साँचा:आज का आलेख ११ जून २००९
वर्तनी का अर्थ भाषा में किसी शब्द को वर्णों से व्यक्त करने की क्रिया को कहते हैं। हिंदी भाषा का पहला और बड़ा गुण ध्वन्यात्मकता है, जिससे इसमें उच्चरित ध्वनियों को व्यक्त करना बड़ा सरल है। हिंदी में वर्तनी की आवश्यकता काफी समय तक नहीं समझी गई; जबकि अंग्रेजी व उर्दू आदि अन्य कई भाषाओं में इसका महत्त्व था। किंतु क्षेत्रीय व आंचलिक उच्चारण के प्रभाव, अनेकरूपता, भ्रम, परंपरा के निर्वाह आदि के कारण जब यह लगा कि एक ही शब्द की कई वर्तनियाँ मिलती हैं तो इनको व्यक्त करने के लिए किसी सार्थक शब्द की तलाश हुई। इस कारण से मानकीकरण की आवश्यकता महसूस की गई। इस अर्थ में वर्तनी शब्द मान्य हो गया और केंद्रीय हिंदी निदेशालय, ने इस शब्द को मान्यता दी, एवं एकरूपता की दृष्टि से कुछ नियम भी स्थिर किए हैं। हिन्दी के, कई राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप भारत के भीतर, बाहर इसे सीखने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हो जाने से हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करना आवश्यक और कालोचित लगा, ताकि हिन्दी शब्दों की वर्तनियों में अधिकाधिक एकरूपता लाई जा सके। तब शिक्षा मंत्रालय ने १९६१ में हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति द्वारा हिन्दी भाषा के मानकीकरण की सरकारी प्रक्रिया का प्रारंभ किया। इस सतत प्रक्रिया के मुख्य निर्देश तय हो चुके हैं जो भारत के सभी सरकारी कार्यालयों में प्रसारित किए गए हैं। इनका अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु भी संस्थान कार्यरत है। विस्तार में...