समावेशी विकास में हर वर्ग का विशेष ध्यान रखा जाए नीति निर्माण में सभी सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो एवं के कल्याण की बात की जाए एवं प्राकृतिक संसाधनों का न्याय पूर्ण दोहन शामिल हो

मैंने इस लेख में समावेशन

की समझ एवं इसकी अवधारणा को सामान्य शब्दों में समझाया है । आशा है कि मेरे इस लेख को पढ़कर पाठक गण प्रभावित होंगे । अंकित कुमार मुजफ्फरपुर बिहार

(समावेशन) :- यह एक दर्शन ,एक मानसिकता एवं एक अवधारणा है ,अर्थात प्रत्येक व्यक्ति की अपने से संबंधित समूह में अन्य से किसी प्रकार भिन्न है ,के भेदभाव के बिना समान अवसर तथा समान मर्यादा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। समावेशन को यदि शिक्षा में देखा जाए इसके संदर्भ में हमें इससे पहले समावेशी शिक्षा को समझना आवश्यक हो जाता है कि आखिर समावेशी शिक्षा है क्या? इसका क्या महत्व है ?

आइए अब हम समावेशी शिक्षा को समझते है ।

(समावेशी शिक्षा की अवधारणा) :- एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था जिसमें सामान्य बच्चों के साथ-साथ विशेष आवश्यकता वाले बच्चे को भी शिक्षा के मुख्य धारा के साथ जोड़कर उन्हें भी पठन-पाठन की क्रियाओं में सम्मिलित करता है।

     यहां विशेष आवश्कता वाले बच्चों से हमारा तात्पर्य यह की वैसे बालक या बालिका जो जन्म से ही सामान्य बच्चों से अलग होते है ऐसे में वे बालक/बालिका या तो शारीरिक या मानसिक रूप से निशक्त होते है या फिर काफी प्रबल होते है जो सामान्य से काफी हद तक भिन्न होते है । जिन्हे सामान्य बच्चों साथ रखकर पढ़ना कुछ मामलों में कठिनाई पूर्ण सिद्ध हो सकते है। 
                                  ऐसे में इन बच्चों के लिए उनके विद्यालयों में ना केवल प्रवेश मात्र से अपितु उनके शिक्षण अधिगम हेतु आवश्यकता अनुरूप  संसाधन उपलब्ध  कराना आवश्यक हो जाता है।  हमारे देश में आज भी कई विद्यालय ऐसे भी है । जहां  विभिन्न विषयों के लिए एक ही शिक्षक होते जो कि आजकल के शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चला पाने में असमर्थ है 

तब प्रश्न यह उठता है कि क्या हम विशिष्ट आवश्कता वाले बच्चों को विशिष्ट सामग्री ,विधि,संसाधन एवं विषय - वस्तु उपलब्ध करा पाते है ? समावेशी शिक्षा का सिद्धांत भी यही है कि सामान्य शिक्षक अपनी कक्षा में सभी प्रकार के बच्चों के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकें

                     जिस प्रकार हमारे संविधान में भी समानता का अधिकार वर्णित है ठीक उसी प्रकार समावेशी दर्शन में सभी छात्र/छात्राओं को एक समान माना जाता है। उनके साथ किसी प्रकार से कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। 
                     यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि समावेशी शिक्षा समावेशी कक्ष में विविधताओं को स्वीकार करने की मनोवृत्ति है। जिसके अन्तर्गत शिक्षा के वंचित बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ जोड़कर देखे ताकि वे भी समाज का एक हिस्सा बने और राष्ट्र निर्माण में अपना भी महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित करें  ।। 

(समावेशी शिक्षा के महत्व) :-

                               इस प्रकार की शिक्षा से  व्यवस्था बालक/बालिकाओं में मानसिक एवं आत्मसम्मान कि भावना का विकास अच्छी तरह। से हो पाता है ।  इस शिक्षण व्यवस्था में असमर्थ बालक/ बालिकाओं में प्यार,दयालुता,सामाजिक सद्भावना आदि जैसे गुणों का विकास होता है। 
                               इस व्यवस्था से इनके बीच समानता का सिद्धांत विकसित होता है ।।
                               
                                             :धन्यवाद: