मध्यप्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर शहर की पूरब दिशा में एक ऊंचे स्थान पर खजराना इलाका पड़ता है। खजराना का इतिहास परमारकालीन है यहां विश्व प्रसिद्ध गणेश मंदिर के अलावा इंदौर की सबसे पुरानी दरगाह भी है , हजरत नाहरशाह वली की दरगाह आज एक जाना-पहचाना नाम है। इसके अलावा यहाँ भारत की सबसे बड़ी काले पत्थरों से उत्कीर्ण कालिका माता मंदिर भी दर्शनीय स्थल है। हिन्दू-मुस्लिम गंगा - जमना की तहज़ीब से ओत-प्रोत खजराना बंगाली समाज का भी अभिन्न अंग है। खजराना का वर्णन परमार काल के राजा भोज के समय में मिलता है। जब मालवा में अफगान पठानों के हमले होने लगे तब यहां के हिन्दू परिवारों ने गणेश जी की मूर्ति को मुस्लिम हमलावरों से बचने के लिए एक कुँए में छिपा दिया बरसों बाद यहां के भट्ट परिवार के एक ब्राहम्ण को स्वप्न में गणेश जी ने बताया कि मेरी स्थापना करो इस तरह एक चबूतरे पर गणेश जी की मूर्ति स्थापित हुई जिसे बाद में अहिल्याबाई होलकर द्वारा जीर्णोद्धार किया गया। हजरत नाहरशाह वली की दरगाह का भी अपना इतिहास है । इंदौर की स्थापना सन 1713 ईसवी में हुई लेकिन अल्लाह के वली हजरत नाहरशाह वली इस्लाम धर्म का प्रचार करने उससे भी पहले खजराना पधार चुके थे। हजरत नाहरशाह वली खजराना में एक ऊंचे टीले पर अल्लाह की इबादत किया करते आसपास इमली के पेड़ों की बहुतायत थी घना जंगल था अक्सर शेर हजरत नाहरशाह वली के पास आकर बैठ जाता और आसपास की जगह को अपनी पूंछ से साफ करता । चूंकि उस समय ज्यादातर लोग खेती-बाड़ी करते थे तब महिलाएं यहाँ से भी निकलती । टीले के पास ही एक कुंआ था जहां वो पानी पीने रुक जाती इस बीच गांव की महिलाओं को टीले पर शेर के साथ बाबा बैठे नज़र आते महिलाए ये अजीब नजारा देखकर भाग खड़ी होती और गांव