सुजाता (1959 फ़िल्म)
सुजाता १९५९ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसके निर्माता व निर्देशक प्रसिद्ध बिमल रॉय थे तथा इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका सुनील दत्त तथा नूतन ने निभाई थी। यह फ़िल्म भारत में प्रचलित छुआछूत की कुप्रथा को उजागर करती है। इस फ़िल्म की कहानी एक ब्राह्मण पुरुष और एक अछूत कन्या के प्रेम की कहानी है। इस फ़िल्म को १९५९ में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुजाता | |
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चित्र:सुजाता.jpg सुजाता का पोस्टर | |
निर्देशक | बिमल रॉय |
लेखक |
सुबोध घोष (कहानी) नबेन्दु घोष (पटकथा) पॉल महेन्द्र (संवाद) |
निर्माता | बिमल रॉय |
अभिनेता | सुनील दत्त, नूतन, शशिकला, ललिता पवार |
छायाकार | कमल बोस |
संपादक | अमित बोस |
संगीतकार |
सचिन देव बर्मन (संगीत) मजरुह सुल्तानपुरी (गीत) |
निर्माण कंपनी |
मोहन स्टुडियोज़ |
वितरक | बिमल रॉय प्रोडक्शन्स |
प्रदर्शन तिथि |
1959 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
संक्षेप
संपादित करेंएक सभ्रांत ब्राह्मण दम्पति उपेन्द्र चौधरी (तरुण बोस) तथा चारु (सुलोचना) के घर काम करने वाले की पत्नी समेत हैजे के कारण मृत्यु हो जाती है और वह अपने पीछे एक नवजात बच्ची छोड़ जाते हैं जिसे चारु की ज़िद से उपेन्द्र के परिवार की आया पालने लग जाती है और जिसका नाम सुजाता (बड़ी होकर नूतन) रखा जाता है। उपेन्द्र दम्पति की अपनी भी एक नवजात बच्ची होती है जिसका नाम होता है रमा (बड़ी होकर शशिकला)। चूंकि सुजाता का पिता अछूत जाति से था इसलिए जब उपेन्द्र की बुआ (ललिता पवार) उनके घर आती हैं तो सुजाता को छुपाने की कोशिश किये जाने के बावजूद बुआ को पता चल जाता है और उपेन्द्र दम्पति को वह निर्देश देती है कि उसे किसी भी तरह से उसी की जात बिरादरी में भेज दिया जाये। लेकिन सारे प्रयास विफल हो जाते हैं। सुजाता उपेन्द्र परिवार में ही बड़ी होती है और उपेन्द्र दम्पति को ही वह अपना माँ-बाप समझने लगती है। रमा भी उसको अपनी बड़ी बहन मानती है। लेकिन सुजाता अनपढ होती है जबकि रमा कॉलेज में पढ़ती है।
बुआ का नवासा अधीर (सुनील दत्त) जब शहर से पढ़ाई कर वापस आता है तो उसे सुजाता को देखते ही प्यार हो जाता है जबकि बुआ चाहती है कि अधीर और रमा का विवाह हो। सुजाता भी अधीर को चाहने लगती है। एक दिन जब चारु और बुआ के बीच चल रही बातचीत को जब सुजाता सुनती है तो उसे पता चलता है कि वह अछूत है। वह अधीर से किनारा करने की कोशिश करती है लेकिन अधीर नये ख्यालात का लड़का है और वह इन दकियानूसी बातों को नहीं मानता है।
एक दिन एक हादसे में चारु को चोट लग जाती है और उसे खून देने की ज़रुरत पड़ती है। केवल सुजाता का ही खून चारु के खून से मिलता है इसलिए चारु को सुजाता का खून चढ़ता है। इससे पहले चारु बुआ के बहकावे में आकर सुजाता को अधीर से प्रेम करने के लिए दुत्कारती थी, लेकिन अब चारु सुजाता को अपना लेती है और आखिरकार बुआ भी इस रिश्ते को अपनी मंज़ूरी दे देती है।
चरित्र
संपादित करें- सुनील दत्त - अधीर
- नूतन - सुजाता
- शशिकला - रमा चौधरी
- ललिता पवार - उपेन्द्र चौधरी की बुआ
- तरुण बोस - उपेन्द्र चौधरी
- असित सेन - पण्डित जी (छोटा रोल)
- सुलोचना - चारु चौधरी
मुख्य कलाकार
संपादित करेंदल
संपादित करेंसंगीत
संपादित करेंइस फ़िल्म में संगीत दिया है ऍस डी बर्मन ने और गीत के बोल लिखे हैं मजरुह सुल्तानपुरी ने।
गीत | गायक/गायिका | |
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१ | अंधे ने भी सपना देखा | मोहम्मद रफ़ी |
२ | बचपन के दिन भी क्या दिन थे | गीता दत्त, आशा भोंसले |
३ | जलते हैं जिसके लिए | तलत महमूद |
४ | काली घटा छाए | आशा भोंसले |
५ | नन्ही कली सोने चली | गीता दत्त |
६ | सुन मेरे बन्धु रे | ऍस डी बर्मन |
७ | तुम जीयो हज़ारों साल | आशा भोंसले |
रोचक तथ्य
संपादित करेंपरिणाम
संपादित करेंबौक्स ऑफिस
संपादित करेंसमीक्षाएँ
संपादित करेंसुजाता" एक हिंदी फिल्म है जो 1959 में रिलीज हुई थी।
फिल्म की रिलीज के समय, भारतीय समाज जाति के आधार पर विभाजित था और अस्पृश्यता का मुद्दा अभी भी प्रचलित था।
यह फिल्म जातिगत भेदभाव के मुद्दे पर ध्यान देने और सामाजिक सुधार की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए बनाई गई थी। फिल्म का उद्देश्य मौजूदा सामाजिक मानदंडों को चुनौती देना और परिवर्तन को प्रेरित करना था।
फिल्म के निर्माण के दौरान कुछ विवाद और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद, फिल्म को अच्छी प्रतिक्रिया मिली और इसे सफल माना गया।
फिल्म का सरकार और समाज पर प्रभाव पड़ा और बदलाव के लिए एक व्यापक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन में योगदान दिया। फिल्म की सफलता इसके शक्तिशाली संदेश और उस समय भारतीय समाज पर इसके प्रभाव का एक वसीयतनामा है।
नामांकन और पुरस्कार
संपादित करें- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - बिमल रॉय
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार - नूतन
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार - बिमल रॉय
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ कथा लेखन पुरस्कार - सुबोध घोष
तीसरी श्रेष्ठ फीचर फिल्म पुरस्कार