सरिय्या अली इब्न अबी तालिब (फलस)
सरिय्या हज़रत अली इब्न अबी तालिब रज़ि० (फलस) का सैन्य अभियान मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदेश पर अरब की बनू ताई जनजाति के खिलाफ, क़लस (कलीसा) का बुत को नष्ट करने के लिए अगस्त 630 ईस्वी, इस्लामी कैलेंडर के 9 हिजरी दूसरे महीने में हुआ।
सरिय्या हज़रत अली इब्न अबी तालिब रज़ि० (फलस) | |||||
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मुहम्मद की सैन्य उपलब्धियाँ का भाग | |||||
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योद्धा | |||||
Muslims | ताई | ||||
सेनानायक | |||||
अली इब्न अबी तालिब | अदी बिन हातिम ताई | ||||
शक्ति/क्षमता | |||||
150 | अनजान | ||||
मृत्यु एवं हानि | |||||
0 | अनजान |
बनू ताई
संपादित करेंबनू ताई मूर्तिपूजा और ईसाई धर्म के पेशे के बीच विभाजित एक जनजाति थी।
जनजाति के प्रमुख हातिम ताई थे , वह अपनी उदारता के कारण प्रमुखता से आए और इस्लाम के विश्वकोश के अनुसार, उन्होंने उस समय अरब के एक महान नायक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। हातिम ने पुत्र अदी बिन हातिम ताई को उत्तराधिकारी बनाया, जिसने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश की। अदी बहुत धार्मिक थे। [1]
अभियान
संपादित करेंअर्रहीकुल मख़तूम में इस्लाम के विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी लिखते हैं कि हज़रत अली इब्न अबी तालिब रज़ि० को (रबीउल अव्वल सन् 09 हि०) कबीला तई के एक बुत को जिस का नाम क़लस (कलीसा या फलस) था ढाने के लिए भेजा गया था। आपके नेतृत्व में एक सौ ऊंट और पचास घोड़ों समेत डेढ़ सौ आदमी थे, झंडियां काली और फुरेरा सफ़ेद था, मुसलमानों ने फज्र के वक्त हातिम ताई के मुहल्ले पर छापा मारकर कलस को ढा दिया और कैदियों, जानवरों और भेड़-बकरियों पर कब्ज़ा कर लिया। इन्हीं कैदियों में हातिम ताई की बेटी सफाना बिन्त हातिम ताई भी थीं, अलबत्ता हातिम के बेटे अदी बिन हातिम ताई शाम देश भाग गए। मुसलमानों ने कलस के ख़ज़ाने में तीन तलवारें और तीन ज़िरहें पाई और रास्ते में ग़नीमत का माल बांट लिया अलबत्ता चुना गया माल अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए अलग कर दिया और आले हातम ( हातिम के घर के लोगों) को माल नहीं बांटा।
मदीना पहुंचे तो हातिम की बेटी ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दया का निवेदन करते हुए कहा, "ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! यहां जो आ सकता था लापता है, गुज़र चुके है और मैं बुढ़िया हूं। सेवा करने की ताकत नहीं रखती । आप मुझ पर एहसान कीजिए, अल्लाह आप पर ऐहसान करेगा।” आपने मालूम किया तुम्हारे लिए कौन आ सकता था? बोली, अदी बिन हाति ! फरमाया, वही जो अल्लाह और रसूल से भागा है फिर आप आगे बढ़ गए। दूसरे दिन उस ने फिर यही बात दोहरायी और आपने फिर वही फरमाया जो कल फरमाया था। तीसरे दिन उसने फिर यही बात कही, तो आप ने एहसान फ़रमाते हुए उसे आज़ाद कर दिया।
हातिम की बेटी लौट कर अपने भाई अदी के पास शाम देश गयीं। जब उनसे मुलाकात हुई तो उन्हें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में बतलाया कि आप ने ऐसा कारनामा अंजाम दिया है। कि तुम्हारे बाप भी वैसा नहीं कर सकते थे। उनके पास चाव या डर के साथ जाओ, चुनांचे अदी किसी अमान या लेख के बिना आप की सेवा में हाज़िर हो गए। आप उन्हें अपने घर ले गए और जब सामने बैठे तो आप ने अल्लाह का गुणगान किया, फिर फ़रमाया, “तुम किस चीज़ से भाग रहे हो? क्या कलिमा कहने से भाग रहे हो? अगर ऐसा है तो बताओ तो क्या तुम्हें अल्लाह के सिवा किसी और माबूद (उपास्य) की जानकारी है ?” उन्हों ने कहा, नहीं। फिर आप ने कुछ देर बात की, इस के बाद फ़रमाया, “अच्छा तुम इस से भागते हो कि अल्लाहु अकबर कहा जाए तो क्या तुम अल्लाह से बड़ी कोई चीज़ जानते हो?" उन्होंने कहा, नहीं आपने फ़रमाया, “सुनो! यहूदियों पर अल्लाह के गज़ब की मार है और ईसाई गुमराह हैं।" उन्होंने कहा, तो मैं एक रुखा मुसलमान हूं। यह सुन कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का चेहरा हमारे खुशी के दमक उठा। इसके बाद आप के हुक्म से उन्हें एक अंसारी के यहां ठहरा दिया गया और वे सुबह व शाम आपकी ख़िदमत में आते रहे।[1]
इस्लामिक प्राथमिक स्रोत
संपादित करेंइब्ने इस्हाक़ ने हज़रत अदी से यह भी रिवायत की है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें अपने सामने अपने घर में बिठाया तो फ़रमाया! अदी बिन हातिम क्या तुम मज़हब के तौर पर रकोसी न थे? अदी कहते हैं। मैंने कहा, क्यों नहीं? आपने फ़रमाया, क्या तुम अपनी कौम में माले ग़नीमत का चौथाई लेने पर अमल पैरा नहीं थे? मैंने कहा, क्यों नहीं! आप ने फ़रमाया, हालांकि यह तुम्हारे दीन में हलाल नही। मैंने कहा, अल्लाह की कसम! और इसी से मैंने जान लिया कि वाकई आप अल्लाह के भेजे हुए रसूल हैं, क्योंकि आप वह बात जानते हैं जो जानी नहीं जाती।
'मुस्नद अहमद की रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया, ऐ अदी ! इस्लाम लाओ सलामत रहोगे। मैं ने कहा, मैं तो खुद एक दीन का मानने वाला हूं। आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, मैं तुम्हारा दीन तुम से बेहतर तौर पर जानता हूं। मैं ने कहा, आप मेरा दीन मुझ से बेहतर तौर पर जानते हैं? आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया. हां! क्या ऐसा नहीं कि तुम मज़हबी तौर पर कोसी हो, और फिर भी अपनी कौम के ग़नीमत के माल का चौथाई खाते हो? मैं ने कहा, क्यों नहीं! आपने फ़रमाया कि यह तुम्हारे दीन के हिसाब से हलाल नहीं। आपकी इस बात पर मुझे सर झुकाना पड़ा।" [2]
सराया और ग़ज़वात
संपादित करेंइस्लामी शब्दावली में अरबी शब्द ग़ज़वा [3] इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।[4] [5]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ Mufti, M. Mukarram Ahmed (Dec 2007), Encyclopaedia of Islam, Anmol Publications Pvt Ltd, पृ॰ 103, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-261-2339-1
- ↑ सफिउर्रहमान मुबारकपुरी, पुस्तक अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ). "सरिय्या अली बिन अबी तालिब रज़ि० ( रबीउल अव्वल सन् 09 हि०)". पृ॰ 869. अभिगमन तिथि 13 दिसम्बर 2022.
- ↑ Ghazwa https://en.wiktionary.org/wiki/ghazwa
- ↑ siryah https://en.wiktionary.org/wiki/siryah#English
- ↑ ग़ज़वात और सराया की तफसील, पुस्तक: मर्दाने अरब, पृष्ट ६२] https://archive.org/details/mardane-arab-hindi-volume-no.-1/page/n32/mode/1up
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Ar-Raheeq Al-Makhtum|Ar Raheeq Al Makhtum– The Sealed Nectar (Biography Of The Noble Prophet) -First PRIZE WINNER BOOK Ar Raheeq Al Makhtum
- अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी), पैगंबर की जीवनी (प्रतियोगिता में प्रथम पुस्तक) अर्रहीकुल मख़तूम