गीतांजलि मिश्रा संपादित करें

परिचय


गीतांजलि मिश्रा का जन्म सीधी जिले मे 1991 के जनवरी माह मे हुया था। आप विज्ञान विषय की विद्यार्थी हैं पर हिन्दी मातृ भाषा के प्रति अधिक लगाव होने के कारण इनहोने अपनी आंगे की पढ़ाई हिन्दी साहित्य से पूरी की। रीवा मे ठाकुर रणमत सिंह से इनहोने एमए (हिन्दी) किया तथा हिन्दी भाषा मे अपनी रचनाओ को रूपांतरित करने लगी।

गीतांजलि मिश्रा के द्वारा लिखी कविता और कहानियो मे से कुछ रचनाए यहा प्रस्तुत किए जा रहे हैं जो निम्न हैं।

कविता: क्या मौसम हैं सुहाना संपादित करें

क्या मौसम है सुहाना,

क्या मौसम है सुहाना,

सुबह होते ही चिड़ियो का चहचहाना,

शाम होते ही,

पक्षियो का अपने घोसले मे जाना,

फूलो का मुस्कुराना,

फूलो मे से भावरों का रस निकालना,

कितना लगता है सुहाना,

खेतो की हरियाली,

उस पर फसलों का लहलहना,

किसानो का दिल मचल जाना,

पहाड़ो की खूबसूरती,

उस पर हवाओ का बहना,

कितना लगता है सुहाना,

वो सर्द हवाओ का,

दिल को छू जाना,

पतझड़ तो है बहाना,

असल मे है,

मौसम का आना जाना,

वो गायों का शाम को घर आना,

बछड़ो का खुश हो जाना,

कितना लगता है सुहाना,

चिड़ियो का निम्बोली खाना,

उसपर उसकी गुठली गिराना,

क्या है इसका फसाना,

तोतो का धान चुन जाना,

किसानो की डांट खाना,

कितना लगता है सुहाना,

सुबह होते ही मुर्गे का,

सभी को जगाना,

और खुद चरो तरफ दौड़ लगाना,

क्या मौसम है सुहाना,

बैशाख का महिना संपादित करें

बैशाख का महिना,

बैशाख का महिना,

गर्मीओ का था जम कर आना,

न अंदर न बाहर,

कही भी चैन न रह पाना,

लू के थपेड़े,

जैसे जान को चाहती हो निकालना,

पंखो ने भी कसर नहीं रखी कम,

दिन हो या रात,

देते है हवा गरम,

मौसम विभाग भी निकालती है कसर,

डराती है देकर खबर,

पारा चढ़ेगा 5 डिग्री ज्यादा,

मानसून भी रहेगा,

कही कम कही ज्यादा,

हाय नदिया तो रही है सूख,

अब इस खबर से,

पसीनों ने भी निकलने से कर दी है मनाही,

हे राम ! करो मदद हमारी,

कहो वरुण देव को,

सुने गरज हमारी,

कहो पवन देव को,

अपने संग लेके आए मेघो को,

पर लगता है स्वर्ग मे भी भ्रष्टाचार की है कहानी,

लगता है किसी देवता ने मेगों को ही बेच है खाया,

पर दूसरे को क्या दोष दे,

हम भी कौन हैं निर्दोष बैठे,

छीने है वो नजारे,

जो सूरज देव को है प्यारे,

सूर्य को भाती है हरियाली,

जिसे हमने,

निजी स्वार्थ बस है उजाड़ी,

सूर्य देव को आया है गुस्सा,

इसलिए ठाहर गर्मी से,

दे रहे है हमे सजा,

पर कसाम खाते है आज हम,

कभी नहीं करेंगे अब ऐसा,

पेडो को अब न काटेंगे,

न अन्य किसी को देंगे काटने,

खाली पड़े मैदान,

नहीं रहेंगे अब वीरान,

लगाएंगे नए पेड़ पौधे,

और बढ़ाएँगे हरियाली की शान।

कभी धूप कभी छाव संपादित करें

कही धूप कही छाव,

कही धूप कही छाव,

जैसे हो कौआ की कांव कांव,

मनुष्य के जीवन की ऐसी ही है कहानी,

जिसे पड़ती है निभानी,

वह भी भोगता है सुख,

तो कभी लेता है स्वाद दुख का,

पर है सत्या अटल,

आज दुख का करते है आचार विहार,

तो कल सुख लता है सुख का सागर आपर,

इसलिए करना है सामना,

हर परिस्थिति का,

अगर करेंगे सामना डट कर दुख का,

तो आनंद भी उतना ही आएगा,

आने वाले सुख का,

डट कर चले डगर जो डगमगाये नहीं,

नैतिकता ही सीढ़ी है जो पहुचएगी,

मंजिल तक कभी,

पथ भ्रष्ट न होंगे कभी,

चलेंगे मार्ग यही,

चाहे कठिनाई हो न जाने कितनी बड़ी,

पर आस का दामन न छोड़ेंगे कभी,

विश्वास है,

अटल सत्य है,

पाएंगे सुख का सागर,

चलते हुये इस मार्ग मे कभी न कभी,

कहानी: समय की सीख संपादित करें

समय की सीख

राम नाम का एक लड़का था। उसका परिवार बहुत ही गरीब था। उसके पिता दूसरों के खेतो और घरो मे मजदूरी किया करते थे। राम के चार भाई और एक बहन थी। राम सबसे छोटा था। इसलिए घर मे सबसे ज्यादा लोगो का दुलारा था। राम का बाप परसोती बड़ी मुस्किल से अपने परिवार का गुजर बसर कर रहा था। किसी तरह उसने राम के तीनों बड़े भाइयो को पाल पोस कर बड़ा किया था। तथा उनकी शादी गाँव के पास ही दूसरे गाँव मे कर दी थी। उनसे मिले दहेज से उसने अपनी छोटी बेटी रामूल्ला जो की राम से बड़ी थी उसका व्याह नजदीक के गाँव मे कर दिया था, राम के तीनों बड़े भाई शहर मे जा कर मजदूरी करते थे। जिससे की परसोती के घर मे कुछ आमदनी आने लगी थी। राम भी अब 12 वी पास कर के फुर्सत हुआ ही था की उसकी शहर के सरकारी महाविद्यालय मे चपरासी की सरकारी नौकरी मिल गयी थी।

वह शहर जा कर नौकरी करने लगा धीरे धीरे समय बीतने लगा। राम की भी शादी हो गयी राम अपने परिवार को अलग ले के रहता था। पर उसके तीनों भाई और पिता अभी भी गाँव के पुराने घर मे एक साथ रहते थे। धीरे धीरे उनमे मतभेद होने लगे राम के तीनों भाभीया भी राम की तरह घर से अलग शहर मे रहना चाहती थी जिससे आए दिन घर मे नोक झोक का माहौल बना रहता था। आखिर वह दिन आ ही गया जब तीनों भाई शहर मे अलग अलग जगह मकान किराए से लेकर रहने लगे थे। बिचारा परसोती गाँव मे ही अकेले अपनी पत्नी के साथ रहता था। राम को जब यह पता चला तो उसने तुरंत ही गाँव जाकर अपने वृद्ध माता पिता को अपने साथ ले जाने के लिए जिद करने लगा पर परसोती ने माना कर दिया और कहा की वह अपने पूर्वजो का घर छोड़ के कही नहीं जाएगा। तब राम वापस आ गया और हर शनिवार की शाम को अपने बीवी बच्चो सहित गाँव जाता था और रविवार की शाम को शहर आ जाता था।


परसोती को किसी भी प्रकार का कोई कष्ट न आए इस बात का राम हमेसा ध्यान देता था परसोती और उसकी पत्नी सुकुमा अपने इस बेटे पर हमेशा गर्व करते थे तथा पूरा गाँव भी राम की तारीफ किया करता था।


वहा शहर मे राम के तीनों भाई जो की अलग अलग रह रहे थे उनकी दशा दिन प्रति दिन बिगड़ रही थी। वह लोग जो भी कमा के घर लाते थे उसमे से एक बड़ा भाग घर के किराए मे निकाल जाता था। बाकी लड़को की पढ़ाई और घर के अन्य खर्चो मे अब तो तीनों भाई और भी परेसान रहने लगे क्यूंकी दिन भर की मजदूरी काम धंधा कर के जब तीनों घर पहुचते तो और आराम करने की सोचते पर यह तो रीवा के बीरवाल की खिचड़ी साबित होती और घर मे महाभारत के स्थिति बन जाती। घर का खर्च अब मुस्किल ही नहीं हो गया था बल्कि अब तो पड़ोसियो और बाजू मे बसे ब्रांहाण समाज के उपकार से चल रहा था वहा पर इन तीनों भाइयो की पत्नीया बर्तन धोने एवं घर के अन्य काम करने जाया करती थी। जिससे वाहा के ब्राम्हण सम्पन्न तो थे ही साथ मे इन तीनों की गति को भी अच्छे से जानते थे तो इस प्रकार दिन का जो भी मेहनतना होता था उसे ज्यादा मेहनतना और कुछ खाने को यह समाज उन तीनों को दे दिया करते थे। इस पर भी उन तीनों का परिवार बहुत अच्छे से नहीं चल पा रहा था। ऊपर से तीनों ने अपनी चिंता दूर करने के लिए मोहल्ले से दूर नक्कू सेठ के मदिरालय मे जाकर एकाध दो घूट दारू पीने की आदत भी डाल ली थी सो इस प्रकार कमाई से ज्यादा खर्च का अनुपात ज्यादा था।

धीरे धीरे समय बीतता गया और परसोती का बडे लड़के किडनी की निष्क्रिय हो जाने से परलोक सिधार गया। उसके अंतिम संस्कार के लिए उसके शव को गाँव ले जया गया जहा पर सभी परिवार जन उपस्थित हुये आज परसोती का पूरा परिवार मौजूद था। बस बड़े बेटे के सिवाय जिसके अंतिम संस्कार के लिए ही सब उपस्थित थे सभी कर्मो से फुर्सत होने के बाद शाम को सभी घर के बाहर बने चबूतरे मे बैठे हुये थे गाँव के लोग, रामू तथा अन्य दोनों भाई भी मौजूद थे। परसोती ने अपने दोनों बेटे को समझाया की गाँव वापस आ जाओ और घर मे इतनी जमीन है जो की तुम दोनों के लिए तथा तुम्हारे संतानों के लिए काफी है शहर के वातावरण को तो पाँच वर्ष रह के देख लिया है की कैसे इसने तुम्हारे बड़े भाई को हमसे छीन लिया है और जो गति तुम वहा भोग रहे थे उसे याद करो। मन ही मन दोनों भाई पहले से ही गाँव को छोडने के फैसले से पछता रहे थे। पर उनकी वापस आने की हिम्मत न होती थी। पर बापू के समझाने से उनका दर्द सबके सामने आ गया और वह फूट फूट कर रोने लगे और पिता परसोती के चरणों मे गिर के अपने इस भूल की माफी मागने लगे। परसोती ने उन्हे उठाया और गले से लगा के दोनों को माफ कर दिया।

2021 Wikimedia Foundation Board elections: Eligibility requirements for voters संपादित करें

Greetings,

The eligibility requirements for voters to participate in the 2021 Board of Trustees elections have been published. You can check the requirements on this page.

You can also verify your eligibility using the AccountEligiblity tool.

MediaWiki message delivery (वार्ता) 16:30, 30 जून 2021 (UTC)उत्तर दें

Note: You are receiving this message as part of outreach efforts to create awareness among the voters.