' फैसला ' कहानी में नारी चेतना  

एसोसिएट प्रोफेसर हिन्‍दी विभाग- डॉ॰ दीप्ति बी. परमार आर.आर.पटेल महाविद्यालय, राजकोट 'फैसला' मैत्रेयी पुष्‍पा की काफी चर्चित एवं प्रसि़द्ध कहानी है । प्रस्‍तुत कहानी नारी चेतना की एक सशक्‍त कडी है । मैत्रेयी पुष्‍पा के उपन्‍यास 'इदन्‍नम','चाक','अल्‍मा कबूतरी' आदि में नारी चेतना का बुलंद स्‍वर स्‍पष्‍ट रूप से सुनायी देता है । इस कहानी में मैत्रेयी पुष्‍पा ने नारी चेतना की अपने उपन्‍यासों से एक अलग अंदाज में प्रस्‍तुति की है । कहानी की नायिका बसुमती का विद्रोह मौन है । वह परंपरागत पत्‍नी की भूमिका में मौन रहकर जिस प्रकार से अपना विद्रोह पकट करके नारी चेतना का परिचय देती है वह अपने आप में अनूठा एवं कलात्‍म्‍क है । यद्यपि कहानी में ईसुरिया का चरित्र उसकी वैचारिकता एवं विद्रोह नारी चेतना को मुखर रूप में अभिव्‍यक्ति देता है । जो मंदा (इदन्‍नममश्), कदमबाई (चाक),अल्‍मा (अल्‍मा कबूतरी) की याद दे जाता है । सुविख्‍यात कहानी लेखिका मृदुला गर्ग ने स्‍पष्‍ट कयिा है' समकालीन कथा साहित्‍य पर कोई चर्चा तब तक पूर्ण व सार्थक नहीं हो सकती जब तक उसमें नारी चेतना से प्रेरित कथा सृजन को यथोचित स्‍थान न दिया जाए ।'

वर्तमान समय के स्‍त्री मुक्ति के इस दौर ने एक और तो स्त्रियों के लिए बंद कई दरवाजें खोल कर उसे घर से बाहर निकलकर अपनी पहचान बनाने के लिए अवसर दिये। लेकिन दूसरी तरफ यह भी स्थितियॉं नजर आ रही है कि स्त्रियों के अधिकार एवं उसे प्राप्‍त सत्ता पर उसका नाम मात्र का ही स्‍थान रह गया है । स्‍त्री को आदर्श मॉं, पत्‍नी,बहन,पुत्री आदि की आड़ देकर और घर की परंपरा मान मर्यादा की दुहाई देकर कभी समजाकर तो कभी धमकाकर उसके कानूनी आरक्षित पद पर स्‍वयं पुरुष विराजमान रहता है । वर्तमान समय पर दष्टिपात करे तो यह स्थिति न सिर्फ गॉंवो की ही है बल्कि नगरों,महानगरों एवं पाटनगरों में भी यह स्थिति किसी न किसी रूप में अवश्‍य नजर आ जायेगी ।

प्रस्‍तुत कहानी की नायिका बसुमती का अपनी मॉं(मास्‍साब) को लिखा गया पत्र है । जिसमें बसुमती अपने जीवन की सारी कही अनकही बातें सहजता से व्‍यक्त करती है । आदर्श पत्‍नी की तरह वह किस प्रकार अपने पति रनवीर की सही गलत बातों का अनुमोदन करती रही है । उसके हर फैसले को किस तरह नतमस्‍तक होकर स्‍वीकार करती आ रही है । उसे सुखी करने के लिए किस तरह वह तन मन से उस पर न्‍यौछावर है, ग्राम प्रधान बनने पर कितनी खुश हुई थी, गॉंव की शक्‍ल बदलने के लिए क्‍या-क्‍या सपने देखे थे, रनवीर ने उसके हर फैसले को खारीज करके किस तरह उसे हर बार निरुत्तर कर दिया था । ईसुरिया की बातें किस प्रकार प्रभावित करती थी, हरदेई के विषय में उसके द्वारा दिये गये फैसले को किस प्रकार प्रपंच और स्‍वार्थवश बदल दिया गया । निर्दोष हरदेई की मृत्‍यु के उपरांत उसके तन मन में उबलता लावा मूक विदोह का स्‍वरूप ले लेता है । उस विद्रोह का परिणाम रनवीर के लिए कितना आघातजनक साबित हुआ है आदि-आद‍ि । 

रनवीर प्रमुख पद पर नियुक्त है । अत: प्रधान पद के लिए अपनी पत्‍नी बसुमती को चुनाव में खड़ा करता है । बसुमती गॉंव के प्रधानपद का चुनाव जीत जाती है । बसुमती के प्रधान पद पर होने से रनवीर की गिनती उदार और आधुनिक व्‍यक्ति मे होने लगती है । किन्‍तु वास्‍तविकता तो यह है कि वह बसुमती को प्रधान के चुनाव में अपने फायदे के लिए ही खड़ा करता है क्‍योंक‍ि प्रधान और प्रमुख दोनों पदों पर सिर्फ और सिर्फ उसका ही अधिकार रहे । सच तो यह है कि रनवीर सोलहवीं शताब्‍दी की सामंती सोच रखता है । वह बसुमती को अपने स्‍वत्‍वाधिकारों से दूर रखकर उसे नि:स्‍पृह बनाकर राजनीति की दुनिया से दूर रखता है । क्‍योंक‍ि उसे चेतनाहीन बनाकर रखना उसकी पुरुष सत्ता के लिए अनिवार्य सा है । जब कभी बसुमती कुछ करना चाहती तब रनवीर परंपरा,आदर्श एवं रुढियों के बहाने कभी समझाकर तो कभी तिरस्‍कृत करके उसकी इच्‍छाओं एवं अधिकारों का हनन करता रहता है ।

बकरियों का रेबड़ हॉंकनेवाली ईसुरियाँ कहानी का सबसे सचेत नारी पात्र है । वह अनपढ़ है किन्‍तु अपने अधिकारों के प्रति जागरूक एवं अन्‍याय के खिलाफ आवाज उठाने को तत्‍पर है । बसुमती का प्रधान बनना उसे समग्र नारी का गौरव लगता है । अन्‍याय सहन करना या उसके सामने चुप रह जाना ईसुरिया को नहीं आता । वह गॉंव की स्त्रियों को कहती है 'सब जनी सुनो, सुनलो कान खोलके बरोबरी का जमाना आ गया । अब ठठोरी बांधे मरद मारकूट करे, गारी गरौज दे, मायके न भेज, पीहर से रुपइया पइसा मँगाय, क्‍या कहत है कि दायजा के पीछे सतावे तो बैन सूधी चली जाना बसुमती के ढिंग । करवा देना निठुओं के जेहल अब दिन गए कि जनी गूँगी बहरी छिरिया बकरिया की नाई हॉंकती रहे । बरोबरी का जमाना ठहरा । परिधान बन गयी है न बसुमती ? ' ईसुरिया साफ साफ शब्‍दों में निडरता से बसुमती के सामने रनवीर का काला चिठ्ठा खोल देती है, और यह भी पूछ लेती हे 'तू रनवीर की तरह अन्‍याय तो नहीं करेगी ? कागद दबा तो नहीं लेगी ? '

ईसुरिया ही बसुमती को पंचायत जाने के लिए तैयार करती है । पर रनवीर बसुमती को बीच रास्‍ते से ही घर चले जाने का कड़ा आदेश देता है । इस बात पर ईसुरिया कहती है लो हद्द हो गयी कि नहीं ? हौदे पर तो बसुमती और राज करे रनवीर ! अरे, अपनी पिरमुखी सँभारे ! पिरधानी से अब उन्‍हें क्‍या मतलब ? ईसुरिया बसुमती के पति रनवीर द्वारा हो रहे पद हनन के खिलाफ साफ विद्रोह करती है किन्‍तु मान मर्यादा के कारण बसुमती चाहकर भी रनवीर के इस प्रकार के व्‍यवहार को लेकर भीतर उठे आक्रोश को चुपचाप पी जाती है ।

नीति न्‍याय और सत्ता का तथाकथित कर्ताधर्ता पुरुष रनवीर नहीं चाहता कि बसुमती अपनी जगह पर काम करे और उसकी स्‍वयं की अपने पद पर कोई सत्ता हो । बसुमती को पंचायत के बीच रास्‍ते से लौटाकर ही उसे संतोष नहीं होता, घर आकर वह बसुमती को कहता है 'पंचायती चबूतरे पर बैठती तुम शोभा देती हो ? लाज लिहाज मत उतारो। कुल परंपरा का ख्‍याल भी नहीं रहा तुम्‍हें!औरत की गरिमा आढ़ मर्यादा से ही है । हम है तो सही । अब तक भी तो करते है । तुम्‍हें क्‍या जरूरत है बाहर आने की ।' यह सुनकर बसुमती भीतर से आक्रोश से भर जाती है, किन्‍तु 'पत्‍नी होने के नाते सबकुछ सिराने लगता । दूध के झाग सा बैठ जाता विरोध।'

गॉंव को जवाहर रोजगार से मिले रुपयों से बसुमती गॉंव के नवनिर्माण का सपना देख रही थी कि 'गॉंव में चमचमाते स्‍कूल और पक्‍की गलिया होगी' किन्‍तु रनवीर उन रुपयों को खर्च करने की योजना पहले से ही बना चुका था । वह बसुमती को उनके द्वारा तैयार किये गये कागजों पर हस्‍ताक्षर करने के लिए कहता है । बसुमती चाहकर भी उसका विरोध नहीं कर पाती । किन्‍तु 'बसुमती देवी' छ: अक्षरों के इस दस्‍तखत ने उसके सपनों के घरौंदे का कण कण आहत कर डाला । '

बसुमती के लिए किसी न किसी द्वारा पंचायत से रोज बुलावे आते थे किन्‍तु पति की उसे घर में ही रखने की वैचारिकता और डर के कारण उसने उस और झॉंकना तक छोड़ दिया । एक दिन रनवीर की गैरमौजूदगी में गॉंव की लड़की हरदेई की वृद्ध मॉं उसके घर आकर अपनी बेटी को बाप के अत्‍याचार से बचाकर पति को सौंपने की बिनती लेकर आती है । वह चाहती है प्रधान होने के नाते बसुमती उसकी बेटी हरदेई को न्‍याय दिलाये और उसे पति विरह की पीडा़ से छूटकारा दिलाये । इस पर बसुमती उसे न्‍याय करने का भरोसा दिलाते हुए उसके साथ पंचायत चली जाती है । वहॉं वह हरदेई द्वारा बाप के अत्‍याचारों के विषय में सुनकर कि ' रनवीर भइया नहीं समझेगे मेरी पीर । तुम औरत हो भाभी, मेरे दुख समझो, न्‍याय करो । पति की लाभ की नौकरी है, छुट्टी अब दो साल बाद ही मिल पाएगी, पूरे सात साल निकल गये इसी तरह । हमारे दादा सोचते है कि मुझे भेज दिया तो दामाद एक पैसे का मनीओर्डर नहीं करेगा । ताले में बंद रखते है मुझे । तीन बार शहर जाकर खतम कराया है पेट का बच्‍चा । तुमने देखा है भाभी ऐसा पिता ? अब की बार बचालो । इनके संग भिजवा दो, तुम्‍हारा जस नहीं भूलूगीं भाभी । '

हरदेई की जीवन पीडा़ सुनकर वह उसे पति के साथ्‍ा जाने के विषय में फैसला सुनाती है । इस बात का पता जब रनवीर को लगता है तब वह बसुमती के इस फैसले को चुनौती की तरह लेते हुए कहता है 'कचहरी करने का इतना शौक था तो बाप से कहकर वकालत पढ़ ली होती । कैसा फैसला ? जैसा तुम करके आयी हो ? जंगल में रह रही है हरदेई ? बेटी आप घर कि बाप घर ' वह हिमत जुटाकर रनवीर के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहती है ' मैंने तो सुना है कि उसे हाकिमों के पास उसकी हवस पूरी करने को ' इतने पर ही रनवीर उबल पड़ता है ' तुमने यह नहीं सुना कि उसके नालायक भाई की नौकरी कैसे लगी ? तुम्‍हें यह नहीं बताया गया कि उसका बाप सीमेंटकी दलाली निधड़क किसकी कृपा से कर रहा है, कि पक्‍का मकान कैसे उठा है ? किस हितू की हिमायत पर हो रहे है सारे काम ? बसुमती कहती है ' तुम तो सारी कथा जानते हो । फिर क्‍यों नहीं छुडा़ते उसे बाप के फंदे से ? इस पर रनवीर ओर कडे़ स्‍वर में कहता है ' तुमने छुडा़ तो दी । मेरे खिलाफ फैसला । इस तरह छिछालेदार । सुन ले और समझ ले अपनी औकात मजबूरी से खडी़ करनी पडी तू । मैं दो पदवी नहीं रख सकता था एक साथ । सोचा था पत्‍नी से अधिक भरोसे मंद कौन ' सुनकर बसुमती के पैरो तले जमीन निकल जाती है ।

दूसरे दिन सुबह होते ही उसे ईसुरिया का कातर करुण स्‍वर सुनाई दिया कि ' बडे़ पीपर पर कुआं में कूद के हरदेई ने पिरान तज दिये ।' बसुमती निढाल होकर आंगन में ही बैठ गयी और सोचने लगी 'किसने उलट दिया निर्णय । रात ही रात में सब कुछ कैसे विपरित हो गया ? पंचो का फैसला रद्द किसने किया ? किसने रोका उसे पति संग जाने से ।' ईसुरिया विद्रोहात्‍मक स्‍वर में कहती है 'आखिरी समय मुख हेर ले । अच्‍छा होता बसुमती हम अपना वोट काठ की लठिया को दे आते, निरजीव लकडी़ को । उठाए उठती तो । बैरी पर बार तो करती । अतीचलों के विरोध में पड़ती, पर रनवीर की दुल्‍हन तुम तो बडे़ घर की बहू ही रही । पिरमुख्‍ा जी की पतनी । घूँघट में लिपटी पतुरिया सी चलती रही, ऑंखे मूँद के ।' बसुमती ईसुरिया के साथ घटना स्‍थल पर पहुँचती है । यहॉं आकर वह देखती है कि हरदेई का बाप रनवीर को अपने साथ मिलाकर बयान दे रहा था ' दहेज के लोभी पति से मार पीट हुई थी रात के समय । उसकी बिगडी़ हुई आदतों से चलते पिरान खो दिए मेरी हरदेई ने ।' इस पर ईसुरिया सच्‍ची बात बताने का प्रयत्‍न करती है किन्‍तु रनवीर उसे बीच में ही रोक देता है और कहता है 'न्‍याय मिलेगा । उस हत्‍यारे को फॉंसी न करवाई तो नाम रनवीर नहीं ' यह सुनकर गॉंव के लोग त्राही त्राही पुकारते रह जाते है ।

बसुमती चुपचाप घर लौट आती है । वह ईसुरिया, रनवीर और हरदेई के बाप की बातों से हरदेई की मृत्‍यु का रहस्‍य समझ चुकी थी किन्‍तु वह ईसुरिया की तरह पति से खुला विद्रोह नहीं कर सकती थी अत: जहर का घूट पीकर मौन रह जाती है । घटना के कुछ दिनों बाद प्रमुख का चुनाव दुबारा आ जाता है । रनवीर इस बार भी प्रमुख पद के लिए चुनाव में दुबारा खड़ा होता है । रनवीर के कृपांक्षी तीन प्रत्‍याशी तो चुनाव से पहले ही घुटने टेक देते है । मैदान में केवल एक प्रत्‍याशी लोहार का लड़का ही बचा था । बसुमती नि:स्‍पृह भाव से सबकुछ देख सुन रही थी । यहॉं तक कि उसे वोट देने भी रनवीर समझा बुझाकर भेजता है ।

चुनाव परिणाम में रनवीर सिर्फ एक वोट से पराजित होता है । बसुमती उसे हर प्रकार से सांत्‍वना देने की कोशिश करती है । अपने पति की स्थिति देख वह दुखी हो जाती है । एक वोट से हुई पति की पराजय पर उसे विश्वास नहीं होता । उसके भीतर सबकुछ डॉंवॉंडोल होने लगता है ' ओ मेरे अग्नि देवता । ओ सप्‍तपदी दिलानेवाले महापंडित । ओ मेरे जननी जनक । और मास्‍साब, आप मेरे गुरुवर आपने मुझे सुख दुख की सहभागिनी अर्धांगिनी, सहचरी बनाकर रनवीर की पत्‍नी के रूप में विदा किया था । लेकिन मैं क्‍या करती ? अपने भीतर की ईसुरिया को नहीं मार सकी । ' कहानी के अंत के यह शब्‍द बसुमती के मौन विद्रोह और फैसले को उसकी संपूर्ण चेतना को गरिमा के साथ स्‍पष्‍ट कर देते है ।

बसुमती और ईसुरिया दोनों चरित्र के माध्‍यम से मैत्रेयी पुष्‍पा ने नारी चेतना की अभिव्‍यक्ति बडे़ सार्थक और कलात्‍मक ढंग से की है । यह दोनों चरित्र हर प्रकार से भिन्‍न होते हुए भी अपनी चेतना को बहुत स्‍वाभाविक एवं गहरी अभिव्‍यक्ति देने में सक्षम है ।