Sukhmangal
"योग "
संपादित करेंजब मनुष्य कई जन्मों का भोग भोगते हुए मनुष्य योनी में जन्म लेता है तो इस जन्म को शुभकरमों ,शुभ संस्कारों एवं ईश्वर की परम कृपा योग साधना के लिए मनुष्य शरीर को प्राप्त करता है | कर्मयोगी फल की इच्छा नहीं करता ,परमात्मा में ही तल्लीन रहता है |वह परमात्मा में निवास करता है |मानव की यही आवश्यकता भी है |उपाय अनुष्ठान ही योगाभ्यास है | सुख प्राप्ति दुःख निवृति रूपी फल को योग विभूति समझना चाहिए | वैयक्तिक योग की दशा तब उत्पन्न होती है जब बालक सुषुप्ति अवस्था को प्राप्त होता यानी सो जाता है | उस समय माँ के प्यार का अनुभव नही कर पाता जबकि माँ उसे प्यार से पुचकारती है| योग की दशा में मनुष्य को भूख-प्यास नहीं सताती |यथा - कंठं कूपं श्रति पिपासा निवृत्तिः |(योग दर्शन से साभार ) sukhmangal singh 02:41, 14 जुलाई 2016 (UTC) भगवान ने योग के विषय में कहा -
'योग:कर्मसु कौशलम'
योग का प्रमुख प्रथम अंश है धारणा (एकाग्रता)ध्यान में इस प्रकार मग्न हो जाय ध्येय पदार्थ में लय हो जाय |ये तीनों एक ही क्रिया के अंग हैं |इसका साधारण नाम संयम है अर्थात धारणा ,ध्यान और समाधि से ज्ञान की शुद्धि होती है | यह एक सुगम मार्ग होते हुए भी लोगों ने दुर्गम बना डाला है |मन में लगन ,तन्मयता ,तत्परता चाहिए |श्रद्धा प्रथम ,बाद में साहस आ जाने से चरम कोटि तक मनुष्य पहुच जाता है | योग का क्षेत्र-अर्थ अत्यंत व्यापक है यथा - भक्तियोग-ब्रह्मसत्ता ,भक्तिभाव से जुड़े रहने की जीवन पद्धति है | ज्ञानयोग -ज्ञानसाधना द्वारा सर्वव्यापी सत्ता की अखंड अनुभूति है | मन्त्रयोग-मंत्र जप द्वारा आत्मचेतना और ब्रह्मचेतना से समरसता प्राप्त करने का प्रयास है | कर्मयोग -कर्मयोग को प्रखर कर्मनिष्ठा जीवन साधना कहा गया है | हठयोग -हठयोग यानी पूर्णस्वस्थता के लिए की जाने वाली विशिष्ट शारीरिक ,मानसिक क्रियाओं का साग्रह अभ्यास | भगवदगीता में योगी और योग के स्वरुप को इस प्रकार दर्शाया गया है -
जिससे आत्मा चेतना ब्रह्मचेतना के मिल्न से आनंद -उल्लास ,सक्रियता -स्फूर्ति,कर्मनिष्ठा-चरित्रनिष्ठा के स्वरुप प्रत्यक्ष रूप में देखे जा सकते हैं |
गीता में कहा गया है -
'समत्वं योग उच्यते 'अर्थात समस्त बुद्धि संतुलित मन:स्थिति ही योग है |समदर्शी भावना से सर्वत्र परमात्मा को देखने वाले व्यक्ति (मनुष्य )योग मुक्त होते हैं |
कुंडलनी जागरण और उर्ध्वारोहण इसका दूसरा नाम है |इन क्रियाओं के उपरान्त क्रियाशीलता ,स्फूर्ति,उत्फुल्लता तथा आनंद फूट पड़ता है |आत्मसत्ता दिन प्रतिदिन प्रखर विशुद्ध होती जाती है |यही मोक्ष मिलने विलय-विसर्जन शुद्ध सत्ता महान सत्ता का योग मात्र है | श्रीमद्भागवत् में भगवान् ने कहा है -'यह मनुष्य शरीर मेरे स्वरुप ज्ञान की प्राप्ति का साधन है | इसे पाकर जो मनुष्य सच्चे प्रेम से मेरी भक्ति करता है वह अंत:करण में स्थित मुझ आनन्द स्वरुप परमात्मा को प्राप्त हो जाता है | बुद्धिमान पुरुष को सत्पुरुषों का सत्संग करना चाहिए | सत्संग से आसक्ति मिटती है और मन मुझमें लगता है | मेरी कथा मनुष्यों के लिए परम हितकर है उसे जो श्रवण करते हैं उनके सारे पाप--पापों को वे धो डालते हैं |यही भक्तियोग की श्रेणी है | हम अपने को सत्पात्र बनाने का प्रयास करें फिर देखें की प्रभु की कृपालुता,कृपा हम पर बरसती है |sukhmangal singh 03:34, 23 अगस्त 2016 (UTC)sukhmangal singh 14:19, 22 जनवरी 2017 (UTC)sukhmangal singh 14:22, 22 जनवरी 2017 (UTC) singh 23:24, 8 जुलाई 2019 (UTC)
समीक्षा- स्वर्ग विभा (ई - बुक ) अवतरण
हिन्दी के वरिष्ठ कवि ,लेखक ,पत्रकार एवं समाजसेवी श्री सुखमंगल सिंह का 'स्वर्ग विभा ' नामक ई - बुक पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ | इसमें उनकी गद्य -पद्य की सैकड़ों सारगर्भित रचनाएं भारतीय जन जीवन ,संस्कृति, साहित्य , विचार,परंपरा और राष्ट्र- वादिता से ओत -प्रोत हैं | साथ ही देश के प्रतिष्ठित महापुरुषों ,साहित्यकारों एवं राष्ट्रीय चरित्रों के बारे में जानकारियां भी यथेष्ट रूप में उपलब्ध हैं | प्राचीन काशी का इतिहास ,प्रेमचंद के साहित्य में स्त्री पात्र ,आर्थिक उदारीकरण , आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि आलेखों से लेखक की विचारशीलता से परिचित होना भी सुखद अनुभव प्रदान करता है | डायरी,वार्ता को भी इस संकलन में स्थान प्रदान करना लेखकी विविधता का परिचायक है | इसमें प्रकाशित कवितायें प्रायः प्रकृति ,पर्यावरण ,जीवनादर्शों ,मानवीय मूल्यों को समर्पित हैं जिसमें कवि का वैचारिक सौंदर्य लोकमंगल की कामना को बल प्रदान करता है | साथ ही जीवन के कटु यथार्थ से कवि का सुपरिचित होना भी प्रासंगिक है | अतः कवि सुखमंगल जी ने अत्यंत प्रखरता के साथ आम आदमी की पीड़ाओं ,समस्याओं आदि को भी इस संकलन मे सहेजने में सफलता प्राप्त की है , जो प्रशंसनीय है| आशा है, अहिंसा, सत्य,करुणा के प्रचार- प्रसार में कवि की रचनाएँ समाज को बल प्रदान करेंगी और ई- बुक पाठकों के बीच इस संकलन का भरपूर स्वागत होगा | रचना- संचयन हेतु बहुत - बहुत बधाई | दिनांक -22/08/2019 हस्ताक्षर- सुरेन्द्र वाजपेयी द्वारा- हिनदी प्रचारक संस्थान पिशाचमोचन, वाराणसी-10 (उ0 प्र0 )singh 01:15, 31 अगस्त 2019 (UTC)
समीक्षा :- कवि सुखमंगल सिंह की काव्य साधना (प्रथम खण्ड , ई बुक )
गूगल के क्षेत्रीय मार्गदर्शक एवं वाराणसी के बहुचर्चित कवि सुखमंगल सिंह रचित यह संकलन कई दृष्टियों से सूचनापरक एवं पठनीय है | इसमें उन्होंने भारत की कुछ ऐतिहासिक घटनाओं, स्मारकों,मंगल- मूर्तियों के बारे में सचित्र जानकारियाँ दी हैं तो वर्तमान परिवेश की भी खोज - खबर को तिथिवार उद्घृत किया है | इससे आप पाठकों का ज्ञान- वर्धन होता है |राष्ट्र भावी योजनाओं , सरकारी घोषणाओं और राष्ट्रीय विकास को भी प्रस्तुत कर सकने में कवि ने सफलता प्राप्त की है | इन्हीं सामग्रियों के साथ - साथ कवि सुखमनंगल सिंह की अनेकानेक ओजस्वी कविताएं भी पाठकों का ध्यान आकर्षित करती हैं जिनमें राष्ट्र भाव ,राष्ट्र भक्ति , सामाजिक समरसता और पर्यावरण वचन और शुद्ध रखने की गूँज सुनाई पड़ती है | कवि मानवतावादी सन्देश का प्रचारक है | अतः प्रेम, सौहार्द ,सेवा ,सहयोग जैसे भावों के उत्थान एवं समृद्धि हेतु वह प्रतिबद्ध दिखाई पड़ता है जो प्रशंसनीय है | आशा है , इस कृति के माध्यम से कवि सुखमंगल सिंह विश्व स्तर पर भारतीय दृष्टिकोणों के प्रति ध्यान आकर्षित करेंगे | कामना है,कवि का रचना संसार व्यापक और अधिक से अधिक सुदृढ़ हो |
हस्ताक्षर ,सुरेन्द्र वाजपेयी ,
-- समीक्षक लेखक ,,व्यंग,नव गीत हिन्दी प्रचारक पब्लिकेशन्स प्रा ० लि ०
सी २१/३० पिशाचमोचन ,वाराणसी -२२१०१० उत्तर प्रदेश - भारत Sukhmangal (वार्ता) 04:39, 21 सितंबर 2019 (UTC)
"गोविन्द पूजन "
गोविन्द की पूजा लोग विविधि तरह से करते हैं | पूजन करना मनुष्य को आवश्यक है | इस लोक पर भाई - बंधु , माता- पिता ,पति -पत्नी सभी अनित्य हैं | पुत्र -आदरणीय भी | जन्मोंपरान्त खड़ी रहती है मृत्यु जन्म से ही ! छूट जाएगा यह लौकिक जगत के सारे धन -दौलत ,इसे भली भाँति सोच विचार कर लेना आवश्यक है | जीवन अनमोल है जीवन में भी मानव जीवन कठिन तपस्या का फल है | वृहद सोच विचार कर 'धर्म 'का संचय करें | हमें चिंतन करते रहना चाहिए उठते -बैठते , चलते -फिरते ,प्रति क्षण प्रभु गोविन्द का | भगवत्भक्ति सभी को आसानी से सुलभ नहीं होती | भगवत्भक्ति सभी को मुक्ति देने वाली होती | कलिकाल में सत्संग ,तुलसी सेवा , भगवान् विष्णु की भक्ति सभी दुर्लभ है और यही संसार में सार है | रसायन है भगवान् गोविन्द का भजन | जो भक्त निष्काम भाव से भगवान् गोविन्द की पूजा करता है वह अपने इक्कीस पीढ़ियों के साथ वैकुण्ठ धाम जाता है | वैकुण्ठ जाने की लालसा सभी मनुष्य की होती है परन्तु इस धाम में जाने के लिए प्रयत्न ,यत्न की आवश्यकता होती है | परमात्मा जब चाहता है तब सबकुछ दे देता है और जब चाहता है उसे समेट लेता है| परन्तु यह सब अदृश्य रहता है जैसे कच्छप जिस प्रकार जब चाहता है पैर फैलाता है और जब चाहता है बटोर लेता है |
कलियुग में गोविन्द पूजन और उन्हें प्राप्त करना आसान है | गोविन्द गोविन्द भजने से मनुष्य कलिकाल में भवसागर से पार हो जाता है | - "कलिकाल का तारण"
गोविंद नाम का मनन, भजन, चिंतन ! गोविंद नाम की महिमा ने गुजरात में नरसी मेहता के सम्पूर्ण कार्य बगैर किसी उद्योग के सिद्ध करा दिये | भगवान मधुसूदन का निवास शालिग्राम शीला में रहता है | जहां शालिग्राम का पूजन होता है वहाँ भूत,प्रेत आदि गृह से लोग वंचित रहते हैं और भूत प्रेत गृह आदि निष्प्रभावी हो जाते है |
शालिग्राम शीला का पूजन करने वाले भक्त के चरण रज जहा पड़ते हैं उस घर को पवित्र कर देते हैं | भगवान विष्णु के गोविंद नाम की महिमा अपार है | गोविंद की परिक्रमा चार बार करना फलदायी होती है | पुस्तकों में पुराण ,न्याय ,मीमांसा धर्म शास्त्र तथा छ: अंगों सहित वेद नारायण के स्वरूप हैं |
भक्त्या कुर्वंन्ति ये वैष्णो: प्रदक्षिणचतुष्टयम | तेsपि यान्ति परं स्थानं सर्वकर्म निवर्हणम || (ना।पु ३९-७१) गोविन्द के अनेक नाम हैं यथा - बांके विहारी ,गोवर्धनधारी ,वृन्दावन विहारी ,कान्हां , कृष्णा ,कन्हैया , माखन चोर ,नंदकिशोर आदि नामों में ठाकुर जी को जो नाम सर्वाधिक प्रिय है वह नाम है 'गोविन्द '| भगवत्नाम के प्रभाव से जल में डूबते हुए गजराज को समस्त शोक से छुटकारा मिल गया | भरी सभा में द्रोपदी का वस्त्र बढ़ता ही गया | भगवत नाम में समस्त शक्तियां निहित हैं | इसी लिए गोविन्द नाम का उच्चारण समस्त दुःखों का विनाशक है | भगवान् विष्णु के तीन हजार पवित्र नाम हैं (विष्णुसहस्त्रनाम ) जप से एक बार में ही पूर्ण फल मिल जाता है | कीर्तन का कलिकाल में पाप का नाश करने के लिए विशेष महत्व है | कीर्तन में हरी की महिमा का गुणगान होता है | हिन्दू शास्त्रों में कीर्तन के महिमा को कलयुग में भारी महिमा का वर्णन किया गया है | गिरधर गोविंद का नाम कीर्तन प्रति पल करना सर्वोत्म है| नारायण की पूजा करने वालों की सदा -सर्वदा ब्रह्मा आदि देवता भजन पूजन करते रहते हैं | यथा - अनु पदेनं मदन्ति विश्व ऊमा :| (५-२-१ अथर्व वेद .. ) अर्थात उस ईश्वर को पाकर सारे देवता आनन्दित होते हैं | गरुण वाहन युक्त भगवान् नारायण का निरंतर पूजन परम कल्याण की प्राप्ति देने वाला है | भगवान् का मंगलकारी नाम दुःखियों के दुःख का नाश करने वाला होता,रोगियों के रोग हरने वाला और पापियों के पाप का नाश करने वाला है | अथर्ववेद में कहा गया है | यथा - तन्नोन्नशद् य : पितरं न वेद | (९-९-२१ अथर्व वेद .. ) अर्थात जो पिता रुपी ईश को नहीं जानता ,उसे ब्रह्मानंद की प्राप्ति नहीं होती है | दार्शनिक भी यह मानते हैं - सृष्टिकर्ता जिसे ईश्वर कहता हूँ नहीं होता तो न लिखने के लिए मैं होता ,और यहां न पढ़ने के लिए आप होते | जैसे पुस्तक लेखक का ,कविता -कवि का प्रमाण है | ( सिद्धांत यू इंक लेखक अमेरिका /हसेज )| भारत वर्ष भर कर्म भूमि है ,यहाँ आने के लिए देवता लोग भी लालायित रहते हैं | अतः कर्मभूमि पर एक भी पराल्प क्षण व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए | भगवान विष्णु जो अनंत अविनाशी हैं ,उन्हीं के चिंतन मनन भजन में लगे रहना चाहिए |सुधर्म संवाद )|
जितना पूण्य गोविंद नाम से होता है उतना करोणों गायों के दान से ,गंगा स्नान से अथवा अन्य किसी उपाय से भी नहीं मिलता है | - गोविंद गोविंद गाते चलो
प्रभु से नाता मिलाते चलो | -सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी Sukhmangal (वार्ता) 15:15, 15 फ़रवरी 2020 (UTC)
2021 Wikimedia Foundation Board elections: Eligibility requirements for voters
संपादित करेंGreetings,
The eligibility requirements for voters to participate in the 2021 Board of Trustees elections have been published. You can check the requirements on this page.
You can also verify your eligibility using the AccountEligiblity tool.
MediaWiki message delivery (वार्ता) 16:31, 30 जून 2021 (UTC)
Note: You are receiving this message as part of outreach efforts to create awareness among the voters.