सरोज स्मृति १९३५ ई. में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा लिखी लंबी कविता और एक शोकगीत है। निराला ने यह शोकगीत 1935 में अपनी 18 वर्षीया पुत्री सरोज के निधन के उपरांत लिखा था।[1][2] इसका प्रथम प्रकाशन 1938[3] या 1939[4] में प्रकाशित "द्वितीय अनामिका" के प्रथम संस्करण में हुआ था।

इस कविता में उन्होंने अपने शोक के साथ-साथ समाज के प्रति आक्रोश और व्यंग्य प्रकट किया है।[5] इसकी तुलना रामविलास शर्मा ने विलियम शेक्सपीयर के किंग लियर से करते हुए लिखा है कि हिंदी में ही नहीं अंग्रेजी में भी ऐसे शोकगीत दुर्लभ है। यह कविता हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ शोकगीतों में से एक मानी जाती है।[6] निराला ने इस कविता के विषय की गंभीरता के बावजूद इसके लेखन में हलके-फुल्के शब्दों का प्रयोग किया है।[7]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. रमेश कुन्तल, मेघ (2007). "18". क्योंकि समय एक शब्द है. इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन. पृ॰ 376. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8031-171-0. अभिगमन तिथि 25 अक्टूबर 2011.
  2. शर्मा, रामविलास. "नये संस्करण की भूमिका". निराला की साहित्य साधना. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-2671-693-7. अभिगमन तिथि 30 अक्टूबर 2011.
  3. प्रसाद का काव्य. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. 2008. पृ॰ 349. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8361-206-7. अभिगमन तिथि 30 अक्टूबर 2011. |firstlast= missing |lastlast= in first (मदद)
  4. नवल, नन्द किशोर (2009). निराला रचनावली. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-2671-277-9. अभिगमन तिथि 30 अक्टूबर 2011.
  5. शर्मा, रामविलास (2009). निराला की साहित्य साधना (Vol. 1 To 3). नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 233. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1694-4. अभिगमन तिथि 25 अक्टूबर 2011.
  6. गुप्त, गणपति चन्द्र. हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 95. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8031-204-5. अभिगमन तिथि 25 अक्टूबर 2011.
  7. सिंह, नामवर. कविता के नए प्रतिमान. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 153. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-2671-462-9. अभिगमन तिथि 28 अक्टूबर 2011.

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