सुत्तनिपात
सुत्तनिपात बौद्ध धर्म के थेरावाद सम्प्रदाय का ग्रन्थ है। यह खुद्दक निकाय के अन्तर्गत आता है। सुत्तपिटक अपने विषय, विस्तार तथा रचना की दृष्टि से त्रिपिटक का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसमें ऐसे सुत्तों का संग्रह किया गया है जो परम्परानुसार या तो स्वयं भगवान बुद्ध के कहे हुए हैं या उनके साक्षात् शिष्य द्वारा उपदिष्ट हैं और जिनका अनुमोदन स्वयं भगवान बुद्ध ने किया है। माना जाता है कि इसके सभी सुत्तों (सूत्रों) की रचना बुद्ध के महापरिनिर्वाण से पहले हो चुकी थी।
सुत्तनिपात में बौद्धधर्म के सिद्धान्तों का बड़ी मार्मिकता के साथ वर्णन किया गया है। भदन्त जगदीश काश्यप का विचार है कि बौद्धधर्म को अपने मौलिक रूप में समझने के लिए सुत्तनिपात एक आदर्श ग्रन्थ है। हृदय को स्पर्श करने, संवेग उत्पन्न करने और संसार से खींचकर परमार्थ की प्राप्ति में लगा देने की अद्भुत क्षमता इसके अंश-अंश में विद्यमान है।
सुत्तनिपात में तत्कालीन उत्तर भारत की सामाजिक, धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक आदि अवस्थाओं के सम्बन्ध में प्रचुर सामग्री है। वर्णव्यवस्था का खण्डन, शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन, बुद्ध के गृहत्याग का कारण, नाना मतवादों का विस्तार, तापस जीवन की महत्ता, प्राचीन ब्राह्मणों के कर्तव्य, यज्ञ-हवन आदि की निस्सारता, समाज में व्याप्त मिथ्याविश्वासों का वर्जन, विभिन्न दार्शनिक गुरुओं का निराकरण, आत्मा, परमात्मा के ऊहापोह की निस्सारता आदि विषयों पर इस ग्रन्थ में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। भिक्षुचर्या का सुन्दर निरूपण यहाँ मिलता है। बौद्ध गृहस्थ और भिक्षु के क्या कर्तव्य हैं? एक सद्गृहस्थ को कैसे जीवन यापन करना चाहिए? दुराचारी और दुःशील भिक्षु को संघ से बहिष्कृत करके शुद्ध भिक्षुओं के साथ ध्यान-भावना में जुटना चाहिए, किसी को हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, सबको समान समझना चाहिए, दृष्टियों के फेर में पड़कर वादविवाद में नहीं पड़ना चाहिए, सांसारिक आसक्तियों को त्याग अकिंचन हो परमसुख निर्वाण की प्राप्ति के लिए जुट जाना चाहिए आदि सुत्तनिपात में वर्णित विषय हैं। रतन, मंगल, मेत्त आदि प्रसिद्ध सुत्त भी इसमें आए हुए हैं, जिनका कि पाठ प्रतिदिन भिक्षु करते हैं।
सुत्तनिपात में मुख्यतः श्लोक हैं किन्तु कहीं-कहीं गद्य भी है। 'सुत्त' (पालि) का संस्कृत रूपान्तर प्रायः 'सूत्र' किया जाता है। किन्तु प्रस्तुत सुत्तों में सूत्र के वे लक्षण दृष्टिगोचर नहीं होते जो संस्कृत की प्राचीन सूत्ररचनाओं, जैसे वैदिक साहित्य के श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र एवं धर्मसूत्र आदि में पाए जाते हैं। सूत्र का विशेष लक्षण है अति संक्षेप में कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ व्यक्त करना। उसमें पुनरुक्ति का सर्वथा अभाव है। किन्तु सुत्तनिपात में संक्षिप्त शैली के विपरीत सुविस्तृत व्याख्यान तथा मुख्य बातों की बार-बार पुनरावृत्ति की शैली अपनाई गई है। इस कारण सुत्त का सूत्र रूपान्तर उचित प्रतीत नहीं होता। विचार करने से अनुमान होता है कि सुत्त का अभिप्राय मूलतः सूक्त से रहा है। वेदों के एक एक प्रकरण को भी सूक्त ही कहा गया है। किसी एक बात के प्रतिपादन को सूक्त कहना सर्वथा उचित प्रतीत होता है।
संगठन
संपादित करेंसुत्तनिपात में ५ वर्ग (पालि :'वग्ग') हैं-
- उरगवग्ग (उरग = सर्प)
- उरगसुत्त
- धनिय सुत्त
- खग्गविसाण सुत्त (खङ्गविषाण = गैंडा)
- कासीभारद्वाज सुत्त
- Cunda Sutta
- पराभव सुत्त
- Vasala Sutta
- Metta Sutta
- हेमवत सुत्त
- Āḷavaka Sutta
- विजय सुत्त
- मुनि सुत्त
- चुल्लवग्ग
- रतनसुत्त
- आमगन्ध सुत्त
- Hiri Sutta
- मंगल सुत्त
- सूचीलोम सुत्त
- धम्मचारिय सुत्त
- ब्राह्मणधम्मिक सुत्र
- नावा सुत्त
- Kiṃsīla Sutta
- उट्ठान सुत्त
- राहुल सुत्त
- Nigrodhakappa Sutta
- Sammā-paribbājanīya Sutta
- धम्मिक सुत्त
- महावग्ग
- पब्बज्जा सुत्त
- पधान सुत्त
- सुभाषित सुत्त
- सुन्दरिक-भारद्वाज सुत्त
- माघ सुत्त
- सभिय सुत्त
- Sela Sutta
- Salla Sutta
- Vāseṭṭha Sutta
- कोकालिक सुत्त
- Nālaka Sutta
- Dvayatanupassana Sutta
- अट्ठकवग्ग
- कामसुत्त
- गुह-अट्ठक सुत्त
- दुट्ठ-अट्ठक सुत्त
- सुद्ध-अट्ठक सुत्त
- परम-अट्ठक सुत्त
- जरा सुत्त
- तिस्स-मेत्तेय्य सुत्त
- पसूर सुत्त
- मागण्डिय सुत्त
- पुराभेद सुत्त
- कलहविवाद सुत्त
- चूळाब्यूह सुत्त
- महाब्यूह सुत्त
- Tuvaṭaka Sutta
- अट्टदण्ड सुत्त
- सारिपुत्त सुत्त
- पारायणवग्ग
- अजित-माणव-पुच्छा
- तिस्स-मेत्तेय्य-माणव-पुच्छा
- पुण्णक-माणव-पुच्छा
- मेत्तगू-माणव-पुच्छा
- धोतक-माणव-पुच्छा
- उपसीव-माणव-पुच्छा
- नन्द-माणव-पुच्छा
- हेमक-माणव-पुच्छा
- तोदेय्य-माणव-पुच्छा
- कप्प-माणव-पुच्छा
- जातुकण्णी-माणव-पुच्छा
- भद्रायुध-माणव-पुच्छा
- उदय-माणव-पुच्छा
- पोसाल-माणव-पुच्छा
- मोघराज-माणव-पुच्छा
- पिंगिय-माणव-पुच्छा
सन्दर्भ
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- सुत्तनिपात मूलपालि तथाहिन्दी अनुवाद (लेखक-भिक्षु धर्मरक्षित)
- Sutta Nipata (Access to Insight)
- Sutta Nipata Lectures Archived 2021-06-24 at the वेबैक मशीन taught by Bhikkhu Bodhi
- Translations at dhammatalks.org