ा टूट गया। अपने पुत्र को बेहाल देख कर वायु देव क्रोध से भर उठे। वह बाल हुनुमान को गोद में उठाकर गुफा के अंदर ले गए। उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। हवा का बहाव रुक गया। जीव जन्तु व्याकुल हो गये। पेड़ और पौधे मुरझाने लगे। सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गयी लेकिन पवन देव अपने बच्चे की हालत पर व्याकुल थे। अपनी सृष्टि को बचाने के लिए ब्रह्मा को स्वयं गुफा में आना पड़ा। उनके स्पर्श से बालक की पीड़ा समाप्त हो गयी। ब्रह्मा ने वायु देव को समझाया। आप पूरे विश्व के प्राणाधार हो। मैंने आपका निर्माण ही अपनी सृष्टि को जीवन देने के लिए किया है। हर जीव जंतु पेड़ पौधे निर्जीव हो कर गिरने लगे हैं। धरती का हर जीवन तुमसे बंधा है। जब तक सृष्टि है वायु तुम्हारा अस्तित्व रहेगा। उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा तुम्हारा पुत्र तुम्हारी तरह ही गतिवान एवं प्रतापी होगा।

ब्रह्मा के प्रस्थान करने के बाद स्वयं सूर्य ने अपनी किरणों के साथ गुफा में प्रवेश किया। सोने जैसी किरणों से हर कोना जगमगा उठा। भगवान सूर्य के कानों में कुंडल चमक रहे थे। उनका आगमन सुखकारी था। वह बालक को देखकर मुस्कराए। हनुमान ने उनके स्वरूप पर नजरें टिका दीं। धीरे-धीरे बालक की आँखें मुंदने लगी वह गहरी नींद में सो गया। ऐसा सोया जैसे समस्त विश्व की नींद उसकी आँखों मे समा गयी हो। सूर्य नारायण ने तीन पके आम बालक के सिरहाने रख दिए। वह सोते हनुमान पर फिर मुस्कुराए। पवन देव बाहर आये और फिर से मंद -मंद हवा बहने लगी। विश्व के हर जीवधारी सांस लेने लगा। पेड़ों के पत्ते हिलने लगे पौधे लहलहाये सूखी घास हरी हो गयी जंगलों में पक्षी कलरव कर रहे थे विश्व जी उठा। अगली सुबह बालक उठा उसने अपने सिरहाने रखे आम चूसे गुफा के द्वार पर आकर अपने पिता से मिले।

पवन देव उनको कैलाश पर्वत में शिव के धाम ले आये यहाँ बाल हनुमान की शिक्षा प्रारम्भ हुई। भगवान शिव ने उन्हें अद्भुत ज्ञान एवं हर हाल में प्रसन्न रहने का मन्त्र दिया नंदी ने उन्हें भाषा सिखाई यहाँ उन्होंने गेय श्लोक सीखे। पवन पुत्र अब पूरी तरह ज्ञानवान बल विद्या निधान हो चुके थे ।उन्हें भगवान शिव का अंशावतार माना जाता है । उनके कानों में कुंडल थे उनकी पहचान बन गए लेकिन कुछ विशेष परिचितों को छोड़ कर वह दिखाई नहीं देते थे। धीरे धीरे हनुमान युवा हो गए उनका बल एवं ख्याति बढ़ती रही | वह सुग्रीव के साथ रहने लगे बाली द्वारा प्रताड़ित होने के बाद सुग्रीव प्राण बचा कर भागे थे। हुनुमान उनके बुरे समय के साथी थे । ऐसे साथी जिन्हे अपने बल का ज्ञान ही नहीं था कहते हैं बालपन में उन्हें उनकी चंचलता से क्रोधित होकर ऋषि ने श्राप दिया था। तुम अतुलित बल शाली हो लेकिन तुम्हें अपने बल की थाह किसी के द्वारा समझाये जाने पर याद आएगी।

अब ऋष्यमूक पर्वत सुग्रीव एवं उनके साथी हनुमान का ठिकाना था। बाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग हैं। वानर राज बाली सुग्रीव एवं हनुमान का पीछा कर रहा था वह दोनों उससे बचने के लिए ब्राह्मंड के हर कोने में भटक रहे थे ।अब वह ऊपर और ऊपर उड़ने लगे उन्होंने नीचे देखा सारा विश्व साफ़ दिखाई दे रहा था। ऐसा साफ़ जैसे शीशे में अपना प्रतिबिम्ब प्रतिबिम्बित होता है। अंतरिक्ष का विचरण करते –करते उन्होंने आश्चर्य से नीचे देखा। पृथ्वी अंतरिक्ष में गोल – गोल तेजी से घूम रही थी ।घूमती धरती से ऐसी आवाजें आ रहीं थीं जैसे किसी आग के गोले को हवा में तेजी से घुमाया जाए तब ऐसी आवाज आती है घूमती धरती गोल थी शहर छोटे सोने के सिक्के जैसे चमक रहे थे नदियाँ तागे जैसी कहीं सीधी कहीं घुमाव दार थीं, जंगल हरे धब्बे लग रहे थे, विंध्याचल एवं हिमालय की चोटियों की चट्टानों पर पड़ी बर्फ ऐसे लग रही थी जैसे जल कुंड में खड़े हाथी। जंगलों की हरियाली एवं सागरों के जल सहित घूमती धरती की शोभा निराली थी। स्पष्ट है दोनों वानर हवा की परिधि में थे। रामायण की रचना त्रेता युग में हुई थी। यह वैसा ही वर्णन है जैसा अंतरिक्ष यात्री धरती का करते हैं।

श्री राम की भार्या सीता को लंकापति रावण हर कर अपनी राजधानी लंका ले गया सीता की खोज में श्री राम लक्ष्मण शबरी के आश्रम पहुंचे शबरी उनका वर्षों से इंतजार कर रही थी। शबरी ने उनका सत्कार किया। उन्हें आगे का मार्ग बताया आप ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव से मिलिए वह निर्वासित जीवन बिता रहा है। उसकी पत्नी पर बाली ने अधिकार कर लिया है। सुग्रीव सज्जन एवं धर्म परायण है। वह समस्त ब्रह्मांड को जानता है। हर हाल में वह सीता की खोज करने में समर्थ हैं।

श्री राम हरे भरे ऋष्यमूक पर्वत पर चढ़ने लगे। यहां सुग्रीव ने दो अजनबी राजपुत्रों को आते देखा उन्होंने हनुमान को खोज खबर लेने भेजा अचानक पेड़ों के झुरमुट से ब्राह्मण वेषधारी हनुमान पधारे उनके पास लकड़ियों का गट्ठर था वह गठ्टर को धरती पर रख कर उस पर बैठ गये। वह अपने दोनों हाथो को रगड़ कर मुस्कराये आप सूर्य एवं चन्द्रमा के समान देव आपकी सिंह जैसी चाल है पैदल कहाँ से इस जंगल में पधारे हैं? वह श्री राम को निहारने लगे ‘राम अनुपम थे न बहुत लम्बे न मझौले उनमें सूर्य से भी अधिक तेज और ऊर्जा थी , गम्भीर आवाज , गहरी साँस , आँखे हरा रंग लिए हुए थी। बदन की खाल कोमल और ऐसी चिकनी थी। जिस पर धूल भी नहीं ठहरती थी सिर पर घुंघराले बाल जिनकी आभा हरी थी। सिंह जैसी चाल ,पैरों के तलुओं पर धर्म चक्र के निशान थे । उनकी भुजाये लम्बी घुटनों तक पहुंचती थी कान तक धनुष खींच कर बाणों का संधान करने की क्षमता थी , मोतियों जैसे दांत शेर जैसे ऊँचे कंधे चौड़ी छाती गले पर तीन धारियां, तीखी नाक जो भी उनकी छवि निहारता था। देखता रह जाता था शौर्य और सुन्दरता का मूर्त राम चौदह कला सम्पूर्ण थे’।

श्री हनुमान के कानों के कुंडल चमकने लगे | श्री राम मुस्कराये सोने के कुंडल धारण किये स्वयं पवन पुत्र वेश बदल कर उनकी टोह ले रहे हैं। हनुमान ने हाथ जोड़ कर कहा प्रभू मैं आपको पहचान गया। आर्य शिरोमणि आप दोनों अयोध्यापति दशरथ के पुत्र हैं। उन्होंने अपनी भुजाये फैलाकर दोनों को कंधों पर बिठा लिया और पहाड़ी पर चढ़ने लगे। सुग्रीव श्री राम एवं लक्ष्मण से मिल कर प्रसन्न हो गये हनुमान ने आग जलाई अग्नि को साक्षी मान कर उनमें मित्रता हुई। राम ने बाली का वध किया सुग्रीव अब किष्किंधा के राजा थे। श्री हनुमान ने दोनों भाइयों को सुरक्षित गुफा जहाँ पर्याप्त स्वच्छ जल था ठहरा दिया । वर्षा ऋतू बीत जाने पर सीता की खोज शुरू हुई। सुग्रीव ने चारों दिशाओं में खोजी बलवान बानर भेजे |हनुमान धरती पर सिर झुकाये बैठे थे जामवंत ने उनकी तरफ देखकर कहा उठो हनुमान तुम ही राम काज करने में समर्थ हैं। वह और अंगद हनुमान के साथ जाएंगे हर हाल में सीता की खोज कर लौटेंगें श्री राम ने हनुमान को स्मृति चिन्ह के रूप में अपनी विवाह की अंगूठी दी जिस पर तीन बार राम राम लिखा था सब अनजानी यात्रा पर दक्षिण दिशा की और चल दिए |

स्तोत्र -1.हनुमान चालीसा पहली बार गोस्वामी तुलसी दास ने गाया था |

     2 .हनुमान बाहुक गोस्वामी तुलसी दास द्वारा रचित 
     3 . बाल्मीकी द्वारा रचित रामायण ( राम कथा पहली बार महर्षि बाल्मीकी ने लिखी थी मान्यता है बाल्मीकि श्री राम के समकालीन थे |
     4 .श्री राम चरित मानस , गोस्वामी तुलसी दास |
     5 . Ramayana , William Buck
      6. दन्तकथाएँ 
      7 . श्रुति 
       अनेक रामायण हैं लेकिन हनुमान कथा एक समान है 
                                          डॉ शोभा भारद्वाज same  (वार्ता) 18:51, 15 अप्रैल 2024 (UTC)उत्तर दें

बल बुद्धि विद्या निधान राम को समर्पित वीर हनुमान ( सीता की खोज ) डॉ शोभा भारद्वाज संपादित करें

बल बुद्धि विद्या निधान राम को समर्पित वीर हनुमान, सीता की खोज

अनेक बाधाओं को पार कर श्री हनुमान लंका पहुंचे लेकिन नगर में प्रवेश कैसे करें ?वह एक ऊँचे घने वृक्ष की छाया में घुटनों के बल बैठे थे उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा मेरा श्री राम में अटूट विश्वास है वही मुझे मार्ग दिखलायेंगे |सामने चारो तरफ समुद्र से घिरी विश्व प्रसिद्ध सोने की लंका अपनी कीर्ति के साथ जगमगा रही थी चारो तरफ सुद्रढ़ दीवारों से सुरक्षित एक किला थी जागरूक प्रहरी राक्षसियां शस्त्रों से सुसज्जित इसकी रक्षा कर रही थी , हर आहट पर चौकना हो जाती थीं | दुखद एक उन्नत रक्ष संस्कृति एवं राक्षस जाति उनके राजा के कृत्य से नष्ट हो जायेगी |आकाश में बादल छाये हुए थे मंद पवन चल रही थी चन्द्रमा से बदली हट गयी पूर्ण चन्द्रमा आकाश में चमकने लगा समुद्र में ऊँची लहरें पूरे ज्वार पर थीं |रात्री का दूसरा प्रहर हनुमान के लिए सुअवसर था देर रात तक आमोद प्रमोद से थक कर हर ओर सुरक्षित लंका सो रही थी हनुमान जी नें छोटा रूप धारण कर नगर में प्रवेश किया| नगरी अत्यंत सुंदर थी मुख्य मार्ग के दोनों तरफ महल थे उनके आगे फलदार वृक्षों की कतारें थी पीछे बाग |वह हर महल की बालकनी पर निशब्द चढ़ कर उनके गवांक्ष से झांक रहे थे|

लंका के निर्माण की एक पौराणिक कथा है भगवान शिव वैरागी वेश में कैलाश धाम में रहते थे परन्तु पार्वती ने जिद ठान ली उनके रहने के लिए अनुपम नगरी बनाई जाए विश्वकर्मा स्थान की खोज कर रहे थे उन्होंने समुद्र से घिरे द्वीप में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर तीन पर्वत शिखर देखे |उन्हें नगरी के निर्माण के लिए क्षेत्र भा गया | विश्वकर्मा ने अपनी सम्पूर्ण कला का परिचय देते हुए सोने की अद्भुत नगरी निर्मित कर दी |गृह प्रवेश के लिए विश्रवा को आचार्य नियुक्त किया गया यज्ञ के बाद उन्होंने दक्षिणा में शिव जी की माया से वशीभूत होकर नगरी मांग ली शिव ने कहा तथास्तु |विश्रवा से नगरी उनके पुत्र कुबेर को मिली| उन दिनों पराक्रमी रावण अपनी शक्ति बढ़ा रहा था उसने दक्षिण एशिया के कई द्वीपों पर विजय पा ली अब उसे सुरक्षित राजधानी चाहिए थी जिसके केंद्र से वह अपना साम्राज्य मजबूत कर रक्ष संस्कृति का प्रसार कर सके उसने अपने सौतेले भाई कुबेर को लंका से निकाल दिया कर राजधानी बनाया | त्रिकुट पर्वत की तीन पहाड़ियों के समतल पर निर्मित लंका ऐसी लगती थी मानों बादलों में बसी हो | चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार थे |

राजधानी के बीचो बीच लंका पति रावण का महल शिल्प कला का अनुपम उदाहरण था | राजमहल अनेक खम्बों पर टिका था हर और भव्यता ही भव्यता थी | यहाँ पहरा और भी सख्त था ,वानर को कौन रोक सकता है हनुमान नें धीरे से दीवार फांदी देखा महलों के चारो ओर विशाल बाग हर किस्म के फलों एवं फूलों की सुगंध से महक रहा था महल के बाग़ में पुष्पक विमान खड़ा था जिसे रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से छीना था इसी विमान से रावण सीता को हर लाया था लम्बे चौड़े विमान में हर वैभव मौजूद था उन्होंने विमान के हर कोने में सीता को खोजा विमान में कोइ नहीं था |रावण के विशाल महल में बिल्ली के समान छोटा रूप धारण कर सीता को खोजने लगे वह रावण के अंत:पुर में गये सबसे सुसज्जित प्रकोष्ट रावण का शयन कक्ष था वह एक पर्दे के पीछे पीठ लगा कर चारो तरफ देखने लगे उनकी तेज खोजी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं |वहाँ अनेक रूपसी रानियाँ जिन्हें रावण जबरन ब्याह लाया था पलंगों पर सोयी हुई थीं हनुमान कुछ देर के लिए ठिठक गये महिलाओं के प्रकोष्ठ में जाकर उन्हें निहारना ,लेकिन वह राम के काज के लिए यहाँ आये थे मजबूरी थी |

एक बड़ा पलंग जिस पर सफेद सिल्क की छतरी लगी थी पलंग पर पीली सिल्क की चादर बिछी थी उस पर रावण गहरी नींद में सोया था उसके माथे पर लाल रंग का चन्दन लगा था कानों में भारी कुंडल उसका मुख मंडल वीरोचित तेज से चमक रहा था | वह नवजात हिरन के बच्चों की खाल के मुलायन तकियों पर सिर टिकाये सुखनिद्रा में सोया रावण लंका के हर योद्धा का प्रिय हर राक्षस पुत्री उसका वरण करना चाहती थी रावण के शयनकक्ष के बाहर सुरा पान कक्ष था वही लम्बी मेज पर खाने के अनेक अनखाये भोज्य पदार्थ सजे थे| हनुमान मेज पर चढ़ कर अनुपम योद्धा को निहारने लगे कमर में मृगछाला पहन हाथ में फरसा लेकर जिधर से निकलता था विजय ही विजय थी वह अपने में ही एक सेना था |अपनी भुजाओं के बल पर उसने साम्राज्य बनाया था हनुमान को अचानक भूख लग आई उन्होंने मेज पर रखे कुछ तरबूज खाये |उनकी नजर अलग पलंग पर सोई हुई अप्रतिम सुन्दरी पर पड़ी क्या यह भगवती सीता हैं नहीं उन्होंने अपना सिर धुना ऐसा शर्मनाक विचार उनके मन में क्यों आया ?सीता जैसी पावन स्त्री कभी यहाँ नहीं हो सकती यह अवश्य मय दानव की पुत्री लंका की साम्राज्ञी मन्दोदरी हैं |

महल के बाग़ का हर कोना देखा अब सीता की खोज करते_करते वह निराश हो कर दीवार से पीठ लगा कर बैठ गये लम्बी सांस लेकर अपने आप से बातें करने लगे रावण जैसे महा दुष्ट ने अवश्य उनको मार दिया होगा , उसकी पकड़ से छूट कर समुद्र में गिर गयी होंगी, उनकी सांस घुट गयी होगी या रावण ने उनको अपने हाथों से पीस दिया होगा वह अपनी आखिरी साँस तक बेबस हे राम –हे राम पुकार रही होंगी यहाँ उनका कोई रक्षक नहीं था ? हनुमान की आँखों से आंसू बहने लगे गला रुंध गया वह सुबकने लगे मैं हार सह नहीं सकता अपना जीवन समाप्त कर लूंगा उन्होंने अपने पंजों से अपने मुहँ को ढक कर आखिरी सांस लेकर सांस रोक ली | हनुमान के हर शब्द को लंका में बहने वाली वायू ने सुना उनके देवता पवन देव अपने पुत्र के कानों में फुसफुसाये हवायें तेज होती गयीं पेड़ों से पत्ते गिरने लगे ,वृक्ष चरमराने लगे लंका के महलों पर लगी झंडियाँ टूट-टूट कर गिर रहीं थीं लंका में वायु ने कभी अपना संतुलन नहीं खोया था समस्त ब्राह्मंड के देवों पर राक्षस राज का अधिकार था अब ?हनुमान ने आँखें खोली अपनी उँगलियों के अंदर से झाँक कर देखा तेज हवायें उनके सिर के ऊपर से बह रहीं थीं उनके बाल पीछे चिपक गये उनके कानों से आवाज टकराई मेरे पीछे आओ, हनुमान उठ खड़े हुए आंधी की दिशा में चलने लगे हवा का बहाव हल्का होता गया वह ठहर गये सामने ऊँची चारदीवारी से घिरी वाटिका थी| अपने शरीर से धूल झाड़ी रावण के महल के पीछे की वाटिका, बाहर से जंगल लग रही थी ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के झुरमुट से घिरी वाटिका में , जंगली , फलदार, लाल एवं पीले फूलों के वृक्ष लेकिन बहुतायत में अशोक के वृक्ष थे| भीतर कुशल मालियों ने वाटिका को बाग़ की तरह संवारा था |

सूर्योदय होने वाला था पंछी चहचहाने लगे उनकी आवाज में दर्द था चौकड़ियाँ भरते हिरन दुखी थे मानों दुःख ने वाटिका में मूर्त रूप धर लिया हो | समुद्र की दिशा से सूर्य ऊंचा उठने लगा वह ऊंचे घने शीशम के पेड़ पर चढ़ गये जिसके पत्ते सुनहरे थे उन्होंने देखा सामने प्राकृतिक तालाब हैं जिसमें झरने से बह कर आने वाली सरिता का जल निरंतर गिर रहा था उसमें से निकलनी वाली छोटी-छोटी नालियों में बहने वाला जल अशोक वाटिका को सींच रहा है | सीता अवश्य यहीं होंगी वह वर्षों से जंगलों में रह रही है वहीं किसी झरने या तालाब में स्नान करती थीं अवश्य यहाँ आयेंगीं |हनुमान ने सुना लंका के पुजारी मन्दिरों में भोर के स्वागत के लिए सस्वर मंत्रोच्चार कर रहे हैं |महल में चारण रावण की प्रशंसा में राजा को जगाने के लिए गीत गाने लगे अशोक वाटिका में भद्दी आकृति की रक्षसियाँ जिनके पपोटे शराब का अत्यधिक सेवन करने से भारी हो गये थे अभी रात का नशा कम नहीं हुआ था अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में लग गयीं पहरा बदला जा रहा था |

रावण जगा उसने प्रभात के सूर्य को अपनी लाल आँखों से देखा सबसे पहले कैद में रखी गयी सीता का रुख किया उसके पीछे उसकी रानियाँ उंघती हुई आ रही थी , बगल में मन्दोदरी हीरों से जड़ित सोने के पात्र में मदिरा लिए रावण के साथ चल रही थी रावण धीरे –धीरे पात्र से मदिरा के घूंट भर रहा था रावण के पीछे श्रेणी के अनुसार योद्धा चल रहे थे हनुमान ने छोटा आकार धारण कर शीशम की सबसे ऊँची डाली में पत्तों के बीच अपने आप को छुपा लिया उन्होंने देखा मानव जाति की अपूर्व सुन्दरी स्त्री उठी वह पास ही एक पेड़ के नीचे खाली धरती पर लेटी थी उठ कर बैठ गयी वहीं उसने अशोक के वृक्ष से पीठ टिका कर अपने वस्त्रों से अपने आप को ढक कर ,बाजुओं से अपने घुटनों को जकड़ कर सिर झुका लिया |उसके लम्बे घने काले बाल खुल कर धरती पर फैल गये हनुमान समझ गये यह मानवी सीता है जब पुष्पक विमान से रावण हर कर उनको लेजा रहा था वह करुण स्वर में विलाप करती हुई उसका उग्र विरोध कर रही थी |यह स्त्री अधमरी भूखी प्यासी ऐसी कैदी जिसे मुक्ति की आशा नहीं है बंद आँखों से काल की प्रतीक्षा कर रही है | सीता , श्री राम की भार्या हर वक्त अपने पति के साथ प्रसन्न रहने वाली अब दुःख का मूर्त रूप थी |

वहाँ रावण आया उसने सीता को देख कर मुस्कराया ,अरे सीता तुम मुझसे भयभीत क्यों हो मैं तो तुम्हारे प्रेम का वशीभूत याचक हो चुका हूँ कब तक उपवास रखती हुई धरती पर सोओगी यह यौवन एवं सुन्दरता चिर स्थायी नहीं है मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर मेरी महारानी बन कर लंका पर राज करो | सीता ने एक तिनका उठा कर कहा ऐ दुष्ट मेरी ओर देखना मुझे छूना मौत को बुलावा देना है क्या तुम देवी काली का नृत्य करता संहारक रूप नहीं जानते जिनके गले में मुंडों की माला वह अट्टहास करती साक्षात कालरात्रि बन जाता है | रावण के भौहों पर बल पड़ गये मेरा प्रताप देख देवता मेरी सेवा करते हैं मेरी विशाल सेना मेरे एक इशारे पर काल बन जाती है स्वयं काल मेरी कैद में है समझो, ऐ मानव जाति की श्रेष्ठतम सुन्दरी मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर मेरी पत्नियों बन मेरी वैभव पूर्ण नगरी ,मेरे दिल पर राज करो | सीता ने बिजली की तरह कड़कती आवाज में कहा रावण तुम्हें सब कुछ उलटा सूझ रहा है क्योंकि मृत्यू तुम्हारे पास खड़ी है यदि तुम सचमुच वीर हो धर्म का पालन करो मुझे सम्मान के साथ श्री राम को लौटा दो वह नर श्रेष्ठ मर्यादा पुरुषोत्तम तुम्हें क्षमा कर देंगे, कभी शरणागत की हानि नही करेंगे |ऐ रावण मौत की आहट सुन |ओह सीता जिद छोड़ो अपनी आँखे खोल कर मेरी ओर देखो लंका का सम्पूर्ण वैभव तुम्हारा होगा | सीता ने कहा अरे मूर्ख तू सूर्य के प्रकाश को बेचना चाहते हो मैं महाराजाधिराज जनक की पुत्री तुम मुझे वैभव का लोभ दिखा रहे हो? मूर्ख पागल हो? मेरे लिए धरती का हर वैभव मेरे स्वामी के साथ है तू चोरों की तरह मुझे हर लाया है |श्री राम जिन्होंने पिता के बचन का पालन करने हेतु बनवासी वेश में वन को प्रस्थान किया मूर्ख तू उन आर्य श्रेष्ठ को क्या जाने ? अरे सीता जितना मैं तुम्हारे प्रति दयालू हूँ तुम उतना भी मुझे अपमानित कर रही हो |सीता ने उत्तर दिया तो जान लो मैं सीता हूँ धरती पुत्री ,धरती अपनी धुरी पर घूमती है लेकिन जब हिलती है कितने राजवंश ,सभ्यतायें तुझ जैसे उसमें समा गये |

रावण ने क्रोध से सीता को देखा वह अपने असली रूप में आ गया वह दसों सिर झटकने लगा उसकी सभी भौहें चढ़ गयीं उसकी बीसों भुजाये फड़कने लगीं वह गुराया दांतों को पिसते हुए तलवार लेकर सीता पर झपटा सीता डरी नहीं उन्होंने रावण के नेत्रों में अपने तेजस्वी नेत्र गड़ा दिए |वृक्ष पर बैठे हनुमान रावण पर झपटने ही वाले थे मन्दोदरी ने रावण को रोक लिया वह प्रेम सहित उसे समझा बुझा कर ले गयी जाते –जाते रावण ने धमकी देते हुए कहा एक माह ,बस एक माह का समय दे रहा हूँ यदि तूने मेरा कहा नहीं माना मैं अपनी कृपाण से तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूंगा |रावण की पत्नियाँ देव व महान राजाओं की पुत्रियाँ आँखों में आंसू भर कर सीता को निहारती लौट गयीं उनके पीछे प्रहरी थे | हनुमान सोचने लगे यहाँ सीता अकेली है राक्षसों से भरे दंडक वन में विचरती थी ऐसे महान योद्धा की पत्नी जिसने एक ही बाण से बाली के प्राण हर लिये रावण की बंदिनी| वीभत्स राक्षसियाँ लौट आयीं वह सीता को डराने लगी तभी एक समझदार राक्षसी त्रिजटा ने उन्हें रोकते हुए कहा मैने भोर के समय स्वप्न देखा है | सोने की लंका जल रही है ,लंकापति लाल वस्त्रों लाल फूलों की माला पहने तेल पी रहा है वह हंसा, चीखा फिर रोता हुआ दक्षिण दिशा की ओर जा रहा था उसके जाते ही लंका समुद्र में डूब गयी|राक्षसों की सफेद हड्डियों के पहाड़ पर लक्ष्मण बैठे हैं | श्री राम आये वह सफेद हाथी पर सवार थे जिसका हौदा हाथी दांत का बना था वह उस पर रखे सिंहासन पर बैठे हैं उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किये हैं उनके गले में श्वेत फूलों की माला है | लंका का सौभाग्य भयभीत होकर कन्या के वेश में उत्तर दिशा की और जा रहा था कन्या के शरीर पर घाव थे ,रक्त बह रहा था एक बाघ उसकी रक्षा कर रहा था वह अवश्य अयोध्या नगरी की और जा रही थी |उन्होंने सीता से कहा तुम सौभाग्यवती हो तुम पर कोई भी अशुभ छाया नही है | राक्षसियाँ डर गयीं वह सीता से क्षमा प्रार्थना करने लगी हमारी रक्षा करो राम के कोप से रक्षा करना |

सीता अब अकेली थी हनुमान सोच रहे थे क्या करू कैसे सीता को विश्वास दिलाऊं वह राम के सेवक है उन्हीं की खोज में लंका आये हैं |हनुमान जानवरों की भाषा में राम राम जपने लगे सीता नें सिर उठाया सुनने लगी हनुमान ने नर्म आवाज में सीता के हरण के बाद की कथा सुनाई कैसे नर और बानर का साथ जुड़ा राम ने एक ही बाण से महान बाली का वध कर किश्किंध्या का राज महाराज सुग्रीव को सौंप दिया अब चारों दिशाओं में जहाँ तक हवायें पहुंचती है बानर भालू उन्हें ढूंड रहे हैं | मैं भगवती की खोज में समुद्र पार कर यहाँ पहुँचा हूँ | सीता ने ऊपर देखा शीशम के पेड़ पर सफेद रंग का वानर बैठा मुस्करा रहा था उसकी पीली भूरी आँखे चमक रही थीं हनुमान एक छलांग में नीचे आ गये | माँ मैं हनुमान श्री राम को समर्पित उनका सेवक हूँ| सीता की आँखों से टपटप आँसू बहने लगे उन्होंने सिर झुका लिया वह समझ गयीं उनके सामने विशुद्ध आत्मा खड़ी है वह हनुमान के हर भाव को समझ रही थीं हनुमान ने कहा जब रावण आपको हर कर ले जा रहा था आप विलाप कर रही थीं आपने अपने आभूष्ण फेके थे वह पोखर में गिर गये मेरे मित्र सुग्रीव ने उठा कर सम्भाल लिये |जब श्री राम ऋष्यमूक पर्वत पर पधारे हमने आपके आभूष्ण उन्हें दिये | हनुमान प्रसन्न होकर किलकारी मारने लगे उनकी खोज पूरी हुई | हनुमान ने सीता की राम की निशानी अंगूठी उन्हें दिखाई | हनुमान ने कहा माता राम कम सोते हैं बहुत कम खाते हैं ठंडी रातें उन्हें जलाती हैं उनकी आँखों से निरंतर अश्रू बरसते है |माँ आप कृपया मेरी पीठ पर बैठ जाईये मैं आपको सकुशल यहाँ से निकाल कर ले जाऊँगा |

सीता मुस्कराईं मैं तुम वानरों का चंचल स्वभाव समझ गयी तुम इतने छोटे हो मुझे कैसे ले जा सकते हो |हनुमान का स्वरूप बढ़ता गया ऐसा लगा जैसे विशाल श्वेत पर्वत आकाश को छू रहा हो विशाल भुजायें उनके हर भाव से वीर रस टपक रहा था उन्होंने तुरंत लघु रूप धारण कर लिया माँ मैं आपको लंका से ले जाउंगा मुझे कोई दीवार ,रावण की सेना भी रोक नहीं सकेगी मैं पवन पुत्र हूँ | सीता संतुष्ट हुई उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया वह आत्म विश्वास से भर गयीं |मुझे विश्वास है एक दिन श्री राम आयेंगे रावण का वध करेंगे मुझे जीत कर ले जायेंगे| पुत्र हनुमान आज ठहरो मेरा यहाँ कोइ नहीं है तुम्हें देख कर संतोष हुआ न जाने तुम फिर कब लौटोगे समुद्र से घिरी लंका में प्रवेश बहुत कठिन है| हनुमान ने उन्हें सांत्वना देते हुये कहा माता मैं तो महाराज सुग्रीव की सेना का साधारण वानर हूँ श्री राम भयानक वानरों भालुओं की सेना सहित समुद्र में सेतु बांध कर पधारेंगे रावण को उसके कृत्य दंड देंगे |हनुमान मौन सोच रहे थे वह ऐसा क्या करें जिससे लंका में ऐसा हाहाकार मच जाये राक्षस राज युद्ध से पहले ही भयभीत हो जाये |

सोर्स - 1.श्री राम चरित मानस . सुंदर काण्ड , गोस्वामी तुलसी दास

     2 . रामायण - बाल्मीकि 
     3 . Ramayana, WILLIAM BUCK
     4 . मान्यता है रावण का वध करने के बाद श्री राम अयोध्या लोट आये पुराण के अनुसार श्री हनुमान ने हनुमद रामायण की रचना की
      5 . हनुमान चालीसा 
      6 . अनेक हनुमान दंत कथाएँ कहते हैं जहां राम कथा होती है वहां हनुमान जी विराजमान होते हैं ऐसा विश्वास है |
                                                                               डॉ शोभा भारद्वाज same  (वार्ता) 19:23, 15 अप्रैल 2024 (UTC)उत्तर दें