संतूर
संतूर भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है।
संतूर एक वाद्य यंत्र है। संतूर का भारतीय नाम 'शततंत्री वीणा' यानी सौ तारों वाली वीणा है जिसे बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला।
- संतूर की उत्पत्ती लगभग 1800 वर्षों से भी पूर्व ईरान में मानी जाती है बाद में यह एशिया के कई अन्य देशों में प्रचलित हुआ जिन्होंने अपनी-अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार इसके रूप में परिवर्तन किए।
- संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती हैं।
- एक सुर से मिलाये गये धातु के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या 60 होती है।
- आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है।
- संतूर मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य यंत्र है और इसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था।
- शिव कुमार शर्मा भारत के प्रसिद्ध संतूर वादक है।
नाम
संपादित करेंसंतूर का भारतीय नाम था शततंत्री वीणा यानी सौ तारों वाली वीणा जिसे बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला। यह अपने आप में एक अनोखा वाद्य है जो कि तार का साज़ होने के बावजूद लकड़ी की छोटी छड़ों से बजाया जाता है।
मूल
संपादित करेंयह मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य है जिसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था। यह एक सीमित समुदाय के बीच ही इस्तेमाल होता था। केवल वादी-ए-कश्मीर में इसका चलन था। बाकी तो जम्मू सहित और जगहों पर लोग इसके बारे में जानते ही नहीं थे। पंडित शिवकुमार शर्मा ने इसे लोकप्रियता की पराकाष्ठा तक पहुंचाने में विशेष योगदान दिया।
(साभार - बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम)