रुबेल्ला वाइरस एक विषाणु है। रुबेल्ला एक अत्यंत संक्रामक मीजल्स वायरस है। यह कनजैनटील रुबेल्ला सिंड्र्रोम के कारण होता है जो कि सब से ज्यादा गर्भवती महिलाओ में पाया जाता हैं और बच्चों को सौम्य रूप से घ्रसीत करता है। यह ऐसा संक्रमण है जो की हवा के माध्यम से मनुष्य में खाँसी और छींक से फेलता हैं। फ्रेडरिक होफमैन एक जर्मन चिकित्सक ने इस वाइरस कि सबसे पहले १७४० में खोज कर जानकारी दि थी। वैक्षिक आधार पर १००००० बच्चे इस वायरस से प्रभावित हो कर जन्म लेते है हर साल, इस वायरस का कोइ विशिष्ट इलाज नहीं है परंतु इसको टीके(वेकसीन)के माध्यम से नियंत्रण किया जा सकता हैं। इस वायरस के लक्षण बहुत लोगों को कई बार समझ नहीं आते क्योंकि वह बहुत धीरे असतर पर बढते है। इनको पूरी तरह से फैलने में २-३ सप्ताह लग जाता है। इसके कुछ लक्षण है जैसे कि रैश, बुखार, जी मचलना और लसीका ग्रंथि में सुजन होना। वयस्कों में इस वायरस के लक्षण बहुत शीघ्रता से दिखते है और बच्चों में उतने ही सौम्यता से बढते है।

      यदि एक गर्भवती महिला इससे पिडीत हो जाए तो संक्रमण उस महिला के भ्रूण को प्रभावित कर देता है और मिसकेरेज हो जाते हैं। वेकसीन ने रुबेल्ला वाइरस के प्रभाव को बहुत कम किया है । परंतु आज भी जो बच्चे इस संड्रोम के साथ जन्म लेते है उनको सुन ने और देखाने में मुसीबत होती है और कई बार थायराइड से भी पिडीत रहते है। ऐसे बच्चों का सर्जिकल आपरेशन करना पडता है जो कि बहुत कठिन होता है। रुबेला वायरस का कोइ ईलाज नहीं है परंतु इसे टीके से कम किया जा सकता है। इस टीके का मोनोवैलेन्ट सुत्रीकरण आज असानी से उपलब्ध हो जाते है पर इसको उच्च मात्र में देने से लोगो कि जान भी चली जाती है। रुबेल्ला वाइरस से केवल बचा जा सकता है,इससे बचने के लिये बस सफाई का ध्यान रखना चाहिए और हमेशा मूँह पर हाथ रख कर खाँसना और छींकना चाहिए। सावधानि रखने से हम कई रोगों से बच सकते हैं ।

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