सीमाबद्ध (1971 फ़िल्म)
सीमाबद्ध (बांग्ला: সীমাবদ্ধ) (बंगाली उच्चारण : शिमाबद्धो) (अंग्रेजी नाम : Company Limited) सत्यजीत राय द्वारा निर्देशित, 1971 में बनी एक बंगाली फ़िल्म है।[1] यह मणिशंकर मुखर्जी के उपन्यास सीमाबद्ध (शिमाबद्धो) पर आधारित है। इसमें बरुण चंद, हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय और शर्मिला टैगोर आदि ने मुख्य भूमिकाएँ निभायी हैं। यह फ़िल्म राय की कलकत्ता त्रयी की दूसरी फिल्म थी, जिसमें प्रतिद्वंदी (1970) और जन अरण्य (1976) शामिल थीं। ये फ़िल्में कलकत्ता के तेजी से हो रहे आधुनिकीकरण, बढ़ती कॉर्पोरेट संस्कृति और लालच तथा चूहे-दौड़ की निरर्थकता पर आधारित हैं।[2] इस फिल्म ने 33वें वेनिस अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समीक्षक महासंघ पुरस्कार और 1971 में सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीता।[3]
सीमाबद्ध | |
---|---|
निर्देशक | सत्यजित राय |
लेखक | सत्यजित राय, मणि शंकर मुखर्जी द्वारा रचित उपन्यास पर आधारित |
निर्माता | चित्रांजलि (भारत शमशेर जंग बहादुर राणा) |
अभिनेता |
बरुण चंद हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय शर्मिला टैगोर हरधन बंदोपाध्याय पारुमिता चौधुरी इंदिरा रॉय प्रमोद गांगुली जी॰ एच॰ मणिअय्यर |
छायाकार | सौमेंदु रॉय |
संपादक | दुलाल दत्त |
संगीतकार | सत्यजित राय |
प्रदर्शन तिथियाँ |
|
लम्बाई |
112 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | बंगाली |
पृष्ठभूमि एवं कथानक
संपादित करेंफ़िल्म 1971 में रिलीज हुई। बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मुक्ति संग्राम चल रहा था। पश्चिम बंगाल में लाखों शरणार्थियों ने शरण ले रखी थी। भारतीय सेना बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों को सैन्य प्रशिक्षण में मदद कर रही थी। वहीं पश्चिम बंगाल के अंदर नक्सल समर्थक सीपीआई-एमएल का सशस्त्र संघर्ष जारी था, जिसे दबाने के लिए प्रशासन सख़्त से सख़्त होता जा रहा था। कई युवा मर रहे था। इसी दौरान 24 सितंबर को 'सीमाबद्ध' रिलीज हो गई। यह फ़िल्म प्रतिभा और किस्मत के धनी युवा श्यामलेन्दु चटर्जी की कहानी है, जो कोलकाता शहर में बेरोजगारी की पृष्ठभूमि में एक कंपनी का निदेशक बन जाता है। कहानी से पता चलता है कि यह युवक पदोन्नति और सामाजिक प्रतिष्ठा की ख़ातिर छोटे-मोटे काम करने से भी नहीं हिचकिचाता। फिल्म 'प्रतिद्वंद्वी' में श्यामल का किरदार सिद्धार्थ से बिल्कुल उलट है। विरोधाभासी इस अर्थ में कि सिद्धार्थ बेरोजगार है, पूरी फिल्म में नौकरी की तलाश में सड़कों पर घूम रहा है। और श्यामल को न केवल नौकरी मिली क्योंकि वह एक अच्छा छात्र था, बल्कि उस नौकरी के शीर्ष पर भी पहुँचा। जहाँ सिद्धार्थ वामपंथी हैं वहीं श्यामल की कोई विचारधारा नहीं है। सिद्धार्थ अपने पैरों के नीचे जमीन होने पर दूसरों के लिए विरोध करना जानता है, वहीं दूसरी ओर श्यामल अपने पैरों के नीचे जमीन पाने के लिए दूसरों की जान जोखिम में डालने से नहीं हिचकिचाता।
कलाकार
संपादित करें- शर्मिला टैगोर तुतुल (सुदर्शना) की भूमिका में
- बरुण चंद श्यामल (श्यामलेंदु चटर्जी) की भूमिका में
- पारमिता चौधुरी दोलन (श्यामल की पत्नी) की भूमिका में
- हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय बारेन रॉय की भूमिका में
- दिपांकर डे सेन की भूमिका में
- अजय बनर्जी तालुकदार की भूमिका में
- हरधन बंदोपाध्याय नीलांबर की भूमिका में
- इंदिरा रॉय श्यामल की माँ की भूमिका में
- प्रमोद गांगुली श्यामल के पिता की भूमिका में
पुरस्कार
संपादित करें- 33वाँ वेनिस अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल : अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समीक्षक महासंघ पुरस्कार
- सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म के लिए 19वाँ राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (1971)[4]
संदर्भ
संपादित करें- ↑ Roy Armes (29 July 1987). Third World Film Making and the West. University of California Press. पपृ॰ 237–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-90801-7.
- ↑ Andrew Robinson (1989). Satyajit Ray: The Inner Eye. University of California Press. पपृ॰ 200–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-06946-6.
- ↑ John W. Hood (2008). Beyond the world of apu: the films of Satyajit Ray. Orient Longman. पृ॰ 180. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-250-3510-7.
- ↑ "Seemabaddha @ SatyajitRay.org". मूल से 27 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 सितंबर 2024.