सांभर पीठ
राजस्थान स्थित माता शाकम्भरी देवी के मंदिर को ही सांभर पीठ कहा जाता है जोकि राजस्थान के जयपुर जिले मे सांभर कस्बे के पास सांभर झील मे है। इस मंदिर को पृथ्वीराज चौहान के समय का माना जाता है। हालांकि इसकी गणना शक्तिपीठों मे नही होती। किवदंतियों के अनुसार माता शाकम्भरी चौहानों की कुलदेवी थी जिनका मंदिर सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर स्थित था जहाँ चौहान राजवंश माता की पूजा अर्चना करते थे बाद मे वही से प्रेरित होकर और ज्योति लाकर माता को साम्भर मे भी स्थापित किया। साम्भर मे चौहानों ने शाकम्भरी देवी का मंदिर बनवाया था। इसलिए यह राजस्थान में लोकदेवी बन गई।
शाकम्भरी देवी शाकम्भरी देवी साम्भर झील | |
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शाकम्भरी देवी मंदिर | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | शाकम्भरी |
त्यौहार | नवरात्र दुर्गा अष्टमी, चतुर्दशी |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | साम्भर |
राज्य | राजस्थान |
देश | भारत |
वास्तु विवरण | |
निर्माण पूर्ण | आठवीं शताब्दी |
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शाकम्भरी | |
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"भगवती शताक्षी का स्वरूप" | |
देवनागरी | शाकम्भरी |
त्यौहार | नवरात्र, दुर्गा अष्टमी |
शाकम्भरी माता की कथा
संपादित करेंराजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर साम्भर कस्बे में स्थित मां शाकंभरी मंदिर करीब 2500 साल पुराना माना जाता है हालांकि मंदिर की स्थापना आठवीं शताब्दी मे हुई थी
शाकम्भरी देवी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक मचाया, तब पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक वर्षा न हुई। तब अन्न-जल के अभाव में समस्त प्रजा मरने लगी। समस्त जीव भूख से व्याकुल होकर मरने लगे। उस समय समस्त देवों और मुनियों ने मिलकर हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखला की प्रथम शिखा पर माँ भगवती की उपासना की। जिससे आयोनिजा भवानी जी ने एक नए रूप में अवतार लिया और उनकी कृपा से वर्षा हुई। इस अवतार में महामाया ने जलवृष्टि से पृथ्वी को हरी शाक-सब्जी और फलों से परिपूर्ण कर दिया, जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ। शाक उत्पन्न करने के कारण शाकम्भरी नाम पड़ा। इसके बाद सारा संसार हराभरा हो गया। राजस्थान मे वैसे तो शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुलदेवी है लेकिन, माता को सभी जाति और समाज के लोग पूजते हैं। शाकम्भरी दुर्गा का अवतार है। शाकम्भरी मां के देशभर में तीन शक्तिपीठ है। माना जाता है कि इनमें सहारनपुर शक्तिपीठ के बाद सबसे प्राचीन शक्तिपीठ यहीं है। मंदिर में भादवा सुदी अष्टमी को मेला आयोजित होता है। दोनों ही नवरात्रों में माता के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। मां शाकम्भरी का वर्णन महाभारत और शिव महापुराण में भी मिलता है।
== सन्दर्भ == वैसे शाकंभरी माता भारीयो की भी कुलदेवी है जिनका निवास स्थान सरगिया खुदृ भोपालगढ मे है