साक्ष्य विधि (law of evidence या rules of evidence) उन कानूनों और सिद्धान्तों का समूह है जो निर्धारित करते हैं कि किसी विधिक कार्यवाही में क्या-क्या तथ्य के प्रमाण के रूप में स्वीकार्य हैं। प्राचीन हिन्दू काल में धर्मशास्त्रों में विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों का उल्लेख मिलता है, जैसे – लेख, दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में, साक्षी जो मौखिक बयान देता है, वह श्रुति या कब्जा आदि।

साक्ष्य विधि प्रक्रिया विधि है तथा पूरक विधि है। इस विधि का भूतलक्षी प्रभाव है। साक्ष्य विधि देशकारी विधि (Lex Fori) है अर्थात् जिस देश में मुकदमा चल रहा है, उस देश की विधि लागू होती है। इसके अंतर्गत यह देखा जाता है कि –

  • (१) क्या कोई साक्षी है अथवा नहीं,
  • (२) क्या कोई विषय साबित किये जाने के लिए आवश्यक है अथवा नहीं ।

यद्यपि भारतीय साक्ष्य अधिनियम प्रक्रिया विधि है लेकिन इसमें मूल विधि के नियम शामिल हैं, जैसे- धारा 6-55 तक तथ्यों की सुसंगति से सम्बंधित नियम, धारा 115-117 तक विबन्ध के नियम, ये सभी मौलिक विधि के नियम हैं।

'लेक्स फोरी'-

यह कार्य स्थान की विधि से संबंधित है। क्योंकि साक्ष्य हमेशा उस देश की विधि से शासित होता है, जहां कार्यवाही या चलाई गई हैं, भारतीय साक्ष्य अधिनियम में "निहारेन्द्र दत्त मजूमदार बनाम सम्राट"के प्रमुख वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, "जब कोई प्रश्न किसी ऐसी घटना के जो इंग्लैंड में घटित हुई हो, साबित करने की उचित पद्धति के बावत भारत के न्यायालय के समक्ष आता है, ऐसी स्थिति में भारतीय साक्ष्य की विधि ही लागू होती न कि इंग्लैंड की साक्ष्य विधि।"

साक्ष्य विधि के मूलभूत सिद्धान्त संपादित करें

  • (१) सभी मामलों में सर्वोत्तम साक्ष्य दिया जाना चाहिए।
  • (२) जो भी साक्ष्य दिया जाए वह साक्ष्य विवादित विषय से सम्बंधित होना चाहिए अर्थात सुसंगत होना चाहिए।
  • (३) अनुश्रुत साक्ष्य कोई साक्ष्य नहीं है, यद्यपि कुछ आपवादिक परिस्थितियों में अनुश्रुत साक्ष्य भी ग्राह्य होता है, जैसे –मृत्युकालिक कथन।
  • (४) साक्ष्य विधि, लेक्स फोरी विधि है जिसे देशकालिक विधि कहा जाता है अर्थात जिस देश में सुनवाई हो रही है, वहां की साक्ष्य विधि लागू होगी।

इन्हें भी देखें संपादित करें

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